शनिवार, 4 नवंबर 2017

इस महाराजा ने बनाया था भारत को सोने की चिड़िया, जिसे हम भूल गए।


दोस्तों हिंदुस्तान के इतिहास में ऐसा बहुत कुछ छूट गया, जिसे ज्यादातर लोग नहीं जानते । क्योंकि इनके सम्मान में बहुत कम जगहों पर ही वर्णन किया गया है। यह हमारे लिए एक बड़े शर्म की बात है कि जिसने देश को सोने की चिड़िया बनाया, आज उसके बारे में हम कुछ नहीं जानते।

आज हम बात कर रहे हैं महाराज विक्रमादित्य के बारे में, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। इन्हीं के शासनकाल में भारत को सोने की चिड़िया बना था। इस काल को देश का स्वर्णिम काल भी माना जाता है। यह उज्जैन के राजा गन्धर्व सैन थे। इनकी तीन संताने थी, सबसे बड़ी संतान एक लड़की थी मैनावती, दूसरी संतान लड़का भृतहरि और सबसे छोटी संतान वीर विक्रमादित्य। बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पद्म सैन के साथ कर दी गई। जिनका एक लड़का हुआ गोपीचन्द। आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए। फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली।

आज हिंदुस्तान की संस्कृति और नाम केवल विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है। अशोक मौर्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया। बौद्ध बनकर 25 साल राज करने के बाद भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था।

विक्रमादित्य को क्यों याद रखना जरूरी?

शायद ही आपको पता हो कि रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे। महाराज विक्रमादित्य ने ही इनकी पुनः खोज करवा कर स्थापित किया। भगवान विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाए। सनातन धर्म की रक्षा की।

विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् को लिखा। जिसमें भारत का इतिहास है। अन्यथा भारत का इतिहास तो दूर की बात हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके होते।

हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे। उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए। राज अपने छोटे भाई विक्रमदित्य को दे दिया। वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म की रक्षा हुई, हमारी संस्कृति सुरक्षित हुई।

विक्रमादित्य के शासन काल को भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है। विक्रमादित्य के काल में भारत का कपड़ा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे। भारत में इतना सोना आ गया था कि विक्रमादित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे।

हिन्दू कैलंडर की स्थापना भी विक्रमादित्य की देन है. हिंदू धर्म में आज जो ज्योतिष गणना होती है हिन्दी सम्वंत, वार, तिथियां, राशि, नक्षत्र, गोचर आदि भी उन्ही की रचना है। वे बहुत ही पराक्रमी, बलशाली और बुद्धिमान राजा थे।

ऐसा कहा जाता है कि कई बार देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे। विक्रमादित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे। न्याय, राज सब धर्मशास्त्र के नियमों पर चलता था। विक्रमादित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इनके शासन काल में प्रजा धर्म और न्याय पर चलने वाली रही।

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

अकबर के इतिहास का एक ऐसा युद्ध जो सिर्फ चार घंटों में ही समाप्त हो गया था।

हल्दीघाटी का युद्ध ना केवल राजस्थान के इतिहास बल्कि हिंदुस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण युद्ध था जिसमे मेवाड़ की आन बचाने के लिए महाराणा प्रताप जबकि राजपूतो को पराजित करने के लिए अकबर की सेना आमने सामने हुयी थी. आइये आपको इस युद्ध से जुड़े रोचक तथ्य बताते है। :- 



1. जब राजस्थान के सभी राजाओं ने अकबर के सामने घुटने टेक दिए थे लेकिन राणा प्रताप ने अकबर की गुलामी स्वीकार नहीं की थी तब हल्दीघाटी के मैदान में युद्ध हुआ था इसीलिए इसको हल्दीघाटी का युद्ध कहा जाता है।

2. महाराणा प्रताप के पास उस समय अकबर से बहुत कम मात्रा में सेना थी फिर भी अपने सम्मान के लिए महाराणा प्रताप 15 जून साल 1576 को अकबर की बड़ी और ताकतवर सेना के सामने युद्ध के लिए आ गए।

3. इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक हल्दीघाटी की लड़ाई सिर्फ चार दिन में समाप्त हो गई थी।

4. महाराणा प्रताप की सेना में मुख्य सेनापति ग्वालियर के राम सिंह तंवर, कृष्णदास चुण्डावत, रामदास झाला, पुरोहित गोपीनाथ, शंकरदास, पुरोहित जगन्नाथ जैसे योद्धा थे।

5. महाराणा प्रताप की सेना की अगुआई अफगान योद्धा हाकिम खां सुर ने की थी जिसके परिवार से अकबर का पुराना बैर था जब सुरी वंश के शेरशाह सुरी को मुगलों ने हराया था इसलिए वो प्रताप से मिलकर मुगलों को हराना चाहते थे।

6. महाराणा प्रताप की तरफ आदिवासी सेना के रूप में 400-500 भील भी शामिल थे जिसका नेतृत्व भील राजा रांव पूंजा कर रहे थे. भील शुरुवात से ही राजपूतो के स्वामिभक्त रहे थे।

7. राजस्थान का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार जेम्स टॉड के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में 22,000 सैनिक जबकि अकबर की सेना में 80,000 सैनिक थे जबकि दूसरी तरफ अकबर की सेना का नेतृत्व करने के लिए अकबर ने आमेर के राजपूत राजा मान सिंह को सेनापति बनाकर महाराणा प्रताप से लड़ने को भेजा. ये भी अजब संयोग था कि राजपूत राजपूत से लड़ रहा था।

8. अकबर की सेना में सेनापति मानसिंह के अलावा सैय्यद हासिम, सैय्यद अहमद खां, बहलोल खान, मुल्तान खान गाजी खान, भोकाल सिंह, खोरासन और वसीम खान जैसे योद्धा थे जिन्होंने मुगलों के लिए इससे पहले कई युद्धों लड़े थे।

9. महाराणा प्रताप के लिए सबसे बड़ी दुःख की बात यह थी उनका सगा भाई शक्ति सिंह मुगलों के साथ था और उनको इस पहाड़ी इलाके में युद्ध के लिए रणनीति बनाने में मदद कर रहा था ताकि युद्ध में कम से कम मुगलों का नुकसान हो।

10. 21 जून साल 1576 को दोनों की सेनाएं आगे बढ़ी और रक्ततलाई पर दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ जो केवल चार घंटे में ही समाप्त हो गया।

11. हल्दीघाटी के युद्द में महाराणा प्रताप की सेना से उनके सेनापति हाकिम खां सुर, डोडिया भीम, मानसिंह झाला, रामसिंह तंवर और उनके पुत्र सहित अनेको राजपूत योद्धा शहीद हुए जबकि अकबर की सेना से मान सिंह के अलावा सभी बड़े योद्धा मारे गये थे।

12. इस युद्ध की सबसे एतेहासिक घटना वो थी जब महाराणा प्रताप मान सिंह के करीब पहुँच गये थे और अपने घोड़े चेतक को उन्होंने मानसिंह के हाथी पर चढ़ा दिया और भाले से मान सिंह पर वार किया लेकिन मान सिंह तो बच गये लेकिन उनका महावत मारा गया. चेतक जब वापस हाथी से उतरा तो हाथी की सूंड में लगी तलवार से चेतक का एक पैर बुरी तरह घायल हो गया।

13. चेतक केवल तीन पैरों से 5 किमी तक दौड़ते हुए अपने स्वामी महाराणा प्रताप को रणभूमि से दूर लेकर गया और एक बड़े नाले से चेतक ने छलांग लगाई जिसमें चेतक के प्राण चले गये. उस समय महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह उनके पीछे थे और शक्तिसिंह को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने महाराणा प्रताप की मदद की।

14. दूसरी तरफ महाराणा प्रताप के रण से चले जाने पर उनके स्थान पर उनके हमशक्ल झाला मान सिंह ने उनका मुकुट पहनकर मुगलों को भ्रमित किया और रण में कूड़े पड़े।

15. मुगल उनको प्रताप समझकर उनपर टूट पड़े और इसमें झाला मान सिंह शहीद हो गये।

16. हल्दीघाटी युद्ध और चेतक की मृत्यु से उनका दिल विचलित हो गया और उन्होंने मुगलों से जीतने तक राजसी सुख त्यागकर जंगलो में जीवन बिताने का निश्चय किया और भविष्य में केवल चित्तोड़ को छोडकर सम्पूर्ण मेवाड़ पर कब्जा किया।

17. हल्दीघाटी में स्थित महाराणा प्रताप संग्रहालय में आप उन सभी घटनाओं का चित्रण देख सकते है जो युद्ध के दौरान घटी थी।

18. वर्तमान में इसका टिकिट 80 रूपये प्रति व्यक्ति है जिसमें आपको महाराणा प्रताप के जीवन पर बनी 10 मिनट की एक एनिमेटेड फिल्म, उनके जीवन से जुड़ी झांकिया और प्राकृतिक दृश्य का आनन्द ले सकते हैं।

19. इस संग्रहालय का निर्माण सरकार का प्रयास नही बल्कि एक व्यक्ति विशेष का प्रयास था जिसका नाम मोहन श्रीमाली है।

20. मोहन श्रीमाली एक सेवानिवृत्त स्कूल अध्यापक है जिन्होंने अपने जीवन की सारी पूंजी इस संग्रहालय के निर्माण ने लगा दी जबकि इससे पहले इस स्थान का कोई विकास नहीं हो पा रहा था और इसकी संस्कृति धूमिल हो रही थी।

शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

भारत का सबसे अमीर राजघराना, खुद को बताता है भगवान राम का वंशज

आज के दिन जयपुर के राजा महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह का जन्म हुआ था। वह जयपुर के महाराजा थे और सेना में भी उन्होंने सेवाएं दीं। उन्हें कई उपाधियों से सम्मानित किया गया।

आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य

भगवान राम के वशंज 

जयपुर घराना अपने आप को भगवान राम का वशंज बताता है। यह खुलासा उन्होंने अपनी साइट पर भी किया हुआ है। कहा जाता है कि जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह भगवान राम के बेटे कुश के 309वें वंशज थे। यह बात राजघराने के कई लोगों ने स्वीकार भी की है। महाराजा सवाई मानसिंह और उनकी पहली पत्नी मरुधर कंवर के बेटे हैं भवानी सिंह। उनकी शादी पद्मिनी देवी से हुई थी। उनकी इकलौती बेटी हैं दीया कुमारी।

 दीया कुमारी की शादी नरेंद्र सिंह से हुई। उनके दो बेटे पद्मनाभ सिंह और लक्ष्यराज सिंह हैं। बेटी हैं गौरवी। दीया वर्तमान में सवाई माधोपुर से बीजेपी विधायक हैं।

महाराजा सवाई भवानी सिंह 24 जून 1970 से 28 दिसम्बर 1971 तक जयपुर के महाराजा रहे। फिर इसके बाद उन्होंने भारतीय सेना में सेवा की और उनको महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

आजाद भारत के सबसे अमीर राजा

कहा जाता है कि भवानी सिंह आजादी के बाद सबसे अमीर महाराजा थे। खास बात यह है कि जयपुर में कई पीढ़ियों बाद भवानी सिंह के रुप में पुरुष वारिस का जन्म हुआ था और जयपुर के जितने भी महाराजा हुए थे उनको गोद लेकर महाराजा बनाया गया था।

कांग्रेस की ओर से उन्होंने राजनीति में कदम रखा, लेकिन सफल नहीं हो पाए। उन्हें लोकसभा चुनाव में गिरधारी लाल भार्गव से चुनाव हारना पड़ा और उन्होंने राजनीति से संन्यास लिया। महाराजा सवाई भवानी सिंह जी को 20 मार्च, 2011 गुड़गांव, के एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। 17 अप्रैल, 2011 को हॉस्पिटल में ही उनका निधन हो गया था। वह 79 साल के थे।

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

🙏 *प्रणाम का महत्व* 🙏

महाभारत का युद्ध चल रहा था - 


एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि -
"मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा"
उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई -

भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए।

तब -
श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो -
श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए -

शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो -

द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने
"अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!

"वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है" ?
तब द्रोपदी ने कहा कि -

"हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं" तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया -

भीष्म ने कहा -
"मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है"
शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि -

*"तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है "* -

*" अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती "* -

......तात्पर्य्......
वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -

*"जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है "*
*" यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो "*

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता -
"निवेदन 🙏 सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाय।"

*क्योंकि*:-
*प्रणाम प्रेम है।*
*प्रणाम अनुशासन है।*

प्रणाम शीतलता है।             
प्रणाम आदर सिखाता है।

*प्रणाम से सुविचार आते है।*

प्रणाम झुकना सिखाता है।
प्रणाम क्रोध मिटाता है।
प्रणाम आँसू धो देता है।

*प्रणाम अहंकार मिटाता है।*
*प्रणाम हमारी संस्कृति है।*🙏🏼

🙏🏼 *सबको प्रणाम*  🙏🏼

अकबर की औछी हरकत

अकबर की महानता का गुणगान तो कई इतिहासकारों ने किया है लेकिन.....


अकबर की औछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने किया है ........!

अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज का मेला आयोजित करवाता था......!

जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था ........!

अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती .....

उसे दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी .........!

एक दिन नौरोज के मेले में #महाराणा_प्रताप_सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री, मेले की सजावट देखने के लिए आई .......

जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था ........!

जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ।

बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर काबू नही रख पाया ......

और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से जनाना महल में बुला लिया .......!

जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की ........

किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को नीचे पटकर छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी ........

और कहा नींच..... नराधम तुझे पता नहीं मैं उन #महाराणा_प्रताप की भतीजी हुं ........!

जिनके नाम से तुझे नींद नहीं आती है ......!

बोल तेरी आखिरी इच्छा क्या है .............?

अकबर का खुन सुख गया .........!

कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा .........!

अकबर बोला मुझे पहचानने में भूल हो गई ......

मुझे माफ कर दो देवी .......!

तो किरण देवी ने कहा कि .........

आज के बाद दिल्ली में नौरोज का मेला नहीं लगेगा ..........!

और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा......!

*अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा ..........!

उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा.........!

इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो मे 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है।

बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग मे भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है।

किरण  शिंहणी सी चढी...
उर पर खींच कटार..!
भीख मांगता प्राण की....
अकबर हाथ पसार...!!

卐 जरूर पढ़े और शेयर करे। ... महान सत्य 卐


🔘 1. *बप्पा रावल*- अरबो, तुर्को को कई हराया ओर हिन्दू धरम रक्षक की उपाधि धारण की

🔘 2. *भीम देव सोलंकी द्वितीय* - मोहम्मद गौरी को 1178 मे हराया और 2 साल तक जेल मे बंधी बनाये रखा
🔘 3. *पृथ्वीराज चौहान* - गौरी को 16 बार हराया और और गोरी बार बार कुरान की कसम खा कर छूट जाता ...17वी बार पृथ्वीराज चौहान हारे
🔘 4. *हम्मीरदेव (रणथम्बोर)* - खिलजी को 1296 मे अल्लाउदीन ख़िलजी के 20000 की सेना में से 8000 की सेना को काटा और अंत में सभी 3000 राजपूत बलिदान हुए राजपूतनियो ने जोहर कर के इज्जत बचायी ..हिनदुओ की ताकत का लोहा मनवाया
🔘 5. *कान्हड देव सोनिगरा* – 1308 जालोर मे अलाउदिन खिलजी से युद्ध किया और सोमनाथ गुजरात से लूटा शिवलिगं वापिस राजपूतो के कब्जे में लिया और युद्ध के दौरान गुप्त रूप से विश्वनीय राजपूतो , चरणो और राजपुरोहितो द्वारा गुजरात भेजवाया तथा विधि विधान सहित सोमनाथ में स्थापित करवाया
🔘 6. *राणा सागां*- बाबर को भिख दी और धोका मिला ओर युद्ध . राणा सांगा के शरीर पर छोटे-बड़े 80 घाव थे, युद्धों में घायल होने के कारण उनके एक हाथ नही था एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे.
🔘 7. *राणा कुम्भा* - अपनी जिदगीँ मे 17 युदध लडे एक भी नही हारे
🔘 8. *जयमाल मेड़तिया*- ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था। चित्तोड़ में अकबर से हुए युद्ध में *जयमाल राठौड़* पैर जख्मी होने कि वजह से *कल्ला जी* के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे, ये देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आयी थी, जंग में दोनों के सिर  काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और 8000 राजपूतो की फौज ने 48000 दुश्मन को मार गिराया ! अंत में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर जयमाल मेड़तिया और पत्ता जी की मुर्तिया आगरा के किलें में लगवायी थी.
🔘 9. *मानसिहं तोमर*- महाराजा मान सिंह तोमर ने ही ग्वालियर किले का पुनरूद्धार कराया और 1510 में सिकंदर लोदी और इब्राहीमलोदी को धूल चटाई
🔘 10. *रानी दुर्गावती*- चंदेल राजवंश में जन्मी रानी दुर्गावती राजपूत राजा कीरत राय की बेटी थी। गोंडवाना की महारानी दुर्गावती ने बहादुर शाह की गुलामी करने के बजाय उससे युद्ध लड़ा 24 जून 1564 को युद्ध में रानी दुर्गावती ने गंभीर रूप से घायल होने के बाद अपने आपको तुर्कों के हाथों अपमान से बचाने के लिए खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली।
🔘 11. *महाराणा प्रताप* - इनके बारे में तो सभी जानते ही होंगे ... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच, भाला, ढाल, और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो था.
🔘 12. *जय सिंह जी* - जयपुर महाराजा ने जय सिंह जी ने अपनी सूझबुज से छत्रपति शिवजी को औरंगज़ेब की कैद से निकलवाया बाद में औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उनकी हत्या विष देकर करवा डाली
🔘 13. *छत्रपति शिवाजी* - मेवाड़ सिसोदिया वंशज छत्रपति शिवाजी ने औरंगज़ेब को हराया तुर्को और मुगलो को कई बार हराया
🔘 14. *रायमलोत कल्ला जी* का धड़ शीश कटने के बाद लड़ता- लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़ शांत हुआ उसके बाद रानी पति कि चिता पर बैठकर सती हो गयी थी.
🔘 15. सलूम्बर के नवविवाहित *रावत रतन सिंह चुण्डावत* जी ने युद्ध जाते समय मोह-वश अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के तौर
पैर अपना सर काट के दे दिया था, अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गये थे.
🔘 16. औरंगज़ेब के नायक तहव्वर खान से गायो को बचाने के लिए पुष्कर में युद्ध हुआ उस युद्ध में *700 मेड़तिया राजपूत* वीरगति प्राप्त हुए और 1700 मुग़ल मरे गए पर एक भी गाय कटने न दी उनकी याद में पुष्कर में गौ घाट बना हुआ है
🔘 17. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलो से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटो लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहा छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है.
🔘 18. जोधपुर के *यशवंत सिंह* के 12 साल के पुत्र *पृथ्वी सिंह* ने हाथो से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था.
🔘 19. *करौली के जादोन राजा* अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरो पर रखते थे.
🔘 20. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 राजपूत सैनिक थे और अकबर की और से 85000 सैनिक थे फिर भी अकबर की मुगल सेना पर हिंदू भारी पड़े
🔘 21. राजस्थान पाली में आउवा के *ठाकुर खुशाल सिंह* 1857 में अजमेर जा कर अंग्रेज अफसर का सर काट कर ले आये थे और उसका सर अपने किले के बाहर लटकाया था तब से आज दिन तक उनकी याद में मेला लगता है
🔘22. वीर बंदा बैरागी -  मुगलो के अजेय होने के भ्रम को तोडा और वजीर खान को मारकर सरहिंद पर विजय प्राप्त की ।
🔘 23. *जौहर :* युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ| सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ के दुर्ग में हुए | शाका : महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ
""जौहर के बाद राजपूत पुरुष जौहर कि राख का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर पर बांध कर तब तक लड़के जब तक उन्हें वीरगति न मिले ये एक आत्मघाती कदम होता। ....."""|
卐 *जैसलमेर* के जौहर में 24,000 राजपूतानियों ने इज्जत कि खातिर अल्लाउदीन खिलजी के हरम जाने की बजाय आग में कूद कर अपने सतीत्व के रक्षा कि ..
卐 1303 चित्तोड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तोड़ की *महारानी पद्मिनी* के नेतृत्व में 16000 हजार राजपूत रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था |
卐 चित्तोड़ के दुर्ग में दूसरे जौहर चित्तोड़ की *महारानी कर्मवती* के नेतृत्व में 8,000 हजार राजपूत रमणियों ने 1535 AD में किया था |
卐 चित्तोड़ के दुर्ग में तीसरा जौहर अकबर से हुए युद्ध के समय 11,000 हजार राजपूत नारियो ने 1567 AD में किया था |
卐 ग्वालियर व राइसिन का जोहर ये जोहर तोमर सहिवाहन पुरबिया के वक़्त हुआ ये राणा सांगा के रिशतेदार थे और खानवा युद्ध में हर के बाद ये जोहर हुआ
卐 ये जोहर अजमेर में हुआ पृथ्वीराज चौहान कि शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी से ताराइन की दूसरी लड़ाई में हार के बाद हुआ इसमें *रानी संयोगिता* ने महल उपस्थित सभी महिलाओं के साथ जौहर किया ) जालोर का जौहर ,बारमेर का जोहर आदि
""". इतिहास गवाज है हम राजपूतो की हर लड़ाई में दुश्मन सेना तिगुनी चौगनी होती थी राजस्थान मालवा और सौराष्ट्र में मुगलो ने एक भी हमला राजपूतो पर तिगुनी और चौगनी फ़ौज से कम के बिना नही नही किया पर युद्ध के अंतः में दुश्मन आधे से ऊपर मारे जाते थे ""

卐卐 तलवार से कडके बिजली, लहु से लाल हो धरती, प्रभु ऐसा वर दो मोहि, विजय मिले या वीरगति ॥ 卐卐


*|| जय एकलिंग जी की ||*
*११ जय श्री कल्याण ११*

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

महाराणा प्रताप से जुड़ी 15 रोचक बातें जानिये

महाराणा प्रताप

ये एक ऐसा नाम है जिसके लेने भर से मुगल सेना के पसीने छूट जाते थे। 


एक ऐसा राजा जो कभी किसी के आगे नही झुका। जिसकी वीरता की कहानी सदियों के बाद भी लोगों की जुबान पर हैं।

1. महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। प्रताप इनका और राणा उदय सिंह इनके पिता का नाम था।

2. प्रताप का वजन 110 किलो और हाईट 7 फीट 5 इंच थी।

3. प्रताप का भाला 81 किलो का और छाती का कवच का 72 किलो था। उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था।

4. प्रताप ने राजनैतिक कारणों की वजह से 11 शादियां की थी।

5. महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

6. अकबर ने राणा प्रताप को कहा था की अगर तुम हमारे आगे झुकते हो तो आधा भारत आप का रहेगा, लेकिन महाराणा प्रताप ने कहा मर जाऊँगा लेकिन मुगलों के आगे सर नही नीचा करूंगा।

7. प्रताप का घोड़ा, चेतक हवा से बातें करता था। उसने हाथी के सिर पर पैर रख दिया था और घायल प्रताप को लेकर 26 फीट लंबे नाले के ऊपर से कूद गया था।

8. प्रताप का सेनापति सिर कटने के बाद भी कुछ देर तक लड़ता रहा था।

9. प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर दिन गुजारे थे।

10. नेपाल का राज परिवार भी चित्तौड़ से निकला है, दोनों में भाई और खून का रिश्ता हैं।

11. प्रताप के घोड़े चेतक के सिर पर हाथी का मुखौटा लगाया जाता था, ताकि दूसरी सेना के हाथी कंफ्यूज रहें।

12. प्रताप निहत्थे दुश्मन के लिए भी एक तलवार रखते थे।

13. अकबर ने एक बार कहा था की अगर महाराणा प्रताप और जयमल मेड़तिया मेरे साथ होते तो हम विश्व विजेता बन जाते।

14. आज हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां की जमीनो में तलवारे पायी जाती हैं।

15. 30 सालों तक प्रयास के बाद भी अकबर, प्रताप को बंदी न बना सका।

सोमवार, 23 अक्टूबर 2017

🚩 तो फिर महाराणा प्रताप कौन थे। 🚩


जलती रही जोहर में नारियां
भेड़िये फ़िर भी मौन थे।
हमें पढाया गया अकबर महान,
तो फिर महाराणा प्रताप कौन थे।
😇😇

सड़ती रही लाशें सड़को पर
गांधी फिर भी मौन थे,
हमें पढ़ाया गांधी के चरखे से आजादी आयी,
तो फांसी चढ़ने वाले 25-25 साल के वो जवान कौन थे
😇😇

वो रस्सी आज भी  संग्रहालय में है
जिस्से गांधीजी बकरी बांधा करते थे
किन्तु वो रस्सी कहां है
जिस पे भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु हसते हुए झूले थे
😇😇

" हालात.ए.मुल्क देख के रोया न गया...

कोशिश तो की पर मूंह ढक के सोया न गया".     देश मेरा क्या बाजार हो गया है ...

पकड़ता हूँ तिरंगा
तो लोग पूछते है कितने का है...
जाने कितने झूले थे फाँसी पर,कितनो ने गोली खाई थी....

क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से आजादी आई थी....!!
🙏🏻🙏🏻🙏🏻

रविवार, 22 अक्टूबर 2017

उद्धव-गीता

उद्धव बचपन से ही सारथी के रूप में श्रीकृष्ण की सेवा में रहे, किन्तु उन्होंने श्री कृष्ण से कभी न तो कोई इच्छा जताई और न ही कोई वरदान माँगा।
जब कृष्ण अपने *अवतार काल* को पूर्ण कर *गौलोक* जाने को तत्पर हुए, तब उन्होंने उद्धव को अपने पास बुलाया और कहा-
"प्रिय उद्धव मेरे इस 'अवतार काल' में अनेक लोगों ने मुझसे वरदान प्राप्त किए, किन्तु तुमने कभी कुछ नहीं माँगा! अब कुछ माँगो, मैं तुम्हें देना चाहता हूँ।
तुम्हारा भला करके, मुझे भी संतुष्टि होगी।
उद्धव ने इसके बाद भी स्वयं के लिए कुछ नहीं माँगा। वे तो केवल उन शंकाओं का समाधान चाहते थे जो उनके मन में कृष्ण की शिक्षाओं, और उनके कृतित्व को, देखकर उठ रही थीं।
उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा-
"भगवन महाभारत के घटनाक्रम में अनेक बातें मैं नहीं समझ पाया!
आपके 'उपदेश' अलग रहे, जबकि 'व्यक्तिगत जीवन' कुछ अलग तरह का दिखता रहा!
क्या आप मुझे इसका कारण समझाकर मेरी ज्ञान पिपासा को शांत करेंगे?"


श्री कृष्ण बोले-
“उद्धव मैंने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन से जो कुछ कहा, वह *"भगवद्गीता"* थी।
आज जो कुछ तुम जानना चाहते हो और उसका मैं जो तुम्हें उत्तर दूँगा, वह *"उद्धव-गीता"* के रूप में जानी जाएगी।
इसी कारण मैंने तुम्हें यह अवसर दिया है।
तुम बेझिझक पूछो।
उद्धव ने पूछना शुरू किया-

"हे कृष्ण, सबसे पहले मुझे यह बताओ कि सच्चा मित्र कौन होता है?"
कृष्ण ने कहा- "सच्चा मित्र वह है जो जरूरत पड़ने पर मित्र की बिना माँगे, मदद करे।"
उद्धव-
"कृष्ण, आप पांडवों के आत्मीय प्रिय मित्र थे। आजाद बांधव के रूप में उन्होंने सदा आप पर पूरा भरोसा किया।
कृष्ण, आप महान ज्ञानी हैं। आप भूत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञाता हैं।
किन्तु आपने सच्चे मित्र की जो परिभाषा दी है, क्या आपको नहीं लगता कि आपने उस परिभाषा के अनुसार कार्य नहीं किया?
आपने धर्मराज युधिष्ठिर को द्यूत (जुआ) खेलने से रोका क्यों नहीं?
चलो ठीक है कि आपने उन्हें नहीं रोका, लेकिन आपने भाग्य को भी धर्मराज के पक्ष में भी नहीं मोड़ा!
आप चाहते तो युधिष्ठिर जीत सकते थे!
आप कम से कम उन्हें धन, राज्य और यहाँ तक कि खुद को हारने के बाद तो रोक सकते थे!
उसके बाद जब उन्होंने अपने भाईयों को दाँव पर लगाना शुरू किया, तब तो आप सभाकक्ष में पहुँच सकते थे! आपने वह भी नहीं किया? उसके बाद जब दुर्योधन ने पांडवों को सदैव अच्छी किस्मत वाला बताते हुए द्रौपदी को दाँव पर लगाने को प्रेरित किया, और जीतने पर हारा हुआ सब कुछ वापस कर देने का लालच दिया, कम से कम तब तो आप हस्तक्षेप कर ही सकते थे!
   अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा आप पांसे धर्मराज के अनुकूल कर सकते थे!
इसके स्थान पर आपने तब हस्तक्षेप किया, जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो रही थी, तब आपने उसे वस्त्र देकर द्रौपदी के शील को बचाने का दावा किया!
   लेकिन आप यह यह दावा भी कैसे कर सकते हैं?
उसे एक आदमी घसीटकर हॉल में लाता है, और इतने सारे लोगों के सामने निर्वस्त्र करने के लिए छोड़ देता है!
एक महिला का शील क्या बचा? आपने क्या बचाया?
अगर आपने संकट के समय में अपनों की मदद नहीं की तो आपको आपाद-बांधव कैसे कहा जा सकता है?
बताईए, आपने संकट के समय में मदद नहीं की तो क्या फायदा?
क्या यही धर्म है?"
इन प्रश्नों को पूछते-पूछते उद्धव का गला रुँध गया और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।
ये अकेले उद्धव के प्रश्न नहीं हैं। महाभारत पढ़ते समय हर एक के मनोमस्तिष्क में ये सवाल उठते हैं!
उद्धव ने हम लोगों की ओर से ही श्रीकृष्ण से उक्त प्रश्न किए।
  भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले-
"प्रिय उद्धव, यह सृष्टि का नियम है कि विवेकवान ही जीतता है।
उस समय दुर्योधन के पास विवेक था, धर्मराज के पास नहीं।
यही कारण रहा कि धर्मराज पराजित हुए।"

उद्धव को हैरान परेशान देखकर कृष्ण आगे बोले- "दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए पैसाऔर धन तो बहुत था, लेकिन उसे पासों का खेल खेलना नहीं आता था, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि का द्यूतक्रीड़ा के लिए उपयोग किया। यही विवेक है। धर्मराज भी इसी प्रकार सोच सकते थे और अपने चचेरे भाई से पेशकश कर सकते थे कि उनकी तरफ से मैं खेलूँगा।
जरा विचार करो कि अगर शकुनी और मैं खेलते तो कौन जीतता?
पाँसे के अंक उसके अनुसार आते या मेरे अनुसार?
चलो इस बात को जाने दो। उन्होंने मुझे खेल में शामिल नहीं किया, इस बात के लिए उन्हें माफ़ किया जा सकता है। लेकिन उन्होंने विवेक-शून्यता से एक और बड़ी गलती की!
और वह यह-
उन्होंने मुझसे प्रार्थना की कि मैं तब तक सभा-कक्ष में न आऊँ, जब तक कि मुझे बुलाया न जाए!
क्योंकि वे अपने दुर्भाग्य से खेल मुझसे छुपकर खेलना चाहते थे।
वे नहीं चाहते थे, मुझे मालूम पड़े कि वे जुआ खेल रहे हैं!
इस प्रकार उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना से बाँध दिया! मुझे सभा-कक्ष में आने की अनुमति नहीं थी!
इसके बाद भी मैं कक्ष के बाहर इंतज़ार कर रहा था कि कब कोई मुझे बुलाता है! भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सब मुझे भूल गए! बस अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे!
अपने भाई के आदेश पर जब दुस्साशन द्रौपदी को बाल पकड़कर घसीटता हुआ सभा-कक्ष में लाया, द्रौपदी अपनी सामर्थ्य के अनुसार जूझती रही!
तब भी उसने मुझे नहीं पुकारा!
उसकी बुद्धि तब जागृत हुई, जब दुस्साशन ने उसे निर्वस्त्र करना प्रारंभ किया!
जब उसने स्वयं पर निर्भरता छोड़कर-
*'हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम'*-
की गुहार लगाई, तब मुझे उसके शील की रक्षा का अवसर मिला।
जैसे ही मुझे पुकारा गया, मैं अविलम्ब पहुँच गया।
अब इस स्थिति में मेरी गलती बताओ?"
उद्धव बोले-
"कान्हा आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किन्तु मुझे पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई!
क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ?"
कृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा-
"इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा? क्या संकट से घिरे अपने भक्त की मदद करने आप स्वतः नहीं आओगे?"
कृष्ण मुस्कुराए-
"उद्धव इस सृष्टि में हरेक का जीवन उसके स्वयं के कर्मफल के आधार पर संचालित होता है।
न तो मैं इसे चलाता हूँ, और न ही इसमें कोई हस्तक्षेप करता हूँ।
मैं केवल एक 'साक्षी' हूँ।
मैं सदैव तुम्हारे नजदीक रहकर जो हो रहा है उसे देखता हूँ।
यही ईश्वर का धर्म है।"

"वाह-वाह, बहुत अच्छा कृष्ण!
तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे नजदीक खड़े रहकर हमारे सभी दुष्कर्मों का निरीक्षण करते रहेंगे?
हम पाप पर पाप करते रहेंगे, और आप हमें साक्षी बनकर देखते रहेंगे?
आप क्या चाहते हैं कि हम भूल करते रहें? पाप की गठरी बाँधते रहें और उसका फल भुगतते रहें?"
उलाहना देते हुए उद्धव ने पूछा!

तब कृष्ण बोले-
"उद्धव, तुम शब्दों के गहरे अर्थ को समझो।
जब तुम समझकर अनुभव कर लोगे कि मैं तुम्हारे नजदीक साक्षी के रूप में हर पल हूँ, तो क्या तुम कुछ भी गलत या बुरा कर सकोगे?
तुम निश्चित रूप से कुछ भी बुरा नहीं कर सकोगे।
जब तुम यह भूल जाते हो और यह समझने लगते हो कि मुझसे छुपकर कुछ भी कर सकते हो, तब ही तुम मुसीबत में फँसते हो! धर्मराज का अज्ञान यह था कि उसने माना कि वह मेरी जानकारी के बिना जुआ खेल सकता है!
अगर उसने यह समझ लिया होता कि मैं प्रत्येक के साथ हर समय साक्षी रूप में उपस्थित हूँ तो क्या खेल का रूप कुछ और नहीं होता?"

भक्ति से अभिभूत उद्धव मंत्रमुग्ध हो गये और बोले-
प्रभु कितना गहरा दर्शन है। कितना महान सत्य। 'प्रार्थना' और 'पूजा-पाठ' से, ईश्वर को अपनी मदद के लिए बुलाना तो महज हमारी 'पर-भावना' है।  मग़र जैसे ही हम यह विश्वास करना शुरू करते हैं कि 'ईश्वर' के बिना पत्ता भी नहीं हिलता! तब हमें साक्षी के रूप में उनकी उपस्थिति महसूस होने लगती है।
गड़बड़ तब होती है, जब हम इसे भूलकर दुनियादारी में डूब जाते हैं।
सम्पूर्ण श्रीमद् भागवद् गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी जीवन-दर्शन का ज्ञान दिया है।
सारथी का अर्थ है- मार्गदर्शक।
अर्जुन के लिए सारथी बने श्रीकृष्ण वस्तुतः उसके मार्गदर्शक थे।
वह स्वयं की सामर्थ्य से युद्ध नहीं कर पा रहा था, लेकिन जैसे ही अर्जुन को परम साक्षी के रूप में भगवान कृष्ण का एहसास हुआ, वह ईश्वर की चेतना में विलय हो गया!
यह अनुभूति थी, शुद्ध, पवित्र, प्रेममय, आनंदित सुप्रीम चेतना की!
तत-त्वम-असि!
अर्थात...
वह तुम ही हो।।
                      

                  🙏 ।। जय श्री कृष्ण ।। 🙏