✍काव्य-रचना✍
किण भात लिखू म्है म्हनै बता,
जीवकरण रे वीरता री गाथाl
आ कलम केवती क्यु सिसके,
निश्वास छोड़ती अब हाथा ll
किण भात लिखू म्है म्हनै बता,
जीवकरण रे वीरता री गाथाl
आ कलम केवती क्यु सिसके,
निश्वास छोड़ती अब हाथा ll
जीवकरण जूंझार री अमर कहानी,
जद् लिखवा ने हुँ तैयार हुओl
मोती सरीखा आखर अंगारा बण,
आग धधकतो लार हुओll
जद् लिखवा ने हुँ तैयार हुओl
मोती सरीखा आखर अंगारा बण,
आग धधकतो लार हुओll
वो सनातन धर्म रो रखवालो,
जद् गाया री वाहर चढियो होl
मायड़ जाया पूत रणखेता मे,
नही दूध लजायो हो ll
जद् गाया री वाहर चढियो होl
मायड़ जाया पूत रणखेता मे,
नही दूध लजायो हो ll
क्षात्रधर्म रो पालन करता,
रणभूमि मे शीश चढायो होl
दे हुक दडुक्या नाहर ज्यु,
बैरया रा छक्का छुड़ायो हो ll
रणभूमि मे शीश चढायो होl
दे हुक दडुक्या नाहर ज्यु,
बैरया रा छक्का छुड़ायो हो ll
डोली नाडी पर ठोक ताल,
जीवकरण री तलवार नाची हीl
शीश कटया धड़ सू अलबेले,
सराईया री छातया फाड़ी ही ll
जीवकरण री तलवार नाची हीl
शीश कटया धड़ सू अलबेले,
सराईया री छातया फाड़ी ही ll
थै आज ऊठो भरी नीदड़ली सू,
कलयुग रू लायां घर जोवेl
पुरखा री सांची सीख लिया,
पथ उजलो अणूथी बाट जोवे ll
कलयुग रू लायां घर जोवेl
पुरखा री सांची सीख लिया,
पथ उजलो अणूथी बाट जोवे ll
इण धरती रो कण-कण ऊँचो,
जीवकरण रो कारण सारण नेl
इण ठोड़ सावरिये पग धरिया,
शीश नवो इण धरती ने ll
जीवकरण रो कारण सारण नेl
इण ठोड़ सावरिये पग धरिया,
शीश नवो इण धरती ने ll
✍किशनसिंह वरिया
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