भारत में इतिहास शोध का विषय कभी रहा ही नही वरन एक विशेष एजेंडे को स्थापित करने के लिए दरबारियों द्वारा कल्पना के आधार पर अनाप शनाप लिखा जाता रहा।
पाठ्य पुस्तकों और फिल्मों के माध्यम से असत्य और भ्रामक बातों का प्रचार- प्रसार करने में कोई कमी नहीं की गयी।झूठ बोलने/लिखने वालों को महान लेखकों की पदवी दी गयी। पद, प्रतिष्ठाऔर पुरस्कार दिए गये ताकि वैसा लिखने समझने की एक परम्परा बन सके।
गुलामों ने गुलाम वंश को जीवित रखने का भरपूर प्रयास किया पर वे भूल गये कि यह देश सत्य और धर्म की परम्परा मानने वालों का देश है।
धीरे धीरे असत्य के बादलों का विलोपन होना शुरू हुआ।जब सत्य का सूरज चमका तो सारी गंदगी और कूड़ा अनावृत हो गया। ऐसी ही एक गंदी और असत्य कहानी सामने आयी जिसे इतिहास में सलीम अनारकली की प्रेम कहानी के नाम से ग्लोरीफाई किया गया।
एक काल्पनिक बात को इतिहास के नाम से प्रचारित किया गया, अकबर को न्याय के लिए बेटे का बलिदान देते हुए बताया गया और सलीम को मोहब्बत के लिए हिन्दुस्तान का ताज ठुकराते हुए दिखाया गया। पर क्या आप जानते हैं कि असलियत क्या है।असलियत में इस प्रकरण में मुगलई दुर्गंध भरी पड़ी है।
अनारकली का नाम नादिरा बेगम हुआ करता था. ईरान से एक विवश ,अति सुंदर नारी को खरीद कर व्यापारी उसे अकबर के दरबार में ले आये, उन्हें पता था कि अकबर औरतों की खरीद का अच्छा दाम देता है।
जब उसे अकबर बादशाह के दरबार में पेश किया गया तो अकबर उसके लिए मचल उठा। अकबर ने उसके चटख रंग व खूबसूरती को देख कर अनारकली नाम देकर अपने हरम में भेज दिया ।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी जी ने इस सच्चाई को अपनी पुस्तक दास्तान- मुगल महिलाओं की के पेज नं. 141 से 148 तक में लिखा है।
प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी के अनुसार ,सलीम अपनी सौतेली मां और अकबर की पत्नी व अपने सबसे छोटे भाई दानियाल की मां 'अनारकली' के साथ जिस्मानी सम्बन्ध रखता था।
इस बात से मुगल 'हरम' में सभी लोग वाकिफ थे। जी हां, अनारकली सलीम की प्रेमिका नहीं बल्कि रिश्ते में मां लगती थी जिससे सलीम शारीरिक सम्बन्ध बनाया करता था।
हेरम्ब चतुर्वेदी अपनी पुस्तक में कहते हैं कि इस बात का खुलासा कई अंग्रेज यात्रियों ने अपनी पुस्तकों में किया है। उन्हीं में से एक यात्री विलियम फिंच ने 1611 में हिंदुस्तान का भ्रमण करते हुए अनारकली और सलीम के संबंधों को नाजायज़ बताया।
पर्चास हिज पिल्ग्रिम्स नामक पुस्तक में सैमुअल पर्चास ने लिखा कि सलीम और अनारकली के बीच में मां-बेटे का संबंध होते हुए भी अवैध शारिरिक संबंध थे। जब अनारकली-सलीम के बारे में अकबर को पता चला तो उन्होने अनारकली को सलीम से दूर रहने की चेतावनी दी।
वहीं फिन्च के अनुसार, एक बार अकबर ने अपनी पत्नी नादिरा बेगम उर्फ अनारकली को पर्दे के पीछे से सलीम के साथ मुस्कुराता हुआ देख लिया था, तब उसे यकीन हो गया इस मामले में अनारकली की भी सहमति है, तो अकबर ने लाहौर के अपने महल की दीवार में नादिरा बेगम यानि अनारकली को चुनवा देने का आदेश दे डाला, पर कुछ कारणों से उसे अपना आदेश वापस लेना पड़ा।
उसकी मृत्यु के बाद जहांगीर जब बादशाह बना तो लाहौर में ही अनारकली का मकबरा बनवा दिया। इसी के बगल में अनारकली के बेटे दानियाल का भी मकबरा है।
फिंच के पांच साल बाद पादरी एडवर्ड टेरी ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अकबर अपनी प्रिय पत्नी ईरान से आई नादिरा उर्फ़ अनारकली से अवैध संबंधों के कारण सलीम को उत्तराधिकार से वंचित करना चाहता था, पर दानियाल के मरने के बाद उसे अपना निर्णय बदलना पड़ा।
द लास्ट स्प्रिंग द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ ग्रेट मुगल्स के लेखक अब्राहम एराली ने अनारकली को अकबर की पत्नी बताते हुए दानियाल की माँ बताया है ।
भारत आने वाले अन्य विदेशी यात्रियों ने भी लगभग यही बातें लिखी हैं और कहा कि अकबर और जहांगीर के बीच कटुता की मुख्य वजह जहांगीर का अपनी सौतेली मां से शारीरिक संबंध बनाना ही था।
कुछ और पुस्तकों पर नजर डालें तो एक महत्वपूर्ण किताब तहकीकात-ई-चिश्तिया का उल्लेख करना जरूरी हो जाता है जिसे नूर अहमद चिश्ती ने 1860 में लिखा था। वह कहता है कि अनारकली अकबर को बहुत प्रिय थी जिससे अकबर की अन्य दो बीवियां जलती थी।अकबर जब दक्कन की लड़ाई में गया तब अनारकली बीमार हो गयी थी।
तारीख-ई-लाहौर में सैयद अब्दुल लतीफ़ ने भी इसे लिखा था कि अनारकली अकबर के हरम मे रहती थी, जिसमें केवल अकबर की पत्नियाँ या उसकी दासियाँ रह सकती थी। अकबर को सलीम-अनारकली के रिश्ते का शक हो जाता हैं और वो इसलिए अनारकली को जिन्दा दीवार में चुनवा देता है।
दरअसल प्रेम कहानी जैसा कुछ था ही नहीं! यह मुगलों के व्यभिचारिक संबंधों का उद्घाटन है। यह कडवा सत्य है पर कोई फिल्म, कोई कल्पना, कोई कहानी बना कर इस सच को कब तक झुठलाया जा सकता है।
मध्यकालीन भारत कुछ और नही केवल सनातन को ध्वंस करने के प्रयासों पर निर्मित खँडहर के सिवा कुछ नही है।पाखंडियों का भांडा फूट चुका है। फर्जी कहानीकारों, चाटुकारों और भारत द्रोही लोगों का पर्दाफाश होना धीरे धीरे ही सही ,पर आरंभ अवश्य हो गया है।