क्षत्रिय जीवन परिचय:-
सम्राट विग्रहराज चतुर्थ अथवा वीसलदेव (चाहमान वंश) के एक अति प्रतापी और विख्यात नरेश थे, जिन्होंने चाहमानों (चौहानों) की शक्ति में पर्याप्त वृद्धि तथा उसे एक साम्राज्य के रूप में परिवर्तित करने का प्रयास किया।
सन् ११५३ में विग्रहराज चतुर्थ वीसलदेव शाकम्भरी राजसिंहासन पर बैठे इन्होंने सम्पूर्ण भारत में विजय पायी थी और अरबों को खदेड़ा था।
११५३ से ११६४ तक राज्य किया, दिल्ली पर भी अधिकार किया था। मेवार से एक लेख प्राप्त हैं एवं मध्यकालीन इतिहास में लिखा हैं, की मलेच्छो को परास्त कर दिल्ली छीनकर अपने राज्य में मिला लिया था।
डॉ. आर. सी. मजूमदार ने लिखा हैं की अपने पराक्रम और शौर्य का परिचय देते हुये कई राज्यों को जीत लिया था, अरबों को ना केवल भारत से खदेड़ा अपितु शौर्य का परचम तुर्क के शासक खुसरो शाह को परास्त कर लाहौर पर विजय पाई थी । महाकवि सोमदेव ने वीसलदेव के प्रताप और शौर्य की प्रशंसा में 'ललित विग्रहराज' नामक ग्रन्थ लिखा।
चाहमान वंश को आज नवीनतम इतिहास में चौहान कहा जाता हैं चाहमान वंश २५०० साल तक सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के प्रहरी थे। कुशल शासन द्वारा प्रजा और भारत माता के सेवा प्रदान किये, चाहमान वंश ने अरब, हूण और अस्सीरिया के अस्सूरों को धूल चटाई थी।
वीसलदेव चाहमान और अरबो के बीच कुल ८ से १० युद्ध हुए। पर दुर्भाग्यवश तीन युद्ध का वर्णन मिला बहोत खोज के बाद असल में वामपंथियों ने वीसलदेव को केवल एक संगीतकार बना कर पेश किया जो की पूरी तरह गलत हैं।
वीसलदेव चाहमान अति पराक्रमी और प्रतापी राजा थे तुर्क, बेबीलोनिया, मिस्र, फातिमद साम्राज्य जिसमे काइरो, और मिस्र, तुर्क इत्यादि राज्य आते थे।अरबो के खलीफा को परास्त कर मिस्र तुर्क एवं फातिम साम्राज्य के राज्यो पर केसरिया ध्वज फहरानेवाले वीर थे।
(१.) प्रथम युद्ध:-
विग्रहराज चौहान जी ने अरबो को हराया था प्रथम युद्ध सन् ११५४ में अबुल क़ासिम के साथ हुआ था यह मिस्र, तुर्क, बेबीलोनिया, सीरिया, काइरो में आते थे, विग्रहराज चतुर्थ के पराक्रम के सामने क़ासिम की सेना धराशायी हो गई थी।
विग्रहराज अपने प्रेम से और बल से आसपास के सभी राज्यों को जीत कर एकछत्र शासित राज्य की स्थापना कि थी । कासिम की सेना में जाबालिपुर पर आक्रमण किया था तब विग्रहराज जी ने क़ासिम की सेना की कमर तोड़ दि थी। अरब के खलीफा क़ासिम की विशाल जिहादि सेना को बंदी बनाकर जाबालिपुर में जुलुस निकाला था।
(२.) द्वितीय युद्ध:-
तुर्क के साथ द्वितीय युद्ध सन् ११५७ खुसरोशाह के साथ हुआ था। तुर्क क्रुर शासक थे जिन्होंने तलवार के बल पर एवं पैशाचिक सेना के बल पर सम्पूर्ण उज़्बेकिस्तान, मंगोलिया, कजाखस्तान को रौंध कर इस्लाम में तब्दील कर दिया था आधे से ज़्यादा मध्य एशिया के अधिकतर भू-भाग इस्लाम के क्रूरता का शिकार बन गए थे।
नददुल और दिल्ली को रौंधने का प्रयास खुसरो शाह की मृत्यु की वजह बन गया, विग्रहराज चतुर्थ की सेना २०,००० से अधिक थी हर हर महादेव के शंखनाद से धर्मयोद्धाओं में अलग सी ऊर्जा का संचय हुआ और भिड़त हुई लाखों मलेच्छों तथा तुर्क सेना नायक अहमद संजार की टुकड़ी सेना नायक अहनेद संजार के साथ खत्म हो गई, और फिर खुसरोशाह की विग्रहराज के सेना नायक अरिवलसिन्ह तंवर द्वारा मृत्यु होने के पश्चात तुर्क की जिहादी सेना की हार हुई और वैदिक ध्वजा तुर्की तक फहराई चाहमान (चौहान) काल में अखंड जम्बूद्वीप पर मलेच्छो के कुल ६४ से अधिक आक्रमण हुये थे जिसमे से केवल दो या तीन आक्रमण का ही उल्लेख मिलता हैं।
(३.) तृतीय युद्ध:-
तृतीय युद्ध सन ११५५ में अतसिज़ ने किया था जो की ख्वारेज़्म के द्वितीय शाह थे सेल्जुक साम्राज्य के सुल्तान थे विग्रहराज चतुर्थ के साथ समरकन्द में युद्ध हुआ था।
समरकन्द ( समारा + खांडा ) यह एक संस्कृत नाम हैं जिसका मतलब होता हैं युद्ध क्षेत्र (Region of War) जो की वर्तमान में उज़्बेकिस्तान का हिस्सा हैं यह उस समय विग्रहराज चतुर्थ (वोसलदेव चौहान) के साम्राज्य का हिस्सा था यहाँ अतसिज़ की सेना को परास्त होकर समरकन्द छौड़ कर भागना पड़ा था।
चाहमान शाकम्बरी विग्रहराज विसलदेव चतुर्थ।