मंगलवार, 14 सितंबर 2021

स्वरूप कंवर जी


पुत्र वियोग से हुई देवलोक, पीहर के दमामी (ढोली) को दिया पहला पर्चा

जैसलमेर जिले के जोगीदास गांव में वि.सं. 1745 को जोगराज सिंह भाटी के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ, नाम रखा गया स्वरूप कंवर।

मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उत्तराधिकारी राव कल्याण सिंह के पहली पत्नी के पुत्र नहीं होने पर स्वरूप कंवर के साथ उनका दूसरा विवाह हुआ।

विवाह के दो साल बाद राणी भटियाणीजी ने बालक को जन्म दिया, जिसका नाम लालसिंह रखा गया। इससे प्रथम राणी देवड़ी के रूठी रहने लगी तो स्वरूप कंवर ने उन्हें विश्वास दिलाते हुए कहा कि मां भवानी की पूजा-अर्चना कर व्रत व आस्था रखें, उनकी मुराद जरूर पूरी होगी।

देवड़ी राणी ने स्वरूप कंवर की बातों में विश्वास कर वैसा ही किया, इस पर कुछ समय पश्चात उनके भी पुत्र र| की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि कुछ समय पश्चात एक दासी ने देवड़ी राणी को बहकाया कि छोटी राणी स्वरूपों का पुत्र प्रताप सिंह से बड़ा होने पर वह ही कल्याण सिंह का उत्तराधिकारी बनेगा।

दासी बार-बार उनके पुत्र को राजपाट दिलाने के लिए बहकाने लगी। इस पर देवड़ी राणी अपने पुत्र को उत्तराधिकारी बनाने के लिए चिंतित रहने लगी।

श्रावण पक्ष की काजली तीज के दिन राणी स्वरूप कंवर ने राणी देवड़ी को झुला झूलने के लिए बाग में चलने को कहा तो उन्होंने बहाना बनाते हुए मना कर दिया, तब राणी स्वरूप अपने पुत्र लालसिंह को राणी देवड़ी के पास छोड़कर झूला झूलने चली गई।

इस अवसर को देखते हुए उसने विश्वासपात्र दासी को जहर मिला दूध लेकर बुलाया, कुछ समय बाद खेलते-खेलते दूध के लिए रोने लगा तो दासी ने जहर मिला दूध लालसिंह को पिला दिया। इससे लालसिंह के प्राण निकल गए।

राणी स्वरूप कंवर जब झूला झुलाकर वापस आई तो अपने पुत्र के न जागने पर व उसे मृत देखकर पुत्र वियोग में व्याकुल हो गई तथा कुछ समय बाद ही उन्होंने भी प्राण त्याग दिए। एक दिन राणी भटियाणीजी के गांव से दो ढोली शंकर व ताजिया रावल कल्याणमल के यहां जसोल पहुंचे।

उन्होंने बाईसा से मिलने का कहा तो राणी देवड़ी ने उन्हें श्मशान में जाकर मिलने की बात कही। इससे दुखी होकर ढोली गांव के श्मशानघाट पर जाकर बाईसा से विनती करने लगे और आप बीती सुनाई।

इस पर प्रसन्न होकर राणी भटियाणीजी ने दोनों को साक्षात दर्शन देकर पर्चा दिया और दमामियों को उपहार स्वरूप नेक भी दी।

इसे लेकर वे वापस रावल के यहां पहुंचे तो एकबारगी सभी अचरज में पड़ गए, लेकिन कुछ ही दिनों में यह बात आस-पास के गांवों में फैल गई।

इस पर रावल कल्याणमल कुछ लोगों के साथ श्मशानघाट पहुंचे तो

वहां पर खड़ी खेजड़ी हरी-भरी नजर आई।
इस पर उसी जगह राणी भटियाणीजी के चबूतरे पर
एक मंदिर बनवा दिया और उनकी विधिवत पूजा
करने लगे। मंदिर में गोरक्षक सवाईसिंहजी, लाल
बन्ना, कल्याणसिंह, बायोसा आदि की भी पूजा की जाती है।

स्वरूप कंवर जी को रानी भटियाणी जी, माजीसा,
भुआसा आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है..
माजीसा का विख्यात मंदिर बाड़मेर के जसोल गांव
में है जिसे जसोल धाम के नाम से जाना जाता है।

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