भगत सिंह


 इब कोय भगत सिंह ना पैदा करती, नारी मेरै देस मै । 

अपणी पोवैं अर अपणी खावैं, रै रोटी मेरै देस मै। 



जिसकै लागै उसकै होवै सै, दर्द होवै रै गात मै। 

भाई कै भाई की चाहना नहीं ,बैठया सै रै घात मै। 

पीटै सै छोरी नै बड़ा बटेऊ, ब्याही थी रै जात मै। 

सुक्का दीया जगता कोन्या ,चहिये सै तेल बात्त मै। 

पिस्सयां खातर रै भाजैं सारे, जितैगा कोण रेस मै.......... 





स्वार्थ इतणा बढग्या सै यो ,औलाद नहीं माँ बाबू की। 

नशे पत्ते इतणे चाले ,दुनिया रही ना काबू की। 

पहल्ये बरगा इश्क़ रहया ना ,हीर रही ना रांझे की। 

घर मै झगड़े इतणे बढ़गे , वा बात नहीं इब सांझे की

एक भाई सीधा सादा दूजा छल कपट के भेस मै.......


छोरी कै ब्याह मै घणा खर्च करैं सैं ,बात रह सै आब की। 

भात अर छुछक मै इतणा खर्चा, दाब रह सै भाण की। 

देयोराणी जिठाणी तैं बढिया करियो ,बात सै यो मान की। 

भात भराके जमीन खोसलें, शर्म रही ना इब भाण की। 

भाण भाई भी दुश्मन होगे फसा देवैं सै इब केस मै....... 


इब कोय भगत सिंह ना ,पैदा करती नारी मेरै देस मै। 

अपणी पोवैं अर अपणी खावैं, रै रोटी मेरै देस मै॥

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