महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र में हुए भयंकर युद्ध का वर्णन विस्तार से मिलता है, कौरवों ने पांडवों को हराने के लिए हर प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए।
कौरवों की सेना में एक से बढ़कर एक योद्धा और महारथी थे, लेकिन अधर्म का साथ देने के कारण उनको पराजय का सामना करना पड़ा, उस युद्ध में कौरवों की ओर से पांडवों के मामा भी शामिल हुए थे,अब आपको आश्चर्य होगा कि जो पांडवों के सगे मामा थे, वे अपने भांजों के खिलाफ क्यों खड़े हुए? हालांकि उनको दिया दुर्योधन का एक वचन, कौरवों पर ही भारी पड़ गया, आइए जानते हैं पांडवों के मामा की इस कहानी के बारे में।
कौन थे पांडवों के मामा!
महाभारत में यह घटना उस समय की है, जब कौरव और पांडव युद्ध के लिए अपनी सेना का संगठन कर रहे थे, बड़े से बड़े योद्धाओं को अपनी ओर से लड़ने के लिए राजी कर रहे थे, इसी क्रम में दुर्योधन ने पांडवों के सगे मामा यानि मद्र नरेश शल्य के साथ छल किया. शल्य राजा पांडु की दूसरी पत्नी माद्री के भाई थे, वे नकुल और सहदेव के सगे मामा थे, इस प्रकार से वे युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन के मामा भी हुए।
दुर्योधन ने मद्र नरेश शल्य से किया छल!
पांडवों और कौरवों में युद्ध की घोषणा हुई थी, उसी दौरान मद्र नरेश शल्य अपने भांजे से मिलने के लिए सेना के साथ हस्तिनापुर आ रहे थे, इस बात की भनक दुर्योधन को लग गई, उसने बड़ी ही चालाकी से उन सभी स्थानों पर मद्र नरेश शल्य और उनकी सेना के रहने, खाने और पीने का पूरा बंदोबस्त करा दिया था, जहां जहां पर उनकी सेना ने डेरा डाला था।
रास्ते भर मद्र नरेश शल्य और उनकी सेना को सही प्रकार से भोजन और पानी की व्यवस्था प्राप्त हुई, इससे राजा शल्य बहुत खुश हुए, हस्तिनापुर के पास भी उनके और सेना के लिए अच्छा प्रबंध किया गया था, यह देखकर राजा शल्य ने पूछा कि युधिष्ठिर के किन कर्मचारियों और सहयोगियों ने उनके लिए उत्तम व्यवस्था की है? वे उनसे मिलना चाहते हैं और कुछ पुरस्कार देना चाहते हैं।
दुर्योधन वहां पर पहले से ही छिपा हुआ था, यह बात सुनते ही वह राजा शल्य के सामने आकर खड़ा हो गया, उसने कहा कि मामा जी, यह सारी व्यवस्था आपके लिए मैंने ही की है, ताकि आपको और आपकी सेना को कोई परेशानी न हो, इतना सुनकर राजा शल्य के मन में दुर्योधन के लिए प्रेम उमड़ पड़ा, उन्होंने दुर्योधन से कहा कि आज तुम जो मांगोगे, वो मिलेगा।
अपने वचन में फंसे राजा शल्य!
चालाक दुर्योधन इस मौके के ही ताक में था, उसने राजा शल्य से कहा कि वह चाहता है कि आप युद्ध में कौरवों की सेना का साथ दें और सेना का संचालन करें, राजा शल्य ने दुर्योधन को वचन दिया था, इसलिए वे अपने वचन से मुकर नहीं सकते थे, राजा शल्य ने कौरव सेना के साथ रहने के लिए हां कह दिया।
राजा शल्य ने भी दुर्योधन के सामने रखी एक शर्त!
राजा शल्य ने दुर्योधन की बात मान ली, लेकिन उन्होंने उससे एक वचन भी लिया, उन्होंने कहा कि वे युद्ध में कौरवों के साथ रहेंगे, जो आदेश होगा, उसका पालन करेंगे, लेकिन उनकी वाणी पर उनका ही अधिकार होगा, दुर्योधन ने सोचा कि इससे उसे कोई हानि नहीं है, इसलिए उसने भी राजा शल्य की शर्त मान ली।
राजा शैल्य की शर्त पड़ी भारी!
पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध शुरू हुआ तो राजा शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया, वे कर्ण का रथ चलाते थे, लेकिन शर्त के अनुसार, वे पूरे युद्ध में पांडवों की वीरता का ही बखान करते थे, वे कौरवों को हमेशा कमजोर बताते और उनको हतोत्साहित करते थे, युद्ध समाप्ति के बाद भी शाम के समय कौरवों को उनकी कमजोरियों को ही बताते, कर्ण को अर्जुन की वीरता का बखान करके उसे हतोत्साहित करने का काम करते थे, वे कौरवों की ओर से होते हुए भी अपनी वाणी से पांडवों की मदद करते थे।
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