रविवार, 11 दिसंबर 2016

राजपूती कविता/शायरी/दोहे

राजपुताना शायरी
जलते हैं तो जलने दो बुजाना मेरा काम नहीं...
जला जला कर राख ना करदू तो "कुँवर सा" मेरा नाम
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ओ बाईसा पीछे मुड के देखो
आप का दुपट्टा जमीन से घिसा जा रहा है बाईसा
ने जवाब दिया---बन्ना आप क्या जानो
ये भी राजपूत का फर्ज निभा रहा है, कोई चूम न ले
मेरे कदमों की मिट्टी को इस लिये ये निशान मिटा
रहा हैं _________________________________________
फीका पड़ता था तेज सूरज का,
जब तू माथा ऊचा करता था,
थी तुझमे कोई बात राणा,
अकबर भी तुझसे डरता था ।।
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इतिहास की बाते वो लोग करते हें जिन्हें वर्तमान से
डर लगता हें, राजपूत इतिहास का पन्ना नही
पलटता,तख्ता पलटता हैं।।
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शेर को सवा शेर कहीं ना कहीं ज़रूर मिलता हैं..
और रही बात हमारी तो हम तो बचपन से ही सवा
शेर हैं।।
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ये तो राजपूतो की तलवारो का
कारनामा है
दोस्तों...
वरना हिंदुस्तान तो कभी का मुगलस्तान
हो चूका होता।
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वो तो कुच अंग्रेजो कि औलादो ने शुरु किया है "
हाय > हैलो "
वरना हम # राजपुत तो बस #
" जय_भवानि " से पुरा भारत कवर कर देते हैं।।
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                       राजपुताना  कविता
आग धधकती है सीने मे,
आँखोँ से अंगारे,
हम भी वंशज है राणा के,
कैसे रण हारे...?
कैसे कर विश्राम रुके हम...?
जब इतने कंटक हो,
राजपूत विश्राम करे क्योँ,
जब देश पर संकट हो.
अपनी खड्ग उठा लेते है,
बिन पल को हारे,
आग धधकती है सीने मे...........
सारे सुख को त्याग खडा है,
राजपूत युँ तनकर,
अपने सर की भेँट चढाने,
देशभक्त युँ बनकर..
बालक जैसे अपनी माँ के,
सारे कष्ट निवारे.
आग धधकती है सीने मे...........
:-ठाकुर धर्मेँद्र सिँहजी तोमर
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हे क्षत्रिय! उठ!
अपनी निँद्रा को त्याग..!
ले इस नये रण संग्राम मे भाग!
भरकर अपनी भुजाओँ मेँ दम....
मिटा दे लोगोँ के भ्रम..., देख आज तू क्योँ
है?
अपने कर्तव्योँ से दुर!
कर विप्लव का फिर शंखनाद,
उठा तेरी काया मे फिर रक्त का ज्वार!
हे क्षत्रिय! उठ!
अपनी निँद्रा को त्याग..!
देख शिखाओँ को,
उनसे उठ रहा है धुआँ..,
उठ खडा हो फिर 'अक्षय' तू,
कर दुष्टोँ का संहार,
नीति के रक्षणार्थ बन तू पार्थ!
हे क्षत्रिय! उठ!
अपनी निँद्रा को त्याग..!
कर विप्लव का फिर शंखनाद..
याद कर अपने पुरखोँ के बलिदान को..,
चल उन्ही के पथ पर,
कर निर्माण एक नया इतिहास,
जिन्होने दिए तुम्हारे लिए प्राण...,
कुछ कर कार्य ऐसा कि बढे उनका सम्मान
हे क्षत्रिय! उठ! अपनी निँद्रा को
त्याग..!
'अक्षय' खडा इस मोड पर,
रहा है तुझे पुकार...,
करा उसे अपने अंदर के..,
एक क्षत्रिय का साक्षात्कार!
हे क्षत्रिय! उठ!
अपनी निँद्रा को त्याग..!
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क्षत्रिय धर्म
क्षत्रिय धर्म को भूल,राजपूत हम बन गये !
छोङे सारे क्षत्रिय सँस्कार, अँहकार मे तन
गये !
क्षत्रिय धर्म मे पले हुए हम शिर कटने पर भी
लङते थे !
दिख जाता अगर पापी ओर अन्याय कहिँ
शेरो कि भाँती टूट पङते थे !
शेरो सी शान,हिमालय सी ईज्जत,और
गौरवशाली इतिहास का पूरखो ने हमे
अभयदान दिया !
जनता के सेवक थे हम लोगो ने भी हमे सम्मान
दिया !
छूट गई शान, टुट गयी इज्जत पी दारु छोङे
सँस्कार !
ईतिहास का हमने अपमान किया भूल गई
क्या दूनिया सम्मान की खातिर लाखो
क्षत्राणियो ने अग्नी श्नान किया !!
तो फिर दासी को जोधा बता राजपूत
का क्यो अपमान किया !
दया हम दिखाते है जब ही तो चौहान ने
गोरी को 18 बार छोङ दिया !!
पर रजपूती रँग मे रँग जाये राजपूत तो देखो
बिन आँखो के चौहान ने गोरी का
शिर फोङ दिया !

अकेले महाराणा ने दिल्ली कि सल्तनत
को हिला दिया !
वीर दुर्गादास ने मुगल के सपनो को मिट्टी
मे मिला दिया !!
अरे हम एक नही रहै तो दुनिया ने हमे भूला
दिया !
भूल गई क्या दुनिया-
हम उनके वँशज है जिन्होने रावण,कँस जैसो
को मिट्टी मे मिला दिया
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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻‍♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
👉🏻▄︻̷̿┻̿═━,’,’• Ⓡ︎ⓐⓝⓐ Ⓖ︎ 👈🏻