शनिवार, 30 जून 2018

महाराणा सांगा


मंझला कद , मोटा चेहरा , गेहुआ रंग और बड़ी बड़ी आँखो वाले महाराणा सांगा भारत की धरती के  वे वीर पुत्र है , जिन्होंने मध्यकाल के उस खुनी दौर में अपने सीने पर तोप  के गोले ले लिए थे। 

महाराणा  २४ मई १५०९ ईस्वी को महाराणा संग्राम सिंह मेवाड़ के  सिंहासन  पर विराजमान हुए।  इन्हें ही इतिहास में महाराणा सांगा के नाम से जाना जाता है।  महाराणा सांगा के काल में मेवाड़ की सैनिक शक्ति अपने चरम पर पहुँच गयी थी , उनकी सेना में एक लाख सैनिक तथा ५०० हाथी थे।  ७ बड़े राजा , ९ राव और १०८ रावत महाराणा सांगा के अधीन थे। 

बाबर का सामना करने से पूर्व १०८ बड़ी लड़ाईया उन्होंने मालवा के सुल्तानों से लड़ी थी , और सभी जीती।  राणा सांगा के आगे कोई दूसरा राजा कान हिलाता ना था।  जोधपुर तथा आमेर के राजा महाराणा सांगा का पूरा सम्मान करते थे , ग्वालियर , अजमेर , सीकरी  , रायसेन , कालपी , चंदेरी , बूंदी , गगनौर , रामपुरा तथा आबू जैसे शक्तिशाली प्रदेश उनके सामंत हुआ करते थे। 

महाराणा सांगा जब  चितोड़ के शाशक बने थे , उस समय उनका राज्य चारो और से शत्रुओ से ही घिरा पड़ा था , गुजरात  नवाब भी इस्लामी नशे में चूर थे , तो यहाँ मालवा के क्रूर सुल्तान भी , वहीँ दिल्ली और समय लोदी सल्तनत  राज कर रही थी , इसने भी हिन्दुओ पर कम अत्याचार नहीं किये थे।  हिन्दू मंदिरो को तोड़ने में, हिन्दु स्त्रियों और बच्चो का अपहरण करने में , बलात हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन करवाने में एक भी मुस्लमान सुल्तान पीछे नहीं रहा था , भले ही उसका नाम जो भी रहे हो।  दिल्ली के लोदी ने , मालवा के नसीरुद्दीन शाह ने , और गुजरात के महमूद शाह ने एक साथ महाराणा सांगा पर हमला बोला था।, किन्तु उसके बाद भी यह तीन राजाओ को सयुक्त सेना राणा  सांगा की तलवारो का सामना नहीं कर सकी।  आज कुछ मुर्ख बिना सिर पाँव के बात करते है की महाराणा सांगा ने बाबर को  बुलाया था , अब जिस महाराणा सांगा ने ३ -३  मुस्लमान सुल्तानों को एक साथ परास्त किया हो , उन्हें क्या आवश्कयता थी , किसी विदेशी को भारत बुलाने की ?

महाराणा सांगा जितने दिन भी जीवित रहे , उन्हें सदैव युद्धरत ही रहना पड़ा।  एक हाथ , एक आँख , पाँव करते करते उनके कई अंग क्षत  विकृत हो गए थे ,  अपने सारे अंगो के यह हाल देख एक बार महाराणा  सांगा ने अपने दरबारियों से यह आग्रह किया था  की " जिस तरह टूटी हुई मूर्ति प्रतिष्ठा  में पूजने योग्य नहीं रहती , उसी प्रकार मेरी आँख , भुजा , पाँव  सभी अंग निकम्मे हो चुके है , इसलिए में सिहासन पर ना बैठकर जमींन पर बैठूंगा। आप सभी लोग  आपस में विचार कर  किसी योग्य व्यक्ति को सिंहासन  पर बिठा देवे। 

इस विनती भाव से दरबारियों के मन में महाराणा सांगा को लेकर सम्मान का भाव दुगना बढ़ गया था।  सभी एक स्वर में बोले , " रणभूमि में अंगभंग होने पर योद्धा का गौरव बढ़ता है , ना की घटता है।  इस तरह महाराणा कुम्भा की योग्यता पर मेवाड़ के प्रत्येक व्यक्ति को अटूट विश्वास था।  तीन मुस्लमान सुल्तानों को एक साथ परास्त करने वाले  ने उसके बाद मुजफ्फर में ईडर  अहमदनगर एवं बिसलनगर के सुल्तानों को हरा  वहां की गद्दी पर अपने एक सामंत रायमल्ल  राठोड को बैठा दिया।  ईडर  का सुल्तान निजामुलहक़ महाराणा सांगा से भयभीत होकर अहमदनगर के किले में रहने  लगा था , किन्तु महाराणा सांगा  ने उसे वहां भी नहीं छोड़ा। 

निजामुलहक़ ने ईडर  के आस पास इन दिनों खूब आतंक फैलाया था , गौ- हत्या तथा मंदिर तोड़ने वाले बड़े बड़े गाजियों में निजामुलहक़ का नाम भी आने लगा था।  पहली बार में यह महाराणा सांगा के  हाथ से बचकर अहमदनगर के किले में आ छुपा था , लेकिन निजामुलहक़ की मौत उसके साथ साथ अहमदनगर तक ही आ गयी। अहमदनगर का दुर्गद्वार बहुत मजबूत  था , इसे तोड़ने के लिए महाराणा सांगा के सरदार कानसिंह चौहान ने बड़ी बहादुरी दिखाई थी।  किले के किवाड़ पर तीक्षण भाले लगे थे , जिनके कारण हाथी उन किलो पर प्रहार नहीं  कर पा रहा था , कान्हसिंह चौहान उस दुर्गदार से चिपककर खड़े  हो गए , और महावत को आदेश दिया की "  हाथी को कहो की वो मेरे देह पर वार करें " महावत ने वैसा ही किया , तीक्षण भालो से , और उसपर होते  हाथी के प्रहारों से कान्हसिंह चौहान का शरीर छिन्न छिन्न हो गया , लेकिन उनके इस बलिदान के बाद  राजपूत सेनिको का  जोश दुगना हो गया , जय एकलिंग जी , और जय बाणमाता की सिंह गर्जना के साथ , साथ में जय भवानी का उद्घोष करते राजपूत अहमदनगर के इस दुर्ग में घुस गए , और वहां रह रहे प्रत्येक मल्लेछ को काट डाला। 

१३० वर्ष से मालवा में चले आ रहे इस्लामी तंत्र को भी महाराणा सांगा ने उखाड़ फ़ेंका  था।  गुजरात में जफर खान ने हिन्दुओ की दुर्गति कर रखी थी ,  उस समय महाराणा सांगा ही वह वीर  थे जिन्होंने मुसलमानी आतंक  से गुजरात तथा मालवा के हिन्दुओ को मुक्ति दिलवाई थी। 

महाराणा सांगा के लिए किसी कवि ने पंक्तियां लिखी थी, बाद में उसे सुल्तान फ़िल्म में चुरा भी लिया था ।

" खून में तेरे मिट्टी
मिट्टी में तेरा खून
चारो तरफ है उसके शत्रु
बीच मे तेरा जुनून "

जय संग्राम, जय संग्राम

महाराणा सांगा जैसे वीर के बारे में इतना पढ़कर आपको भी इतना अनुमान  तो हो गया होगा , की इब्राहिम लोदी जैसे चूहे को  हराने  के लिए महाराणा सांगा बाबर को आमंत्रण देंगे , यह बात केवल बिना सर पाँव की बकवास है।  बाबर तो तैमूर लंग की तरह भारत को लूटने आया  था , जो बाद में यही रह भी गया। 
बयाना के युद्ध में खुद महाराणा सांगा ने बाबर को परास्त किया था , उसके बाद भी  यह सोचना की महाराणा सांगा मुगलो को भारत में आमंत्रित करेंगे , ऊपर वह भी लोदी जैसे चूहे को परास्त  करने के लिए। .. तो यह केवल मानसिक दिवालियापन है। 

ना तो इब्राहिम लोदी की औकात  थी , की वह महाराणा सांगा से लड़ पाए , और ना बाबर की औकात  थी , की वह महाराणा सांगा के प्रहारों को झेल पाएं।  बाबर ने इब्राहिम लोदी को परास्त कर  भारत के सभी मुसलमानो को अपने पक्ष में कर लिया था।,  लेकिन उसके बाद भी बाबर भारत का सम्राट तभी बन सकता था  , जब वह महाराणा सांगा को परास्त करता। 

बड़े  से बड़ा  सुरमा और छोटे से छोटा सुरमा , हर कोई राणा सांगा के आगे नतमस्तक था , अखंड भारत का सम्राट बनने से राणा सांगा मात्र एक कदम की दुरी पर  ही थे।    वहीँ दूसरी और बाबर भी सारे मुस्लिम गुंडों , बदमाशों और डाकुओ की फौज इक्क्ठी कर सीकरी  की और बढ़ा।  बयाना के पास बाबर और महाराणा सांगा की सेना भी भयंकर युद्ध हुआ था , वीर राजपूतो की तीर और  तलवार के आगे तोप  के गोले भी ध्वस्त हुए थे , बयाना से दुर्ग से बाबर और उसके सैनिक जैसे तैसे अपनी जान बचाकर वापस भाग पाएं। 

अपनी हार से हताश बाबर ने जुम्मे की नमाज़ के दिन बड़ा भड़काऊ भाषण दिया।  उस भाषण के बोल कुछ इस तरह के थे

" यह युद्ध बाबर अपने लिए नहीं कर रहा , वह यह युद्ध इस्लाम के लिए कर रहा है।  जिहाद ही मुसलमानो के जीवन का अंतिम लक्ष्य होता है , अगर हम जिहाद करते हुए  गजवा ए  हिन्द की इस लड़ाई में अगर शहीद हुए , तो ऊपर शराब की नदी और हो का सुख भोगेंगे , और अगर यह लड़ाई जीत  गए , तो गाजी कहलाये जाएंगे। 

मस्जिद में दिया गया यह भाषण भारत के सभी मुसलमानो के  बीच  आग की तरह फ़ैल गया।  भारत का प्रत्येक मुस्लमान तो जैसे हिन्दुओ के खून से नहाने को हरदम तैयार ही रहता था , इब्राहिम लोदी की हत्या के बाद कुछ पठान सरदार महाराणा सांगा के यहाँ शरण लिए हुए थे , इस्लाम की इस लड़ाई में तो वह भी कौम की तरफ , यानि बाबर की तरफ ही हो गए।  १५ मार्च १५२७ ईस्वी को खानवा के मैदान पर  हिन्दुओ तथा मुसलमानो के  बीच  खानवा का युद्ध शुरू हुआ।  महाराणा सांगा की सेना में , महमूद लोदी , राव गंगासिंह राठोड ( जोधपुर ) पृथ्वीराज कछवाहा ( आमेर ) भारमल ( ईडर  ) कुंवर कल्याणमल ( बीकानेर ) बिरमदेव मेड़तिया राठौड़  , रावल उदल सिंह , नरबर हाड़ा बूंदी , मेदिनीराय चंदेरी , रायमल  राठौड़  , रामदास सोनगरा  , वीरसिंह  देव , परमार गोकुलदास , चन्द्रमान चौहान मानिकचंद चौहान  आदि कई सामंत और शाशक महाराणा सांगा की और से  युद्ध  कर रहे थे , अंतिम बार पूरा राजपूताना  आपस में एक होकर कंधे से कन्धा मिलाकर युद्ध लड़ रहा था।  महाराणा सांगा और उनके सैनिक बाबर की सेना पर भूखे शेर की तरह टूट पड़े।  बाबर के पास तोपखाना था , जिसकी शक्ति के आगे तलवारो और भालो की शक्ति का कोई मोल नहीं था।  लकिन फिर भी राजपूतो ने हंस हंसकर तोप  के गोले अपनी छाती पर हंस हंस कर झेल लिए।

बाबर के पास तोपें थी  , फिर भी उसकी  सेना में  हाय  तोबा मची ही रही।  राणा सांगा के सैनिक तोप  पर कब्जा करने बिलकुल निकट  पहुँच भी चुके थे की एक तीर राणा सांगा की छाती पर  आकर लगा , राणा  सांगा अपने होदे से निचे आ गिरे , सेना में राणा सांगा के मूर्छित होने की खबर जब पहुंची , तो पूरी सेना में ही निराशा छा  गयी।  झाला अज्जा  ने राणा सांगा के वस्त्र पहनकर स्तिथि को संभालने का प्रयास किया , लेकिन तब तक तो बहुत  देर हो चुकी थी। 

इस हार के बाद महाराणा सांगा दुबारा उठ नहीं पाएं , इस हार के एक वर्ष पश्चात मात्र ४६ वर्ष की आयु में ३० जनवरी १५२८ को  महाराणा सांगा ने अंतिम साँसे ली।🙏

शनिवार, 23 जून 2018

🚩✊💪क्षत्रियत्व👊🚶🚩


(1) राजपूतो में पहले सिर के बाल बड़े रखे जाते थे जो गर्दन के नीचे तक होते थे युद्ध में जाते समय बालो के बीच में गर्दन वाली जगह पर लोहे की जाली डाली जाती थी और वहा विषेस प्रकार का चिकना प्रदार्थ लगाया जाता था (कुछ लोग आकड़े का दूध भी लगते थे ) इससे तलवार से गर्दन पर होने वाले वार से बचा जा सके।

(2) युद्ध में धोखे का संदेह होने पर घुसवार अपने घोड़ो से उतर कर जमीनी युद्ध करते थे।

(3) मध्य काल में देवी और देव पूजा होती थी जंग में जाने से पूर्व राजपूत अपनी कुलदेवियो की पूजा अर्चना करते थे जो ही शक्ति का प्रतिक है मेवाड़ के सिसोदिया एकलिंग जी की पूजा करते।

(4) हरावल - राजपूतो की सेना में युद्ध का नेतृत्व करने वाली टुकड़ी को हरावल सेना कहा जाता था जो सबसे आगे रहती थी कई बार इस सम्माननीय स्थान को पाने के लिए राजपूत आपस में ही लड़ बैठते थे इस संदर्भ में उन्टाला दुर्ग वाला चुण्डावत शक्तावत किस्सा प्रसिद्ध है।

(5) किसी बड़े जंग में जाते समय या नय प्रदेश की लालसा में जाते समय राजपूत अपने राज्य का ढोल , झंडा ,राज चिन्ह और कुलदेवी की मूर्ति साथ ले जाते थे।

(6) युद्ध में जाते से पूर्व "चारण/गढ़वी" कवि वीररस सुना कर राजपूतो में जोश पैदा करते और अपना कर्तव्य याद दिलाते कुछ युद्ध जो लम्बे चलते वह चारण भी साथ जाते थे चारण गढ़वी और भाट एक प्रकार के दूत होते थे जो राजपूत राजा के दरबार में बिना किसी रोक टोक आ जा सकते थे चाहे वो दुश्मन राजपूत राजा ही क्यों ना हो।

(7) राजपूताने के सभी बड़े किले के बनने से पूर्व एक स्वेछिक नर बलि होती थी कुम्भलगढ़ के किले पर एक सिद्ध साधु ने खुद की स्वेछिक बलि दी थी।

(8) राजपूताने के ज्यादातर किलो में गुप्त रास्ते बने हुए है आजादी के बाद और सन 1971 के बाद सभी गुप्त रस्ते बंद कर दिए गए है।

(9) शाका - महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष जौहर कि राख का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ।

(10) जौहर : युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु अपने सतीत्व के रक्षा के लिए राजपूतनिया अपने शादी के जोड़े वाले वस्त्र को पहन कर अपने पति के पाँव छू कर अंतिम विदा लेती है महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ |सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ और जैसलमेर के दुर्ग में हुए।

(11) गर्भवती महिला को जौहर नहीं करवाया जाता था अत: उनको किले पर मौजूद अन्य बच्चों के साथ सुरंगों के रास्ते किसी गुप्त स्थान या फिर किसी दूसरे राज्य में भेज दिया जाता था।
राजपुताने में सबसे ज्यादा जौहर मेवाड़ के इतिहास में दर्ज हैं और इतिहास में लगभग सभी जौहर इस्लामिक आक्रमणों के दौरान ही हुए हैं जिसमें अकबर और ओरंगजेब के दौरान सबसे ज्यादा हुए हैं ।

(12) अंतिम जौहर - पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम जौहर अठारवी सदी में भरतपुर के जाट सूरजमल ने मुगल सेनापति के साथ मिलकर कोल और मेवात में घासेड़ा के राघव राजपूत राजा बहादुर सिंह पर हमला किया था। महाराजा बहादुर सिंह ने अपने से बहुत बड़ी सेना से जबर्दस्त मुकाबला करते हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। पर दुश्मन की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद सभी राजपूतानियो ने बारुद के ढ़ेर में आग लगाकर जौहर कर प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके परिवारजनों ने शाका किया। इस घटना का जिक्र आप "गुड़गांव जिले के Gazetteer" में पढ़ सकते है।

(13) अगर आप के पिता जी/दादोसा बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर इत्यादि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी !!

(14) आज भी कही घरो में तलवार को मयान से निकालने नहीं देते, क्योकि तलवार को परंपरा है की अगर वो मयान से बाहर आई तो या तो उनके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार मयान से निकलते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से मयान में डालते है !!

(15)मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे है

(16)पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नांगारा निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे, हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से इनायत होते थे..!!

(17) पहले के वक़्त वक़्त राजपूत समाज में अमल का उपयोग इस लिए ज्यादा होता था क्योकि अमल खाने से खून मोटा हो जाता था, जिस से लड़ाई की समय मेंहदी घाव लगने पर खून कार रिसाव नहीं के बराबर होता था, और मल-मूत्र रुक जाता था जयमल मेड़तिया ने अकबर से लड़ाई के पूर्व सभी राजपूत सिरदारो को अमल पान करवाया था।

(18) पहले कोई भी राजपूत बिना पगड़ी के घोड़े पर नही बैठते थे।

(19) सौराष्ट्र (काठियावाड़) और कच्छ में आज भी गिरासदार राजपूत घराने में अगर बेटे की शादी हो तो बारात नहीं जाती, उसकी जगह लड़के वालों की तरफ से घर के वडील (फुवासा, बनेविसा, मामासा) एक तलवार के साथ 3 या 5 की संख्या में लड़की के घर जाते हे जिसे "वेळ” या ‘खांडू" कहते है, लड़की वाले उस तलवार के साथ विधि करके बेटी को विदा करते है,मंगल फेरे लड़के के घर लिए जाते है।

(20) राजपूत परम्परा के मुताबिक पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते।

(21) पहले सारे बड़े ताजमी ठिकानो में ठिकानेदारों को विवाह से पूर्व स्टेट महाराजा से अनुमति लेनी पढ़ती थी।

(22) हर राज दरबार के, ठिकाने के, यहाँ गोत्र उप्प गोत्र के इष्ट देवता होते थे, जो की ज्यादतर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूप में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार दुसरो को पुकारते है करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की , जय चारभुजाजी की।

(23) अमल गोलना, चिलम, हुक्का यहाँ दारू की मनवार, मकसद होता था, भाई,बंधू, भाईपे,रिश्तेदार को एक जाजम पर लाना !!मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी मनवार के हाथ लगाके या हाथ में ले कर सर पर लगाके वापस दे दे, पीना जरुरी नहीं है , पर ना -नुकुर कर उसका अनादर न करे।

(24) जब सिर पर साफा बंधा होता है तोह तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता।

(25) दुल्हे की बन्दोली में घोडा या हाथी हो सकता है पर तोरण पर नहीं, क्योकि घोडा भी नर है, और वो भी आप के साथ तोरण लगा रहा होता है, इस्सलिये हमेशा तोरण पर घोड़ी या हथनी होती है !!

(26) एक ठिकाने का एक ही ठाकुर,राव,रावत हो सकता था, जो गद्दी पर बैठा है, बाकि के भाई,काका ये टाइटल तभी लगा सकते थे जब की उनको ठिकाने की तरफ से अलग से जागीरी मिली हो,और वो उस के जागीरदार हो, अगर वो उसी ठिकाने /राज में रह रहे हो, तो उनके लिए "महाराज" का टाइटल होता था!

(27) आज भी त्योहारों पर ढोल बजने के नट,नगरसी या ढोली आते है उन्हें बैठने के लिए उचित आसान (जाजम) दिए जाते है उनके ढोल में देवी का वास होता है और ऐसे आदर के लिए किया जाता है।

(28) राजपूत जनाना में राजपूत महिलाये नाच गान के बाद ढोली जी और ढोलन की तरफ जुक कर प्रणाम करती है।

(29) नजराने के भी अलग अलग नियम थे, अगर आप छोटे ठिकानेदार हो तो महाराजा साब या महाराणा साब आप के हाथ से उठा लेते थे, पर अगर आप उमराव या सिरायती ठिकानेदार हो तो महाराजा साब या महाराणा साब आप का हाथ अपने हाथ पर उल्टा करके, अपना हाथ नीचे रख कर नजराना लेते थे !!

(30) कोर्ट में अगर आप छोटे ठिकानेदार हो तो महाराजा साब या महाराणा साब आप के आने पर खड़े नहीं होते थे, पर अगर आप उमराव या सिरायती ठिकानेदार हो तो महाराजा साब या महाराणा साब आप के आने और आप के जाने पर दोनों वक्त उनको खड़ा होना पड़ता है।


(31) सिर्फ राठोरो के पास "कमध्वज" का टाइटल है, इसका मतलब है, सर काटने के बाद भी लड़ने वाला !

(32) राजपूतो में ठाकुर पदवी के इस्तेमाल के बारे में में कुछ बाते :यदि आपके दादोसा हुकम बिराज रहे है तो वो ही ठाकुर पदवी का प्रयोग कर सकते है, आपके दाता हुकम कुंवर का और आप भंवर का प्रयोग कर्रेंगे और आपके बना (चौथी पीढ़ी) के लिए टंवर का प्रयोग होगा।

(33) एक ठिकाने में तीन से चार पाकसाला (रसोई) हो सकती थी, ठाकुरसाब, ठुकरानी के लिए विशेष पाकसाला होती थी, एक पाकसाला मरदाना में होती थी, जिस में मास आदि बनते थे, जनाना में सात्विक भोजन की पाकसाला होती थी, विद्वाओ के लिए अलग भोजन बनता था, ठिकाने के कर्मचारी नौकरों के लिए अलग से पाकशाला होती थी, एक पाकशाला मेहमानों के लिए होती थी।

(34) राजपूतो में किसी की मर्त्यु में बाद "शोक भंगाई" जिसमे राजपूत दूसरे राजपूतो को दारू या अफीम की मनवार कर शोक तुड़वाते है।

उपरोक्त अधिकांश परम्पराएं अधिकतर राजस्थान गुजरात क्षेत्र की हैं देश भर के क्षत्रिय राजपूतों की परम्पराएं अलग हो सकती हैं।

साभार......
✍हमीर सिंह सिसोदिया🚩🚩
⛳⛳जय राजपूताना।⛳⛳

शुक्रवार, 22 जून 2018

आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण तलवार⚔ के बारे में बताता हूँ....

जय मां भवानी ।
जय राजपूताना


आज तुम्हे चिंघाड़ की याद कराता हूँ…
आज तुम्हे राजपूतो के सबसे प्यारे आभूषण
तलवार के बारे में बताता हूँ....
ये तो युगों सेस्वामीभक्ति करती रही…
अपने होठो से दुश्मन का रक्तपात करती रही…
अरबो को थर्राया इसने,पछायो को तड़पाया भी
गन्दी राजनीती से लड़ते हुए भी हमारा सम्मान करती रही…
ये ही तो राजपूतो का असली अलंकार है…
इसी से तो शुरू राजपूतो का संसार है…
इसके हाथ में आते ही शुरू संहार है…
इसके हाथ में आते ही दुश्मन के सारे शस्त्र बेकार है…
जीवो के बूढा होने पर उसे तो नहीं छोड़ते…
तो तलवार को क्यों छोड़ दिया…
बूढे जीवो को जब कृतघ्नता के साथ सम्मान से रखते हो…
तो मेरे भाई तलवार ने कौन सा तुम्हारा अपमान किया…
इसी ने हमेशा है ताज दिलाये…
इसी ने दिलाया अनाज भी…
जब भी आर्यावृत पर गलत नज़र पड़ी…
तब अपने रोद्र से इसने दिलाया हमें नाज़ भी… इसी ने दुश्मन के कंठ में घुसकर उसकी आह को भी रोक दिया…
जो आखिरी बूंद बची थी रक्त की…
उसे भी अपने होठो से सोख लिया…
मैं तो सच्चा राजपूत हूँ…
इतनी आसानी से कैसे अपनी तलवार छोड़ दूँ…
मैं तो क्षत्राणी का पूत हूँ…
मैं कैसे इस पहले प्यार से मुह मोड़ लू।

मद जिसका था प्रचंड, सारा दूर कर दिया।


मद जिसका था प्रचंड, सारा दूर कर दिया
इक़बाल था बुलंद, उसे धूल कर दिया
राणा प्रताप एकमात्र, ऐसे वीर थे
अकबर का सब घमंड, जिनने चूर कर दिया।

मुगलों के यूँ ख़िलाफ़, कोई और ना हुआ
जिसका हो यूँ प्रताप, कोई और ना हुआ
बाइस हज़ार लड़ गये, अस्सी हजार से
राणा जी आप जैसा, कोई और ना हुआ।

ये हिन्द तुमको, परम् वीर याद करता है
कहाँ से आयेंगे, राणा प्रताप कहता है
यहाँ तो आज सियासत में, मोहरा बन के
वतन का नौजवान ही, फ़साद करता है।

राजा महान ऐसा, आज तक नहीं हुआ
योद्धा महान ऐसा, आज तक नहीं हुआ
बलवान बुद्धिमान वीर, ढेर हुये हैं
राणा महान जैसा, आज तक नहीं हुआ।

साहस से भरा इस तरह, बलवान ना मिला
दृढ़ता का कोई इस तरह, प्रतिमान ना मिला
इतिहास रंगा है कई, वीरों के नाम से
राणा प्रताप जैसा कोई, नाम ना मिला

ये हिंद झूम उठे गुल चमन में खिल जायें
कलेजे दुश्मनों के नाम सुन के हिल जायें
कोई औकात नहीं चीन पाक जैसों की
वतन को फिर से जो राणा प्रताप मिल जायें।

मिला था गर्व ऊँची शान, जिससे राजपूतों को
कराया था हलाहल पान, मुगलों के कपूतों को
लहू से लाल कर दी घाटियाँ, बन मौत नाचे थे
नमन करता है हिंदुस्तान, इन सच्चे सपूतों को।

भालों से था प्रेम बहुत, ओ तलवारों से यारी थी
मुठ्ठी भर सेना थी लेकिन, नभ जैसी मुख्तारी थी
चेतक पर चढ़ कर जब आये, वीर प्रतापी राणा जी
काँप उठी अकबर की सेना, काँपी हल्दीघाटी थी।

नाम गगन पर लिखने वाले, वो प्रताप थे मतवाले
स्वाभिमान पर मिटने वाले, वो प्रताप थे मतवाले
मातृ भूमि की आन की ख़ातिर, जान हथेली रखते थे
अकबर जिससे हार गया था, वो प्रताप थे मतवाले।

यदि हमारे पूर्वज युद्ध हारते ही रहे तो हम 1400 साल से जिंदा कैसे हैं?

यदि हमारे पूर्वज युद्ध हारते ही रहे तो हम 1400 साल से जिंदा कैसे हैं...
हम 1400 सालों से हिन्दू कैसे बने हुए हैं...
हमारे पूर्वजों की भूमि की चौहद्दी प्रायः वैसी ही क्यूँ है... 
और उसी चौहद्दी को पुनः हासिल करने को हम प्रतिबद्ध क्यूँ है—

आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि राजपूतों ने लड़ाई तो की, लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे, जो कभी अलाउद्दीन से हारे, कभी बाबर से हारे, कभी अकबर से, कभी औरंगज़ेब से...

क्या वास्तव में ऐसा ही है ?

यहां तक कि समाज में भी ऐसे कईं राजपूत हैं, जो महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान आदि योद्धाओं को महान तो कहते हैं, लेकिन उनके मन में ये हारे हुए योद्धा ही हैं

महाराणा प्रताप के बारे में ऐसी पंक्तियाँ गर्व के साथ सुनाई जाती हैं :-

"जीत हार की बात न करिए, संघर्षों पर ध्यान करो"

"कुछ लोग जीतकर भी हार जाते हैं, कुछ हारकर भी जीत जाते हैं"

असल बात ये है कि हमें वही इतिहास पढ़ाया जाता है, जिनमें हम हारे हैं

* मेवाड़ के राणा सांगा ने 100 से अधिक युद्ध लड़े, जिनमें मात्र एक युद्ध में पराजित हुए और आज उसी एक युद्ध के बारे में दुनिया जानती है, उसी युद्ध से राणा सांगा का इतिहास शुरु किया जाता है और उसी पर ख़त्म

राणा सांगा द्वारा लड़े गए खंडार, अहमदनगर, बाड़ी, गागरोन, बयाना, ईडर, खातौली जैसे युद्धों की बात आती है तो शायद हम बता नहीं पाएंगे और अगर बता भी पाए तो उतना नहीं जितना खानवा के बारे में बता सकते हैं

भले ही खातौली के युद्ध में राणा सांगा अपना एक हाथ व एक पैर गंवाकर दिल्ली के इब्राहिम लोदी को दिल्ली तक खदेड़ दे, तो वो मायने नहीं रखता, बयाना के युद्ध में बाबर को भागना पड़ा हो तब भी वह गौण है

मायने रखता है तो खानवा का युद्ध जिसमें मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बात आती है तो, तराईन के दूसरे युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया

तराईन का युद्ध तो पृथ्वीराज चौहान द्वारा लडा गया आखिरी युद्ध था, उससे पहले उनके द्वारा लड़े गए युद्धों के बारे में कितना जानते हैं हम ?

* इसी तरह महाराणा प्रताप का ज़िक्र आता है तो हल्दीघाटी नाम सबसे पहले सुनाई देता है

हालांकि इस युद्ध के परिणाम शुरु से ही विवादास्पद रहे, कभी अनिर्णित माना गया, कभी अकबर को विजेता माना तो हाल ही में महाराणा को विजेता माना

बहरहाल, महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा, चावण्ड, मोही, मदारिया, कुम्भलगढ़, ईडर, मांडल, दिवेर जैसे कुल 21 बड़े युद्ध जीते व 300 से अधिक मुगल छावनियों को ध्वस्त किया

महाराणा प्रताप के समय मेवाड़ में लगभग 50 दुर्ग थे, जिनमें से तकरीबन सभी पर मुगलों का अधिकार हो चुका था व 26 दुर्गों के नाम बदलकर मुस्लिम नाम रखे गए, जैसे उदयपुर बना मुहम्मदाबाद, चित्तौड़गढ़ बना अकबराबाद

फिर कैसे आज उदयपुर को हम उदयपुर के नाम से ही जानते हैं ?... ये हमें कोई नहीं बताता

असल में इन 50 में से 2 दुर्ग छोड़कर शेष सभी पर महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त की थी व लगभग सम्पूर्ण मेवाड़ पर दोबारा अधिकार किया था

दिवेर जैसे युद्ध में भले ही महाराणा के पुत्र अमरसिंह ने अकबर के काका सुल्तान खां को भाले के प्रहार से कवच समेत ही क्यों न भेद दिया हो, लेकिन हम तो सिर्फ हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास पढ़ेंगे, बाकी युद्ध तो सब गौण हैं इसके आगे!!!!

* महाराणा अमरसिंह ने मुगल बादशाह जहांगीर से 17 बड़े युद्ध लड़े व 100 से अधिक मुगल चौकियां ध्वस्त कीं, लेकिन हमें सिर्फ ये पढ़ाया जाता है कि 1615 ई. में महाराणा अमरसिंह ने मुगलों से संधि की | ये कोई नहीं बताएगा कि 1597 ई. से 1615 ई. के बीच क्या क्या हुआ |

* महाराणा कुम्भा ने 32 दुर्ग बनवाए, कई ग्रंथ लिखे, विजय स्तंभ बनवाया, ये हम जानते हैं, पर क्या आप उनके द्वारा लड़े गए गिनती के 4-5 युद्धों के नाम भी बता सकते हैं ?

महाराणा कुम्भा ने आबू, मांडलगढ़, खटकड़, जहांजपुर, गागरोन, मांडू, नराणा, मलारणा, अजमेर, मोडालगढ़, खाटू, जांगल प्रदेश, कांसली, नारदीयनगर, हमीरपुर, शोन्यानगरी, वायसपुर, धान्यनगर, सिंहपुर, बसन्तगढ़, वासा, पिण्डवाड़ा, शाकम्भरी, सांभर, चाटसू, खंडेला, आमेर, सीहारे, जोगिनीपुर, विशाल नगर, जानागढ़, हमीरनगर, कोटड़ा, मल्लारगढ़, रणथम्भौर, डूंगरपुर, बूंदी, नागौर, हाड़ौती समेत 100 से अधिक युद्ध लड़े व अपने पूरे जीवनकाल में किसी भी युद्ध में पराजय का मुंह नहीं देखा।


*चित्तौड़गढ़ दुर्ग की बात आती है तो सिर्फ 3 युद्धों की चर्चा होती है :-
1) अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को पराजित किया
2) बहादुरशाह ने राणा विक्रमादित्य के समय चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीता
3) अकबर ने महाराणा उदयसिंह को पराजित कर दुर्ग पर अधिकार किया

क्या इन तीन युद्धों के अलावा चित्तौड़गढ़ पर कभी कोई हमले नहीं हुए ?

* इस तरह राजपूतों ने जो युद्ध हारे हैं, इतिहास में हमें वही पढ़ाया जाता है

बहुत से लोग हमें नसीहत देते हैं कि तुम राजपूतों के पूर्वजों ने सही रणनीति से काम नहीं लिया, घटिया हथियारों का इस्तेमाल किया इसीलिए हमेशा हारे हो

अब उन्हें किन शब्दों में समझाएं कि उन्हीं हथियारों से हमने अनगिनत युद्ध जीते हैं, मातृभूमि का लहू से अभिषेक किया है, सैंकड़ों वर्षों तक विदेशी शत्रुओं की आग उगलती तोपों का अपनी तलवारों से सामना किया है

साथ ही सभी भाइयों से निवेदन करूंगा कि आप अपने महापुरुषों के बारे में वास्तविक इतिहास पढिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां हमें वही समझे, जो वास्तव में हम थे।

एक कहानी "बेला और कल्याणी" की।

शेरनी थी भारत की बेटियां, बेला और कल्याणी ने गौरी के काजी को गज़नी में बुरी मौत मारा था।


क्या आप जानते है..? नराधम नरपिशाच जेहादी गोरी भारत से पृथ्वीराज चौहान की बेटी बेला और जयचंद की पौत्री कल्याणी को उठाकर गज़नी ले गया था।
दरअसल जब नराधम जेहादी गोरी हमारे हिंदुस्तान में जिहाद फैलाकर एवं लूट-खसोट कर जब वह अपने वतन गजनी गया तो वो अपने साथ बहुत सारी हिन्दू लड़कियों और महिलाओं के साथ-साथ बेला और कल्याणी को भी ले गया था!असल में बेला हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बेटी और कल्याणी जयचंद की पौत्री थी!ध्यान देने की बात है कि जहाँ पृथ्वीराज चौहान महान देशभक्त थे, वहीँ जयचंद ने देश के साथ गद्दारी की थी लेकिन , उसकी पौत्री कल्याणी एक महान राष्ट्रभक्त थी।
खैर जब वो जेहादी गोरी अपने गजनी पहुंचा तो उसके गुरु ने "काजी निजामुल्क" ने उसका भरपूर स्वागत किया और, उससे कहा कि आओ गौरी आओ हमें तुम पर नाज है कि तुमने हिन्दुस्तान पर फतह करके इस्लाम का नाम रोशन किया है!
कहो सोने की चिड़िया हिन्दुस्तान के कितने पर कतर कर लाए हो!
'इस पर जेहादी गोरी ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा कि 'काजी साहब! मैं हिन्दुस्तान से सत्तर करोड़ दिरहम मूल्य के सोने के सिक्के, पचास लाख चार सौ मन सोना और चांदी, इसके अतिरिक्त मूल्यवान आभूषणों, मोतियों, हीरा, पन्ना, जरीदार वस्त्र और ढाके की मल-मल की लूट-खसोट कर भारत से गजनी की सेवा में लाया हूं।
'काजी :'बहुत अच्छा! लेकिन वहां के लोगों को कुछ दीन-ईमान का पाठ पढ़ाया या नहीं?'

गोरी :'बहुत से लोग इस्लाम में दीक्षित हो गए हैं।'
काजी : 'और बंदियों का क्या किया?'

गोरी : 'बंदियों को गुलाम बनाकर गजनी लाया गया है और, अब तो गजनी में बंदियों की सार्वजनिक बिक्री की जा रही है।रौननाहर, इराक, खुरासान आदि देशों के व्यापारी गजनी से गुलामों को खरीदकर ले जा रहे हैं। एक-एक गुलाम दो-दो या तीन-तीन दिरहम में बिक रहा है।
'काजी : 'हिन्दुस्तान के मंदिरों का क्या किया?'

गोरी : 'मंदिरों को लूटकर 17000 हजार सोने और चांदी की मूर्तियां लायी गयी हैं, दो हजार से अधिक कीमती पत्थरों की मूर्तियां और शिवलिंग भी लाए गये हैं और बहुत से पूजा स्थलों को नेप्था और आग से जलाकर जमीदोज कर दिया गया है।
काजी..'ये तो तुमने बहुत ही रहमत का काम किया है!' फिर मंद-मंद मुस्कान के साथ बड़बड़ाया 'गोरे और काले धनी और निर्धन गुलाम बनने के प्रसंग में सभी भारतीय एक हो गये हैं। जो भारत में प्रतिष्ठित समझे जाते थे, आज वे गजनी में मामूली दुकानदारों के गुलाम बने हुए हैं।'

फिर थोड़ा रुककर कहा : 'लेकिन हमारे लिए कोई खास तोहफा लाए हो या नहीं?'

गोरी : 'लाया हूं ना काजी साहब!
'काजी :'क्या!'गोरी :'जन्नत की हूरों से भी सुंदर जयचंद की पौत्री कल्याणी और पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला।'

काजी :'तो फिर देर किस बात की है?
'गोरी :'बस आपके इशारे भर की।'

काजी :'माशा अल्लाह! आज ही खिला दो ना हमारे हरम में नये गुल।'

गोरी :'ईंशा अल्लाह!
'और तत्पश्चात्, काजी की इजाजत पाते ही शाहबुद्दीन गौरी ने कल्याणी और बेला को काजी के हरम में पहुंचा दिया। जहाँ कल्याणी और बेला की अदभुत सुंदरता को देखकर काजी अचम्भे में आ गया और, उसे लगा कि स्वर्ग से अप्सराएं आ गयी हैं। तथा, उस काजी ने उसने दोनों राजकुमारियों से विवाह का प्रस्ताव रखा तो बेला बोली-'काजी साहब! आपकी बेगमें बनना तो हमारी खुशकिस्मती होगी, लेकिन हमारी दो शर्तें हैं!'

काजी :'कहो..कहो क्या शर्तें हैं तुम्हारी!
तुम जैसी हूरों के लिए तो मैं कोई भी शर्त मानने के लिए तैयार हूं।

बेला : 'पहली शर्त से तो यह है कि शादी होने तक हमें अपवित्र न किया जाए क्या आपको मंजूर है?'

काजी : 'हमें मंजूर है! दूसरी शर्त का बखान करो।'

बेला : 'हमारे यहां प्रथा है कि लड़की के लिए लड़का और लड़के लिए लड़की के यहां से विवाह के कपड़े आते हैं।
अतः , दूल्हे का जोड़ा और जोड़े की रकम हम भारत भूमि से मंगवाना चाहती हैं।'

काजी :'मुझे तुम्हारी दोनों शर्तें मंजूर हैं।'


और फिर बेला और कल्याणी ने कविचंद के नाम एक रहस्यमयी खत लिखकर भारत भूमि से शादी का जोड़ा मंगवा लिया और, काजी के साथ उनके निकाह का दिन निश्चित हो गया साथ ही , रहमत झील के किनारे बनाये गए नए महल में विवाह की तैयारी शुरू हुई।

निकाह के दिन वो नराधम काजी कवि चंद द्वारा भेजे गये कपड़े पहनकर काजी साहब विवाह मंडप में आया और, कल्याणी और बेला ने भी काजी द्वारा दिये गये कपड़े पहन रखे थे।
इस निकाह के बारे में सबको इतनी उत्सुकता हो गई थी कि शादी को देखने के लिए बाहर जनता की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी।लेकिन तभी बेला ने काजी साहब से कहा-'हमारे होने वाले सरताज , हम कलमा और निकाह पढ़ने से पहले जनता को झरोखे से दर्शन देना चाहती हैं, क्योंकि विवाह से पहले जनता को दर्शन देने की हमारे यहां प्रथा है और ,फिर गजनी वालों को भी तो पता चले कि आप बुढ़ापे में जन्नत की सबसे सुंदर हूरों से शादी रचा रहे हैं।
और, शादी के बाद तो हमें जीवन भर बुरका पहनना ही है, तब हमारी सुंदरता का होना न के बराबर ही होगा क्योंकि नकाब में छिपी हुई सुंदरता भला तब किस काम की।
'हां..हां क्यों नहीं।'काजी ने उत्तर दिया और कल्याणी और बेला के साथ राजमहल के कंगूरे पर गया, लेकिन वहां पहुंचते-पहुंचते ही उस ""नराधम जेहादी"" काजी के दाहिने कंधे से आग की लपटें निकलने लगी, क्योंकि क्योंकि कविचंद ने बेला और कल्याणी का रहस्यमयी पत्र समझकर बड़े तीक्ष्ण विष में सने हुए कपड़े भेजे थे।
इस तरह वो ""नराधम जेहादी"" काजी विष की ज्वाला से पागलों की तरह इधर-उधर भागने लगा,तब बेला ने उससे कहा-'तुमने ही गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया था ना इसीलिए ,हमने तुझे मारने का षड्यंत्र रचकर अपने देश को लूटने का बदला ले लिया है। हम हिन्दू कुमारियां हैं और, किसी नराधम में इतनी साहस नहीं है कि वो जीते जी हमारे शरीर को हाथ भी लगा दे।
'कल्याणी ने कहा, 'नालायक! बहुत मजहबी बनते हो, और जेहाद का ढोल पीटने के नाम पर लोगों को लूटते हो और शांति से रहने वाले लोगों पर जुल्म ढाहते हो,

थू! धिक्कार है तुम पर।'इतना कहकर उन दोनों बालिकाओं ने महल की छत के बिल्कुल किनारे खड़ी होकर एक-दूसरी की छाती में विष बुझी कटार जोर से भोंक दी और उनके प्राणहीन देह उस उंची छत से नीचे लुढ़क गये।
वही दूसरी तरफ उस विष के प्रभाव से ""नराधम जेहादी"" काजी पागलों की तरह इधर-उधर भागता हुआ भी तड़प-तड़प कुत्ते की मौत मर गया।इस तरह भारत की इन दोनों बहादुर सनातनी बेटियों ने विदेशी धरती पराधीन रहते हुए भी बलिदान की जिस गाथा का निर्माण किया, वह सराहने योग्य है और, आज सारा भारत इन बेटियों के बलिदान को श्रद्धा के साथ याद करता है।
नमन है ऐसी हिन्दू वीरांगनाओं को!आज के परिदृश्य में जबकि लव जिहाद अपने चरम पर है अगर कुछेक सौ भी हमारी हिन्दू युवतियां..... उन लव जेहादियों के सम्मुख समर्पण करने की जगह बेला और कल्याणी सरीखे ही हिम्मत और साहस से काम लेते हुए उन जेहादियों को सबक सिखा दें!
आज की बेटियां बेला और कल्याणी जैसी नहीं बन रही है ये दुःख का विषय है, भारत की बेटियां तो शेरनियां थी।🙏

☝👉जिन लोगों को राजपूतों से घृणा है वह इस को अवश्य पढ़े।

क्षत्रिय राजपूत भाई अधिक से अधिक शेयर करे और कमेंट में जय राजपूताना अवश्य लिखें ।जय क्षात्र।
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जिन जिन लोंगों को क्षत्रिय राजपूतो से नफरत है वो.. जयपुर,जोधपुर,उदयपुर,जैसलमेर,बीकानेर,हरयाणा,जामनगर,उधमपुर आदि के साथ ही सैकड़ो शहरो के नाम बदल दे..

ध्यान वर्तमान भारत के सीमा वर्ती क्षेत्र और पूर्व रियासते.. जैसलमेर,बीकानेर,जोधपुर,जम्मू,कच्छ में राजपूत शाशन ना होता तो ये भी पाकिस्तान में होते और आज क्षत्रिय राजपूत विरोधी हिन्दू टोपी पहन कर कुरान पढ़ रहे होते ।

शायद इन क्षत्रिय राजपूतो ने गलती कर दी मुग़ल तुर्को से लड़ाई कर के अपनी संस्कृति को बनाये रखा..

हर्षवर्धन बैंस के बाद के सबसे महान राजपूत शासको की सूची।
1-बाप्पा रावल
2-नागभट प्रतिहार
3-मिहिरभोज प्रतिहार
4-अमोघवर्ष राष्ट्रकूट
6-इंद्र-3 राष्ट्रकूट
7-भोज परमार
8-विग्रहराज बीसलदेव
9-यशोवर्मन चन्देल
10-लक्ष्मीकरंण कलचुरी
11-पृथ्वीराज चौहान
12-गोविंदचंद्र गहरवार
13-भीमदेव सोलंकी
14-राणा कुम्भा
15-राव मालदेव
16-राणा सांगा
17- जाम रावल
18-महाराणा प्रताप
19-महाराणा राजसिंह
20-गुलाब सिंह डोगरा।
21-सुहेलदेव बैस
22-कुमारपाल तोमर
23-कैमास दाहिमा
24-आल्हा-उदल
25-वीरधवल बाघेला
26-हठी हमीर
27-जैता
28-कुंपा
29-जयमल राठौर मेड़तिया
30-फत्ता जी सिसोदिया
31-भानजी दल जाडेजा
32-दुर्गादास
33-विरमदेव सोनिगरा
34-कान्हडदेव सोनीगरा
35- राव सुरतन देवड़ा
34 कर्ण सिंह सेंगर
35-कुंवर सिंह
36-जोरावर सिंह
37-डूंगर सिंह भाटी
39-रामशाह तोमर
39-मानसिंह झाला
40-राव बीका
41-राव जोधा
42-कल्ला जी राठौड़
43-गोगा जी
44-डूंगर सिंह भाटी
45-राणा बेनीमाधव सिंह
46-जयपाल आनन्दपाल जंजुआ
47-दुल्ला भाटी
48-मोहन सिंह मुंढाड
49-धीरसेन पुंडीर
50-जयसिंह रावल पताई रावल
51-रावल खुमान
52-पज्जवन राय कछवाह
53-काका कान्ह
54-अखेराज सोनीगरा
55-जाम लाखो फुलानि
56-वीर हमीर जी गोहिल
57-जाम साताजी
58-राम शाह तंवर
59-वीर पाबूजी
60-गोगा जी
61-रामदेव जी तंवर
62-राव शेखा जी
63-राव दूदा जी मेड़ता
64-वीरमदेव मेड़ता
65-वचरा दादा
66-अमर सिंह राठौड़
67-सिद्धार्थ जय सिंह
68-अनंगपाल तोमर
आदि

1-कर्मावती
2-दुर्गावती
3-पद्मनी
4-हाड़ी राणी
5-किरण बाई
आदि

𺠠𺠊🔰ऐसे ही हजारो क्षत्रिय योद्धा जो हिंदुत्व और
भारतीय संस्कृति के लिए कुर्बान हो गए।

इजराइल की लडाई जितने वाले विर पुरुष रावणा राजपूत हाइफा हिरो लांसर मेजर श्री मान ठाकुर दलपत सिंह जी शेखावत जिन्होंने इजराइल की लडाई तलवारो से लडकर जितवाई केसे भुला पाओगे उन्हें जिनका इतिहास पुरा विश्व याद करता है।
💪वीर कुंवर सिंह,अमरसिंह,रामसिंह पठानिया,आऊवा ठाकुर कुशाल सिंह,राणा बेनीमाधव सिंह,चैनसिंह परमार,रामप्रसाद तोमर बिस्मिल,ठाकुर रोशन सिंह,महावीर सिंह राठौर जैसे महान क्षत्रिय क्रांतिकारी अंग्रेजो से लड़ते हुए शहीद हो गए।

🔰आजादी के बाद सबसे ज्यादा परमवीर चक्र क्षत्रिय राजपूतो ने जीते।
💪शैतान सिंह भाटी,जदुनाथ सिंह राठौड़,पीरु सिंह शेखावत,गुरुबचन सिंह सलारिया,संजय कुमार डोगरा जैसे परमवीरो का बलिदान क्या भुला जा सकता है????
🔰आज भी
⛳राजपूत रेजिमेंट,
🎋राजपूताना रायफल्स,
⛳डोगरा रेजिमेंट,
🎋गढ़वाल रेजिमेंट,
⛳कुमायूं रेजिमेंट,
🎋जम्मू कश्मीर रायफल्स के जवान सीमा पर दुश्मन का फन कुचलने और गोली खाने के लिए सबसे आगे होते हैं।

🔰देश के एकीकरण के लिए हमने अपनी सैकडो रियासते कुर्बान कर दी,सारी जमीदारी कुर्बान कर दी,अपने खजाने खाली कर दिए!!!!!
👉क्या इस त्याग को यूँ ही भुला दिया जाएगा???❓

💪 क्षत्रिय राजपूत मतलब क्षत्रियो राजपुत्रः
📖गीता से लेकर रामायण तक में वर्णित है यहाँ क्षत्रियो में
💪भगवान राम,
💪भगवान कृष्णा से लेकर..
💪 महात्मा बुद्ध भगवान..
💪 महावीर से लेकर सभी सभी तीर्थनकर
🔰साथ ही लोकदेवता कल्ला जी बाबा रामदेव गोगाजी कल्लाजी सहित सैकड़ो लोकदेवता,जाम्भा जी परमार(विश्नोई मत) हुएं ।

वही राजपुतनिया भी अपना धर्म निभा गयी

↘देश की पहली महिला शहिद एक राजपुतानी
↘अमेरिकी राष्ट्रपति को गॉर्ड और ओनर देने वाली एक राजपूतानी
↘26 जनवरी को एयरफोर्स टुकड़ी का नेतृत्व करने वाली एक राजपूतानी

ये खून है अभिमानी - सतीत्व की रक्षा
देश के कुछ किले जो अमर हो गए राजपुतनियो के जौहर और राजपूतो के शाका से
चित्तौड़ गढ़ ,जैसलमेर का किला,जालौर का किला, गगरोन का किला,रणथम्बोर का किला,सिवाना गढ़ ,ग्वालियर ,राइसिन का किला,तारागढ़ अजमेर आदि

🔘 जौहर : युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ |सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ के दुर्ग में हुए | शाका : महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ

🎯 शाका ""जौहर के बाद राजपूत पुरुष जौहर कि राख का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर पर बांध कर तब तक लड़के जब तक उन्हें वीरगति न मिले ये एक आतमघाती कदम होता। ....."""|

卐 जैसलमेर के जौहर में 24,000 राजपूतानियों ने इज्जत कि खातिर अल्लाउदीन खिलजी के हरम जाने की बजाय आग में कूद कर अपने सतीत्व के रक्षा कि ..

卐 1303 चित्तोड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तोड़ की महारानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 हजार राजपूत रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था |

卐 चित्तोड़ के दुर्ग में दूसरे जौहर चित्तोड़ की महारानी कर्मवती के नेतृत्व में 8,000 हजार राजपूत रमणियों ने 1535 AD में किया था |

卐 चित्तोड़ के दुर्ग में तीसरा जौहर अकबर से हुए युद्ध के समय 11,000 हजार राजपूत नारियो ने 1567 AD में किया था |

卐 ग्वालियर व राइसिन का जोहर ये जोहर तोमर सहिवाहन पुरबिया के वक़्त हुआ ये राणा सांगा के रिशतेदार थे और खानवा युद्ध में हर के बाद ये जोहर हुआ

卐 ये जोहर अजमेर में हुआ पृथ्वीराज चौहान कि शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी से ताराइन की दूसरी लड़ाई में हार के बाद हुआ इसमें रानी संयोगिता ने महल उपस्थित सभी महिलाओं के साथ जौहर किया ) जालोर का जौहर ,बारमेर का जोहर आदि

卐 अंतिम जौहर - पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम जौहर अठारवी सदी में भरतपुर के जाट सूरजमल ने मुगल सेनापति के साथ मिलकर कोल के घासेड़ा के राजपूत राजा बहादुर सिंह पर हमला किया था। महाराजा बहादुर सिंह ने जबर्दस्त मुकाबला करते हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। पर दुश्मन की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद सभी राजपूतानियो ने जोहर कर अग्नि में जलकर प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके परिवारजनों ने शाका किया। इस घटना का जिकर आप "गुड़गांव जिले के गेजिएटर" में पढ़ सकते है

""". इतिहास गवाह है हम राजपूतो की हर लड़ाई में दुश्मन सेना तिगुनी चौगनी होती थी राजस्थान मालवा और सौराष्ट्र में मुगलो ने एक भी हमला राजपूतो पर तिगुनी और चौगनी फ़ौज से कम के बिना नही नही किया पर युद्ध के अंतः में दुश्मन आधे से ऊपर मरे जाते थे ""

卐卐 तलवार से कडके बिजली, लहु से लाल हो धरती, प्रभु ऐसा वर दो मोहि, विजय मिले या वीरगति ॥ 卐卐

    || जय भवानी ||

जय राजपुताना।
🚩🚩जय श्री राम🚩🚩

राजपूती की देख एकता जग सारा हैरान है।


राजपूती की देख एकता जग सारा हैरान है।
हर अपने के दिल मे खुशियां हर बैरी परेशान है।

बुझने ना देना मशाल जो मिल कर आज जगाई है।
एक हो रहा राजपूताना इसकी आज बधाई है।

मिलकर अब चलना होगा समझो ये मजबुरी है।
हक के खातिर लड़ना रण अब देखो बहुत जरूरी है।

मुरझाया रजपूती पौधा अब खिलना बहुत जरूरी है।
बिखरे हुये सब सिंहो का अब मिलना बहुत जरुरी है।

फिर से हो हुकांर सिंहो की जो रक्षक धर्म निभाना हो।
कश्मिर से ले कन्या कुमारी तक जय जय राजपूताना हो।

महाराणा प्रताप बनो अब फिर से धर्म बचाने को
बन पृथ्वीराज चौहान अमर फिर करदो राजपूताने को।

देश धर्म दोनो खतरे मे वीर शिवा घनघौर बनो।
इस देश धर्म की ठौर बनो तुम दुर्गादास राठौर बनो।

जैमल कल्ला की तरहा अब धर रुप चर्तभुज लड़ना है।
बीन सर के भी धड़ लड़ते थे रण तुझको अब वो करना है
 
!!एक रहे मेरा राजपूताना प्यार रहे रजपूती मे!!
!!हे भवानी वरदान दे हमको सदा रहे मजबुती मै!!
#जय_माँ_भवानी_जय_जय_राजपूताना
#राजपूत_एकता_जिंदाबाद।

झाँसी की रानी 17 जून/बलिदान-दिवस

खूब लड़ी मर्दानी वह तो....


भारत में अंग्रेजी सत्ता के आने के साथ ही गाँव-गाँव में उनके विरुद्ध विद्रोह होने लगा; पर व्यक्तिगत या बहुत छोटे स्तर पर होने के कारण इन संघर्षों को सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों के विरुद्ध पहला संगठित संग्राम 1857 में हुआ। इसमें जिन वीरों ने अपने साहस से अंग्रेजी सेनानायकों के दाँत खट्टे किये, उनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम प्रमुख है।

19 नवम्बर, 1835 को वाराणसी में जन्मी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु था। प्यार से लोग उसे मणिकर्णिका तथा छबीली भी कहते थे। इनके पिता श्री मोरोपन्त ताँबे तथा माँ श्रीमती भागीरथी बाई थीं। गुड़ियों से खेलने की अवस्था से ही उसे घुड़सवारी,  तीरन्दाजी, तलवार चलाना, युद्ध करना जैसे पुरुषोचित कामों में बहुत आनन्द आता था। नाना साहब पेशवा उसके बचपन के साथियों में थे।

उन दिनों बाल विवाह का प्रचलन था। अतः सात वर्ष की अवस्था में ही मनु का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधरराव से हो गया। विवाह के बाद वह लक्ष्मीबाई कहलायीं। उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा। जब वह 18 वर्ष की ही थीं, तब राजा का देहान्त हो गया। दुःख की बात यह भी थी कि वे तब तक निःसन्तान थे। युवावस्था के सुख देखने से पूर्व ही रानी विधवा हो गयीं।

उन दिनों अंग्रेज शासक ऐसी बिना वारिस की जागीरों तथा राज्यों को अपने कब्जे में कर लेते थे। इसी भय से राजा ने मृत्यु से पूर्व ब्रिटिश शासन तथा अपने राज्य के प्रमुख लोगों के सम्मुख दामोदर राव को दत्तक पुत्र स्वीकार कर लिया था; पर उनके परलोक सिधारते ही अंग्रेजों की लार टपकने लगी। उन्होंने दामोदर राव को मान्यता देने से मनाकर झाँसी राज्य को ब्रिटिश शासन में मिलाने की घोषणा कर दी। यह सुनते ही लक्ष्मीबाई सिंहनी के समान गरज उठी - मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी।

अंग्रेजों ने रानी के ही एक सरदार सदाशिव को आगे कर विद्रोह करा दिया। उसने झाँसी से 50 कि.मी दूर स्थित करोरा किले पर अधिकार कर लिया; पर रानी ने उसे परास्त कर दिया। इसी बीच ओरछा का दीवान नत्थे खाँ झाँसी पर चढ़ आया। उसके पास साठ हजार सेना थी; पर रानी ने अपने शौर्य व पराक्रम से उसे भी दिन में तारे दिखा दिये।

इधर देश में जगह-जगह सेना में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गये। झाँसी में स्थित सेना में कार्यरत भारतीय सैनिकों ने भी चुन-चुनकर अंग्रेज अधिकारियों को मारना शुरू कर दिया। रानी ने अब राज्य की बागडोर पूरी तरह अपने हाथ में ले ली; पर अंग्रेज उधर नयी गोटियाँ बैठा रहे थे।

जनरल ह्यू रोज ने एक बड़ी सेना लेकर झाँसी पर हमला कर दिया। रानी दामोदर राव को पीठ पर बाँधकर 22 मार्च, 1858 को युद्धक्षेत्र में उतर गयी। आठ दिन तक युद्ध चलता रहा; पर अंग्रेज आगे नहीं बढ़ सके। नौवें दिन अपने बीस हजार सैनिकों के साथ तात्या टोपे रानी की सहायता को आ गये; पर अंग्रेजों ने भी नयी कुमुक मँगा ली। रानी पीछे हटकर कालपी जा पहुँची।

कालपी से वह ग्वालियर आयीं। वहाँ 17 जून, 1858 को ब्रिगेडियर स्मिथ के साथ हुए युद्ध में उन्होंने वीरगति पायी। रानी के विश्वासपात्र बाबा गंगादास ने उनका शव अपनी झोंपड़ी में रखकर आग लगा दी। रानी केवल 22 वर्ष और सात महीने ही जीवित रहीं। पर ‘‘खूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी.....’’ गाकर उन्हें सदा याद किया जाता है।

सोमवार, 11 जून 2018

मराठा और राजपुत कौन है या इनका निर्माण कैसे हुआ ?

मराठा और राजपूत


मराठा जाति की उत्त्पत्ति द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के पश्चात हुई।
मराठा जाति का निर्माण व्यास ऋषि, शुक ऋषि, वशिष्ठ ऋषि, वामदेव तथा अन्य ऋषिगणो ने मिल कर की।

मराठा जाति का मूल वंश सूर्यवंश है या मराठा जाति को पहले सूर्यवंशी के नाम से ही जाना जाता था।


सूर्यवंश को दो भागो में बांटा गया था

1. उत्तर
2. दक्षिणउत्तर के सूर्यवंशी क्षत्रियों को राजपूत कहा जाने लगा तथा दक्षिण के सूर्यवंशी क्षत्रियों को मराठा कहा जाने लगा।

इन दोनों जातियों को कलयुग से पहले सिर्फ सूर्यवंशी के नाम से जानाजाता था और आज भी इन दोनों जातियों का सरनेम एक से ही है :-

जैसे :- राणा, राणे, भोंसले, शिंदे, शिशोदिया, शिशोदे, सिंधिया, ठाकुर, ठाकरे, राठोड, राष्ट्रकुट, जगताप, चौहान, चव्हाण पवार, परमार, पंवार, जाधव, जादौन, पाटिल, सोलंकी, सालुंके, निकुंभ, निकम, निकुम्पा, देशमुख, गायकवाड़, भागवत, शेखावत, मोरे, मोर्य, जाधव, राव, रणसिंघ, परिहार आदि और भी कई।

राजपूतो को 36 कुल में बनाया गया था और मराठो को 96 कुल में बनाया गया था।
जिनके उपनाम हजार से भी ज्यादा है।

ये नाम क्षेत्र और भाषा को देखते हुए बनाया गया है।


जैसे:-
राजस्थान :- राजपूत।
महाराष्ट्र :- मराठा (96कुल) कहा जाता है कि 12 वी सदी के पहले इनमे कोई भेद नहीं था।

लेकिन जब हमारे देश में मुगलो ने शासन करना शुरू किया तब उन्होंने फुट डालो शासन करो की नीति को अपनाया और शासन करना शुरू किया और भाई को भाई से लडवाया।

महाभारत के युद्ध में सभी क्षत्रियो को भारी जान और माल की हानि हुई थी।

क्योंकि.....

महाभारत का युद्ध केवल चंद्रवंशियों (यदुवंशियों) के मध्यही नहीं हुआ था।
बल्कि उसमे सभी क्षत्रियों ने भाग लिया था तथा कुछ क्षत्रिय जो सत्ता हीन हो गए थे।
वे सत्ता की लालशा में एक दूसरे पर आक्रमण करने लगे थे।
इसलिए सभी ऋषियों ने सभी क्षत्रियों को क्षेत्र के हिसाब से बाँट दिया और देश-धर्म की रक्षा के लिए इन जातियों का निर्माण किया गया।

सूर्यवंश से  :- राजपूत, मराठा।

चन्द्रवंश से :- यादव ( जो पहले से ही था )।

राजपूतो में सिंह , राणा और
मराठो में राजे , राव  लिखा जाता है।

जिसका मतलब राजा ही होता है।

भगवान महादेव इस जाति के कुल देव  है और माँ तुलजा भवानी इनकी कुल देवी है।

मराठा जाति की मुख्य भाषा मराठी है।
मराठा जाति सबसे शक्तिशाली जातियों में से एक है।
मराठा जाति दुनिया के 56 शाही घरानों में शामिल है।
कुछ लोग सोंचते है कि मराठा और मराठी  एक ही है लेकिन ऐसा नहीं है मराठा एक जाति है और मराठी  क्षेत्र है न की जाति।

जैसे महाराष्ट्र में रहने वाला हर व्यक्ति मराठी है लेकिन मराठा नहीं महाराष्ट्र में मात्र 40% ही 96 कुल मराठा(शुद्ध क्षत्रिय) है।


कुछ तर्क शास्त्रियों का ये भी मानना है कि उत्तर के राजपूत क्षत्रियो ने जब अपने राज्य विस्तार  के लिए दक्षिण में जाना शुरू किया। तो उन्होंने वहाँ की सभ्यता और भाषा को अपना लिया जैसे मराठी सभ्यता और भाषा और मराठा कहलाये।

मराठा :- महाराष्ट्र के ठाकुर।

मराठा जाति सबसे ज्यादा शक्तिशाली 17वी सदी में छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज  के शासन काल में हुआ।

ये दोनों महान सूरवीर योद्धा थे।

छत्रपति संभाजी महाराज ने तो मात्र 15 वर्ष  की आयु में आदमखोर सिंह का निहत्थे ही मुकाबला किया था और उसका जबड़ा फाड़ डाला था।
उन्होंने उस समय 21 राज्यों में हिंदू (मराठा) शासन चलाया और स्वराज्य की स्थापना की।
आज भी अगर राजपूत और मराठा अगर एक हो जाए तो ये अपने अकेले के दम पर पूरी दुनिया को बस में करने की एकतरफा ताकत रखते है।
इनका जोश और जज्बा देखते ही बनता है।भारत के इतिहास से अगर राजपूतों और मराठो का नाम अगर निकाला जाए तो केवल और केवल खाली पन्नों के अलावा कुछ नही बचेगा।
इन दोनों जातियों को भारत की नींव कही जाने वाली ब्राह्मण जाति सदा सर्वदा साथ हमेशा रहता है।
ये जातियाँ एक दूजे बिना अर्थहीन और असहाय है।
भारत की संस्कृति को बनाने में जितना योगदान ब्राह्मण जाति का है उससे कई गुणा ज्यादा हिस्सा और योगदान राजपूत और मराठा जाति का रहा है जिन्होंने सदैव इसका रक्षण किया है।

🚩 जय जय क्षात्र धर्म 🚩
🔱🙋 जय भवानी 🙋🔱
🚩🙏जय मराठा 🙋🚩
🚩🙋 जय राजपूताना। 🙋🚩

रविवार, 10 जून 2018

गायकवाड राजवंश : बड़ौदा रियासत

गायकवाड़, गायकवार अथवा गायकवाड एक मराठा कुल है, जिसने 18 वीं सदी के मध्य से 1947 तक पश्चिमी भारत के वड़ोदरा या बड़ौदा रियासत पर राज्य किया था |


गायकवाड़ राजवंश का झंडा

गायकवाड़ यदुवंशी श्री कृष्ण के वंशज माने जाते हैं तथा यादव जाति से आते हैं | उनके वंश का नाम गायकवाड़ – गाय और कवाड़ (दरवाजा) के मेल से बना है |
बड़ौदा के गायकवाड़ राजवंश की स्थापना मराठा जनरल पिलाजी राव गायकवाड़ द्वारा 1721 ई०में मुग़ल साम्राज्य से यह शहर जीतकर किया गया था |


वड़ोदरा का लक्ष्मी विलास महल

दामजी राव गायकवाड़ ने अन्य मराठा सरदार सदाशिव राव बाहू, श्री मत विश्वास राव, मल्हार राव होल्कर, जयप्पा और महादजी शिंदे के साथ मिलकर अफगानों के विरुद्ध तीसरे पानीपत युद्ध 1761 में भाग लिया था, जिसमे अफगान विजयी रहे थे | इस हार से मराठा रियासत कमजोर होते गए | गायकवाड अन्य मराठा सरदारों के साथ ब्रिटिश के विरुद्ध प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध 1802 में भी भाग लिया था |गायकवाड़ रियासत का भारत की आजादी के उपरांत भारत संघ में विलय कर दिया गया|

[edit ]Gaekwad Maharajas of Baroda
Maharaja SAYAJIRAO 1
· Pilaji Rao Gaekwad (1721–1732)
· Damaji Rao Gaekwad (1732–1768)
· Govind Rao Gaekwad (1768–1771)
· Sayaji Rao Gaekwad I (1771–1789)
· Manaji Rao Gaekwad (1789–1793)
· Govind Rao Gaekwad (restored) (1793–1800)
· Anand Rao Gaekwad (1800–1818)
· Sayaji Rao II Gaekwad (1818–1847)
· Ganpat Rao Gaekwad (1847–1856)
· Khande Rao Gaekwad (1856–1870)
· Malhar Rao Gaekwad (1870–1875)
· Maharaja Sayyaji Rao III (1875–1939)
· Pratap Singh Gaekwad (1939–1951)
· Fatehsinghrao Gaekwad (1951–1988)
· Ranjitsinh Pratapsinh Gaekwad (1988-2012)
Samarjitsingh Ranjitsinh Gaekwad (2012-Present)


महाराजा सत्यजित राव I

सोमवार, 4 जून 2018

☀राजपुतो पर जोक बनाने वाले अवश्य पढे।।👑

भारतीय सेना :- राजपूत रेजिमेंट :- पाकिस्तान का
रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक
Crisis off
Leadership’ में लिखा है कि, भारतीय सेना का एक
अभिन्न
अंग होते हुए भी, भारतीय सेना राजपूतो के शौर्य से
अंजान ही रही।


क्योंकि…..’घर की मुर्गी दाल बराबर !’
भारतीय सेना को राजपूतो की वीरता से कभी सीधा
वास्ता नही
पड़ा था ! दुश्मनों को पड़ा था और उन्होंने इनकी
शौर्य गाथाएं
भी लिखी! स्वयं पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड
मेजर जनरल
मुकीश खान ने अपनी पुस्तक‘ Crisis of Leadership
के
प्रष्ट २५० पर, वे राजपूतो के साथ हुई अपनी १९७१ की
मुठभेड़
पर लिखते हैं कि, “हमारी हार का मुख्य कारण था,
हमारा राजपूतो
से आमने सामने युद्ध करना! हम उनके आगे कुछ भी करने
में
असमर्थ थे! राजपूत बहुत बहादुर हैं और उनमें शहीद होने
का एक
विशेष जज्बा—एक महत्वाकांक्षा है! वे अत्यंत
बहादुरी से लड़ते
हैं और उनमें सामर्थ्य है कि अपने से कई गुना संख्या में
अधिक
सेना को भी वे परास्त कर सकते हैं!”
वे आगे लिखते हैं कि……..
‘३ दिसंबर १९७१ को हमने अपनी पूर्ण क्षमता और
दिलेरी के
साथ अपने इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ भारतीय सेना पर
हुसैनीवाला के समीप आक्रमण किया! हमारी इस
ब्रिगेड में
पाकिस्तान की लड़ाकू बलूच रेजिमेंट और जाट
रेजिमेंट भी थीं !
और कुछ ही क्षणों में हमने भारतीय सेना के पाँव
उखाड़ दिए
और उन्हें काफी पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया!
उनकी
महत्वपूर्ण सुरक्षा चौकियां अब हमारे कब्ज़े में थीं!
भारतीय
सेना बड़ी तेजी से पीछे हट रही थीं और
पाकिस्तानी सेना
अत्यंत उत्साह के साथ बड़ी तेजी से आगे बढ रही थी!
हमारी
सेना अब कौसरे - हिंद पोस्ट के समीप पहुँच चुकी थी!
भारतीय
सेना की एक छोटी टुकड़ी वहां उस पोस्ट की
सुरक्षा के लिए
तैनात थी और इस टुकड़ी के सैनिक राजपूत रेजिमेंट से
संबंधित थे!
एक छोटी सी गिनती वाली राजपूत रेजिमेंट ने लोहे
की दीवार बन
कर हमारा रास्ता अवरुद्ध कर दिया ! उन्होंने हम पर
भूखे शेरों
की तरह और बाज़ की तेजी से आक्रमण किया! ये
सभी सैनिक
राजपूत थे! यहाँ एक आमने-सामने की, आर-पार की,
सैनिक से
सैनिक की लड़ाई हुई! इस आर-पार की लड़ाई में भी
राजपूत सैनिक
इतनी बेमिसाल बहादुरी से लड़े कि हमारी सारी
महत्वाकांक्षाएं,
हमारी सभी आशाएं धूमिल हो उठीं, हमारी
उम्मीदों पर पानी
फिर गया ! हमारे सभी सपने चकना चूर हो गये!’
इस जंग में बलूच रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल गुलाब हुसैन
शहादत
को प्राप्त हुए थे! उनके साथ ही मेजर मोहम्मद जईफ
और
कप्तान आरिफ अलीम भी अल्लाह को प्यारे हुए थे!
उन अन्य
पाकिस्तानी सैनिकों की गिनती कर पाना
मुश्किल था जो इस
जंग में शहीद हुए ! हम आश्चर्यचकित थे मुट्ठीभर राजपूतो
के
साहस और उनकी इस बेमिसाल बहादुरी पर! जब हमने
इस तीन
मंजिला कंक्रीट की बनी पोस्ट पर कब्जा किया,
तो राजपूत इस
की छत पर चले गये, जम कर हमारा विरोध करते रहे —
हम से
लोहा लेते रहे! सारी रात वे हम पर फायरिंग करते रहे
और सारी
रात वे अपने उदघोष, अपने जयकारे' से आकाश
गुंजायमान करते
रहे! इन राजपूत सैनिकों ने अपना प्रतिरोध अगले दिन
तक जारी
रखा, जब तक कि पाकिस्तानी सेना के टैंकों ने इसे
चारों और से
नहीं घेर लिया और इस सुरक्षा पोस्ट को गोलों से न
उड़ा डाला!
वे सभी मुट्ठी भर राजपूत सैनिक इस जंग में हमारा
मुकाबला करते
हुए शहीद हो गये, परन्तु तभी अन्य राजपूत सैनिकों ने
तोपखाने की
मदद से हमारे टैंकों को नष्ट कर दिया! बड़ी बहादुरी
से लड़ते
हुए, इन राजपूत सैनिकों ने मोर्चे में अपनी बढ़त कायम
रखी और
इस तरह हमारी सेना को हार का मुंह देखना पड़ा!
‘…..अफ़सोस ! इन मुट्ठी भर राजपूत सैनिकों ने हमारे इस
महान
विजय अभियान को हार में बदल डाला, हमारे
विश्वास और
हौंसले को चकनाचूर करके रख डाला! ऐसा ही हमारे
साथ ढाका
(बंगला-देश) में भी हुआ था! जस्सूर की लड़ाई में
राजपूतो ने
पाकिस्तानी सेना से इतनी बहादुरी से प्रतिरोध किया कि हमारी रीढ़ तोड़ कर रख दी, हमारे पैर उखाड़ दिए ! यह हमारी हार का सबसे मुख्य और महत्वपूर्ण कारण था !
राजपूतो का शहीदी के प्रति प्यार, और सुरक्षा के लिए मौत का उपहास तथा देश के  लिए सम्मान, उनकी विजय का एकमात्र कारण था।
अगर आपको भी राजपूत होने पर गर्व है, तो इस मैसेज को अधिक से अधिक शेयर करें |

रविवार, 3 जून 2018

एक षड्यंत्र और माँस और शराब की घातकता।

राजपूतों ने जब से मांसाहार और शराब को अपनाया तभी से मुगल शैतानो से पराजित होना शुरू हुआ…

राजपूतों का सिर धड से अलग होने के बाद कुल देवी युद्ध लडा करती थी…


“एक षड्यंत्र और माँस और शराब की घातकता….”

हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये..,

ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है..

ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !

जानिये एक सच्ची ऐतिहासिक घटना…

“एक षड्यंत्र और शराब की घातकता….”

कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??

जानिये और फिर सुधार कीजिये !!

मुगल शैतान का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे ।

उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की “है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?”

सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !

तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा “है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??

सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया !

वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल थे !

रिड़मल जी ने कहा, “मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है…, सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में !

मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया !

कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से

तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से…।

बादशाह का मुँह देखने लायक था ,

ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।

“बाते मत करो राव…उदाहरण दो वीरता का।”

रिड़मल ने कहा “क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??”

बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,

रिड़मल बोले ” इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की … ”

बादशाह हसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला

“इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ?

मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।”

राव रिड़मल निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए।

रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।

रात को ११ बजे रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी।

ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,

घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले

” जोधपुर महाराज… आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ।

हुकम आप अंदर पधारो…मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता।

राव रिड़मल ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी

अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?

रोहणी जागीदार बोले ,” बस इतनी सी बात..

मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे

और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे ”

राव रिड़मल को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को।

सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!

उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ,” महाराज थोडा रुकिए !!

मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।”

राव रिड़मल ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है

कैसे मानेगा !

अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,

एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।

ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा

” आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को ,

दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ?

आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !

ठकुरानी जी ने कहा

“बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर

छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो”

दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे।

बड़े लड़के को मैदान में लाया गया और

मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..

तभी बीकानेर महाराजा बोले “ये क्या तमाशा है ?

राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?

बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो…

२० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।

दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,

मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,

इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।

ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा

” ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर…

तलवार से ये नही मरेगा…

कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।

सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी

और मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा।

बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा था

ये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा

लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली।

उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।

बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था।

हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था।

बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।

एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो।

राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो।

दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए।

मौलवी ने बादशाह को कहा ” हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।

यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ।

यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे।

उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए।

और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूर रहिये।

माँसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्ति पर गर्व करने वाले राजपूतों को यदि ज्ञात हो तो बताएं और आत्म मंथन करें कि महाराणा प्रताप की बेटी की मृत्यु जंगल में भूख से हुई थी क्यों …?

यदि वो मांसाहारी होते तो जंगल में उन्हें जानवरों की कमी थी क्या मार खाने के लिए…?

इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा शाकाहारी थे केवल कुछ स्वार्थी राजपूतों ने जिन्होंने मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली थी वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे और अपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये हिन्दू भाइयो ये सच्ची घटना है और हमे हिन्दू समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा।

तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।

तथ्य एवं श्रुति पर आधारित।

🚩🚩👑🙋👑🚩🚩

🙏🙏नमन ऐसी वीर परंपरा को।🙏🙏