शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

गाथा वीर चौहानों की - भाग 7


गाथा वीर चौहानों की में आपने अंतिम लेख विग्रहराज चौहान द्वितीय के बारे में पढ़ा विग्रहराज द्वितीय ही प्रथम चाहमान शाशक थे जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र थे विग्रहराज द्वितीय के बाद उनके छोटे भाई दुर्लभराज चाहमान सिंहासन की गद्दी पर विराजमान हुए दुर्लभराज ओर विग्रहराज के भाई प्रेम की कथा का वर्णन उसी प्रकार किया जाता है जिस प्रकार रामायण में राम और लक्ष्मण के भाई प्रेम का प्रसंग हमे सुनने और पढ़ने को मिलता है।

 विग्रहराज के दो भाई और थे चंड राज ओर गोविन्दराज लेकिन प्रशस्तियों में उनका उल्लेख बहुत ही कम मिलता है।

लेकिन् दुर्लभराज की वीरता तथा शौर्य से इतिहास भरा पड़ा है ऐतिहासिक अभिलेखों तथा साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि  1030 तक दुर्लभराज ऑफ चाहमान साम्राज्य अपने चरम पर थे दुर्लभराज द्वितीय इतने वीर तथा पराक्रमी राजा थे की कोई शत्रु उनके सामने खड़े रहने का साहस नही करता था।

दुर्लभराज द्वितीय को शाकुंभरी सत्ता को भली भांति स्थापित करने के लिए बहुत से भयंकर युद्ध भी लड़ने पड़े तमाम संघर्षों तथा विपदाओं को धूल चटाते हुए दुर्लभराज चौहान ने अपने साम्राज्य को इतना शक्तिशाली बना दिया की शत्रु अब चाहमान साम्राज्य पर आक्रमण करने के नाम मात्र से भय खाने लगे थे।

दुर्लभराज के प्रमुख शत्रु चालुक्य हुआ करते थे चालुक्यों ने मित्रता स्थापित करने के प्रयास से चौहानों से वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किये सकरई अभिलेख में तो दुर्लभराज की वीरता के बारे में अद्भुत विवरण है।

दुर्लभराज को अपनी कुशलता तथा वीरता के कारण महाराजधिराज नाम से जाना जाता है किनसरिया अभिलेख में दुर्लभराज को दुरल्लगया - मेरु कहकर संबोधित किया गया है इसी अभिलेख के बाहरवें भाग में शत्रु को पराजित करने वाला रासोसितना संबोधन से दुर्लभराज द्वितीय को सम्मानित किया गया है।

कुछ ऐतिहासिक साक्ष्यों में तो दुर्लभराज की तलवार की भी भारी प्रशंसा की गई है 1008 में जिस हिन्दू राजा ने मुहम्मद सुल्तान को हराया था तथा भारत भूमि से लौट जाने के लिए मजबूर किया था वह राजा भी दुर्लभराज चौहान ही था।

दुर्लभराज के बाद गोविन्दराज सत्ता में आएं पृथ्वीराज विजय में उन्हें वैरिघाटटा नाम से सबोधित किया गया है जिसका अर्थ होता है शत्रु का विनाश करने वाला
प्रबन्धकोश में गोविन्दराज द्वितीय को सुल्तान मुहम्मद पर विजय का श्रेय दिया गया है कहा जाता है कि सुल्तान मुहम्मद को सिंध के  रास्ते भागना पड़ा था क्यो की अजमेर से चाहमान शाशक गोविन्दराज ने अपनी विशाल सेना से मेवाड़ के रास्ते को बन्द कर दिया था।

दुर्लभराज द्वितीय के बाद वाक्यतिराज द्वितीय हुए इन्हें भी अपनी वीरता के कारण खूब ख्यति मिली हुई है।
जय राजपूताना जय मां भवानी धर्म क्षत्रिय युगे युगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻‍♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
👉🏻▄︻̷̿┻̿═━,’,’• Ⓡ︎ⓐⓝⓐ Ⓖ︎ 👈🏻