रविवार, 25 फ़रवरी 2024

आज हम आपको एक ऐसे राजपूत राजवंश के विषय में बताएँगे जिसने इतिहास के पन्नों को गौरांवित किया..!!....हिस्ट्री ऑफ़ ग्रेट पुंडीर राजपूत राजवंश

पुण्डीर दाहिमा वंश जोधपुर जिले में गोठ और मांगलोद के मध्य दधिमति माता का मन्दिर है। इस मन्दिर के नाम से यह क्षेत्र दधिमति क्षेत्र कहलाता है। 

इस क्षेत्र में रहने वाले राजपूत‘दाहिमे’ क्षत्रिय कहलाये। इस क्षेत्र से ये बयाना और वहाँ से दक्षिण की ओर चले गये। पृथ्वीराज चौहान का सेनापति कैमास दाहिमा वंश का ही था। 

कन्निटिया कैमास पृष्ट देखत मन लाग्यो। 
कलमलि चित्त सुहत्ति मयनपूरन जुरि जग्गो।। 
गयो गेह दाहिम्म, तलप अलप मन किन्नो। 
बोलि अप्प सो दासि। काम कारन हित दिन्नो।। (पृथ्वीराज रासो-कैमास करनाटी प्रसंग) 

रासो के आधार पर नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने दोयमत या दाहिम्म का आशय दाहिमा वंश से लिया है। इस वंश के क्षत्रिय बागपत तहसील जिलामेरठ के चार गाँवों में बसते हैं। 

शाखाः पुण्डीर (पुण्डिर) क्षत्रिय सूर्यवंशीः- यह दाहिमा वंश की शाखा है। १॰ पुलस्त- कहीं कपिल भी है। २॰ प्रवर- पुलस्त, विश्वश्रवस और दंभोलि। ३॰ वेद - यजुर्वेद। ४॰ शाखा- वाजसनेयी माध्यन्दिनी ५॰ सुत्र- पारस्कर गृह्यसूत्र। ६॰ कुलदेवि- दधिमति माता। 

इन दोनों वंशों की कुलमाता का एक होना भी इस मतको अधिक दृढ़ करता है। दाहिमा वंश के राजा पुण्डीर (पुण्डरीक) की सन्तान होने से ही ये वंश पुण्डीर पुण्डीर कहलाये। पहले इनका राज्य तिलंगाना (आन्ध्रप्रदेश) में था। 

इनके कुछ नाम ब्रह्मदेव, कपिलदेव, सुमन्दराज, लोपराज, फीमराज, केवलराज, जढ़ासुरराज और मढ़ासुरराज बताए जाते हैं।मढ़ासुरराज कुरुक्षेत्र में स्नान करने के आया था। वहाँ के शासक सिन्धु रघुवंशी ने अपनी पुत्री अल्पद का विवाह राजा मढ़ासुरराज से कर कैथल का क्षेत्र दहेज में दे दिया। 

यह घटना वि॰ सं॰ ६०२ की मानी जाती है। मढ़ासुरराज ने पुण्डरी शहर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। जिला करनाल में पुण्डरक, हावड़ी और चूर्णी स्थानों पर पुण्डीरों ने किले बनवाए। 

नीमराणा के राजा हरिराज चौहान ने पुन्डीरराज्य छीनकर चौहान राज्य की स्थापना की जिससे पुण्डीर यमुना पार करके उत्तरप्रदेश में चले गये और वहाँ के १४४० गाँवों पर अधिकार कर मायापुरी(हरिद्वार) को अपनी राजधानी बनाया। 

पुण्डीरों के वर्णन में है कि पुण्डीर शासक ईसम हरिद्वार का शासक था। उसके बाद क्रमशः सीखेमल, वीडो, कदम, हास और कुंथल शासक हुए। 

कुंथल के बारह पुत्र हुएः-अजत, अनत,लालसिंह, नौसर, सलाखन, गोगदे, मामदे, भाले, हद, विद, भोईग और जय सिंह। 

अजत ने निम्न ग्राम बसायेः- जुरासी, पतरासी, मोरमाजरा, खटका, लादपुर, गोगमा,हरड़, रामपुर, सोथा, हींड, मोहब्बतपुर, कैड़ी, बाबरी, बनत, हिनवाड़ा, नसला, लगदा, पीपलहेड़ा, भसानी, सिक्का। 

अनत ने निम्न ग्राम बसायेः- दूधली, कसौली, मारवा, शेरपुर, चौवड़, दुदाहेड़ी, वामन हेड़ी, बाननगर, रामपुर, कल्लरपुर, कौलाहेड़ी, कछोली, सरवर, मगलाना।

लालसिंह ने निम्न ग्राम बसायेः- गिरहाऊ, कोटा, खजूरवाला, माही, हसनपुर, भलसवा,बोहड़पुर। 

नौसर ने निम्न ग्राम बसायेः- नौसरहेड़ी, खुजनावर, जीवाला, हलवाना, अनवरपुर, बड़ौली, बेहड़ा, माडॅला, मानकपुर, मुसेल, गदरहेड़ी, सरदोहेड़ी, रामखेड़ी, चुबारा, गगाली, खपराना। सलाखन मायापुर (हरिद्वार) में ही रहा तथा वहाँ का शासक हुआ। 

इसके दो पुत्र चांदसिंह और गजसिंह थे। गजसिंह गंगापार रामगढ़ (वर्तमान अलीगढ़) की तरफ चला गया था। उसके वंशजों के १२५ गाँव थे, जिनमें ८० गाँव मैनपुरी और इटावा जिले में और ६ गाँव लखान छतेल्ला, भभिला, नसीरपुर, कुलहेड़ी, रणायच मुजफ्फरनगर में है। 

चौहान सम्राट पृथ्वीराज के समय में पुण्डीर उसके आधीन हो गए। उसने इन्हें जागीर में पंजाब का इलाका दिया। पृथ्वीराज के बड़े सामंतों में चांदसिंह पुण्डीर था, उसकी पुत्री से पृथ्वीराज का विवाह भी हुआ था। जिससे रणजीत सिंह का जन्म हुआ था। 

एक बार पृथ्वीराज शिकार खेलने गया था। उस समय शहाबुद्दीन गौरी ने भारत पर चढ़ाई की। चांदसिंह पुण्डीर ने सेना लेकर चिनाब नदी के किनारे उसका मार्ग रोका। काफी देर तक युद्ध होने के बाद चांदसिंह पुण्डीर के घायल होकर गिरने पर ही मुसलमान सेना चिनाब नदी पार कर सकी थी। 

पृथ्वीराज के पहुँचने पर फिर गौरी से जबरदस्त युद्ध हुआ। उसमें बगल से चांदसिंह पुण्डीर ने शत्रु पर हमला किया। उस युद्ध में इसका एक पुत्र वीरतापूर्वक युद्ध करता हुआ। मातृभूमि के लिये बलिदान हुआ था।

शहाबुद्दीन फिर युद्ध में परास्त होकर भागा। जब पृथ्वीराज कन्नौज सेसंयोगिता का हरण करके भागा, तब जयचन्द की विशाल सेना ने उसका पीछा किया। जयचन्द की सेना से पृथ्वीराज के सामंतों ने घोर युद्ध करके उस विशालवाहिनी कोरोका था, जिससे पृथ्वीराज को निकल जाने का समय मिल गया। 

उस भीषण युद्ध में चांदसिंह पुण्डीर कन्नोज की सेना से युद्ध करके जूझा था। चन्द पुण्डीर का पुत्र धीर पुण्डीरथा। वह भी बड़ा सामंत था। धीर सिंह और कैमास दाहिमा को पृथ्वीराज रासो में भाई होना लिखा है। 

इससे भी पुण्डीर वंश दाहिमा वंश की शाखा होना प्रमाणित होती है। उसके अजयदेव, उदयदेव, वीरदेव, सवीरदेव, साहबदेव और बीसलदेव छह भाई और थे। एक बार जब शहाबुद्दीन भारत पर आक्रमण करने आया, तब पृथ्वीराज का सामंत जैतराव आठ हजार घुड़सवार सेना के साथ उसे रोकने के लिये गया था। 

उसके साथ धीर पुण्डीर तथा उसके अन्य भाई भी थे। उस युद्ध में धीर पुण्डीर का भाई उदयदेव वीर गति को प्राप्त हुआ था। एक बार मुसलमान घोड़ों के सौदागर बनकर पंजाब में आए और धोखे से धीर पुण्डीर को मार डाला। इस पर पावस पुण्डीर ने उन्हें मारा। 

पृथ्वीराज को जब इस घटना की खबर मिली, तब उसे बड़ा अफसोस हुआ। पावस पुण्डीर धीर पुण्डीर का पुत्र था। पृथ्वीराज के ई॰ ११९२ में गौरी के साथ हुए अन्तिम युद्ध में पावस पुण्डीर मारा गया।

इस वंश का एक राज्य ‘जसमौर’ था, जहाँ “शाकम्भरी देवी” का मेला लगता है। यह मन्दिर सहारनपुर जिले में शिवालिक की पहाड़ी की तराई में बना है। पुण्डीर पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मैनपुरी, इटावा और अलीगढ़ जिलों में है। पुण्डीरों की एक शाखा ‘कलूवाल’ है।

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पुंडीर क्षत्रिय की वंशावली व गोत्र:-
वंश - सूर्य
कुल - पुण्डरीक/पुण्डीर/पुण्ढीर
कुलदेवता - महादेव
कुलदेवी - दधिमाता ( जिला - नागौर ,तहसील - जायल , गाँव - गौठ मंगलोद :- राजस्थान )
गौत्र - पौलिस्त / पुलत्सय
नदी - सर्यू
निकास - अयोध्या से तिलांगाना व तिलंगाना से हरियाणा ( करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल) व पुण्डरी से मायापुर (7 हरिद्वार व पश्चिम उत्तर प्रदेश)
पक्षी - सफेद चील
पेड़ - कदंब
प्रवर - महर्षि पौलिस्त, महर्षि दंभौली, महर्षि विश्वाश्रवस
शाखा - तीसरी शताब्दी के महाराज पुण्डरीक द्वितीय से
भगवान श्री राम के पुत्र की 158वीं पिढी मे महाराज पुण्डरीक द्वितीय हुए, महाराज पुण्डरीक द्वितीय (तीसरी शताब्दी के अंत में) -- असम -- धनवंत -- बाहुनिक - राजा लक्षण कुमार (तिलंगदेव :- तिलंगाना शहर बसाया) - जढेश्नर (जढासुर :- कुरुक्षेत्र स्नान हेतु सपरिवार व सेना सहित कुरुक्षेत्र पधारे) -- मंढेश्वर (मँढासुर :- सिंधुराज की पुत्री अल्पदे से विवाह कर कैथल क्षेत्र दहेज मे प्राप्त किया व " पुण्डरी " नगर की स्थापना हुइ) - राजा सुफेदेव - राजा इशम सिंह (सतमासा) - सीरबेमस - बिडौजी - राजा कदम सिंह (निमराणा के चौहान शस्क हरिराय से दूसरे युद्ध मे पराजय मिली व इनके पुत्र हंस ने मायापुरी मे राज्य कायम कर 1440 गाँवो पर अधिकार किया) -- हंस (वासुदेव) -- राजा कुंथल ( मायापुर के स्वामी बने व इनके 12 पुत्र हुए)  
1- अजट सिंह (इनके पुण्डीर वंशज गोगमा, हिनवाडा आदि गाँव मे है जो जिला शामली मे है)
2- अणत सिंह (इनके पुण्डीर वंशज दूधली, कसौली, कछ्छौली आदि गाँव मे है)
3- लाल सिंह (अविवाहित) 
4- नौसर सिंह (पता नही) 
5- सलाखनदेव (मायापुर राज्य मे रहा) 

राजा सुलखन (सलाखन देव) के 2 पुत्र हुए
राजा चाँद सिंह पुण्डीर (मायापुरी के राजा बने व दिल्ली पति संम्राट पृथ्वीराज चौहान के सामंत बने व इनका पुत्र पंजाब का सुबेदार बना, इस वीर चाँद सिंह की वीरता पृथ्वीराज रासौ मे स्वर्ण अक्षरों मे अमर है।)
राजा गजै सिंह पुण्डीर (यहां गंगा पार कर एटा, अलीगंज क्षेत्र गए व इनके वंशज 82 गांव मे विराजमान है।)

राजा चाँद सिंह पुंडीर के 7 पुत्र हुए
वीर योद्धा धीर सिंह पुण्डीर
कुँवर अजय देव
कुंवर उदय देव
कुंवर बीसलदेव
कुवर सौविर सिंह
कुंवर साहब सिंह
कुंवर वीर सिंह
इनमे धीर सिंह पुंडीर मीरो से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए व इनके पुत्र पावस पुंडीर तराई के अंतिम युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान के सहयोगी बन कर लौहाना अजानबाहू का सिर काटकर वीरगती को प्राप्त हुए, चांद सिंह के इन पुत्रो के वंशज आज सहारनपुर जिले में विराजमान है जिनके ठिकानों की संख्या कम से कम 120-130 है।

जय राजपुताना..!

जय पुंडीर राजवंश..!!

बुधवार, 24 जनवरी 2024

रामचंद्रजी की प्रमाणित मेवाड़ वंशावली!

चारों जुग परताप तुम्हारा।
परसिद्ध जगत उजियारा॥

बहती गंगा में हाथ धोने की होड़ मची है, जिनकी इकहत्तर पीढि़यों ने कभी शमशिरे छुई तक नहीं ऐसे "ठग" स्वयं को धर्मध्वज राजा घोषित करवा रहें हैं अंधभक्तों के जरिए । खैर ऐसे "ठगी राजा" को उसकी  कृत्रिम गद्दी मुबारक ।
आइए, अब असली धर्मध्वज राजाओं की बात करते हैं,,
राजाधीराज राजा रामचंद्रजी की प्रमाणित मेवाड़ वंशावली 
१ राजा लव
२ राजा बड़उज्ज्वल
३ राजा निशिध
४ राजा नल
५ राजा नल 
६ राजा नभ
७ राजा पुंडरीक
८ राजा क्षेमधनवा
९ राजा देवानिक
१० राजा अहिनगु
११ राजा पारिपात्र
१२ राजा बल
१३ राजा उत्क
१४ राजा वज्रनाभ
१५ राजा शंख
१६ राजा विश्वसह
१७ राजा हिरण्यनाभ कौशल्य
१८ राजा पुष्प
१९ राजा ध्रुवसंधि
२० राजा सुदर्शन
२१ राजा अग्निवर्ष
२२ राजा शोधन
२३ राजा मरू
२४ राजा प्रसूश्रुत
२५ राजा राजा संधि
२६ राजा अमर्ष
२७ राजा विश्रुतवान
२८ राजा विश्रुवबाहु
२९ राजा प्रसेनजीत
३० राजा तक्ष्क
३१ राजा बृहद्बबल
३२ राजा बृहक्षत्र
३३ राजा उरूक्षय
३४ राजा वत्सव्यूह
३५ राजा प्रतिव्योम 
३६ राजा दिवाकर
३७ राजा सहदेव
३८ राजा बृहद्सव
३९ राजा भानुरथ
४० राजा प्रतितासव
४१ राजा सुप्रतिक
४२ राजा मरुदेव
४३ राजा सुनक्षत्रा
४४ राजा अंतरिक्ष
४५ राजा सुषेण
४६ राजा अनिभाजित
४७ राजा बृहद्भानु
४८ राजा धर्म
४९ राजा कृतजयि
५० राजा रण्यजय
५१ राजा संजय
५२ राजा प्रसेनजीत
५३ राजा क्षुदर्क
५४ राजा कुलक
५५ राजा सूरथ
५६ राजा सुमित्र
५७ राजा वज्रनाभ
५८ राजा महारथी
५९ राजा अतिरथी
६० राजा अचलसेन
६१ राजा कनकसेन
६२ राजा महासेन
६३ राजा विजयसेन
६४ राजा अजयसेन
६५ राजा अभंगसेन
६६ राजा मदसेन
६७ राजा सिंहराय
६८ राजा सिंहरथ
६९ राजा विजयभूप
७० राजा पद्मादित्य
७१ राजा हरदत्
७२ राजा सुजसादित्य
७३ राजा सुमुखादित्य
७४ राजा सोमदत्त
७५ राजा शिलादित्य
७६ राजा केशवादित्य
७७ राजा नागदित्य
७८ राजा भोगदित्य
७९ राजा राजा आशादित्य
८० राजा भोजदित्य
८१ राजा गुहादित्य ( गुहील )
८२ राजा कालभोज ( बाप्पा रावल)
८३ रावल खुमांण
८४ रावल मत्तत
८५ रावल भरतुभट्ट
८६ रावल सिंह
८७ रावल खुमांण ( द्वितीय )
८८ रावल महायक
८९ रावल खुमांण ( तृतीय )
९० रावल भरूतभट्ट ( द्वितीय )
९१ रावल अल्लट ( अल्हण )
९२ रावल नरवाहन
९३ रावल शालीवाहन
९४ रावल शक्ति
९५ रावल अंबा ( अंब )
९६ रावल शुचिवर्मा
९७ रावल नरवर्मा
९८ कीर्तिवर्मा
९९ रावल योगराज
१०० रावल वैराट ( विराट )
१०१ रावल हंसपाल
१०२ रावल वैरसिंह
१०३ रावल विजयसिंह
१०४ रावल अरिसिंह
१०५ रावल चौड़सिंह
१०६ रावल विक्रमसिंह
१०७ रावल रणसिंह ( कर्णसिंह )
१०८ रावल क्षेमसिंह
१०९ रावल सामंतसिंह
११० रावल कुमारसिंह
१११ रावल मंथनसिंह
११२ रावल पदमसिंह
११३ रावल जैतसिंह
११४ रावल तेजसिंह
११५ रावल समरसिंह
११६ रावल रतनसिंह
११७ रावल अजयसिंह
११८ राणा हम्मीरसिंह
११९ राणा छत्रसिंह
१२० राणा लाखा
१२१ राणा मोकल
१२२ राणा कुम्भा ( भा कुम्भा )
१२३ राणा उदयकर्ण
१२४ राणा रायमल
१२५ राणा सांगा
१२६ राणा रतन
१२७ राणा विक्रमादित्य
१२८ राणा उदयसिंह
१२९ महाराणा प्रतापसिंह ( हिंदुआ सूर्य )
१३० महाराणा अमरसिंह
१३१ महाराणा करणसिंह
१३२ महाराणा जगतसिंह
१३३ महाराणा राजसिंह
१३४ महाराणा जयसिंह
१३५ महाराणा समरसिंह
१३६ महाराणा संग्रामसिंह
१३७ महाराणा जगतसिंह
१३८ महाराणा प्रतापसिंह
१३९ महाराणा राजसिंह
१४० महाराणा अरिसिंह
१४१ महाराणा हम्मीरसिंह
१४२ महाराणा भीमसिंह
१४३ महाराणा जवानसिंह
१४४ महाराणा सरदारसिंह
१४५ महाराणा स्वरूपसिंह
१४६ महाराणा शंभूसिंह
१४७ महाराणा सज्जनसिंह
१४८ महाराणा फतेसिंह
१४९ महाराणा भुपालसिंह
१५० महाराणा भगवतसिंह
१५१ महाराणा महेंद्रसिंहजी ( वर्तमान में राजा रामचंद्रजी की पीढ़ी में विद्यमान १५१ वे वंशज राजा मेवाड़ गद्दी। )

आपका जीवन मंगलमय हो, खमा घणी, राजाधीराज राजा रामचंद्रजी की जय, महाराणा प्रतापजी की जय!

साभार:- अखिल भारतीय वंशावली लेखक परिषद, दिल्ली।१०

मंगलवार, 23 जनवरी 2024

मीर उस्मान अली खान आजादी के समय ये शख्स था भारत का सबसे अमीर आदमी, घर में बिखरे रहते थे हीरे-मोती; अब कोई 'नामलेवा' नहीं!

                  मीर उस्मान अली खान 

Nizam of Hyderabad: आजादी के वक्त यानी साल 1947 में हैदराबाद के निजाम नवाब मीर उस्मान अली खान न सिर्फ भारत के बल्कि की दुनिया के सबसे अमीर शख्स माने जाते थे, 77 साल पहले निजाम की कुल दौलत करीब 17.5 लाख करोड़ रुपए आंकी गई थी,
टाइम मैगजीन ने निजाम को फ्रंट पेज पर जगह देते हुए उन्हें दुनिया का सबसे रईस शख़्स करार दिया था।

मशहूर इतिहासकार डॉमिनिक लापियर और लेरी कॉलिंस अपनी चर्चित किताब ‘फ्रीडम एड मिडनाइट’ में लिखते हैं कि हैदराबाद के निजाम के पास आजादी के वक्त 20 लाख पाउंड से ज्यादा की तो नगद रकम रही होगी, निजाम के महल में बंडल के बंडल नोट अखबार में लपेटकर में दुछत्ती में रखे रहते थे।

पेपरवेट की तरह यूज करते थे ‘जैकब’ हीरामशहूर टाइम मैगजीन ने फरवरी, 1937 के अंक में निजाम को फ्रंट पेज पर जगह देते हुए उन्हें दुनिया का सबसे रईस शख़्स करार दिया था, निजाम के महल में लाखों रुपए जहां-तहां धूल फांकते थे, हर साल कई हजार पाउंड के नोट तो चूहे कुतर जाते थे, जिनका कोई हिसाब ही नहीं, कॉलिंस और लापियर लिखते हैं कि निजाम के महल में उनकी मेज की दराज में मशहूर ‘जैकब’ हीरा रखा रहता था।

                    मशहूर जैकब हीरा

यह बेशकीमती हीरा नींबू के बराबर था और 280 कैरेट का था, लेकिन निजाम इस हीरे को पेपर वेट की तरह इस्तेमाल किया करते थे।

महल में बिखरे रहते थे हीरे-मोतीकॉलिंस और लापियर अपनी किताब में लिखते हैं कि निजाम के बाग में जहां-तहां झाड़ झंखाड़ के बीच सोने की ईंट से लदे ट्रक खड़े रहते थे, आलम यह था कि महल में हीरे-जवाहरात रखने की जगह नहीं बची थी, नीलम, पुखराज, हीरे, मोती फर्श पर कोयले की तरह बिखरे पड़े रहते, उस वक्त निजाम हैदराबाद के पास इतने मोती थे कि लंदन के पिकैडिली सर्कस के सारे फुटपाथ उन मोतियों से ढंक जाते।

कंजूसी के लिए बदनाम
निजाम हैदराबाद मीर उस्मान अली (Mir Osman Ali Khan) जितने अमीर थे, उतने ही अपनी कंजूसी के लिए बदनाम थे, ”फ्रीडम एट मिडनाइट” के मुताबिक निजाम के पास सोने के इतने बर्तन थे कि एक साथ 200 लोगों को उनमें खाना खिला सकें, लेकिन उनकी कंजूसी का आलम यह था कि खुद टीन के बर्तन में खाना खाया करते थे, अक्सर एक ही मैला-कुचैला सूती पायजामा पहना करते थे और पैर में बहुत घटिया किस्म की जूती होती थी।

        सरदार पटेल के साथ मीर उस्मान अली

बुझी सिगरेट तक नहीं छोड़ते थे।
निजाम की कंजूसी का आलम यह था कि उनसे जो मिलने आता और ऐशट्रे में बुझी सिगरेट छोड़ जाता, निजाम बाद में उसे सुलगा कर पीने लगते, इतिहासकारों के मुताबिक उस वक्त परंपरा थी कि बड़े-बड़े अमीर-उमरा और जमींदार अपने राजा को एक अशर्फी का नजराना पेश करते थे, बाद में राजा उस अशर्फी को छूकर लौटा दिया करते थे, लेकिन निजाम हैदराबाद इससे उलट थे, निजाम को कोई नजराने के तौर पर अशर्फी देता तो उसको झपटकर अपने पास रख लिया करते थे।

निजाम (Mir Osman Ali Khan) का बेडरूम किसी झोपड़पट्टी के कमरे जैसा दिखाई देता था, उसमें एक टूटी-फूटी सी पलंग पड़ी रहती थी, तीन कुर्सी और गिने-चुने फर्नीचर के अलावा कुछ नहीं था, जगह-जगह मकड़ी के जाल लगे रहते थे और बदबू आती थी, निजाम के कमरे को उनके सालगिरह के दिन सिर्फ साल में एक बार साफ किया जाता था।

   मीर उस्मान अली के अंतिम संस्कार में उमड़ी भीड़

अंग्रेजों को दिया 2.5 करोड़ पाउंड
आजादी के वक्त निजाम हैदराबाद (Nizam Hyderabad Mir Osman Ali Khan) हिंदुस्तान के इकलौते ऐसे शासक थे जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने ”एग्जॉल्टेड हाईनेस” का खिताब दिया था. अंग्रेजों ने निजाम को यह खिताब इसलिए दिया था, क्योंकि उन्होंने पहले विश्व युद्ध यानी फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में ब्रिटिश हुकूमत के युद्ध कोष में ढाई करोड़ पाउंड की रकम दी थी, हैदराबाद निजाम मीर उस्मान अली उन दिनों ब्रिटिश हुकूमत के सबसे निष्ठावान मित्र माने जाते थे।

अफीम की लत थी, हमेशा एक डर सताता था
निजाम हैदराबाद को अक्सर डर सताता था कि कोई उन्हें जहर देकर मार देगा और उनकी दौलत कब्जा लेगा. सवा पांच फीट लंबे निजाम हमेशा सुपारी चबाया करते थे और उनके दांत लगभग सड़ चुके थे।

कॉलिंस और लापियर लिखते हैं कि निजाम जहां कहीं जाते, अपने साथ एक खाना चखने वाला लेकर जाते थे. पहले वह खाना चखता, इसके बाद ही निजाम उसे हाथ लगाते।

बुधवार, 10 जनवरी 2024

भारत के शासक


👉गुलाम वंश:-
1=1193 मुहम्मद गोरी
2=1206 कुतुबुद्दीन ऐबक
3=1210 आराम शाह
4=1211 इल्तुतमिश
5=1236 रुकनुद्दीन फिरोज शाह
6=1236 रज़िया सुल्तान
7=1240 मुईज़ुद्दीन बहराम शाह
8=1242 अल्लाउदीन मसूद शाह
9=1246 नासिरुद्दीन महमूद
10=1266 गियासुदीन बल्बन
11=1286 कै खुशरो
12=1287 मुइज़ुदिन कैकुबाद
13=1290 शमुद्दीन कैमुर्स
1290 गुलाम वंश समाप्त्
(शासन काल-97 वर्ष लगभग )

👉खिलजी वंश
1=1290 जलालुदद्दीन फ़िरोज़ खिलजी
2=1296 अल्लाउदीन खिलजी
4=1316 सहाबुद्दीन उमर शाह
5=1316 कुतुबुद्दीन मुबारक शाह
6=1320 नासिरुदीन खुसरो शाह
7=1320 खिलजी वंश स्माप्त
(शासन काल-30 वर्ष लगभग )

👉तुगलक वंश
1=1320 गयासुद्दीन तुगलक प्रथम
2=1325 मुहम्मद बिन तुगलक दूसरा
3=1351 फ़िरोज़ शाह तुगलक
4=1388 गयासुद्दीन तुगलक दूसरा
5=1389 अबु बकर शाह
6=1389 मुहम्मद तुगलक तीसरा
7=1394 सिकंदर शाह पहला
8=1394 नासिरुदीन शाह दुसरा
9=1395 नसरत शाह
10=1399 नासिरुदीन महमदशाह दूसरा दुबारा सत्ता में 
11=1413 दोलतशाह 1414 तुगलक वंश समाप्त
(शासन काल-94वर्ष लगभग )

👉सैय्यद वंश
1=1414 खिज्र खान
2=1421 मुइज़ुदिन मुबारक शाह दूसरा
3=1434 मुहमद शाह चौथा
4=1445 अल्लाउदीन आलम शाह
1451 सईद वंश समाप्त
(शासन काल-37वर्ष लगभग )

👉लोदी वंश
1=1451 बहलोल लोदी
2=1489 सिकंदर लोदी दूसरा
3=1517 इब्राहिम लोदी
1526 लोदी वंश समाप्त
(शासन काल-75 वर्ष लगभग )

👉मुगल वंश
1=1526 ज़ाहिरुदीन बाबर
2=1530 हुमायूं
1539 मुगल वंश मध्यांतर

👉सूरी वंश
1=1539 शेर शाह सूरी
2=1545 इस्लाम शाह सूरी
3=1552 महमूद शाह सूरी
4=1553 इब्राहिम सूरी
5=1554 फिरहुज़् शाह सूरी
6=1554 मुबारक खान सूरी
7=1555 सिकंदर सूरी
सूरी वंश समाप्त 
(शासन काल-16 वर्ष लगभग )

👉मुगल वंश पुनःप्रारंभ
1=1555 हुमायू दुबारा गाद्दी पर
2=1556 जलालुदीन अकबर
3=1605 जहांगीर सलीम
4=1628 शाहजहाँ
5=1659 औरंगज़ेब
6=1707 शाह आलम पहला
7=1712 जहादर शाह
8=1713 फारूखशियर
9=1719 रईफुदु राजत
10=1719 रईफुद दौला
11=1719 नेकुशीयार
12=1719 महमूद शाह
13=1748 अहमद शाह
14=1754 आलमगीर
15=1759 शाह आलम
16=1806 अकबर शाह
17=1837 बहादुर शाह जफर
1857 मुगल वंश समाप्त
(शासन काल-315 वर्ष लगभग )

👉ब्रिटिश राज (वाइसरॉय)
1=1858 लॉर्ड केनिंग
2=1862 लॉर्ड जेम्स ब्रूस एल्गिन
3=1864 लॉर्ड जहॉन लोरेन्श
4=1869 लॉर्ड रिचार्ड मेयो
5=1872 लॉर्ड नोर्थबुक
6=1876 लॉर्ड एडवर्ड लुटेनलॉर्ड
7=1880 लॉर्ड ज्योर्ज रिपन
8=1884 लॉर्ड डफरिन
9=1888 लॉर्ड हन्नी लैंसडोन
10=1894 लॉर्ड विक्टर ब्रूस एल्गिन
11=1899 लॉर्ड ज्योर्ज कर्झन
12=1905 लॉर्ड टीवी गिल्बर्ट मिन्टो
13=1910 लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंज
14=1916 लॉर्ड फ्रेडरिक सेल्मसफोर्ड
15=1921 लॉर्ड रुक्स आईजेक रिडींग
16=1926 लॉर्ड एडवर्ड इरविन
17=1931 लॉर्ड फ्रिमेन वेलिंग्दन
18=1936 लॉर्ड एलेक्जंद* *लिन्लिथगो
19=1943 लॉर्ड आर्किबाल्ड वेवेल
20=1947 लॉर्ड माउन्टबेटन

(ब्रिटिस राज समाप्त शासन काल 90 वर्ष लगभग)

🇮🇳आजाद भारत,प्राइम मिनिस्टर🇮🇳
1=1947 जवाहरलाल नेहरू
2=1964 गुलजारीलाल नंदा
3=1964 लालबहादुर शास्त्री
4=1966 गुलजारीलाल नंदा
5=1966 इन्दिरा गांधी
6=1977 मोरारजी देसाई
7=1979 चरणसिंह
8=1980 इन्दिरा गांधी
9=1984 राजीव गांधी
10=1989 विश्वनाथ प्रतापसिंह
11=1990 चंद्रशेखर
12=1991 पी.वी.नरसिंह राव
13=अटल बिहारी वाजपेयी
14=1996 ऐच.डी.देवगौड़ा
15=1997 आई.के.गुजराल
16=1998 अटल बिहारी वाजपेयी
17=2004 डॉ.मनमोहन सिंह
18=2014 से नरेन्द्र मोदी।

764 सालों बाद मुस्लिमों तथा अंग्रेज़ों के ग़ुलामी से आज़ादी मिली है। ये हिन्दुओं का देश है। 
यहाँ बहुसंख्यक होते हुए भी हिन्दू अपने ही देश ग़ुलाम बन के रहे और आज लोग कह रहे है। हिन्दू साम्प्रदायिक हो गए!
 
सदियों बाद नरेन्द्र मोदी तथा महाराज बाबा योगी आदित्यनाथ जी के रूप में हिन्दू की सरकार आयी है। सभी भारतियों को इन पर गर्व करना चाहिए।

ये महत्वपूर्ण जानकारी ज्यादा से ज्यादा ग्रुपों में भेजें सब युवाओं के ध्यान में रहें।

हरि ॐ

अजब-गजब

अहमदाबाद:- में अहमद कौन है?
मुरादाबाद:- में मुराद कौन है?
इलाहाबाद:- में इलाहा कौन है?
औरंगाबाद:- में औरंगजेब कौन है?
फैजाबाद:- में फैज कौन है?
फर्रुखाबाद:- में फारूख कौन है?
आदिलाबाद:- में आदिल कौन है?
साहिबाबाद:- में साहिब कौन है?
हैदराबाद:- में हैदर कौन है?
सिकंदराबाद:- में सिकंदर कौन है?
फिरोजाबाद:- में फिरोज कौन है?
मुस्तफाबाद:- में मुस्तफा कौन है?
तुगलकाबाद:- में तुगलक कौन है?
फतेहाबाद:- में फतेह कौन है?
बख्तियारपुर:- में बख्तियार कौन है?
महमूदाबाद:- में महमूद कौन है?
मुजफ़्फ़रपुर और मुजफ़्फ़रनगर:- में मुजफ़्फ़र कौन है?
बुरहानपुर:- मे बुरहान कौन?

ये सब कौन हैं? ये वही लोग हैं जिन्होंने आपके संस्कृति नष्ट की आपके मंदिर तोड़े मूर्तियों को भ्रष्ट किया और हिंदुओं को तलवार के जोर पर इस्लाम में धर्मांतरण किया । भारत के इतिहास में इनका यही योगदान है। इसके बावजूद हम लोग उनके नाम पर शहरों के नाम रख कर किस लिए याद करते हैं?

प्रिय जनों :-
योगी जी की कार्य-प्रणाली को देखकर "वास्तव" फिल्म का एक दृश्य याद आ रहा है, जिसमें संजय दत्त एक गैंगस्टर है और दीपक तिजोरी एक पुलिस अधिकारी-दोंनों बचपन के मित्र हैं!

दीपक तिजोरी संजय दत्त को समझाते हैं कि अपराध की दुनियां को छोड़ दो अन्यथा किसी दिन पकड़े जाओगे या एनकाउंटर हो जायेगा पलटकर गैंगस्टर संजय दत्त, पुलिस अधिकारी दीपक तिजोरी से पूछता है! मुझे पकड़ेगा कौन यह तुम्हारी निकम्मी पुलिस,जो मेरे सामनें कुत्तों की तरह दुम हिलाती है!

पुलिस अधिकारी बनें दीपक तिजोरी नें बहुत सुन्दर जवाब दिया था, पुलिस निकम्मी नहीं है, तेरे ऊपर भ्रष्ट और गद्दार नेताओं और सत्ता का हांथ है, जिस दिन कोई ईमानदार नेता सत्ता संभालेगा, उस दिन यही पुलिस तुझे कुत्तों की तरह घसीटते हुए ले जायेंगी, आज इन भ्रष्ट और निकम्में नेताओं नें पुलिस के हांथ बांध रखे हैं!

ये उदाहरण मैंने इस लिए दिया,ताकि आप याद कर सकें वह वक्त जब आज़म खान नें तीन घंटे एक S.S.P. को अपनें घर के बाहर खड़ा रहनें का आदेश दे दिया था।
 
जब आज़म खान ने जिलाधिकारी से जूते साफ करवाने की बात कही थी।

जब मुख्तार अंसारी ने कोतवाली में ताला डलवा दिया था। 
जब अतीक अहमद नें बीस पुलिस वालों को अपनें घर में कैद कर लिया था। 
जब इनके मुकदमों को सुनने से मजिस्ट्रेट भी मना कर दिया करते थे!

वक्त बदला एक ईमानदार संन्यासी नेता बनकर प्रदेश की गद्दी पर बैठा, देखते-देखते सब कुछ बदल गया, असहाय सी लगनें वाली पुलिस इनको घसीट-घसीट कर थानों में लाने लगी, इनके घर में घुसकर ढिंढोरा पीटने लगी, नीलामियां होनें लगीं, धड़ाधड़ बुलडोजर चलनें लगे, बड़े से बड़े माफिया और डांन सरेंडर करनें लगे!

मैं केवल आपको इतना कहना चाह रहा हूं कि जब सत्ता पर बैठा व्यक्ति ईमानदार और चरित्रवान होता है तो सबकी खुशहाली होती है, समाज का उत्थान होता है!

चुनावी बिगुल बज चुका है,आप समझदार हैं, सत्ता किनके हाथों में सौंपनी है,यह आपको सोचना है!
        
              🇮🇳 धन्यवाद 🇮🇳


👉नवाब मलिक भांग बेचकर 3000 करोड़ का नवाब हो गया।

👉मुलायम सिंह प्राइमरी के मास्टर होते हुए भी अपने पूरे परिवार को हजारों करोड़ का मालिक बना चुके हैं।

👉गरीब परिवार से आई हुई दलित मायावती बिना कोई रोजगार किये ही हज़ारों करोड़ की मालकिन हैं।

👉लालू गाय-गोबर-दूध-दही बेच कर 2000 करोड़ का मालिक बन गया।

👉चिदंबरम गमला में गोभी उगा कर 4000 करोड़ का मालिक बन गया।

👉 शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले 10 एकड़ जमीन में सब्जियों उगाके अरबों खरबों की मालिक बन गई।

👉और तो और फ़र्ज़ी गाँधी बिना कुछ किए 80000 करोड़ के मालिक बन गए, सोनिया गांधी विश्व की चौथी सबसे अमीर महिला बन गयी।

👉टिकैत अनाज बेच कर 1500 करोड़ का मालिक बन गया।

लेकिन ताज़्जुब यह कि मोदी जी और योगी जी देश बेच कर भी फ़कीर का फ़कीर ही है।

जागरूक नागरिकों उपर्युक्त विवरण में ही आपका और आने वाली संतानों का भविष्य छुपा है।

सक्षम हिंदुओ को,यह पोस्ट भारत के प्रेत्येक न्यूज पेपर में छपवाना चाहिए।

यह यज्ञ के बराबर फलदाई है।
जो समाज सेवा के नाम पर लाखों करोड़ों खर्च करते है।
यहां वहां दान देते हैं। वह भी इस धार्मिक कार्य को कर सकते हैं।

धर्म रक्षा के लिए अतिआवश्यक है।

रविवार, 3 सितंबर 2023

चौहान वंश

चौहान वंश गोत्र प्रवर:-
वंश - सूर्यवंश(अग्नि वंश)
वेद - सामवेद
पेड़ - आशापाल (अशोक)
कुलदेवी - आशापुरा शाकंभरी समराय सांभर
कुलदेवता –योगेश्वर कृष्ण 
इष्टदेव - अचलेसवर महादेव शंकर
नगारा - विजय
निशान - पीला झंडा सूरज चांद कटारी बंद
प्रमुख गदी - सांभर,अजमेर,जालोर, रणथंभोर,
शाख - 24
प्रवर - 3 होली दीपावली दशहरा
भेरुव - काला भेेरुव
गुरु - वशिष्ट मुनि
नदी - चंद्रभागा
घोड़ा - केवट सफेद
पिरोहित - राजपुरोहित
चारण - गाडरिय
ढोली - मुनीयो
नाई - खुरदरा
राव - माघदवंशी
गढ़ - अजमेर,सांभर, रणथंभोर,जालोर,मकराना, तोसिना,गढ़ सिवाना
तलवार - रणबंकी
तंभू - दल बादल
धुणी - सांभर
माला - वाजुंस्ती
गोत्र - वत्स

चौहान वंश की प्रमुख शाखाये:-

1. अरनेत चौहान
2. सोनीगरा चौहान
3. सांचौरा चौहान
4. खींची चौहान
5. देवड़ा चौहान
6. हाडा चौहान
7. निरवाण चौहान
8. सेपटा चौहान
9.पुरबिया चौहान
10.भदौरिया चौहान
11.बाडा चौहान
12.चीबा चौहान
13.आभा चौहान
14.बालोत चौहान
15.बाग़डिया चौहान 
16.मोहिल चौहान
17.पवेया चौहान
18.राखससिया चौहान
19.नाडोला चौहान
20.ढढेरिया चौहान
21.सांभरिया चौहान
22. उजपलिया चौहान
23.चोहिल चौहान
24.मदरेचा चौहान
और जो भी शाखा और उप शाखा रह गई है, कृपया कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।
जय मां आशापुरा। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

राजपूताना पढ़े और गर्व करें!


इस बात पे हमें सदैव गर्व रहेगा कि हम एक राजपूत कुल से हैं…

और इस बात पे गर्व करने के लिए कई ऐसी बाते है स्वयं हमारा इतिहास है !!

हमारे कुल की महान क्षत्राणियो ने सैकड़ो बार (जौहर) की ज्वालाओं से इस वसुंधरा को रोशन किया है !!
हमारे कुल श्रेष्ठ राजा राम के पुत्र (लव-कुश) ने अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को रोककर महावीर बजरंग बली भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न को परास्त कर अपने ही कौशल को दर्शाया !!

राजा हरीशचंद्र ने सच्चाई का जो वृक्ष लगाया था उसकी मिशाल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कही नही मिलेगी !!

सम्राट_पृथ्वीराज_चौहान जिनके पास शब्द भेदी बाण चलाने की कला थी श्री राम के पिता राजा दशरथ के बाद दूसरे वीर योद्धा थे जो शब्द भेदी बाण चलाने में निपुण थे !!

हम क्यों नही गर्व करें 80 घाव शरीर पे लेकर रणभूमि में समशीर चलाने वाले वीर योद्धा राणा सांगा पर !!

    क्या राणा हमीरदेव चौहान सा कोई हठी होगा ??

        क्या हांडी_रानी सी कोई वीरांगना होगी ??

क्या किसी अन्य के पास महासती रानी पद्मावती के जोहर का इतिहास है ??
क्या किसी के पास महाराणा_प्रताप की वो तलवार है.. जिसने बलहोल खान को घोड़े सहित काट डाला था ??

क्या किसी के पास अमर_सिंह_राठौर की कटार है जिसकी गाथा आगरे के किले की दरों-दीवार पर आज भी गाती है ??

क्या किसी के पास दुर्गा_दास_राठौर का भाला है.. जिसकी नोक पर मुग़लिया (सल्तनत) छप्पन के पहाड़ों में दर-दर भटकती थी ??

क्या माता_मीरा की भक्ति है किसी के पास क्या पन्ना_धाय_खिंची सा कलेजा है । किसी मां के पास 
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम कुरुक्षेत्र में गीता का उपदेश देने वाले भगवान श्रीकृष्ण ,भगवान बुद्ध से लेकर भगवान महावीर तक सब राजपूत ही तो थे !!

  मेरे महान (पूर्वजों) ने तो सपने में भी दिए वचन निभाएं!

गायो के (रक्षार्थ) अपने प्राण देने वाले राजपूतो के देवरे गांव-गांव में उनकी जयकार कर रहे है !!
 जैता-कुम्पा,जयमल-फत्ता,गौरा-बादल ,आल्हा-ऊदल आदी की कहानी आज भी घर-घर मे सुनाई जाती है !!
 हमारा इतिहास अमर था अमर है और अमर रहेगा सृष्टि के आदि से अंत तक न कोई राजपूतो जैसा हुआ है और ना ही होगा !!

लोग वर्ण भेद की बात करते है शायद भूल गए कि भगवान श्री राम ने सबरी के हाथों झूठे बेर खाएं थे और केवट के हाथों का खाना भी खाया था !!

मीरा माता ने रैदास जी को अपना गुरु माना था भील और राणा प्रताप के स्नेह को कोई भूल नही सकता !!
यह तो कुछ दलाल लोगो का फैलाया हुआ पाखंड है की राजपूतों ने भेदभाव किया

हमने तो सदैव इस धरा के लिए अपने प्राण तक दे दिए 
हमने तो सदैव दिया ही दिया है लिया तो कुछ भी नही !!

हमारे इष्टदेव की शक्ति और राष्ट्र भक्ति ने हमे अजेय बनाया है जब तक हमारे पास ये दोनों चीजे है।
 हमे न कोई मिटा सकता है न ही कोई झुका सकता है !

हमें अपने इतिहास और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए और अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करना चाहिए जिस क्षत्रिय धर्म में स्वयं भगवान ने भी जन्म लिया क्षत्रिय धर्म का पालन किया उसपर गर्व होना ही चाहिए।


🚩जय मां भवानी!🚩
🚩जय क्षत्रिय धर्म!🚩

मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

प्रतिहार क्षत्रिय राजवंश का इतिहास!

प्रतिहार क्षत्रिय (राजपूत) एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए। 

प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरादेश से गुज्जरों को खदेड़ कर गुर्जरदेश के स्वामी बने। इन्हें बेवजह ही गूजर जाति से जोड दिया जाता रहा है, जबकि प्रतिहारों ने अपने को कभी भी गुजर जाति का नही लिखा है। 

बल्कि नागभट्ट प्रथम के सेनापति गल्लक के शिलालेख जिसकी खोज डा. शांता रानी शर्मा जी ने की थी जिसका संपूर्ण विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक " Society and Culture Rajasthan C. AD. 700 - 900 पर किया है। 

इस शिलालेख मे नागभट्ट प्रथम के द्वारा गुर्जरों की बस्ती को उखाड फेकने एवं प्रतिहारों के गुर्जरों को बिल्कुल भी नापसंद करने की जानकारी दी गई है।

मनुस्मृति में प्रतिहार,परिहार, पडिहार तीनों शब्दों का प्रयोग हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है। 

क्षत्रिय वंश की इस शाखा के मूल पुरूष भगवान श्री राम के भाई लक्ष्मण जी हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार कहलाएं। ये सूर्यवंशी कुल के क्षत्रिय हैं। 

हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक, हम्मीर महाकाव्य पर्व, कक्कुक प्रतिहार का अभिलेख, बाउक प्रतिहार का अभिलेख, नागभट्ट प्रशस्ति, वत्सराज प्रतिहार का शिलालेख, मिहिरभोज की ग्वालियर प्रशस्ति आदि कई महत्वपूर्ण शिलालेखों एवं ग्रंथों में परिहार वंश को रघुवंशी एवं साफ-साफ लक्ष्मण जी का वंशज बताया गया है।

लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे,उन्ही के वंशज प्रतिहार है। इस वंश की 126 वीं पीढ़ी में राजा हरिश्चन्द्र प्रतिहार (लगभग 590 ईस्वीं) का उल्लेख मिलता है। 

इनकी दूसरी पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे। जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया, जिसका राजा रज्जिल प्रतिहार बना। इसी का पौत्र नागभट्ट प्रतिहार था, जो अदम्य साहसी, महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था।

इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 760 माना जाता है, उसने जालौर को अपनी राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली।

इसी समय अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और मालवा और गुर्जरात्रा राज्यों पर आक्रमण कर दिया। नागभट्ट ने इन्हे सिर्फ रोका ही नहीं, इनके हाथ से सैंनधन,सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया।

750 में अरबों ने पुनः संगठित होकर भारत पर हमला किया और भारत की पश्चिमी सीमा पर त्राहि-त्राहि मचा दी। लेकिन नागभट्ट कुद्ध्र होकर गया और तीन हजार से ऊपर डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया जिससे देश ने राहत की सांस ली। 

भारत मे अरब शक्ति को रौंदकर समाप्त करने का श्रेय अगर किसी क्षत्रिय वंश को जाता है वह केवल परिहार ही है जिन्होने अरबों से 300 वर्ष तक युद्ध किया एवं वैदिक सनातन धर्म की रक्षा की इसीलिए भारत का हर नागरिक इनका हमेशा रिणी रहेगा। 

इसके बाद इसका पौत्र वत्सराज (775 से 800) उल्लेखनीय है, जिसने प्रतिहार साम्राज्य का विस्तार किया। उज्जैन के शासक भण्डि को पराजित कर उसे परिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया। उस समय भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थी। 

1 प्रतिहार साम्राज्य- उज्जैन, राजा वत्सराज
2 पाल साम्राज्य- बंगाल , राजा धर्मपाल
3 राष्ट्रकूट साम्राज्य- दक्षिण भारत , राजा ध्रुव 

अंततः वत्सराज ने पालवंश के धर्मपाल पर आक्रमण कर दिया और भयानक युद्ध में उसे पराजित कर अपनी अधीनता स्वीकार करने को विवश किया। लेकिन ई. 800 में ध्रुव और धर्मपाल की संयुक्त सेना ने वत्सराज को पराजित कर दिया और उज्जैन एवं उसकी उपराजधानी कन्नौज पर पालों का अधिकार हो गया। 

लेकिन उसके पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने उज्जैन को फिर बसाया। उसने कन्नौज पर आक्रमण कर उसे पालों से छीन लिया और कन्नौज को अपनी प्रमुख राजधानी बनाया। उसने 820 से 825-826 तक दस भयावाह युद्ध किए और संपूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार कर लिया। इसने यवनों, तुर्कों को भारत में पैर नहीं जमाने दिया। नागभट्ट द्वितीय का समय उत्तम शासन के लिए प्रसिद्ध है। इसने 120 जलाशयों का निर्माण कराया-लंबी सड़के बनवाई। बटेश्वर के मंदिर जो मुरैना (मध्य प्रदेश) मे है इसका निर्माण भी इन्हीं के समय हआ, अजमेर का सरोवर उसी की कृति है, जो आज पुष्कर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां तक कि पूर्व काल में क्षत्रिय (राजपूत) योद्धा पुष्कर सरोवर पर वीर पूजा के रूप में नागभट्ट की पूजा कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे। 

नागभट्ट द्वितीय की उपाधि ‘‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर थी। नागभट्ट के पुत्र रामभद्र प्रतिहार ने पिता की ही भांति साम्राज्य सुरक्षित रखा। इनके पश्चात् इनका पुत्र इतिहास प्रसिद्ध सनातन धर्म रक्षक मिहिरभोज सम्राट बना।

सम्राट मिहिरभोज
इनका शासनकाल 836 से 885 माना जाता है। सिंहासन पर बैठते ही मिहिरभोज प्रतिहार ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा। मिहिरभोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में मिहिरभोज को 'सम्राट' उपाधि मिली थी।

अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे सम्राट भोज, मिहिर, प्रभास, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज परमेश्वर आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है। इतने विशाल और विस्तृत साम्राज्य का प्रबंध अकेले सुदूर कन्नौज से कठिन हो रहा था। 

सम्राट मिहिरभोज ने साम्राज्य को चार भागो में बांटकर चार उप राजधानियां बनाई। कन्नौज- मुख्य राजधानी, उज्जैन और मंडोर को उप राजधानियां तथा ग्वालियर को सह राजधानी बनाया। प्रतिहारों का नागभट्ट प्रथम के समय से ही एक राज्यकुल संघ था, जिसमें कई क्षत्रिय राजें शामिल थे। पर मिहिरभोज के समय बुंदेलखण्ड और कांलिजर मण्डल पर चंदलों ने अधिकार जमा रखा था। मिहिरभोज का प्रस्ताव था कि चंदेल भी राज्य संघ के सदस्य बने, जिससे सम्पूर्ण उत्तरी पश्चिमी भारत एक विशाल शिला के रूप में खड़ा हो जाए और यवन, तुर्क, हूण, कुषाण आदि शत्रुओं को भारत प्रवेश से पूरी तरह रोका जा सके पर चंदेल इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंततः मिहिरभोज ने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और इस क्षेत्र के चंदेलों को हरा दिया।

मिहिरभोज परम देश भक्त थे- उन्होने प्रण किया था कि उनके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में शरण लेने देते थे। इस प्रकार राजपूताना से कन्नौज तक एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण का श्रेय सम्राट मिहिरभोज को जाता है। मिहिरभोज के शासन काल में कन्नौज साम्राज्य की सीमा रमाशंकर त्रिपाठी की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ कन्नौज के अनुसार, पेज नं. 246 में, उत्तर पश्चिम् में सतलज नदी तक, उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण पूर्व में बुंदेलखण्ड और वत्स राज्य तक, दक्षिण पश्चिम में सौराष्ट्र और राजपूतानें के अधिक भाग तक विस्तृत थी। 

अरब इतिहासकार सुलेमान ने तवारीख अरब में लिखा है, कि क्षत्रिय राजाओं में मिहिरभोज प्रतिहार भारत में अरब एवं इस्लाम धर्म का सबसे बडा शत्रु है सुलेमान आगे यह भी लिखता है कि हिंदुस्तान की सुगठित और विशालतम सेना मिहिरभोज की ही थी-

इसमें हजारों हाथी, हजारों घोड़े और हजारों रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। मिहिरभोज का तृतीय अभियान पाल राजाओ के विरूद्ध हुआ। 

इस समय बंगाल में पाल वंश का शासक देवपाल था। वह वीर और यशस्वी था- उसने अचानक कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और कालिंजर में तैनात मिहिरभोज की सेना को परास्त कर किले पर कब्जा कर लिया। मिहिरभोज ने खबर पाते ही देवपाल को सबक सिखाने का निश्चय किया। कन्नौज और ग्वालियर दोनों सेनाओं को इकट्ठा होने का आदेश दिया और चैत्र मास सन् 850 ई. में देवपाल पर आक्रमण कर दिया। इससे देवपाल की सेना न केवल पराजित होकर बुरी तरह भागी, बल्कि वह मारा भी गया। मिहिरभोज ने बिहार समेत सारा क्षेत्र कन्नौज में मिला लिया। 
मिहिरभोज को पूर्व में उलझा देख पश्चिम भारत में पुनः उपद्रव और षड्यंत्र शुरू हो गये। 
इस अव्यवस्था का लाभ अरब डकैतों ने उठाया और वे सिंध पार पंजाब तक लूट पाट करने लगे।

 मिहिरभोज ने अब इस ओर प्रयाण किया। उसने सबसे पहले पंजाब के उत्तरी भाग पर राज कर रहे थक्कियक को पराजित किया, उसका राज्य और 2000 घोड़े छीन लिए। इसके बाद गूजरावाला के विश्वासघाती सुल्तान अलखान को बंदी बनाया- उसके संरक्षण में पल रहे 3000 तुर्की और हूण डाकुओं को बंदी बनाकर खूंखार और हत्या के लिए अपराधी पाये गए पिशाचों को मृत्यु दण्ड दे दिया। तदनन्तर टक्क देश के शंकरवर्मा को हराकर सम्पूर्ण पश्चिमी भारत को कन्नौज साम्राज्य का अंग बना लिया। चतुर्थ अभियान में मिहिरभोज ने प्रतिहार क्षत्रिय वंश की मूल गद्दी मण्डोर की ओर ध्यान दिया।

त्रवाण, बल्ल और माण्ड के राजाओं के सम्मिलित ससैन्य बल ने मण्डोर पर आक्रमण कर दिया, उस समय मण्डोर का राजा बाउक प्रतिहार पराजित ही होने वाला था कि मिहिरभोज सैन्य सहायता के लिए पहुंच गया। उसने तीनों राजाओं को बंदी बना लिया और उनका राज्य कन्नौज में मिला लिया। इसी अभियान में उसने गुर्जरात्रा, लाट, पर्वत आदि राज्यों को भी समाप्त कर साम्राज्य का अंग बना लिया।


नोट :- मंडोर के प्रतिहार (परिहार) कन्नौज के साम्राज्यवादी प्रतिहारों के सामंत के रुप मे कार्य करते थे। कन्नौज के प्रतिहारों के वंशज मंडोर से आकर कन्नौज को भारत देश की राजधानी बनाकर 220 वर्ष शासन किया एवं सनातन धर्म की रक्षा की।


प्रतिहार / परिहार क्षत्रिय वंश का परिचय
वर्ण - क्षत्रिय
राजवंश - प्रतिहार वंश
वंश - सूर्यवंशी ( रघुवंशी )
गोत्र - कौशिक (कौशल, कश्यप)
वेद - यजुर्वेद
उपवेद - धनुर्वेद
गुरु - वशिष्ठ
कुलदेव - श्री रामचंद्र जी , विष्णु भगवान
कुलदेवी - चामुण्डा देवी, गाजन माता
नदी - सरस्वती
तीर्थ - पुष्कर राज ( राजस्थान )
मंत्र - गायत्री
झंडा - केसरिया
निशान - लाल सूर्य
पशु - वाराह
नगाड़ा - रणजीत
अश्व - सरजीव
पूजन - खंड पूजन दशहरा
आदि पुरुष - श्री लक्ष्मण जी
आदि गद्दी - माण्डव्य पुरम ( मण्डौर , राजस्थान )
ज्येष्ठ गद्दी - बरमै राज्य नागौद ( मध्य प्रदेश)


भारत मे प्रतिहार / परिहार क्षत्रियों की रियासत जो 1950 तक काबिज रही!
नागौद रियासत - मध्यप्रदेश
अलीपुरा रियासत - मध्यप्रदेश
खनेती रियासत - हिमांचल प्रदेश
कुमारसैन रियासत - हिमांचल प्रदेश
मियागम रियासत - गुजरात
उमेटा रियासत - गुजरात
एकलबारा रियासत - गुजरात


प्रतिहार / परिहार वंश की वर्तमान स्थिति
भले ही यह विशाल प्रतिहार क्षत्रिय (राजपूत) साम्राज्य 15 वीं शताब्दी के बाद में छोटे छोटे राज्यों में सिमट कर बिखर हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।
आजादी के पहले भारत मे प्रतिहार क्षत्रिय वंश के कई राज्य थे। जहां आज भी ये अच्छी संख्या में है।

मण्डौर, राजस्थान
जालौर, राजस्थान
लोहियाणागढ , राजस्थान
बाडमेर , राजस्थान
भीनमाल , राजस्थान
माउंट आबू, राजस्थान
पाली, राजस्थान
बेलासर, राजस्थान
शेरगढ , राजस्थान
चुरु , राजस्थान
कन्नौज, उतर प्रदेश
हमीरपुर उत्तर प्रदेश
प्रतापगढ, उत्तर प्रदेश
झगरपुर, उत्तर प्रदेश
उरई, उत्तर प्रदेश
जालौन, उत्तर प्रदेश
इटावा , उत्तर प्रदेश
कानपुर, उत्तर प्रदेश
उन्नाव, उतर प्रदेश
उज्जैन, मध्य प्रदेश
चंदेरी, मध्य प्रदेश
ग्वालियर, मध्य प्रदेश
जिगनी, मध्य प्रदेश
नीमच , मध्य प्रदेश
झांसी, मध्य प्रदेश
अलीपुरा, मध्य प्रदेश
नागौद, मध्य प्रदेश
उचेहरा, मध्य प्रदेश
दमोह, मध्य प्रदेश
सिंगोरगढ़, मध्य प्रदेश
एकलबारा, गुजरात
मियागाम, गुजरात
कर्जन, गुजरात
काठियावाड़, गुजरात
उमेटा, गुजरात
दुधरेज, गुजरात 
खनेती, हिमाचल प्रदेश
कुमारसैन, हिमाचल प्रदेश
खोटकई , हिमांचल प्रदेश
जम्मू , जम्मू कश्मीर
डोडा , जम्मू कश्मीर
भदरवेह , जम्मू कश्मीर
करनाल , हरियाणा
खानदेश , महाराष्ट्र
जलगांव , महाराष्ट्र
फगवारा , पंजाब
परिहारपुर , बिहार
रांची , झारखंड


मित्रों आइए अब जानते है प्रतिहार/परिहार वंश की शाखाओं के बारे में…
भारत में परिहारों की कई शाखा है जो अब भी आवासित है। जो अभी तक की जानकारी मे है जिससे आज प्रतिहार/परिहार वंश पूरे भारत वर्ष में फैल गये। भारत मे परिहार  लगभग 1000 हजार गांवो से भी ज्यादा जगहों में निवास करते है।


प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश की शाखाएं!
(1) ईंदा प्रतिहार
(2) देवल प्रतिहार
(3) मडाड प्रतिहार  
(4) खडाड प्रतिहार
(5) लूलावत प्रतिहार
(7) रामावत प्रतिहार
(8) कलाहँस प्रतिहार
(9) तखी प्रतिहार (परहार)

यह सभी शाखाएँ परिहार राजाओं अथवा परिहार ठाकुरों के नाम से है। 

आइए अब जानते है प्रतिहार वंश के महान योद्धा शासको के बारे में जिन्होंने अपनी मातृभूमि, सनातन धर्म,  प्रजा व राज्य के लिए सदैव ही न्यौछावर थे।


प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश के महान राजा
(1) राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार
(2) राजा रज्जिल प्रतिहार
(3) राजा नरभट्ट प्रतिहार
(4) राजा नागभट्ट प्रथम
(5) राजा यशोवर्धन प्रतिहार
(6) राजा शिलुक प्रतिहार
(7) राजा कक्कुक प्रतिहार
(8) राजा बाउक प्रतिहार
(9) राजा वत्सराज प्रतिहार
(10) राजा नागभट्ट द्वितीय
(11) राजा मिहिरभोज प्रतिहार
(12) राजा महेन्द्रपाल प्रतिहार
(13) राजा महिपाल प्रतिहार
(14) राजा विनायकपाल प्रतिहार
(15) राजा महेन्द्रपाल द्वितीय
(16) राजा विजयपाल प्रतिहार
(17) राजा राज्यपाल प्रतिहार
(18) राजा त्रिलोचनपाल प्रतिहार
(19) राजा यशपाल प्रतिहार
(20) राजा मेदिनीराय प्रतिहार (चंदेरी राज्य)
(21) राजा वीरराजदेव प्रतिहार (नागौद राज्य के संस्थापक )

प्रतिहार क्षत्रिय वंश का बहुत ही वृहद इतिहास रहा है इन्होने हमेशा ही अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान दिया है, एवं अपने नाम के ही स्वरुप प्रतिहार यानी रक्षक बनकर सनातन धर्म को बचाये रखा एवं विदेशी आक्रमणकारियों को गाजर मूली की तरह काटा डाला, हमे गर्व है ऐसे राजपूत वंश पर जिसने कभी भी मुश्किल घडी मे अपने आत्म विश्वास को नही खोया एवं आखरी सांस तक सनातन धर्म की रक्षा की।


संदर्भ :-
(1) राजपूताने का इतिहास - डा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा।

(2) विंध्य क्षेत्र के प्रतिहार वंश का ऐतिहासिक अनुशीलन - डा. अनुपम सिंह।

(3) भारत के प्रहरी - प्रतिहार - डा. विंध्यराज चौहान।

(4) प्राचीन भारत का इतिहास - डा. विमलचंद पांडे।

(5) उचेहरा (नागौद) का प्रतिहार राज्य - प्रो. ए. एच. निजामी।

(6) राजस्थान का इतिहास - डा. गोपीनाथ शर्मा।

(7) कन्नौज का इतिहास - डा. रमाशंकर त्रिपाठी।

(8) Society and Culture Rajasthan (700-900) - Dr. Shanta Rani Sharma.

(9) Origin of Rajput - Dr. J. N. Asopa.

(10) Glory That Was Gurjardesh - Dr. K. M. Munshi.

प्रतिहार/परिहार क्षत्रिय वंश॥
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जय नागभट्ट।।
जय मिहिरभोज।।

जय मां भवानी। 🚩
क्षत्रिय धर्म युगे युगे।🚩

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

"जोधा अकबर" की झूठी कहानी


"जोधा अकबर" की कहानी झूठी निकली सैकड़ो सालो से प्रचारित झूंठ का खंडण अकबर की शादी "हरकू बाई " से हुई थी , जोमान सिंह की दासी” थी।

:- जयपुर के रिकॉर्ड


पुरातत्व विभाग भी यही मानता है, जोधा एक झूठ है, जो झूठ वामपंथी इतिहासकारों ने और फ़िल्मी भांडो ने रचा है।


ऐतिहासिक षड्यंत्र :-

आइए एक और ऐतिहासिक षड्यंत्र से आप सभी को अवगत कराते हैं... अब ध्यानपूर्वक पूरा पढ़े।


जब भी कोई राजपूत किसी मुग़ल की गद्दारी की बात करता है तो कुछ मुग़ल प्रेमियों द्वारा उसे जोधाबाई का नाम लेकर चुप कराने की कोशिश की जाती है।


बताया जाता है की कैसे जोधा ने अकबर की आधीनता स्वीकार की या उससे विवाह किया! परन्तु अकबरकालीन किसी भी इतिहासकार ने जोधा और अकबर की प्रेम कहानी का कोई वर्णन नही किया।


सभी इतिहासकारों ने अकबर की सिर्फ 5 बेगम बताई है।

1.सलीमा सुल्तान

2.मरियम उद ज़मानी

3.रज़िया बेगम

4.कासिम बानू बेगम

5.बीबी दौलत शाद



अकबर ने खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी, किसी रानी से विवाह का कोई जिक्र नहीं किया। परन्तु राजपूतों को नीचा दिखने के लिए कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृत्यु के करीब 300 साल बाद 18 वीं सदी में “मरियम उद ज़मानी”, को जोधा बाई बता कर एक झूठी अफवाह फैलाई।


और इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेम कहानी के झूठे किस्से शुरू किये गए, जबकि खुद अकबरनामा और जहांगीर नामा के अनुसार ऐसा कुछ नही था।


18वीं सदी में मरियम को हरखा बाई का नाम देकर राजपूत बता कर उसके मान सिंह की बेटी होने का झूठ पहचान शुरू किया गया। 


फिर 18वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब “एनालिसिस एंड एंटटीक्स ऑफ़ राजस्थान” में मरीयम से हरखा बाई बनी इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया!


और इस तरह ये झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया की आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है और जन जन की जुबान पर ये झूठ सत्य की तरह आ चूका है।


और इसी झूठ का सहारा लेकर राजपूतों को निचा दिखाने की कोशिश जाती है। जब भी मैं जोधाबाई और अकबर के विवाह प्रसंग को सुनता या देखता हूं तो मन में कुछ अनुत्तरित सवाल कौंधने लगते हैं!



आन,बान और शान के लिए मर मिटने वाले शूरवीरता के लिए पूरे विश्व मे प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं ?


हजारों की संख्या में एक साथ अग्नि कुंड में जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती हैं ? 


जोधा और अकबर की प्रेम कहानी पर केंद्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक मेरे मन की टीस को और ज्यादा बढ़ा देते हैं!


अब जब यह पीड़ा असहनीय हो गई तो एक दिन इस प्रसंग में इतिहास जानने की जिज्ञासा हुई तो पास के पुस्तकालय से अकबर के दरबारी ‘अबुल फजल’ द्वारा लिखित ‘अकबरनामा’ निकाल कर पढ़ने के लिए ले आया। 


उत्सुकतावश उसे एक ही बैठक में पूरा पढ़ डाली पूरी किताब पढ़ने के बाद घोर आश्चर्य तब हुआ जब पूरी पुस्तक में जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही नही मिला।


मेरी आश्चर्य मिश्रित जिज्ञासा को भांपते हुए मेरे मित्र ने एक अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ ‘तुजुक-ए-जहांगिरी’ जो जहांगीर की आत्मकथा है उसे दिया। इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहांगीर ने अपनी मां जोधाबाई का एक भी बार जिक्र नही किया।


हां कुछ स्थानों पर हीर कुँवर और हरका बाई का जिक्र जरूर था। अब जोधाबाई के बारे में सभी एतिहासिक दावे झूठे समझ आ रहे थे कुछ और पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के पश्चात हकीकत सामने आयी कि “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोई जिक्र या नाम नहीं है।


इस खोजबीन में एक नई बात सामने आई जो बहुत चौकानें वाली है। इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में ‘रुकमा’ नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी!


रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को ‘रुकमा-बिट्टी’ नाम से बुलाते थे आमेर की महारानी ने रुकमा बिट्टी को ‘हीर कुँवर’ नाम दिया। 


चूँकि हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भांति परिचित थी!


राजा भारमल उसे कभी हीर कुँवरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे। राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी परसियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुँवर का विवाह अकबर से करा दिया जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी  नाम दिया।


चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था इसलिये ऐतिहासिक ग्रंथो में हीर कुँवरनी को राजा भारमल की पुत्री बता दिया। जबकि वास्तव में वह कच्छवाह राजकुमारी नही बल्कि दासी-पुत्री थी।

राजा भारमल ने यह विवाह एक समझौते की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था। इस विवाह के विषय मे अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है।


(“ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس”) 


हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें संदेह
इसी तरह ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में एक भारतीय मुगल शासक का विवाह एक परसियन दासी की पुत्री से करवाए जाने की बात लिखी है।


‘अकबर-ए-महुरियत’ में यह साफ-साफ लिखा है कि 

(ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں) 

हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है क्योंकि निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद भरई की रस्म हुई थी।


सिक्ख धर्म गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के विषय मे कहा था कि क्षत्रियों ने अब तलवारों और बुद्धि दोनो का इस्तेमाल करना सीख लिया है, मतलब राजपूताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धि का भी काम लेने लगा है।


17वी सदी में जब ‘परसी’ भारत भ्रमण के लिये आये तब उन्होंने अपनी रचना ”परसी तित्ता” में लिखा “यह भारतीय राजा एक परसियन वैश्या को सही हरम में भेज रहा है अत: हमारे देव (अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें”!


भारतीय राजाओं के दरबारों में राव और भाटों का विशेष स्थान होता था वे राजा के इतिहास को लिखते थे और विरदावली गाते थे उन्होंने साफ साफ लिखा है:-

“गढ़ आमेर आयी तुरकान फौज ले ग्याली पसवान कुमारी ,राण राज्या राजपूता ले ली इतिहासा पहली बार ले बिन लड़िया जीत! (1563 AD)”

मतलब आमेर किले में मुगल फौज आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर ले जाती है! हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत 1563 AD!


ये ऐसे कुछ तथ्य हैं जिनसे एक बात समझ आती है कि किसी ने जानबूझकर गौरवशाली क्षत्रिय समाज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की और यह कुप्रयास अभी भी जारी है!


लेकिन अब यह षडयंत्र अधिक दिन नहीं चलने वाला।

रविवार, 16 अक्तूबर 2022

पुंडीर क्षत्रिय की वंशावली व गोत्र।

पुण्डीर राजवंश-1444 


वंश :- सूर्यवंशी।

कुल :- पुण्डरीक, पुण्डीर, पुण्ढीर।

कुलदेवता :- महादेव।

कुलदेवी :- दधिमाता (जिला :- नागौर, तहसील :- जायल, गाँव :- गौठ मंगलोद :- राजस्थान।)

गौत्र :- पौलिस्त, पुलत्सय।

नदी :- सरयू।

निकास :- अयोध्या से तिलांगाना व तिलंगाना से हरियाणा (करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल व पुण्डरी ) से मायापुर (हरिद्वार व पश्चिम उत्तर प्रदेश।)

पक्षी :- सफेद चील।

पेड़ :- कदम्ब।

प्रवर :- महर्षि पौलिस्त, महर्षि दंभौली, महर्षि विश्वाश्रवस।

शाखा :- तीसरी शताब्दी के महाराज पुण्डरीक द्वितीय से भगवान श्री राम के पुत्र की 158वीं पीढ़ी में महाराज पुण्डरीक द्वितीय हुए। 

महाराज पुण्डरीक द्वितीय (तीसरी शताब्दी के अंत में ) असम, धनवंत, बाहुनिक :- राजा लक्षण कुमार (तिलंगदेव :- तिलंगाना शहर बसाया। 

जढेश्नर (जढासुर :- कुरुक्षेत्र स्नान हेतु सपरिवार व सेना सहित कुरुक्षेत्र पधारे। 

मंढेश्वर (मँढासुर :- सिंधुराज की पुत्री अल्पदे से विवाह कर कैथल क्षेत्र दहेज मे प्राप्त किया व  "पुण्डरी " नगर की स्थापना हुई। 

राजा सुफेदेव :- राजा इशम सिंह (सतमासा 

सीखेमल - बिडौजी - राजा कदम सिंह (निमराणा के चौहान शस्क हरिराय से दूसरे युद्ध मे पराजय मिली व इनके पुत्र हंस ने मायापुरी मे राज्य कायम कर 1440 गाँवो पर अधिकार किया। )

हंस (वासुदेव ) - राजा कुंथल (मायापुर के स्वामी बने व इनके 12 पुत्र हुए। )


1:- अजत सिंह (इनके पुण्डीर वंशज गोगमा, हिनवाडा आदि गाँव मे है जो जिला शामली मे है। )

2:- अणत सिंह (इनके पुण्डीर वंशज दूधली, कसौली, कछ्छौली आदि गाँव मे है। )

3:- लाल सिंह (अविवाहित। )

4:- नौसर सिंह (नौसरहेडी। 

5:- सलाखनदेव (मायापुर राज्य में रहे। )

राजा सुलखन (सलाखन देव ) के 2 पुत्र हुए।

राजा चाँद सिंह पुण्डीर (लाहौर के सूबेदार बने व दिल्ली पति संम्राट पृथ्वीराज चौहान के सामंत बने व इनके पुत्र धीर सिंह पुंडीर पंजाब (भटिनडा) का सुबेदार बना, इस वीर चाँद सिंह की वीरता पृथ्वीराज रासौ मे स्वर्ण अक्षरों मे अमर है। )


राजा गजै सिंह पुण्डीर (गंगा पार कर हाथरस अलीगढ कासगंज एटा जिलों में गए व इनके वंशज 82 गांव मे विराजमान है, जिनमे से 6 गाँव मुजफ्फरनगर जिले में लगते हैं। )


राजा चाँद सिंह पुंडीर के 7 पुत्र हुए
धीर सिंह पुण्डीर
कुँवर अजय देव
कुंवर उदय देव
कुंवर बीसलदेव
कुवर सौविर सिंह
कुंवर साहब सिंह
कुंवर वीर सिंह


इनमे धीर सिंह पुंडीर मीरो से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए व इनके पुत्र पावस पुंडीर तराई के अंतिम युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान के सहयोगी बन कर लौहाना अजानबाहू का सिर काटकर वीरगती को प्राप्त हुए।


चांद सिंह के इन पुत्रो के वंशज आज सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली जिले में विराजमान है। 


कुँवर वीर सिंह के वंशजो की रियासत मनहारखेड़ा (वर्तमान जलालाबाद शामली ) में  थी, औरंगजेब से चल रहे संघर्ष मे पुरोहितों द्वारा गद्दारी करने पर मुग़लों के कब्जे मे गई।


विजय गढ़(गंभीरा अलीगढ़ ) की रियासत अंग्रेजो से हुए युद्ध मे बर्बाद हुई।


अभी पुंडीर वंश की रियासत जसमोर जिला सहारनपुर मे है, जहां पुंडीर राजा द्वारा बनवाया गया शाकम्भरी देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है।