तोमर या तंवर उत्तर-पश्चिम भारत का एक राजपूत वंश है। तोमर राजपूत क्षत्रियो में चन्द्रवंश की एक शाखा है और इन्हें पाण्डु पुत्र अर्जुन का वंशज माना जाता है, इनका गोत्र अत्री एवं व्याघ्रपद अथवा गार्गेय्य होता है।
क्षत्रिय वंश भास्कर, पृथ्वीराज रासो बीकानेर वंशावली में भी यह वंश चन्द्रवंशी लिखा हुआ है यही नहीं कर्नल जेम्स टॉड जैसे विदेशी इतिहासकार भी तंवर वंश को पांडव वंश ही मानते हैं।
उत्तर मध्य काल में ये वंश बहुत ताकतवर वंश था और उत्तर पश्चिमी भारत के बड़े हिस्से पर इनका शासन था, दिल्ली जिसका प्राचीन नाम ढिल्लिका था, इस वंश की राजधानी थी और उसकी स्थापना का श्रेय इसी वंश को जाता है।
नामकरण
तंवर अथवा तोमर वंश के नामकरण की कई मान्यताएं प्रचलित हैं,कुछ विद्वानों का मानना है कि राजा तुंगपाल के नाम पर तंवर वंश का नाम पड़ा, पर सर्वाधिक उपयुक्त मान्यता ये प्रतीत होती है।
इतिहासकार ईश्वर सिंह मंडाड की राजपूत वंशावली के पृष्ठ संख्या 228 के अनुसार पांडव वंशी अर्जुन ने नागवंशी क्षत्रियो को अपना दुश्मन बना लिया था।
नागवंशी क्षत्रियो ने पांड्वो को मारने का प्रण ले लिया था, पर पांडवो के राजवैध धन्वन्तरी के होते हुए वे पांड्वो का कुछ न बिगाड़ पाए… अतः उन्होंने धन्वन्तरी को मार डाला।
इसके बाद अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मार डाला… परीक्षित के बाद उसका पुत्र जन्मेजय राजा बना, अपने पिता का बदला लेने के लिए जन्मेजय ने नागवंश के नौ कुल समाप्त कर दिए…
नागवंश को समाप्त होता देख उनके गुरु आस्तिक जो की जत्कारू के पुत्र थे, जन्मेजय के दरबार मैं गए व् सुझाव दिया की किसी वंश को समूल नष्ट नहीं किया जाना चाहिए व सुझाव दिया की इस हेतु आप यज्ञ करे।
महाराज जन्मेजय के पुरोहित कवष के पुत्र तुर इस यज्ञ के अध्यक्ष बने, इस यग्य में जन्मेजय के पुत्र पौत्र अदि दीक्षित हुए, क्योकि इन सभी को तुर ने दीक्षित किया था, इस कारण ये पांडव तुर, तोंर या बाद में तांवर, तंवर या तोमर कहलाने लगे, ऋषि तुर द्वारा इस यज्ञ का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।
(महाभारत काल के बाद तंवर वंश का वर्णन)
महाभारत काल के बाद पांडव वंश का वर्णन पहले तो 1000 ईसा पूर्व के ग्रंथो में आता है, जब हस्तिनापुर राज्य को युधिष्ठर वंश बताया गया, पर इसके बाद से लेकर बौद्धकाल, मौर्य युग से लेकर गुप्तकाल तक इस वंश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती।
समुद्रगुप्त के शिलालेख से पाता चलता है कि उन्होंने मध्य और पश्चिम भारत की यौधेय और अर्जुनायन क्षत्रियों को अपने अधीन किया था।
यौधेय वंश युधिष्ठर का वंश माना जा सकता है और इसके वंशज आज भी चन्द्रवंशी जोहिया राजपूत कहलाते हैं जो अब अधिकतर मुसलमान हो गए हैं।
इन्ही के आसपास रहने वाले अर्जुनायन को अर्जुन का वंशज माना जा सकता है और ये उसी क्षेत्रो में पाए जाते थे जहाँ आज भी तंवरावाटी और तंवरघार है यानि पांडव वंश ही उस समय तक अर्जुनायन के नाम से जाना जाता था और कुछ समय बाद वही वंश अपने पुरोहित ऋषि तुर द्वारा यज्ञ में दीक्षित होने पर तुंवर, तंवर, तूर, या तोमर के नाम से जाना गया।
(इतिहासकार महेन्द्र सिंह तंवर खेतासर भी अर्जुनायन को ही तंवर वंश मानते हैं।)
तंवर वंश और दिल्ली की स्थापना
ईश्वर का चमत्कार देखिये कि हजारो साल बाद पांडव वंश को पुन इन्द्रप्रस्थ को बसाने का मौका मिला और ये श्रेय मिला अनंगपाल तोमर प्रथम को।
दिल्ली के तोमर शासको के अधीन दिल्ली के अलावा पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी था, इनके छोटे राज्य पिहोवा, सूरजकुंड, हांसी, थानेश्वर में होने के भी अभिलेखों में उल्लेख मिलते हैं, इस वंश ने बड़ी वीरता के साथ तुर्कों का सामना किया और कई सदी तक उन्हें अपने क्षेत्र में अतिक्रमण करने नहीं दिया।
दिल्ली के तंवर(तोमर) शासक (736-1193 ई)
1.अनगपाल तोमर प्रथम (736-754 ई)-दिल्ली के संस्थापक राजा थे जिनके अनेक नाम मिलते हैं जैसे बीलनदेव जाऊल इत्यादि।
2.राजा वासुदेव (754-773)3.राजा गंगदेव (773-794)
4.राजा पृथ्वीमल (794-814)-बंगाल के राजा धर्म पाल के साथ युद्ध
5.जयदेव (814-834)
6.राजा नरपाल (834-849)
7.राजा उदयपाल (849-875)
8.राजा आपृच्छदेव (875-897)
9.राजा पीपलराजदेव (897-919)
10.राज रघुपाल (919-940)
11.राजा तिल्हणपाल (940-961)
12.राजा गोपाल देव (961-979)-इनके समय साम्भर के राजा सिहराज और लवणखेडा के तोमर सामंत सलवण के मध्य युद्ध हुआ जिसमें सलवण मारा गया तथा उसके पश्चात दिल्ली के राजा गोपाल देव ने सिंहराज पर आक्रमण करके उन्हें युद्ध में मारा।
13.सुलक्षणपाल तोमर (979-1005)-महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया।
14.जयपालदेव (1005-1021)-महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया, महमूद ने थानेश्वसर ओर मथुरा को लूटा।
15.कुमारपाल (1021-1051) 1021-1051)-मसूद के साथ युद्ध किया और 1038 में हाँसी के गढ का पतन हुआ पाच वर्ष बाद कुमारपाल ने हाँसी थानेश्वसर के साथ साथ कांगडा भी जीत लिया।
16.अनगपाल द्वितीय (1051-1081)-लालकोट का निर्माण करवाया और लोह स्तंभ की स्थापना की, अनंगपाल द्वितीय ने 27 महल और मन्दिर बनवाये थे।दिल्ली सम्राट अनगपाल द्वितीय ने तुर्क इबराहीम को पराजित किया।
17.तेजपाल प्रथम(1081-1105)
18.महिपाल(1105-1130)-महिलापुर बसाया और शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
19.विजयपाल (1130-1151)-मथुरा में केशवदेव का मंदिर।
20.मदनपाल(1151-1167)-
मदनपाल अथवा अनंगपाल तृतीय, मदनपाल ने बीसलदेव के साथ मिलकर तुर्कों के हमलो के विरुद्ध युद्ध किया और उन्हें मार भगाया।
मदलपाल तोमर ने विग्रहराज चौहान उर्फ़ बीसलदेव के शौर्य से प्रभावित होकर उससे अनंगपाल ने अपनी दो पुत्रियों की शादी एक कन्नौज के जयचंद के पिता विजयपाल के साथ और दूसरी कमला देवी का विवाह पृथ्वीराज के पिता सोमेशवर चौहान के साथ किया।
जिससे पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ, जबकि पृथ्वीराज चौहान तो अनंगपाल तोमर का धेवता था, विजयपाल उसका मौसा था।
21.पृथ्वीराज तोमर(1167-1189)-अजमेर के राजा सोमेश्वर और पृथ्वीराज चौहान इनके समकालीन थे।
22.चाहाडपाल/गोविंदराज (1189-1192)-पृथ्वीराज चौहान के साथ मिलकर गोरी के साथ युद्ध किया,तराईन दुसरे युद्ध मे मारा गया।
पृथ्वीराज रासो के अनुसार तराईन के पहले युद्ध में मौहम्मद गौरी और गोविन्दराज तोमर का आमना सामना हुआ था जिसमे दोनों घायल हुए थे और गौरी भाग रहा था।
भागते हुए गौरी को धीरसिंह पुंडीर ने पकडकर बंदी बना लिया था, जिसे उदारता दिखाते हुए पृथ्वीराज चौहान ने छोड़ दिया, हालाँकि गौरी के मुस्लिम इतिहासकार इस घटना को छिपाते हैं।
23.तेजपाल द्वितीय (1192-1193 ई)-दिल्ली का अन्तिम तोमर राजा , जिन्होंने स्वतन्त्र 15 दिन तक शासन किया, और कुतुबुद्दीन ने दिल्ली पर आक्रमण कर हमेशा के लिए दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
ग्वालियर, चम्बल, ऐसाह गढ़ी का तोमर वंश
दिल्ली छूटने के बाद वीर सिंह तंवर ने चम्बल घाटी के ऐसाह गढ़ी में अपना राज स्थापित किया, जो इससे पहले भी अर्जुनायन तंवर वंश के समय से उनके अधिकार में था, बाद में इस वंश ने ग्वालियर पर भी अधिकार कर मध्य भारत में एक बड़े राज्य की स्थापना की।
यह शाखा ग्वालियर स्थापना के कारण ग्वेलेरा कहलाती है, माना जाता है कि ग्वालियर का विश्वप्रसिद्ध किला भी तोमर शासको ने बनवाया था।
यह क्षेत्र आज भी तंवरघार कहा जाता है और इस क्षेत्र में तोमर राजपूतो के 1400 गाँव कहे जाते हैं वीर सिंह के बाद उद्दरण, वीरम, गणपति, डूंगर सिंह, कीर्तिसिंह, कल्याणमल और राजा मानसिंह हुए।
राजा मानसिंह तोमर बड़े प्रतापी शासक हुए उनके दिल्ली के सुल्तानों से निरंतर युद्ध हुए, उनकी नौ रानियाँ राजपूत थी, पर एक दीनहींन गुज्जर जाति की लडकी मृगनयनी पर मुग्ध होकर उससे भी विवाह कर लिया।
जिसे नीची जाति की मानकर रानियों ने महल में स्थान देने से मना कर दिया जिसके कारण मानसिंह ने छोटी जाति की होते हुए भी मृगनयनी गूजरी के लिए अलग से ग्वालियर में गूजरी महल बनवाया।
इस गूजरी रानी पर राजपूत राजा मानसिंह इतने आसक्त थे कि गूजरी महल तक जाने के लिए उन्होंने एक सुरंग भी बनवाई थी जो अभी भी मौजूद है पर इसे अब बंद कर दिया गया है।
मानसिंह के बाद विक्रमादित्य राजा हुए, उन्होंने पानीपत की लड़ाई में अपना बलिदान दिया, उनके बाद रामशाह तोमर राजा हुए, उनका राज्य 1567 ईस्वी में अकबर ने जीत लिया।
इसके बाद राजा रामशाह तोमर ने मुगलों से कोई संधि नहीं की और अपने परिवार के साथ महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के पास आ गए।
हल्दीघाटी के युद्ध में राजा रामशाह तोमर ने अपने पुत्र शालिवाहन तोमर के साथ वीरता का असाधारण प्रदर्शन कर अपने परिवारजनों समेत महान बलिदान दिया, उनके बलिदान को आज भी मेवाड़ राजपरिवार द्वारा आदरपूर्वक याद किया जाता है।
मालवा में रायसेन में भी तंवर राजपूतो का शासन था, यहाँ के शासक सिलहदी उर्फ़ शिलादित्य तंवर राणा सांगा के दामाद थे और खानवा के युद्ध में राणा सांगा की और से लडे थे।
कुछ इतिहासकार इन पर राणा सांगा से धोखे का भी आरोप लगाते हैं, पर इसके प्रमाण पुष्ट नही हैं सिल्ह्दी पर गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने 1532 ईस्वी में हमला किया।
इस हमले में सिलहदी तंवर की पत्नी जो राणा सांगा की पुत्री थी, उन्होंने 700 राजपूतानियो और अपने दो छोटे बच्चों के साथ जौहर किया और सिल्हदी तंवर अपने भाई के साथ वीरगति को प्राप्त हुए।
बाद में रायसेन को पूरनमल को दे दिया गया, कुछ वर्षो बाद 1543 इसवी में रायसेन के मुल्लाओ की शिकायत पर शेरशाह सूरी ने इसके राज्य पर हमला किया और पूरणमल की रानियों ने जौहर कर लिया और पूरणमल मारे गये इस प्रकार इस राज्य की समाप्ति हुई।
(तंवरावाटी और तंवर ठिकाने)
दिल्ली में तोमरो के पतन के बाद तोमर राजपूत विभिन्न दिशाओ में फ़ैल गए एक शाखा ने उत्तरी राजस्थान के पाटन में जाकर अपना राज स्थापित किया जो की जयपुर राज्य का एक भाग था।
ये अब 'तँवरवाटी'(तोरावाटी ) कहलाता है और वहाँ तँवरों के ठिकाने हैं मुख्य ठिकाना पाटण का ही है, एक ठिकाना खेतासर भी है इनके अलावा पोखरण में भी तंवर राजपूतो के ठिकाने हैं, बाबा रामदेव तंवर वंश से ही थे, जो बहुत बड़े संत माने जाते हैं, आज भी वो पीर के रूप में पूजे जाते हैं…
मेवाड़ के सलुम्बर में भी तंवर राजपूतो के कई ठिकाने हैं जिनमे बोरज तंवरान एक ठिकाना है।
इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में बेजा ठिकाना और कोटि जेलदारी, बीकानेर में दाउदसर ठिकाना, मंढोली जागीर, भी तंवर राजपूतो के ठिकाने हैं, धौलपुर की स्थापना भी तंवर राजपूत धोलनदेव ने की थी 18वीं सदी के आसपास अंग्रेजो ने जाटों को धौलपुर दे दिया।
ये जाट गोहद से सिंधिया द्वारा विस्थापित किये गए थे और पूर्व में इनके पूर्वज राजा मानसिंह तोमर की सेवा में थे और उनके द्वारा ही इन्हें गोहद में बसाया गया था अब भी धौलपुर में कायस्थपाड़ा तंवर राजपूतो का ठिकाना है।
(तंवर वंश की प्रमुख शाखाएँ…)
रुनेचा, ग्वेलेरा, बेरुआर, बिल्दारिया, खाति, इन्दोरिया, जाटू, जंघहारा, सोमवाल हैं, इसके अतिरिक्त पठानिया वंश भी पांडव वंश ही माना जाता है।
इसका प्रसिद्ध राज्य नूरपुर है इसमें वजीर राम सिंह पठानिया बहुत प्रसिद्ध यौद्धा हुए हैं जिन्होंने अंग्रेजो को नाको चने चबवा दिए थे।
इन शाखाओं में रूनेचा राजस्थान में, ग्वेलेरा चम्बल क्षेत्र में, बेरुआर यूपी बिहार सीमा पर, बिलदारिया कानपूर उन्नाव के पास, इन्दोरिया मथुरा, बुलन्दशहर, आगरा में मिलते हैं, मेरठ मुजफरनगर के सोमाल वंश भी पांडव वंश माना जाता है।
जाटू तंवर राजपूतो की भिवानी हरियाणा में 1440 गाँव की रियासत थी इस शाखा के तंवर राजपूत हरियाणा में मिलते हैं।
जंघारा राजपूत यूपी के अलीगढ, बदायूं, बरेली शाहजहांपुर आदि जिलो में मिलते हैं, ये बहुत वीर यौद्धा माने जाते हैं इन्होने रुहेले पठानों को कभी चैन से नहीं बैठने दिया और अहिरो को भगाकर अपना राज स्थापित किया।
पूर्वी उत्तर प्रदेश का जनवार राजपूत वंश भी पांडववंशी जन्मेजय का वंशज माना जाता है, इस वंश की बलरामपुर समेत कई बड़ी स्टेट पूर्वी यूपी में हैं।
इनके अतिरिक्त पाकिस्तान में मुस्लिम जंजुआ राजपूत भी पांडव वंशी कहे जाते हैं, जंजुआ वंश ही शाही वंश था, जिसमे जयपाल, आनंदपाल, जैसे वीर हुए जिन्होंने तुर्क महमूद गजनवी का मुकाबला बड़ी वीरता से किया था।
जंजुआ राजपूत बड़े वीर होते हैं और पाकिस्तान की सेना में इनकी बडी संख्या में भर्ती होती है.इसके अलावा वहां का जर्राल वंश भी खुद को पांडव वंशी मानता है।
मराठो में भी एक वंश तंवरवंशी है जो तावरे या तावडे कहलाता है ,महादजी सिंधिया का एक सेनापति फाल्किया खुद को बड़े गर्व से तंवर वंशी मानता था।
(तोमर/तंवर राजपूतो की वर्तमान आबादी)
तोमर राजपूत वंश और इसकी सभी शाखाएँ न सिर्फ भारत बल्कि पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में मिलती है।
चम्बल क्षेत्र में ही तोमर राजपूतो के 1400 गाँव हैं, इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पिलखुआ के पास तोमरो के 84 गाँव हैं।
भिवानी में 84 गाँव जिनमे बापोड़ा प्रमुख हैमेरठ में गढ़ रोड पर 12 गाँव जिनमे सिसोली और बढ्ला बड़े गाँव हैं।
कुरुक्षेत्र में 12 गाँव,गढ़मुक्तेश्वर में 42 गाँव हैं जिनमे भदस्याना और भैना प्रसिद्ध हैं बुलन्दशहर में 24 गाँव, खुर्जा के पास 5 गाँव तोमर राजपूतो के हैं, हरियाणा में मेवात के नूह के पास 24 गाँव हैं जिनमे बिघवाली प्रमुख है।
ये सिर्फ वेस्ट यूपी और हरियाणा का थोडा सा ही विवरण दिया गया है, इनकी जनसँख्या का, अगर इनकी सभी प्रदेशो और पाकिस्तान में हर शाखाओ की संख्या जोड़ दी जाये…
तो इनके कुल गाँव की संख्या कम से कम 6000 होगी चौहान राजपूतो के अलावा राजपूतो में शायद ही कोई वंश होगा जिसकी इतनी बड़ी संख्या हो।
(जाट, गूजर और अहीर में तोमर राजपूतो से निकले गोत्र)
कुछ तोमर राजपूत अवनत होकर या तोमर राजपूतो के दूसरी जाती की स्त्रियों से सम्बन्ध होने से तोमर वंश जाट, गूजर और अहीर जैसी जातियो में भी चला गया जाटों में कई गोत्र है जो अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है जैसे :–
सहरावत, राठी, पिलानिया, नैन, मल्लन, बेनीवाल, लाम्बा, खटगर, खरब, ढंड, भादो, खरवाल, सोखिरा, ठेनुवा, रोनिल, सकन, बेरवाल और नारू ये लोग पहले तोमर या तंवर उपनाम नही लगाते थे लेकिन इनमे से कई गोत्र अब तोमर या तंवर लगाने लगे है।
उत्तर प्रदेश के बड़ौत क्षेत्र के सलखलेन् जाट भी अपने को किसी सलखलेन् का वंशज बताते है जिसे ये अनंगपाल तोमर का धेवता बताते है, और इस आधार पर अपने को तोमर बताने लगे है।
गूजरो में भी तोमर राजपूतो के अवशेष मिलते है, खटाना गूजर अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है, ग्वालियर के पास तोंगर गूजर मिलते है।
जो ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर की गूजरी रानी मृगनयनी के वंशज है जिन्हें गूजरी माँ की औलाद होने के कारण राजपूतों ने स्वीकार नहीँ किया दक्षिणी दिल्ली में भी तँवर गूजरों के गाँव मिलते है।
मुस्लिम शाशनकाल में जब तोमर राजपूत दिल्ली से निष्काषित होकर बाकी जगहों पर राज करने चले गए तो उनमे से कुछ ने गूजर में शादी ब्याह कर मुस्लिम शासकों के अधीन रहना स्वीकार किया इसके अलावा सहारनपुर में छुटकन गुर्जर भी खुद को तंवर वंश से निकला मानते हैं।
और करनाल, पानीपत, सोहना के पास भी कुछ गुज्जर इसी तरह तंवर सरनेम लिखने लगे हैं, हरयाणा के अहिरो में भी दयार गोत्र मिलती है जो अपने को तोमर राजपूतो से निकला हुआ मानते है दिल्ली में रवा राजपूत समाज में भी तंवर वंश शामिल हो गया है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि चन्द्रवंशी पांडव वंश तोमर/तंवर राजपूतो का इतिहास बहुत शानदार रहा है, वर्तमान में भी तोमर राजपूत राजनीति, सेना, प्रशासन, में अपना दबदबा कायम किये हुए है।
पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह भिवानी हरियाणा के तंवर राजपूत हैं, और आज केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं मध्य प्रदेश के नरेंद्र सिंह तोमर भी केंद्र सरकार में मंत्री हैं, प्रसिद्ध एथलीट और बाद में मशहूर बागी पान सिंह तोमर के बारे में सभी जानते ही हैं स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल भी तोमर राजपूत थे इनके अतिरिक्त सैंकड़ो।
राजनीतिज्ञ,प्रशासनिक अधिकारी समाजसेवी सैन्य अधिकारी,खिलाडी तंवर वंशी राजपूत हैं तोमर क्षत्रिय
राजपूतो के बारे में कहा गया है की।
“अर्जुन के सुत सो अभिमन्यु नाम उदार…
तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर क्षत्रिय उदार !!”
अगर मुझसे कोई लिखने में गलती हुई हो, तो आप सभी से क्षमा प्रार्थी हूं।🙏🏻