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रविवार, 30 सितंबर 2018
राजपूत रणनीति कुछ इस प्रकार से होनी चाहिए।
शनिवार, 29 सितंबर 2018
गाथा वीर चौहानों की - भाग 4
गाथा वीर चौहानों की - भाग 3
गाथा वीर चौहानों की - भाग 2
पिछले लेख में आपने पढ़ा था, की सामंत के रूप में सत्ता में आने वाले चौहान सामन्तराज चौहान के समय तक एक महान शक्ति बन चुकी थी । सामन्तराज के बाद उनके पुत्र नरदेव ने चौहानों की सत्ता संभाली थी, लेकिन इनका कोई विख्यात इतिहास् नही है ।
चौहानों की शक्ति में अभूतपूर्व परिवर्तन 721 ईस्वी में आया, जब चाहमान शाशक अजयराज गद्दी पर विराजमान हुए। अजयराज जब सिंहासन पर विराजमान हुए, तो राज्य की आंतरिक स्थिति भी संतोषजनक नही थी।
अजयराज चौहान ने इन सभी बाधाओं को पार करते हुए ना केवल राज्य की आंतरिक स्थिति को संभाला, बल्कि शत्रुओ का दमन करते हुए चौहानों की शक्ति की भभक सारे भारत को दिखा दी। अजयराज के समय चौहानो ने महान् वीरता दिखाई थी, खुद अजयराज चौहान भी वीरता तथा पराक्रम में किसी से कम नही थे, उनकी वीरता और अद्भुत पराक्रम , हारे हुए युद्ध का अपनी वीरता और तलवार के दम में नतीजा परिवर्तित कर देने वाले महावीर अजयराज चौहान को इतिहास् ने " चक्री " कहा है । अजयराज चौहान ने अपने पराक्रम ओर वीरता से अपनी जनता का इतना मनोबल बढ़ा दिया था, की जनता अब अपनी सुरक्षा को लेकर निश्चिन्त रहने लगी।
अजयराज चौहान एक महावीर योद्धा थे, उनकी महत्वाकाक्षा बहुत बड़ी थी । किंतु कुछ ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि अजयराज चौहान कम उम्र में ही वैरागी हो गए।
आपको अजयराज चौहान के राजसी जीवन के बारे में जानना चाहिए, ओर उसके बाद उनके सन्यास लेने की घटना देखिये। अजयराज ऐसे राजा थे, जिन्होंने घन् संपति, सुख होते हुए भी सारे मोह माया से मुक्त होकर वैराग्य धारण किया।।
पहाड़ो पर बनने वाला कलयुग का सबसे पुराना किला " तारागढ़ " का किला अजयराज चौहान ने ही बनाया था। यह उस समय के सबसे शक्तिशाली किलो में एक हो गया, यही चौहानों की राजनीतिक समझ को भी बताता है, की उन्होंने पहाड़ो पर दुर्ग बनाकर अपनी स्थिति बहुत मजबूत कर ली थी। तारागढ़ चौहानों का सबसे पुराना किला है । तारागढ़ का किला आज भी चौहानों की शक्ति का मूल क दर्शक है , लेकिन हमारा दुर्भाग्य तो देखिए, जिस चौहानों के नाम पर आज हम गर्व करते है, उन्ही चौहानों का प्रथम दुर्ग आज मुसलमानों के कब्जे में है, वहां के सारे अवशेष धीरे धीरे मिटायें जा रहे है, अब वहां भव्य मस्जिद है, जो कि पिछले 10 - 5 सालों में बनी है, हालांकि जब आप किला घूमने जाते है, त्यप सरकार उसे तारागढ़ का किला ही बताती है, लेकिन भीतर प्रवेश के बाद पता लगता है, की यहां तो मस्जिद बन गयी है । पहले यहां पर छोटी सी मजार बनाई गई थी, बाद में उसी मजार को भव्य मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया ।
" जबकि तारागढ़ का दुर्ग राजपूताने की शान माना जाता है ""
अजयराज चौहान ने ही पहाड़ो पर अद्भुत दुर्ग का निर्माण किया था, लेकिन अजयराज चौहान वैरागी हो गए, ओर अपना जीवन अजमेर के आश्रम में जाकर व्यतीत करने लगे । अजयराज अब बहुत ही धार्मिक जीवन जीने वाले सद्पुरुष बन चुके थे।
आजका अजमेर शहर अजयराज चौहान के द्वारा ही बसाया गया है। यह शहर बहुत ही भव्य तथा शानदार था। यह भव्यता भी चौहान शाशको की अन्य राजवंशों पर विजय को दर्शाता है ।
आगे के लेख में आप पढ़ेंगे की अजयराज के उत्तराधिकारी विग्रहराज प्रथम के बारे में पढ़ेंगे , उसी समय मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण हुआ था। किस तरह उस भयानक आतंक को विग्रहराज् चौहान ने धूल चटा दी।
जय राजपूताना।
गाथा चक्रवर्ती चौहानों की - भाग 1
बिजली सी गति, गिद्ध सी आंख, हाथी की तरह बलशाली ओर चीते की तरह पूरी शक्ति और गति के साथ ऐसा प्रहार की पल भर में शत्रु का शीश जमीन की धूल में मिल जाता । ऐसे ही वीर पुरुष थे चौहान !!
चौहानों ने अद्भुत गति के साथ अपनी शक्ति को विश्व शक्ति बनाकर खड़ा किया था, प्रतिहार साम्राज्य के काल मे भारत की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक परिस्थिति को देखते हुए सामन्तशाही व्यवस्था की आवश्यकता पड़ी । उसी समय विदेशों से लगातार मल्लेछो ( मुसलमानों और हूणों ) के आक्रमण हो रहे थे , हालांकि हुण इतने शक्तिशाली उस समय तक नही बचे थे, लेकिन् उसके बाद भी भारत के लिए यह संकट पैदा कर ही देते थे । भारत की सत्ता सुदृढ रूप से पनप नही पा रही थी, इसी काल मे सामंतों का उदय हुआ।
सामंतों का कार्य राजा को सैनिक शक्ति उपलब्ध करवाना, तथा कुछ क्षेत्रों में पूरी तरह व्यवस्था लागू करना था। यदि शाशक कमजोर या डरपोक होता, तो सामन्त विद्रोह कर दिया करते, सामन्तगण राजाओ के अनिवार्य आवश्यकता बन गए थे ।
चौहानों ने भी सामन्त के रूप में ही अपना शाशन शुरू किया था, यह प्रतिहारो के सामन्त हुआ करते थे। समय के साथ साथ चौहानों की शक्ति बढ़ती गयी, ओर प्रतिहार शाशको की शक्ति क्षीण होती गयी।
प्रतिहारो ने शिलालेखों में चौहान सामंतों की भूरी भूरी प्रशंसा की गयी है। प्रतापगढ़ का 944 ई के अभिलेख का दूसरे भाग के अनुसार , " चौहान सरदारों ने प्रतिहारो के लिए अनेक भयंकर युद्ध किये थे , जिनमे वह पूर्ण रूप से सफल भी रहें "
चौहानों का पितामह वासुदेव चौहान को कहा जाता है । वासुदेव चौहान के बारे में ज़्यादा विवरण हमे नही मिलता, लेकिन पृथ्वीराज विजय नामक ग्रन्थ में वासुदेव चौहान को चौहान वंश का संस्थापक बताया गया है। वासुदेव चौहान साक्षात भगवान श्री कृष्ण का अवतार था । ( अर्थात - उनकी कूटनीति , लोकप्रियता ओर शक्ति भगवान श्री कृष्ण के समान थी )
लेकीन् चौहानों का वास्तविक उदय " सामन्तराज चौहान " के समय से शुरू हुआ । अभिलेखों से ज्ञात होता है कि सामन्तराज चौहान अपने समय मे इतने शक्तिशाली हो चुके थे, की कई सामंतों की अगुवाई करने लगे, तथा भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बना चुके थे। सामन्तराज चौहान के समय मे चौहानों की शक्ति दिन - ब - दिन बढ़ती जा रही थी, इससे यह स्पष्ठ हो जाता है कि सामन्त राज् के समय ही चौहान भारत की सत्ता के लिए दावेदारी ठोक चुके थे । सामन्तराज इतने शक्तिशाली हो चुके थे, की उन्होंने प्रतिहार सत्ता तक को चुनोती दे डाली, हालांकि वे इसमे सफल नही हुए।
लेकिन सामन्तराज चौहानों को इस स्थिति तक पहुंचा चुके थे, की अब दिल्ली दूर नही थी ----
( चौहानों को अग्निवंशी कहकर जाना जाता है, लेकिन यह वास्तविक सत्य नही है, चौहानों को अग्निवंशी केवल पृथ्वीराज रासो में कहा गया है, लेकिन पृथ्वीराज रासो को कोई भी इतिहासकार विश्वसनीय नही मानता, पृथ्वीराज विजय के अनुसार तथा हम्मीर महाकाव्य के अनुसार चौहान सूर्यवँशी राजा है, इन्हें श्री राम का वंसज कहा गया है। )
आगे के लेख में हम जानेंगे कि किस तरह चौहान भारत की सत्ता के सर्वोसर्वा बन गए, ओर उस समय भारत की स्थिति क्या थी, चौहान राजाओ का व्यवहार कैसा था, राजाओ का आचरण कैसा था, सामाजिक स्थिति से लेकर राजनीतिक स्थिति क्या थी --
पढ़ते रहिये .....
जय राजपूताना।