पिछले लेख में आपने पढ़ा था, की सामंत के रूप में सत्ता में आने वाले चौहान सामन्तराज चौहान के समय तक एक महान शक्ति बन चुकी थी । सामन्तराज के बाद उनके पुत्र नरदेव ने चौहानों की सत्ता संभाली थी, लेकिन इनका कोई विख्यात इतिहास् नही है ।
चौहानों की शक्ति में अभूतपूर्व परिवर्तन 721 ईस्वी में आया, जब चाहमान शाशक अजयराज गद्दी पर विराजमान हुए। अजयराज जब सिंहासन पर विराजमान हुए, तो राज्य की आंतरिक स्थिति भी संतोषजनक नही थी।
अजयराज चौहान ने इन सभी बाधाओं को पार करते हुए ना केवल राज्य की आंतरिक स्थिति को संभाला, बल्कि शत्रुओ का दमन करते हुए चौहानों की शक्ति की भभक सारे भारत को दिखा दी। अजयराज के समय चौहानो ने महान् वीरता दिखाई थी, खुद अजयराज चौहान भी वीरता तथा पराक्रम में किसी से कम नही थे, उनकी वीरता और अद्भुत पराक्रम , हारे हुए युद्ध का अपनी वीरता और तलवार के दम में नतीजा परिवर्तित कर देने वाले महावीर अजयराज चौहान को इतिहास् ने " चक्री " कहा है । अजयराज चौहान ने अपने पराक्रम ओर वीरता से अपनी जनता का इतना मनोबल बढ़ा दिया था, की जनता अब अपनी सुरक्षा को लेकर निश्चिन्त रहने लगी।
अजयराज चौहान एक महावीर योद्धा थे, उनकी महत्वाकाक्षा बहुत बड़ी थी । किंतु कुछ ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि अजयराज चौहान कम उम्र में ही वैरागी हो गए।
आपको अजयराज चौहान के राजसी जीवन के बारे में जानना चाहिए, ओर उसके बाद उनके सन्यास लेने की घटना देखिये। अजयराज ऐसे राजा थे, जिन्होंने घन् संपति, सुख होते हुए भी सारे मोह माया से मुक्त होकर वैराग्य धारण किया।।
पहाड़ो पर बनने वाला कलयुग का सबसे पुराना किला " तारागढ़ " का किला अजयराज चौहान ने ही बनाया था। यह उस समय के सबसे शक्तिशाली किलो में एक हो गया, यही चौहानों की राजनीतिक समझ को भी बताता है, की उन्होंने पहाड़ो पर दुर्ग बनाकर अपनी स्थिति बहुत मजबूत कर ली थी। तारागढ़ चौहानों का सबसे पुराना किला है । तारागढ़ का किला आज भी चौहानों की शक्ति का मूल क दर्शक है , लेकिन हमारा दुर्भाग्य तो देखिए, जिस चौहानों के नाम पर आज हम गर्व करते है, उन्ही चौहानों का प्रथम दुर्ग आज मुसलमानों के कब्जे में है, वहां के सारे अवशेष धीरे धीरे मिटायें जा रहे है, अब वहां भव्य मस्जिद है, जो कि पिछले 10 - 5 सालों में बनी है, हालांकि जब आप किला घूमने जाते है, त्यप सरकार उसे तारागढ़ का किला ही बताती है, लेकिन भीतर प्रवेश के बाद पता लगता है, की यहां तो मस्जिद बन गयी है । पहले यहां पर छोटी सी मजार बनाई गई थी, बाद में उसी मजार को भव्य मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया ।
" जबकि तारागढ़ का दुर्ग राजपूताने की शान माना जाता है ""
अजयराज चौहान ने ही पहाड़ो पर अद्भुत दुर्ग का निर्माण किया था, लेकिन अजयराज चौहान वैरागी हो गए, ओर अपना जीवन अजमेर के आश्रम में जाकर व्यतीत करने लगे । अजयराज अब बहुत ही धार्मिक जीवन जीने वाले सद्पुरुष बन चुके थे।
आजका अजमेर शहर अजयराज चौहान के द्वारा ही बसाया गया है। यह शहर बहुत ही भव्य तथा शानदार था। यह भव्यता भी चौहान शाशको की अन्य राजवंशों पर विजय को दर्शाता है ।
आगे के लेख में आप पढ़ेंगे की अजयराज के उत्तराधिकारी विग्रहराज प्रथम के बारे में पढ़ेंगे , उसी समय मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण हुआ था। किस तरह उस भयानक आतंक को विग्रहराज् चौहान ने धूल चटा दी।
जय राजपूताना।
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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
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