बिजली सी गति, गिद्ध सी आंख, हाथी की तरह बलशाली ओर चीते की तरह पूरी शक्ति और गति के साथ ऐसा प्रहार की पल भर में शत्रु का शीश जमीन की धूल में मिल जाता । ऐसे ही वीर पुरुष थे चौहान !!
चौहानों ने अद्भुत गति के साथ अपनी शक्ति को विश्व शक्ति बनाकर खड़ा किया था, प्रतिहार साम्राज्य के काल मे भारत की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक परिस्थिति को देखते हुए सामन्तशाही व्यवस्था की आवश्यकता पड़ी । उसी समय विदेशों से लगातार मल्लेछो ( मुसलमानों और हूणों ) के आक्रमण हो रहे थे , हालांकि हुण इतने शक्तिशाली उस समय तक नही बचे थे, लेकिन् उसके बाद भी भारत के लिए यह संकट पैदा कर ही देते थे । भारत की सत्ता सुदृढ रूप से पनप नही पा रही थी, इसी काल मे सामंतों का उदय हुआ।
सामंतों का कार्य राजा को सैनिक शक्ति उपलब्ध करवाना, तथा कुछ क्षेत्रों में पूरी तरह व्यवस्था लागू करना था। यदि शाशक कमजोर या डरपोक होता, तो सामन्त विद्रोह कर दिया करते, सामन्तगण राजाओ के अनिवार्य आवश्यकता बन गए थे ।
चौहानों ने भी सामन्त के रूप में ही अपना शाशन शुरू किया था, यह प्रतिहारो के सामन्त हुआ करते थे। समय के साथ साथ चौहानों की शक्ति बढ़ती गयी, ओर प्रतिहार शाशको की शक्ति क्षीण होती गयी।
प्रतिहारो ने शिलालेखों में चौहान सामंतों की भूरी भूरी प्रशंसा की गयी है। प्रतापगढ़ का 944 ई के अभिलेख का दूसरे भाग के अनुसार , " चौहान सरदारों ने प्रतिहारो के लिए अनेक भयंकर युद्ध किये थे , जिनमे वह पूर्ण रूप से सफल भी रहें "
चौहानों का पितामह वासुदेव चौहान को कहा जाता है । वासुदेव चौहान के बारे में ज़्यादा विवरण हमे नही मिलता, लेकिन पृथ्वीराज विजय नामक ग्रन्थ में वासुदेव चौहान को चौहान वंश का संस्थापक बताया गया है। वासुदेव चौहान साक्षात भगवान श्री कृष्ण का अवतार था । ( अर्थात - उनकी कूटनीति , लोकप्रियता ओर शक्ति भगवान श्री कृष्ण के समान थी )
लेकीन् चौहानों का वास्तविक उदय " सामन्तराज चौहान " के समय से शुरू हुआ । अभिलेखों से ज्ञात होता है कि सामन्तराज चौहान अपने समय मे इतने शक्तिशाली हो चुके थे, की कई सामंतों की अगुवाई करने लगे, तथा भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बना चुके थे। सामन्तराज चौहान के समय मे चौहानों की शक्ति दिन - ब - दिन बढ़ती जा रही थी, इससे यह स्पष्ठ हो जाता है कि सामन्त राज् के समय ही चौहान भारत की सत्ता के लिए दावेदारी ठोक चुके थे । सामन्तराज इतने शक्तिशाली हो चुके थे, की उन्होंने प्रतिहार सत्ता तक को चुनोती दे डाली, हालांकि वे इसमे सफल नही हुए।
लेकिन सामन्तराज चौहानों को इस स्थिति तक पहुंचा चुके थे, की अब दिल्ली दूर नही थी ----
( चौहानों को अग्निवंशी कहकर जाना जाता है, लेकिन यह वास्तविक सत्य नही है, चौहानों को अग्निवंशी केवल पृथ्वीराज रासो में कहा गया है, लेकिन पृथ्वीराज रासो को कोई भी इतिहासकार विश्वसनीय नही मानता, पृथ्वीराज विजय के अनुसार तथा हम्मीर महाकाव्य के अनुसार चौहान सूर्यवँशी राजा है, इन्हें श्री राम का वंसज कहा गया है। )
आगे के लेख में हम जानेंगे कि किस तरह चौहान भारत की सत्ता के सर्वोसर्वा बन गए, ओर उस समय भारत की स्थिति क्या थी, चौहान राजाओ का व्यवहार कैसा था, राजाओ का आचरण कैसा था, सामाजिक स्थिति से लेकर राजनीतिक स्थिति क्या थी --
पढ़ते रहिये .....
जय राजपूताना।
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