मुगलों का काल - महाराज छत्रसाल !
अंग्रेजी कलेण्डर के हिसाब से दिनांक 04 मई 1649 ईस्वी को महाराजा छत्रसाल बुंदेला का जन्म हुआ था। 12-13 बर्ष की उम्र में अनाथ हुये छत्रसाल ने आगे चलकर अपने शौर्य, बुद्धिबल से कुछ सैनिकों के सहारे ही मुगलों से लोहा लेना प्रारंभ किया और औरंगजेब/मुगलों को न सिर्फ परास्त किया, बल्कि बुन्देलखण्ड से खदेड़कर भी बाहर किया।
छत्रपति शिवाजी की तलवार को छत्रसाल ने बुन्देलखण्ड में थामा और जीवन के अंतिम समय तक बुन्देलखण्ड पर एकछत्र राज्य किया।
महाराजा छत्रसाल ने 52 से ज्यादा प्रमुख युद्ध लड़े और सभी युद्धों में विजय प्राप्त की। छत्रसाल स्वयं एक कवि,साहित्य प्रेमी थे , हिन्दी साहित्य-रीतिकाल के आधार कवि भूषण उनके दरबार में शोभा पाते थे।
उत्तराधिकार में सिर्फ "शत्रु और संघर्ष" पाने वाले अबोध,अनाथ बालक ने कुछ ही समय में अपने शौर्य,बुद्धीबल से अपने बिरोधियों को परास्त किया और आगे चलकर उस समय के सबसे शक्तिशाली मुगल बादशाह औरंगजेब को बुन्देलखण्ड में टिकने भी नहीं दिया और एक विशाल बुन्देला राज्य की स्थापना की।
छत्रसाल के विशाल राज्य के विस्तार के बारे में यह पंक्तियाँ गौरव के साथ दोहरायी जाती है :–
“इत यमुना उत नर्मदा इत चंबल उत टोस…
छत्रसाल सों लरन की रही न काहू की हौस।„
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