शंकरगंज रियासत (रायबरेली )
यह रियासत बैसवारा वंश की कर्मभूमि रही है।।
खजूर गांव थुलरई,सैबंशी,निहस्था, सेमरी,कुर्री सुडौली,सेमरपहा आदि तालुक एक दूसरे से संबंधित है।
बैसवारा महाराज त्रिलोकचन्द्र की चौदवही पीढ़ी सन 1805 मे राना बेनी माधवबख्श सिंह जी का जन्म सैबंशी राजपरिवार में हुआ,कहीं कही राणा का जन्म व लालन पालन उड़वा( शंकरपुर स्टेट) को माना जाता है।
इनके पिता राजा रामनारायण सिंह जी थे।
राना बेनी माधव सिंह जी को यह शंकरपुर रियासत अपने चाचा राजा शिवप्रसाद सिंह से मिली थी। जिसमे भीखा , जगतपुर , पुकबिया भी प्रमुख रियासते थी।
राना बेनी माधवबख्श सिंह जी का भारत के 1857 की क्रान्ति मे बहुत योगदान है उन्होने अवध को 18 महीने अग्रेंजो से सुरक्षित रखा और हार नही स्वीकार की अपना सर्वत्र न्यौछावर कर दिया इसके लिऐ उन्होने चार युद्ध भी किऐ जिसमे उनके सेनापति वीर वीरा पासी का भी सहयोग रहा।
राणा बेनी माधव का पारिवारिक संबंध नायन राज परिवार से भी रहा।
राणा का जीवन एक साधक संन्यासी का था।
वो आदिशक्ति दुर्गा के साधक थे।
जब साधना व यज्ञ के पश्चात उनकी तलवार में स्वयंम गति आ जाती थी। इसे राणा माँ दुर्गा का आश्रीवाद मानकर युद्ध पर जाते थे।
शंकरपुर रियासत में माँ का दिव्य मंदिर अभी भी स्थापित है। माँ का स्वरूप एक पिंडी के रूप में स्थापित है व पुराना राजभवन अब शंकरपुर इंटर कॉलेज के रूप में सेवा कर रहा है।
राजा बेनी माधव सिंह को राणा व दिलेरजंग की उपाधि भी प्राप्त हुई।
“अवध में राणा भयो मरदाना डौडिया खेड़ा में राणा”
राम बख़्स व राणा बेनी माधव के लिए कहि जाती है।वीरता व वीररस की कई नाटक काव्य रचे गए।
राष्ट्र में आप दोनों राणा को बुंदेलखंड के आल्हा ऊदल के रूप के देखा जाता था।।
1 -12मई 1958 सेमरा का युद्ध
2-15नवम्बर 1858 भीरा गोविन्दपुर का युद्ध
3- 24 नवम्बर 1858 को बक्सर डौडिंयाखेड़ा का युद्ध
4 - 4 जनवरी 1859 को घाघरा का युद्ध
आज उनके नाम पर कई शिक्षण संस्थान , रायबरेली जिला चिकित्सालय,और कई ट्रस्ट भी चलते है जो लोगो के लिऐ कार्य करते है।
राणा जब अश्व पर सवार हो कर चलते थे तब कोई भी सेना उनका सामना नही करती थी।
7 जनवरी 2017 तत्कालीन राज्यपाल श्री राम नाईक जी द्वारा नगर के मध्य में राणा बेनी माधव सिंह जी की अश्वरोही मूर्ति का अनावरण किया एवम राणा की जयंती 27 अगस्त 2019 को राणा बेनी माधव स्मारक समिति रायबरेली के भाव समपर्ण कार्यक्रम, साझी विरासत साझी शहादत में मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश श्री योगी आदित्यनाथ जी महराज का आगमन रायबरेली में राणा की विरासत को साझा करने हेतु हुआ।
राणा की मृत्यु के कोई भी साछ उपलब्ध नही। अश्व पर सवार को कर वो काशी क्षेत्र की ओर गए फिर अपनी रियासत में वो वापस नही आये।
बैसवारा के इस वीर सपूत को शत शत नमन 🙏🏻
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पूरे अवध को एक सूत्र में पिरोने वाले महान योद्धा
राणा बेनी माधव बख्श सिंह बैस जी। 🙏🏻❣️🚩
👉1856 में अवध के नबाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों द्वारा पद से हटाने का सबसे मुखर विरोध राणा बेनी माधव ने ही किया था। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाया गया रायबरेली का सलोन जिला मुख्यालय पर हुआ विद्रोह राणा की ही संगठन क्षमता की देन थी। राणा के नेतृत्व और संगठन को लेकर ऐसी दूर दृष्टि थी कि 1857 की क्रांति के पहले ही पूरे रायबरेली ज़िले में जगह-जगह विद्रोह शुरू हो गया था।
कंपनी के मेजर गाल की हत्या और न्यायालय पर हमला करके आग लगा देना यह सब राणा की गुरिल्ला रणनीति का एक उदाहरण था।
राणा के नेतृत्व में पूरे 18 महीने तक अवध कंपनी के चंगुल से आज़ाद हो चुका था।
17 अगस्त 1857 को राणा बेनी माधव को जौनपुर व आजमगढ़ का प्रशासक नियुक्त किया गया।
अवध की क्रांति में राणा का ख़ौफ़ का उल्लेख 25 अप्रैल 1858 को कानपुर के जज ने कैप्टन म्यूर को प्रेषित एक तार में विस्तार से लिखा है।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के इस वीर नायक के आखिरी दिनों को लेकर मतभेद है लेकिन माना जाता है कि दिसंबर 1858 को राणा नेपाल चले गए और वहीं अंग्रेजों के साथी नेपाल नरेश राणा जंग बहादुर के साथ हुई जंग में शहीद हो गए।
इस घटना का उल्लेख अंग्रेज इतिहासकार रॉबर्ट मार्टिन ने हावर्ड रसेल के 21 जनवरी 1860 के एक पत्र के हवाले से किया है।
इतिहास का यह वीर शायद विरला ही होगा जिसने किताबों के पन्नों से हटकर लोकमन में अपना स्थान बनाया है, तभी आज भी पूरे अवध में कहे जाते हैं "
अवध में राणा भयो मरदाना" 🙏
अवध में राणा भयो मरदाना ❣️🙏
ऐसे महान पराक्रमी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के वीर योद्धा,अवध केसरी, रायबरेली जिले की शान राणा बेनी माधव बख्शसिंह बैस जी को शत-शत नमन !!
🙏🏻विनम्र श्रद्धांजलि❣️💐
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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
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