शनिवार, 30 जून 2018

महाराणा सांगा


मंझला कद , मोटा चेहरा , गेहुआ रंग और बड़ी बड़ी आँखो वाले महाराणा सांगा भारत की धरती के  वे वीर पुत्र है , जिन्होंने मध्यकाल के उस खुनी दौर में अपने सीने पर तोप  के गोले ले लिए थे। 

महाराणा  २४ मई १५०९ ईस्वी को महाराणा संग्राम सिंह मेवाड़ के  सिंहासन  पर विराजमान हुए।  इन्हें ही इतिहास में महाराणा सांगा के नाम से जाना जाता है।  महाराणा सांगा के काल में मेवाड़ की सैनिक शक्ति अपने चरम पर पहुँच गयी थी , उनकी सेना में एक लाख सैनिक तथा ५०० हाथी थे।  ७ बड़े राजा , ९ राव और १०८ रावत महाराणा सांगा के अधीन थे। 

बाबर का सामना करने से पूर्व १०८ बड़ी लड़ाईया उन्होंने मालवा के सुल्तानों से लड़ी थी , और सभी जीती।  राणा सांगा के आगे कोई दूसरा राजा कान हिलाता ना था।  जोधपुर तथा आमेर के राजा महाराणा सांगा का पूरा सम्मान करते थे , ग्वालियर , अजमेर , सीकरी  , रायसेन , कालपी , चंदेरी , बूंदी , गगनौर , रामपुरा तथा आबू जैसे शक्तिशाली प्रदेश उनके सामंत हुआ करते थे। 

महाराणा सांगा जब  चितोड़ के शाशक बने थे , उस समय उनका राज्य चारो और से शत्रुओ से ही घिरा पड़ा था , गुजरात  नवाब भी इस्लामी नशे में चूर थे , तो यहाँ मालवा के क्रूर सुल्तान भी , वहीँ दिल्ली और समय लोदी सल्तनत  राज कर रही थी , इसने भी हिन्दुओ पर कम अत्याचार नहीं किये थे।  हिन्दू मंदिरो को तोड़ने में, हिन्दु स्त्रियों और बच्चो का अपहरण करने में , बलात हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन करवाने में एक भी मुस्लमान सुल्तान पीछे नहीं रहा था , भले ही उसका नाम जो भी रहे हो।  दिल्ली के लोदी ने , मालवा के नसीरुद्दीन शाह ने , और गुजरात के महमूद शाह ने एक साथ महाराणा सांगा पर हमला बोला था।, किन्तु उसके बाद भी यह तीन राजाओ को सयुक्त सेना राणा  सांगा की तलवारो का सामना नहीं कर सकी।  आज कुछ मुर्ख बिना सिर पाँव के बात करते है की महाराणा सांगा ने बाबर को  बुलाया था , अब जिस महाराणा सांगा ने ३ -३  मुस्लमान सुल्तानों को एक साथ परास्त किया हो , उन्हें क्या आवश्कयता थी , किसी विदेशी को भारत बुलाने की ?

महाराणा सांगा जितने दिन भी जीवित रहे , उन्हें सदैव युद्धरत ही रहना पड़ा।  एक हाथ , एक आँख , पाँव करते करते उनके कई अंग क्षत  विकृत हो गए थे ,  अपने सारे अंगो के यह हाल देख एक बार महाराणा  सांगा ने अपने दरबारियों से यह आग्रह किया था  की " जिस तरह टूटी हुई मूर्ति प्रतिष्ठा  में पूजने योग्य नहीं रहती , उसी प्रकार मेरी आँख , भुजा , पाँव  सभी अंग निकम्मे हो चुके है , इसलिए में सिहासन पर ना बैठकर जमींन पर बैठूंगा। आप सभी लोग  आपस में विचार कर  किसी योग्य व्यक्ति को सिंहासन  पर बिठा देवे। 

इस विनती भाव से दरबारियों के मन में महाराणा सांगा को लेकर सम्मान का भाव दुगना बढ़ गया था।  सभी एक स्वर में बोले , " रणभूमि में अंगभंग होने पर योद्धा का गौरव बढ़ता है , ना की घटता है।  इस तरह महाराणा कुम्भा की योग्यता पर मेवाड़ के प्रत्येक व्यक्ति को अटूट विश्वास था।  तीन मुस्लमान सुल्तानों को एक साथ परास्त करने वाले  ने उसके बाद मुजफ्फर में ईडर  अहमदनगर एवं बिसलनगर के सुल्तानों को हरा  वहां की गद्दी पर अपने एक सामंत रायमल्ल  राठोड को बैठा दिया।  ईडर  का सुल्तान निजामुलहक़ महाराणा सांगा से भयभीत होकर अहमदनगर के किले में रहने  लगा था , किन्तु महाराणा सांगा  ने उसे वहां भी नहीं छोड़ा। 

निजामुलहक़ ने ईडर  के आस पास इन दिनों खूब आतंक फैलाया था , गौ- हत्या तथा मंदिर तोड़ने वाले बड़े बड़े गाजियों में निजामुलहक़ का नाम भी आने लगा था।  पहली बार में यह महाराणा सांगा के  हाथ से बचकर अहमदनगर के किले में आ छुपा था , लेकिन निजामुलहक़ की मौत उसके साथ साथ अहमदनगर तक ही आ गयी। अहमदनगर का दुर्गद्वार बहुत मजबूत  था , इसे तोड़ने के लिए महाराणा सांगा के सरदार कानसिंह चौहान ने बड़ी बहादुरी दिखाई थी।  किले के किवाड़ पर तीक्षण भाले लगे थे , जिनके कारण हाथी उन किलो पर प्रहार नहीं  कर पा रहा था , कान्हसिंह चौहान उस दुर्गदार से चिपककर खड़े  हो गए , और महावत को आदेश दिया की "  हाथी को कहो की वो मेरे देह पर वार करें " महावत ने वैसा ही किया , तीक्षण भालो से , और उसपर होते  हाथी के प्रहारों से कान्हसिंह चौहान का शरीर छिन्न छिन्न हो गया , लेकिन उनके इस बलिदान के बाद  राजपूत सेनिको का  जोश दुगना हो गया , जय एकलिंग जी , और जय बाणमाता की सिंह गर्जना के साथ , साथ में जय भवानी का उद्घोष करते राजपूत अहमदनगर के इस दुर्ग में घुस गए , और वहां रह रहे प्रत्येक मल्लेछ को काट डाला। 

१३० वर्ष से मालवा में चले आ रहे इस्लामी तंत्र को भी महाराणा सांगा ने उखाड़ फ़ेंका  था।  गुजरात में जफर खान ने हिन्दुओ की दुर्गति कर रखी थी ,  उस समय महाराणा सांगा ही वह वीर  थे जिन्होंने मुसलमानी आतंक  से गुजरात तथा मालवा के हिन्दुओ को मुक्ति दिलवाई थी। 

महाराणा सांगा के लिए किसी कवि ने पंक्तियां लिखी थी, बाद में उसे सुल्तान फ़िल्म में चुरा भी लिया था ।

" खून में तेरे मिट्टी
मिट्टी में तेरा खून
चारो तरफ है उसके शत्रु
बीच मे तेरा जुनून "

जय संग्राम, जय संग्राम

महाराणा सांगा जैसे वीर के बारे में इतना पढ़कर आपको भी इतना अनुमान  तो हो गया होगा , की इब्राहिम लोदी जैसे चूहे को  हराने  के लिए महाराणा सांगा बाबर को आमंत्रण देंगे , यह बात केवल बिना सर पाँव की बकवास है।  बाबर तो तैमूर लंग की तरह भारत को लूटने आया  था , जो बाद में यही रह भी गया। 
बयाना के युद्ध में खुद महाराणा सांगा ने बाबर को परास्त किया था , उसके बाद भी  यह सोचना की महाराणा सांगा मुगलो को भारत में आमंत्रित करेंगे , ऊपर वह भी लोदी जैसे चूहे को परास्त  करने के लिए। .. तो यह केवल मानसिक दिवालियापन है। 

ना तो इब्राहिम लोदी की औकात  थी , की वह महाराणा सांगा से लड़ पाए , और ना बाबर की औकात  थी , की वह महाराणा सांगा के प्रहारों को झेल पाएं।  बाबर ने इब्राहिम लोदी को परास्त कर  भारत के सभी मुसलमानो को अपने पक्ष में कर लिया था।,  लेकिन उसके बाद भी बाबर भारत का सम्राट तभी बन सकता था  , जब वह महाराणा सांगा को परास्त करता। 

बड़े  से बड़ा  सुरमा और छोटे से छोटा सुरमा , हर कोई राणा सांगा के आगे नतमस्तक था , अखंड भारत का सम्राट बनने से राणा सांगा मात्र एक कदम की दुरी पर  ही थे।    वहीँ दूसरी और बाबर भी सारे मुस्लिम गुंडों , बदमाशों और डाकुओ की फौज इक्क्ठी कर सीकरी  की और बढ़ा।  बयाना के पास बाबर और महाराणा सांगा की सेना भी भयंकर युद्ध हुआ था , वीर राजपूतो की तीर और  तलवार के आगे तोप  के गोले भी ध्वस्त हुए थे , बयाना से दुर्ग से बाबर और उसके सैनिक जैसे तैसे अपनी जान बचाकर वापस भाग पाएं। 

अपनी हार से हताश बाबर ने जुम्मे की नमाज़ के दिन बड़ा भड़काऊ भाषण दिया।  उस भाषण के बोल कुछ इस तरह के थे

" यह युद्ध बाबर अपने लिए नहीं कर रहा , वह यह युद्ध इस्लाम के लिए कर रहा है।  जिहाद ही मुसलमानो के जीवन का अंतिम लक्ष्य होता है , अगर हम जिहाद करते हुए  गजवा ए  हिन्द की इस लड़ाई में अगर शहीद हुए , तो ऊपर शराब की नदी और हो का सुख भोगेंगे , और अगर यह लड़ाई जीत  गए , तो गाजी कहलाये जाएंगे। 

मस्जिद में दिया गया यह भाषण भारत के सभी मुसलमानो के  बीच  आग की तरह फ़ैल गया।  भारत का प्रत्येक मुस्लमान तो जैसे हिन्दुओ के खून से नहाने को हरदम तैयार ही रहता था , इब्राहिम लोदी की हत्या के बाद कुछ पठान सरदार महाराणा सांगा के यहाँ शरण लिए हुए थे , इस्लाम की इस लड़ाई में तो वह भी कौम की तरफ , यानि बाबर की तरफ ही हो गए।  १५ मार्च १५२७ ईस्वी को खानवा के मैदान पर  हिन्दुओ तथा मुसलमानो के  बीच  खानवा का युद्ध शुरू हुआ।  महाराणा सांगा की सेना में , महमूद लोदी , राव गंगासिंह राठोड ( जोधपुर ) पृथ्वीराज कछवाहा ( आमेर ) भारमल ( ईडर  ) कुंवर कल्याणमल ( बीकानेर ) बिरमदेव मेड़तिया राठौड़  , रावल उदल सिंह , नरबर हाड़ा बूंदी , मेदिनीराय चंदेरी , रायमल  राठौड़  , रामदास सोनगरा  , वीरसिंह  देव , परमार गोकुलदास , चन्द्रमान चौहान मानिकचंद चौहान  आदि कई सामंत और शाशक महाराणा सांगा की और से  युद्ध  कर रहे थे , अंतिम बार पूरा राजपूताना  आपस में एक होकर कंधे से कन्धा मिलाकर युद्ध लड़ रहा था।  महाराणा सांगा और उनके सैनिक बाबर की सेना पर भूखे शेर की तरह टूट पड़े।  बाबर के पास तोपखाना था , जिसकी शक्ति के आगे तलवारो और भालो की शक्ति का कोई मोल नहीं था।  लकिन फिर भी राजपूतो ने हंस हंसकर तोप  के गोले अपनी छाती पर हंस हंस कर झेल लिए।

बाबर के पास तोपें थी  , फिर भी उसकी  सेना में  हाय  तोबा मची ही रही।  राणा सांगा के सैनिक तोप  पर कब्जा करने बिलकुल निकट  पहुँच भी चुके थे की एक तीर राणा सांगा की छाती पर  आकर लगा , राणा  सांगा अपने होदे से निचे आ गिरे , सेना में राणा सांगा के मूर्छित होने की खबर जब पहुंची , तो पूरी सेना में ही निराशा छा  गयी।  झाला अज्जा  ने राणा सांगा के वस्त्र पहनकर स्तिथि को संभालने का प्रयास किया , लेकिन तब तक तो बहुत  देर हो चुकी थी। 

इस हार के बाद महाराणा सांगा दुबारा उठ नहीं पाएं , इस हार के एक वर्ष पश्चात मात्र ४६ वर्ष की आयु में ३० जनवरी १५२८ को  महाराणा सांगा ने अंतिम साँसे ली।🙏

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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻‍♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
👉🏻▄︻̷̿┻̿═━,’,’• Ⓡ︎ⓐⓝⓐ Ⓖ︎ 👈🏻