★ जब आप जान लेंगे कि दूसरों का हित अपना ही हित करने के बराबर है और दूसरों का अहित करना अपना ही अहित करने के बराबर है, तब आपको धर्म के स्वरूप का साक्षत्कार हो जायेगा।
★ आप आत्म-प्रतिष्ठा, दलबन्दी और ईर्ष्या को सदा के लिए छोड़ दो। पृथ्वी माता की तरह सहनशील हो जाओ। संसार आपके कदमों में न्योछावर होने का इंतज़ार कर रहा है।
★ मैं निर्गुण, निष्क्रिय, नित्य मुक्त और अच्युत हूँ। मैं असत्यस्वरूप देह नहीं हूँ। सिद्ध पुरुष इसीको ‘ज्ञान’ कहते हैं।
★ जो दूसरों का सहारा खोजता है, वह सत्यस्वरूप ईश्वर की सेवा नहीं कर सकता।
★ सत्यस्वरूप महापुरुष का प्रेम सुख-दुःख में समान रहता है, सब अवस्थाओं में हमारे अनुकूल रहता है।
★ हृदय का एकमात्र विश्रामस्थल वह प्रेम है। वृद्धावस्था उस आत्मरस को सुखा नहीं सकती। समय बदल जाने से वह बदलता नहीं। कोई विरला भाग्यवान ही ऐसे दिव्य प्रेम का भाजन बन सकता है।
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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
👉🏻▄︻̷̿┻̿═━,’,’• Ⓡ︎ⓐⓝⓐ Ⓖ︎ 👈🏻