गुजरात के जूनागढ़ के राजा रा कवाट-२ के पुत्र खेतसिंह खंगार महाराज पृथ्वीराज चौहान के सामंत रहे तथा अपनी वीरता एवं पराकृम से गढ़कुंडार जीत कर जुझौतिखंड (बर्तमान बुंदेलखंड) मे खंगार राज्य की स्थापना की जुझौतखंड (बुदेलखंड) पर १७० वर्षों से भी अधिक खंगारों ने राज्य किया..!!
चलिये मुद्दे पर बात करते हैं...!!
१३ वीं सदी मे मुस्लिम आकृमण कारीयों ने कई हिंदु राजाओं को अपने आधीन कर लिया ! उस समय दिल्ली पर मुसलमानों का राज्य स्थापित हो चुका था ! कुछ हिंदु राजपूतों ने मुसलमानो से भय के कारण उन से विबाह संवंध बना लिये थे ! तथा कुछ ने मुसलमानों की दासता स्बीकार करली थी ! जिससे कि उनके राज्य मुसलमानों के आधीन सुरक्षित रहे ! गढ़ कुंडार के खंगार राजा मानसिंह से भी दिल्ली शहंशाह द्बारा खंगार कुल कंन्या केशरदे का हाथ मांगा गया था ! परन्तु खंगार तो शेर थे रिस्ते को मना कर दिया ! तथा युद्ध स्बीकार कर लिया ! तथा जो चापलूस मुसलमानों मे मिलगये थे ! (जो कि खंगार राजाओं और उनकी बांदियों की संतान जो कि बांदैला कहलाते थे ) तथा सवंत १२५७ मे महाराज ने उत्तम सेबाके फलस्वरूप ब्योना जागीर के १२ गॉव पट्टा लिख कर दे दिये गये थे ! जिसमे मॉ गजानन को साक्षी रखा गया था ! यही नौकर (बांदैला) सोहनपाल दिल्ली सुल्तान से मिला और खंगार राजा मानसिंह की कंन्या केशर दे का हाथ मॉगने को उकसाया ! हम उनकी घोर निंदा करते थे ! मोहम्मद तुगलक से युद्ध हुआ जिसमे महाराज बीर गति को प्राप्त हुऐ ! केशरदे एबं अन्य रानियों ने जौहर किया ! गढ़कुडार राज घराने से संबधित कुछ खंगारो ने काल्पनिक जातियों का सहारा लेकर जंगलों मे बागी जीबन यापन किया ! इस कारण खंगार एक लंबे अर्से तक सामाजिक मुख्यधारा से दूर रहे ! तथा अलग अलग गोत्र निर्माण कर आपस मे बिबाह संबध करने लगे ! इधर तुगलकों द्बारा गढ़कुंडार जीत कर अपने चापलूस गुलामों (दासी पुत्रों बांदैलों ) को दे दिया गया ! जिनने जुझौति खंड नाम बदल कर बुंदेलखंड कर दिया ! तथा राजधानी को ओरछा स्थानातरित कर लिया ! तथा अपनी पीढ़ीयो मे खंगारों के बारे मे गलत संदेश दिये जाने लगे यहां तक की अपने बच्चो को यह भी कहा जाने लगा कि खंगार क्षत्रीय नही होते ! वाह रे बांदी पुत्र अपने बाप को पहचानने से मना कर रहे हो ! और तो और बृनदाबन लाल बर्मा जैसे लालची लोगों को ४० एकड़ की जागीर देकर खंगार बिरोधी उपन्यास लिखबाया गया ! जिसमे खंगारों के इतिहास को बिगाड़ने की पूरी कोशिश की गई है..! दासी पुत्रों ने तो नीचता की हद तव करदी जव अपने राज्य को मुल्लों से सुरक्षित रखने के लिये अपने ही महल में अपने आकाओं को अय्याशी के लिये जहॉगीर महल बनबाया गया ! जो आज भी ओरछा के राजमहल में जिंदा प्रमाण है ! जरा सोचो भाईयो कामुक मुल्लों ने क्या नही किया होगा इनकी बहन बेटियों के साथ ! दूसरी नीचता सगे भाई के अपनी भाभी संबध होने का झूठा लांछन लगाकर कलंकित कर जहर दिलबा कर मार दिया वाहरे क्षत्रीयों..जो सगे देव तुल्य भाई के नही हुये वह किसके हो सकते हैं....खुद को राजपूत कहते हैं.......मुल्लों के चमचे..शर्म करो तुम्हारे इतिहास मे तुमने क्षत्रीयों बाला कोई काम नही किया !
चमचों की खिदमत मे पेश है :-
बाहरे चमचो तुमरी लीला न्यारी,
चमचों से चमचा मिलें होंय सुखारी !
रोटी खाबतई हमखों याद तुमारी आबे,
राजदरबार में भी तुमरी जरूरत पड़ जाबे !
सच्चों खों झूठा बनादो तुम,
झूठों खों बना दो तुम साकाहारी !
बाहरे चमचो तुमरी लीला न्यारी,
चमचों से चमचा मिलें होंय सुखारी !
चमचों कौ दुनिया में बोलबालो है,
सच्चों को जा दुनिया में मुंह कालो है !
चमचा चाहें तो बनादयें रंक खौं राजा,
राजा खौं बना दयें चमचा भिखारी !
बाहरे चमचो तुमरी लीला न्यारी,
चमचों से चमचा मिलें होय सुखारी !
सादर समर्पित दासी पुत्रों को...!
यह वह जाति है जिसे तत्कालीन क्षत्रीय सभा बुलाकर क्षत्रीय समाज से वहिष्कृित कर दिया गया था !
इनमे खून तो यदुवंशी खंगारों का था ! अब इनको खुदको तक पता नही है ! कि हम हिंदु हैं या मुसलमान !
~~~~जय राजपुताना ~~~~
सचिन जी बहुत बहुत धन्यबाद
जवाब देंहटाएंतहे दिल से सुक्रियां आपका..
जवाब देंहटाएंBahut sundar jankari bhai.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख चौहान साहब जी
जवाब देंहटाएंBhut hi sunder sir
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों से विनम्र निवेदन करता हूं कि पोस्ट को शेयर करें और ब्लॉग को फ़ॉलो ज़रूर करें, तभी हम अधिक लोगों तक अपने समाज से जुड़े तथ्य पहुंचा सकेंगे।🙏
जवाब देंहटाएंK
जवाब देंहटाएंगजब भाई
जवाब देंहटाएंJay maa gajanan
जवाब देंहटाएंBahut hi achha bhaisahab
बहुत बहुत धन्यवाद चौहान साहब
जवाब देंहटाएंDhanybaad hkm
जवाब देंहटाएंधन्यवाद चौहान साहब 🙏
जवाब देंहटाएंआप कहा से हो हुकुम
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