बुधवार, 14 नवंबर 2018

गाथा वीर चौहानों की भाग - 9

 

गाथा वीर चौहानों की आपने आठवें भाग तक पढ़ा था जिसमे राजा अजयराज तक का वर्णन हो चुका है।

अजयराज ने अपने पुत्र अर्णोराज चौहान को गद्दी पर बैठाकर पुष्कर की पवित्र झील के किनारे कठोर तपस्या की अर्णोराज चौहान की अपने समय मे स्थिति बहुत ही सम्मानीय थी उन्हें बिजौलिया शिलालेख में #__महाराजधिराज_परमेश्वर_परमभट्टारक  श्रीमन्नअर्णोराज देवा आदि उपाधियों से सम्मानित किया गया इससे यह तो स्पष्ठ होता है की अजयराज के पुत्र अर्णोराज अपने समय मे ईश्वर जितने सम्मानीय ओर लोकप्रिय हुए।

अर्णोराज चौहान के समय मुस्लिम तुर्को ने अजेमर पर आक्रमण किया था अर्णोराज का लाहौर तथा गजनियो के तुर्को से संघर्ष तो अजयराज के समय से चला आ रहा था अजयराज चौहान ने भी इस काल मे नागौर की रक्षा अपनी पूरी सैन्य शक्ति के साथ कि थी अर्णोराज के शाशन के आरम्भ में ही मुसलमानी सेना ने अजेमर पर आक्रमण कर दिया।

अर्णोराज ने बहुत ही चतुराई तथा वीरता से तुर्को का सामना किया तथा उन्हें बुरी तरह परास्त किया अजमेर के बाहर बड़े मैदान में यह युद्ध हुआ था यह पूरा मैदान मुसलमानों के शव से भर गया था पूरा मैदान रक्त से लाल हो गया जहां तहां मुस्लिम सेनाओं से शव नजर आते थे अजमेर निवासियों ने इन शवो के दुर्गंध से बचने के लिए  गांव के गांव फूंककर इन शवो को जलाया था राजपूत कभी सेक्युलर नही थे यह तो आज का रिवाज चल पड़ा है की आतंकवादियों के शव को भी धार्मिक सम्मान देकर दफनाया जाता है उन्हें फूंका नही जाता।

इस महान विजय का अजमेर के निवासियों ने बहुत दिनों तक जश्न मनाया ओर उस मैदान से रक्त को साफ कर अर्नोसागर झील का निर्माण किया गया।

अर्णोराज चौहान ने सिंधु नदी से सरस्वती नदी तक चौहान साम्राज्य की पताका भारत मे फहरा दी थी अर्णोराज चौहान ने हरितनक प्रदेश वर्तमान हरियाणा को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था अर्णोराज ने मालवा के शाशक नरवर्मन को भी परास्त कर उसका वध किया।

हरियाणा की विजय का बहुत ही रोमांचक वर्णन इतिहास की पुस्तकों में है अर्णोराज के सेनिको ने पहले दिल्ली विजय की ठानी चाहमान प्रशस्ति के अनुसार दिल्ली के तोमर राजा और अर्णोराज चौहान के बीच घमासान युद्ध हुआ इसमे तोमर शाशको की शक्ति क्षीण पड़ती जा रही थी हरियाणा को जीतने के लिए चौहान सैनिक यमुना नदी के कीचड़ में घुस गए थे जीत का यह विकराल दृश्य देखकर महिलाएं रोने लगीं इस संघर्ष का अंत तब हुआ जब हरियाणा के साथ साथ बुलंदशहर भी चौहानों के कब्जे में आ गया।

गुजरात के चालुक्यों तथा अजेमर के चौहानों का संघर्ष अजयराज के समय से चला आ रहा था अर्णोराज को सिंहासन पर बैठते ही चालुक्यों के विरुद्ध तलवार उठानी पड़ी उस समय चालुक्यों के नरेश सिंहराज जयसिंहः थे परन्तु चालुक्यों के विरुद्ध युद्ध का परिणाम चौहानों के पक्ष में नही आया सिद्धराज जयसिंहः ने अर्णोराज को परास्त तो कर दिया लेकिन अपनी पुत्री का विवाह भी अर्णोराज से कर दिया इस विवाह ने चालुक्यों तथा चौहानों के मतभेदों को कुछ समय तक दूर तो कर दिया लेकिन् यह मधुर संबंध ज़्यादा दिनों तक नही चल सका चालुक्य सिहासन ओर अब कुमारपाल बैठ चुका था और कुमारपाल और अर्णोराज के बीच संघर्ष लगभग चलता ही रहा।

अर्णोराज के जीवन का एक दिन भी शांति से नही गुजरा था लेकिन इस काल मे भी अर्णोराज ने अपने पिता अजयराज की स्मृति में एक भव्य विशाल शिव मंदिर का निर्माण करवाया था पृथ्वीराज विजय के अनुसार अर्णोराज के महारानी सुधावा ( मारवाड़ की राजकुमारी )  से तीन पुत्र हुए गुण और स्वभाव में अर्णोराज के यह तीनों पुत्र ही एक दूसरे से एकदम भिन्न थे अर्णोराज का पहला पुत्र भृगु के पुत्र परशुराम की तरह बहुत ही क्रोध वाला था जिस प्रकार क्रोध में परशुराम ने अपनी माता का वध किया।

उसी प्रकार दुःखद अंत अर्णोराज का हुआ उनके बड़े पुत्र ने ही उनकी हत्या कर दी जयानक ने तो इस घटना का वर्णन नही किया है लेकिन हम्मीर महाकाव्य, सुरताण चरित्र , ओर प्रबंध कोष में इस घटना का उल्लेख है अर्णोराज को मारकर जगदेव गद्दी ओर बैठा लेकिन पितृहत्यारा जगदेव ज़्यादा दिन सत्ता का सुख भोग नही सका उसके छोटे भाई पितृभक्त विग्रजराज चौहान ने उसका वध कर दिया अर्णोराज का दूसरा पुत्र विग्रहराज बहुत ही स्वाभिमानी कुशल तथा वीर योद्धा था।

चौहानों में एक से बढ़कर एक राजा हुए थे पहले राजाओ की तुलना देवताओ से होती थी लेकिन चौहानों के शाशन के बाद लोगो ने देवताओ की तुलना चौहान राजाओ से करनी शुरू कर दी और यह चौहान राजाओ ने जनता पर जबरदस्ती नही थोपा था बल्कि अपने गुण तथा कर्म से यह सम्मान हासिल किया था।

चौहानों के लिए राष्ट्र की रक्षा करना ही राजा तथा सेना दोनो का प्रमुख कर्तव्य होता था मेघातिथि के अनुसार अगर राज्य पर आक्रमण हो रहा हो नरसंघार हो रहा हो और सैनिक मर रहे हो यदि तब राजा नही लड़ता तो उसका सारा यश अंधकार की गहरी खाई में खो जाएगा ।

चौहान राजाओ के समय पुरोहितों का बहुत सम्मान होता था कहा जाता है कि एक बार विग्रजराज चौहान ने अपने पुरोहित की सलाह को वरीयता देते हुए अपने अनुभवी मंत्रियों यहां तक कि बुजुर्ग श्रीधर की भी नही सुनी थी चौहान राजाओ में पुरोहितों की सलाह बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती थी  चौहान शाशन में पुरोहितों का पद मंत्रियों से कम नही था।

चौहान साम्राज्य को आधुनिक भारत का सबसे विकसित साम्राज्य कह सकते है इस साम्राज्य की महानता का ज्ञात इसी बात से हित है की विभिन्न मंत्रालयों में एक कृषि मंत्रालय भी हुआ करता था जो किसानों की सारी समशाया सुनता तथा उसका निराकरण करता इस कृषि विभाग को उस समय क्षेत्राप कहा जाता था।

आजकल कुछ गुजर खुद को चौहानों  से जोड़ते है जबकि चौहान काल मे राजपूत शब्द आ चुका था चौहान खुद को राजपूत उर्फ़ राजपुत्र कहना पसन्द करते थे वास्तव में आनुवंशिक सेनिको को राजपूत कहा जाता था जो थे राजपरिवार का हिस्सा ही ।

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जय राजपूताना जय मां भवानी धर्म क्षत्रिय युगे युगे।

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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻‍♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
👉🏻▄︻̷̿┻̿═━,’,’• Ⓡ︎ⓐⓝⓐ Ⓖ︎ 👈🏻