वीर जयमल राठौड़ का परिचय -
( जन्म - 17 सितम्बर, 1507 ई.
राजघराना - मेड़ता
ये राणा सांगा के भांजे थे।
इस दौरान इनकी उम्र 60 वर्ष थी | महाराणा उदयसिंह ने इनको बदनोर की जागीर प्रदान की थी )
वीर फतेह सिंह चुण्डावत का परिचय -
( राजघराना - केलवा
इन्हें पत्ता या फत्ता के नाम से भी जाना जाता है | इनकी उम्र इस दौरान 15 वर्ष बताई जाती है, जो कि सही नहीं है | इनकी 9 पत्नियां इस वक्त चित्तौड़ दुर्ग में ही थीं, जिससे सिद्ध होता है कि पत्ता चुण्डावत की उम्र ज्यादा रही होगी | ये महाराणा लाखा के पुत्र चूण्डा के वंशज थे )
वीर कल्ला राठौड़ का परिचय -
( ये जयमल राठौड़ व मीराबाई के भतीजे थे | इस दौरान इनकी उम्र 23 वर्ष थी |
महाराणा उदयसिंह ने इनको रनेला की जागीर प्रदान की थी | घोसुण्डा के समीप मुगलों से लड़ते हुए कल्ला राठौड़ ने चित्तौड़ दुर्ग में प्रवेश किया | इनको दुर्ग में प्रवेश करवाने में इनके सेनापति रणधीर सिंह वीरगति को प्राप्त हुए ।)
अकबर ने महाराणा उदयसिंह की खोज करने के लिए बैरम खान के भांजे हुसैन कुली खान को भेजा।
हुसैन कुली खान उदयपुर पहुंचा, उसने उदयपुर में खूब लूटमार की पर महाराणा का कोई पता न चला।
हुसैन कुली खान उदयपुर से कुम्भलगढ़ गया | कुम्भलगढ़ में तैनात कुंवर प्रताप, कुंवर शक्तिसिंह व राव नेताजी से पराजित होकर हुसैन कुली निराश होकर चित्तौड़ पहुंचा |
"चित्तौड़ का तीसरा साका"
1567 ई.
अकबर ने चित्तौड़ घेरे के पहले माह के अन्त में आसफ खान को रामपुरा भेजा | आसफ खान ने रामपुरा दुर्ग पर अधिकार किया व रामपुरा के शासक राव दुर्गा ने बादशाही मातहती कुबूल की |
मांडलगढ़ का युद्ध
आसफ खान और वजीर खान को मांडलगढ़ भेजा गया | मांडलगढ़ में महाराणा उदयसिंह द्वारा नियुक्त राव बल्लु सौलंकी ने वीरगति प्राप्त की | मांडलगढ़ पर मुगलों का अधिकार हुआ |
अकबर के सिपहसालार जिन्होंने चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाला -
हुसैन कुली खान
आसफ खान
राजा टोडरमल
गाजी खान बदख्शी
अब्दुल्ला खान
राजा भगवानदास
मेहतर खान
मुनीम खान
एेतमद खान
शुजात खान
जमालुद्दीन
मीरमर ओबर
कासिम खान
जान बेग
यार बेग
मिर्जा बिल्लोच
मीरक बहादुर
मुजफ्फर खान
खान आलम
कबीर खान
याजदां कुली
राव परवतदास
मुहम्मद सालिह हयात
इख्तियार खान
काजी अली बगदादी
हसन खान चगताई
शाह अली एशक आगा
जर्द अली तुवाकी
व अन्य।
मुगल फौज का सैन्यबल -
60000 सैनिक
80 तोपें
800 बन्दूकें
95 घूमने वाली बन्दूकें
500 से अधिक हाथी।
(अकबर ने हथियारों से युक्त एक हाथी की तुलना 500 घुड़सवारों से की।)
दुर्ग के द्वार खुलवाने या दुर्ग की प्राचीरों को नष्ट करने के लिए अकबर के प्रयास -
पहला प्रयास -
अकबर को तोपें चलाने के लिए मीनार या बुर्ज की आवश्यकता थी, तो उसने एक मगरी बनवाई | इसे बनाने वालों को एक-एक टोकरी मिट्टी के बदले एक-एक स्वर्ण मुद्रा दी गई, इसीलिए इसे "मोहर मगरी" कहते हैं |
मोहर मगरी पर रखी तोपें दुर्ग का कुछ खास नहीं बिगाड़ सकी।
दूसरा प्रयास -
अकबर ने 5000 मुगलों/मजदूरों से दुर्ग की प्राचीर के पास 2 सुरंगें बनवाने का कार्य प्रारम्भ करवाया।
पहली सुरंग में 120 मन व दूसरी सुरंग में 80 मन बारुद भरवाया गया।
राजपूतों की बन्दूकों व तीरों से प्रतिदिन 200 मुगल (बारुद भरने वाले) मारे जाते थे।
17 दिसम्बर, 1567 ई.
सुरंग में बारुद भरते वक्त बारुद फट गया, जिससे लगभग 300 मुगल व 200 मुगल घुड़सवार मारे गए।
अकबर के कुछ खास सिपहसालार, जो बारुद के फटने से मारे गए -
जान बेग
यार बेग
मिर्जा बिल्लोच
याजदां कुली
मुहम्मद सालिह हयात
हयात सुल्तान
शाह अली एशक आगा
जमालुद्दीन
मीरक बहादुर
शेरबाग येसवाल के भाई
व अन्य।
तीसरा प्रयास -
अकबर ने राजा टोडरमल को दुर्ग में जयमल राठौड़ के पास सन्धि प्रस्ताव लेकर भेजा।
सन्धि के अनुसार यदि जयमल राठौड़ दुर्ग अकबर के हवाले कर दे, तो उन्हें फिर से मेड़ता दे दिया जाएगा।
जयमल राठौड़ ने राजा टोडरमल के जरिए कहलवाया कि मैं महाराणा उदयसिंह के आदेशों का पालन करुंगा -
"है गढ़ म्हारौ म्है धणी, असुर फिर किम आण |
कुंच्यां जे चित्रकोट री, दिधी मोहिं दीवाण ||
जयमल लिखे जबाब यूं सुणिए अकबर शाह |
आण फिरै गढ़ उपरा, पड्यो धड़ पातशाह ||"
🚩भाग 1🚩

👑 महाराणा प्रताप 👑
इतने बड़े साम्राज्य में जो छोटा सा स्वतन्त्र क्षेत्र है, वो उदयपुर है | आखिर एेसा क्या हुआ ??? आइये देखते हैं।
_______1540 ई.
मेवाड़ पर दासीपुत्र बनवीर का अधिकार था | कुम्भलगढ़ दुर्ग से मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह और मारवाड़ के राव मालदेव की सम्मिलित सेना बनवीर से युद्ध करने रवाना हुई | मावली में हुए इस युद्ध में बनवीर पराजित होकर भाग गया | बनवीर की तरफ से लड़ता हुआ कुंवर सिंह तंवर मारा गया |
एक ओर चित्तौडगढ़ के दुर्ग पर मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह का पुन: अधिकार हुआ, तो दूसरी ओर इसी शुभ घड़ी में 9 मई, 1540 ई. को कुम्भलगढ़ दुर्ग के एक भाग कटारगढ़ में महारानी जयवन्ता बाई के गर्भ से कुंवर प्रताप का जन्म हुआ |
(कुंवर प्रताप का एक जन्म स्थान पाली में भी बताया जाता है, जो कि सही नहीं है।)
इसी वर्ष में महाराणा उदयसिंह की दूसरी पत्नी रानी सज्जा बाई सोलंकिनी के गर्भ से कुंवर शक्तिसिंह का जन्म हुआ |
👸महारानी जयवन्ता बाई👸
ये महाराणा उदयसिंह की पत्नी व मेवाड़ की पटरानी थीं | इनका नाम विवाह से पूर्व जीवन्त कंवर था | ये जालौर के अखैराज सोनगरा चौहान की पुत्री थीं | इन्होंने अपने वैवाहिक जीवन में कईं कष्ट देखे | ये कुंवर प्रताप की आदर्श थीं |
👑महाराणा उदयसिंह👑
इनका जन्म 1522 ई. में हुआ | ये राणा सांगा व रानी कर्णावती के पुत्र थे | इनका आरम्भिक जीवन काफी कष्टप्रद रहा | पन्नाधाय द्वारा इनके लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान विश्व प्रसिद्ध है |
पन्नाधाय मेवाड़ के इस भावी राजा को लेकर जगह-जगह भटकी, पर बनवीर के डर से किसी ने इनको शरण नहीं दी | कुम्भलगढ़ में इन्हें शरण मिली और इसी दुर्ग में महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ | महाराणा उदयसिंह की कुल 22 रानियां, 24 पुत्र, 17 पुत्रियां थीं |
गुरु राघवेन्द्र - ये कुंवर प्रताप व कुंवर शक्ति के गुरु थे |
रानी सज्जा बाई सोलंकिनी - इनके 2 पुत्र थे -
1) कुंवर शक्तिसिंह - बचपन में राज दरबार में चाकू की धार देखने के लिए इन्होंने अपना ही अंगूठा चीर दिया | राजमर्यादा तोड़ने पर महाराणा उदयसिंह ने क्रोधित होकर कुंवर शक्तिसिंह को दरबार से बाहर निकाल दिया | इनके वंशज शक्तावत कहलाए |
2) वीरमदेव - इनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं| जब महाराणा प्रताप छापामार युद्धों में व्यस्त थे, उस कठिन समय में 15 वर्षों तक वीरमदेव ने महाराणा प्रताप के परिवार की रक्षा की | इनके पास 500 सैनिक हमेशा रहते थे | वीरमदेव ने महाराणा प्रताप के परिवार के किसी भी सदस्य को आंच तक नहीं आने दी| इनको घोसुण्डा की जागीर मिली |
रानी धीर बाई भटियानी -
ये महाराणा उदयसिंह की सबसे प्रिय रानी थीं | ये जैसलमेर के महारावल लूणकरण की पुत्री थीं | इनके 5 पुत्र हुए -
1) कुंवर जगमाल (अकबर का साथ दिया)
2) कुंवर सागर (अकबर व जहांगीर का साथ दिया)
3) कुंवर अगर (जहांगीर का साथ दिया)
4) कुंवर पच्चन
5) कुंवर सिम्हा
1544 ई. गिरीसुमेल का युद्ध
ये युद्ध अफगान बादशाह शेरशाह सूरी और मारवाड़ के राव मालदेव के बीच हुआ | मारवाड़ की पराजय हुई |
जालौर मारवाड़ का हिस्सा था, इसलिए जालौर के अखैराज सोनगरा चौहान (महाराणा प्रताप के नाना) मारवाड़ की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए |
इसी वर्ष अफगान बादशाह शेरशाह सूरी ने मेवाड़ पर चढ़ाई की | शेरशाह इससे पहले हुमायूं व राव मालदेव को पराजित कर चुका था |
महाराणा उदयसिंह ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए जहांजपुर में शेरशार सूरी के पास चित्तौड़ दुर्ग की चाबियां भिजवा दीं | शेरशाह ने अपने एक सेनापति शम्स खान को चित्तौड़ भेजा | इस तरह महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के राजा तो थे, पर उनके अधिकार सीमित थे |
1545 ई.
संयोग से इस वर्ष कालिंजर दुर्ग में बारूद के फटने से शेरशाह सूरी मारा गया
1549 ई.
शम्स खान ने अपने 1500 सैनिकों के साथ चित्तौड़ पर हमला किया | महाराणा उदयसिंह ने शम्स खान को पराजित किया।
महाराणा प्रताप 1550 ई.
जैसलमेर का अर्द्धसाका
जैसलमेर के शासक महारावल लूणकरण
(रानी धीर बाई भटियानी के पिता) थे...
1551 ई. जैसलमेर महारावल लूणकरण का
देहान्त | इनके पुत्र कुंवर मालदेव हुए,
जो महाराणा प्रताप के बहनोई थे....
कुंवर प्रताप 9-10 वर्ष तक कुम्भलगढ़ में
रहे | फिर चित्तौड़गढ़ में पधारे |
कुंवर प्रताप ने मेड़ता के जयमल राठौड़ से
तलवारबाजी सीखी |
रानी धीरबाई भटियानी को कुंवर प्रताप की
वीरता से ईर्ष्या हुई,
तो महाराणा उदयसिंह ने अपनी प्रिय रानी
की बात मानते हुए कुंवर प्रताप को तलहटी
में रहने के लिए भेज दिया |
इसी तरह कुंवर प्रताप का सम्पर्क भीलों से
हुआ | कुछ समय बाद महारानी जयवन्ता
बाई अपने पुत्र कुंवर प्रताप के साथ दुर्ग के
नीचे स्थित महल में रहने लगीं |
इसी महल के पास भामाशाह भी रहते थे |
कुंवर प्रताप और भामाशाह बचपन के मित्र
थे | 1554 ई. महाराणा उदयसिंह ने
साम्राज्य विस्तार के नजरिये से बूंदी में
हस्तक्षेप करते हुए अपने सामन्त राव सुर्जन
हाडा को भेजा | राव सुर्जन हाडा ने बूंदी के
शासक को पराजित कर वहां अधिकार
किया |
.
रणथम्भौर दुर्ग पर भी राव सुर्जन हाडा का
अधिकार था | 1555 ई. जैताणा का युद्ध
(कुंवर प्रताप का प्रथम युद्ध) महाराणा
उदयसिंह ने डूंगरपुर रावल आसकरण पर
कुंवर प्रताप के नेतृत्व में सेना भेजी |
रावल आसकरण से महाराणा उदयसिंह की
शत्रुता तब से थी, जब आसकरण ने
पन्नाधाय को बनवीर के डर से शरण नहीं दी
ये युद्ध बांसवाड़ा के आसपुर में सोम नदी के
किनारे हुआ |
.
1555 ई.
जैताणा का युद्ध
(कुंवर प्रताप का प्रथम युद्ध)
.
महाराणा उदयसिंह ने डूंगरपुर रावल
आसकरण पर कुंवर प्रताप के नेतृत्व
में सेना भेजी....
.
रावल आसकरण से महाराणा उदयसिंह की
शत्रुता तब से थी, जब आसकरण ने
पन्नाधाय को बनवीर के डर से शरण नहीं दी
.
ये युद्ध बांसवाड़ा के आसपुर में सोम नदी
के किनारे हुआ....
डूंगरपुर के रावल आसकरण ने राणा
सांवलदास को भेजा
राणा सांवलदास का भाई
कर्णसिंह मारा गया...
.
मेवाड़ की ओर से कोठारिया व केलवा के
जग्गा जी वीरगति को प्राप्त हुए |
जग्गा जी के पुत्र पत्ता चुण्डावत हुए,
जिनका हाल मौके पर लिखा जाएगा...
.
मेवाड़ की विजय हुई और 15 वर्ष के कुंवर
प्रताप ने वागड़ के बड़े हिस्से पर अधिकार
कर मेवाड़ में मिला लिया....
.
ये कुंवर प्रताप के कुंवरपदे काल
(राज्याभिषेक से पूर्व) की पहली
उपलब्धि थी...
.
कुंवरपदे काल (राज्याभिषेक से पूर्व)
की दूसरी उपलब्धि.....
.
कुंवर प्रताप ने छप्पन के राठौड़ों को पराजित कर छप्पन (56 इलाकों का समूह) पर अधिकार कर लिया।
27 जनवरी, 1556 ई.
बादशाह हूमायुं की पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर मृत्यु
मेवाड़-मारवाड़ के बीच टकराव -
इसी वर्ष महाराणा उदयसिंह ने अजमेर को जीतकर मेवाड़ में मिला लिया।
हूमायुं के पुत्र अकबर ने मेवात पर हमला किया, तो मेवात का शासक अफगान हाजी खान मेवाती महाराणा उदयसिंह की शरण में आया
महाराणा उदयसिंह ने हाजी खान को अजमेर में रहने की इजाजत दी
मारवाड़ के राव मालदेव ने अजमेर पर हमला किया
हाजी खान फिर भागकर महाराणा उदयसिंह की शरण में आया
महाराणा उदयसिंह ने हाजी खान की सहायता के लिए बूंदी के राव सुर्जन हाडा, मेड़ता के जयमल राठौड़, रामपुरा के दुर्गा सिसोदिया को भेजा
राव मालदेव बिना युद्ध किए ही लौट गए
इस बीच हाजी खान और महाराणा उदयसिंह का झगड़ा हो गया
हाजी खान इस बार मारवाड़ के राव मालदेव से मिल गया
1557 ई.
24 जनवरी, 1557 ई.
हरमाड़े का युद्ध
हाजी खान के 5000 पठान व राव मालदेव के 1500 सैनिकों की सम्मिलित सेना ने महाराणा उदयसिंह की मेवाड़ी सेना को बुरी तरह पराजित किया
इस युद्ध में जोधपुर के एक राजकुमार डूंगरसिंह मारे गए
इसी वर्ष एक और घटना ने मेवाड़-मारवाड़ के बीच दूरियों को और बढ़ा दिया -
खेरवाड़ा व देलवाड़ा के सामन्त जैतसिंह की पुत्री राव मालदेव की पत्नी थीं
राव मालदेव जैतसिंह की दूसरी पुत्री से भी विवाह करना चाहते थे, परन्तु राव मालदेव की उम्र अधिक होने के कारण जैतसिंह ने मना कर दिया
मारवाड़ जैसी बड़ी रियासत से लड़ना खेरवाड़ा के बस की बात न थी
जैतसिंह ने महाराणा उदयसिंह से सहायता मांगी और अपनी पुत्री वीरबाई झाली का विवाह प्रस्ताव भी रखा
महाराणा उदयसिंह ने विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर कुम्भलगढ़ के समीप गुडा नामक स्थान पर विवाह किया
मारवाड़ के राव मालदेव ने कुम्भलगढ़ पर हमला किया, पर उन्हें असफल होकर लौटना पड़ा
(मेवाड़-मारवाड़ की ये जानकारी भवन सिंह राणा की पुस्तक महाराणा प्रताप से ली गई है।)
इसी वर्ष महाराणा उदयसिंह ने मीराबाई को चित्तौड़गढ़ बुलाने के लिए ब्राम्हणों को भेजा | मीराबाई सदा - सदा के लिए अपने कान्हा में विलीन हो गईं | मीराबाई कुंवर प्रताप की बड़ी माँ थीं |
इसी वर्ष बिजौलिया के सामन्त राम रख/माम्रख पंवार की पुत्री अजबदे बाई से कुंवर प्रताप का विवाह हुआ
आगे चलकर अजबदे बाई मेवाड़ की महारानी बनीं | महाराणा प्रताप की सभी पत्नियों में उनका सबसे अधिक साथ इन्होंने ही दिया |
अजबदे बाई ने महाराणा प्रताप के लिए अपनी ज्योतिष विद्या से 100 वर्षों का पंचांग बनाया |
अजबदे बाई के गुरु मथुरा के विट्ठल राय जी थे | गोंडवाना की रानी दुर्गावती व आमेर की हीर कंवर ने भी इन्हीं गुरु से शिक्षा प्राप्त की |
गुरु विट्ठल राय जी को कृष्ण भक्ति के कारण मुगल यातनाएं भी सहनीं पड़ी | गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने इनको 108 गांव प्रदान किए |
महाराणा उदयसिंह की 22 रानियां/कुंवर प्रताप की विमाताएँ -
1) महारानी जयवन्ता बाई
2) रानी सज्जाबाई सोलंकिनी
3) रानी धीरबाई भटियानी
4) रानी वीरबाई झाली
5) रानी राजबाई सोलंकिनी
6) रानी करमेती बाई राठौड़
7) रानी कंवरबाई राठौड़
8) रानी लखमदे राठौड़
9) रानी बाईजीलाल कंवर राठौड़
10) रानी लक्खाबाई
11) रानी प्यारकंवर राठौड़
12) रानी गनसुखदे बाई चौहान
13) रानी सुहागदे बाई चौहान
14) रानी वीरकंवर
15) रानी लाड़कंवर
16) रानी सैवता बाई खींचण
17) रानी किशनकंवर
18) रानी गोपालदे बाई
19) रानी जीवत कंवर
20) रानी कंवरबाई खींचण
21) रानी लच्छाकंवर
22) रानी लालकंवर पंवार।
महाराणा उदयसिंह की 17 पुत्रियाँ व दामाद/कुंवर प्रताप के बहन व बहनोई -
17 में से कुछ के नाम इस तरह हैं -
1) लिखमीबाई - मारवाड़ से बिगड़े सम्बन्ध सुधारने के लिए महाराणा उदयसिंह ने इनका विवाह मारवाड़ के राव मालदेव से करवा दिया | ये राव मालदेव की 24वीं पत्नी थीं |
2) सूरजदे - इनका विवाह 23 अप्रैल, 1560 ई. को मारवाड़ के राव चन्द्रसेन (राव मालदेव के पुत्र) से हुआ
3) जसवन्तदे - इनका विवाह 1563 ई. में बीकानेर के राजा रायसिंह से हुआ | ये राजा रायसिंह की पहली पत्नी थीं, इसलिए बीकानेर की महारानी हुईं |
4) चैन कंवर - इनका विवाह जैसलमेर के मालदेव से हुआ
5) हर कंवर - इनका विवाह सिरोही के महाराव उदयसिंह से हुआ
6) अमर कंवर - इनका विवाह मारवाड़ के रामसिंह (राव मालदेव के पुत्र) से हुआ
7) बाईजीराज ? - इनका विवाह देलवाड़ा के मानसिंह झाला से हुआ | मानसिंह झाला जैतसिंह के पुत्र व रानी वीरबाई झाली के भाई थे |
8) बाईजीराज ? - इनका विवाह ग्वालियर के शालिवाहन तंवर (राजा रामशाह तंवर के पुत्र) से हुआ
9) बाईजीराज ? - इनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ से हुआ | पृथ्वीराज राठौड़ महारानी जयवन्ता बाई की सगी बहन के पुत्र थे |
महाराणा उदयसिंह के पुत्र -
1) महाराणा प्रताप
2) कुंवर शक्तिसिंह
3) कुंवर वीरमदेव/विक्रम
4) कुंवर जगमाल
5) कुंवर सागरसिंह
6) कुंवर अगर
7) कुंवर पच्चन
8) कुंवर सिम्हा
9) कुंवर मानसिंह
10) कुंवर कान्हा
11) कुंवर कल्याणमल
12) कुंवर लूणकरण सिंह
13) कुंवर शार्दुल सिंह
14) कुंवर सुल्तान सिंह
15) कुंवर महेशदास
16) कुंवर चन्दासिंह
17) कुंवर रुद्रसिंह
18) कुंवर खानसिंह
19) कुंवर नगजसिंह
20) कुंवर साहेब खान
21) कुंवर भवसिंह
22) कुंवर बेरिसाल
23) कुंवर जैतसिंह
24) कुंवर रायसिंह(इस भाग में महाराणा। उदयसिंह द्वारा अकबर के शत्रुओं को शरण देने के बारे में बताया गया है।)
1556-57 ई.
अकबर की पानीपत, जैतारण, अजमेर व नागौर विजय।
पानीपत के युद्ध में हेमचन्द्र (विक्रमादित्य) पराजित हुए व इस विजय से अकबर को 1500 हाथी मिले | मुगलों की तरफ से इस युद्ध का नेतृत्व बैरम खान ने किया |
1558 ई.
बेदला के प्रतापसिंह चौहान (महाराणा प्रताप के ससुर जी) का देहान्त
इनके पुत्र बलभद्र सिंह चौहान बेदला के शासक बने | इन्होंने आगे चलकर महाराणा प्रताप का छापामार युद्धों में साथ दिया |
1559 ई.
अकबर की ग्वालियर विजय।
ग्वालियर के राजा रामशाह तंवर का चित्तौड़ आगमन।
इसी वर्ष 16 मार्च को राजसमन्द के मचीन्द में महाराणा प्रताप व महारानी अजबदे बाई के पुत्र कुंवर अमरसिंह का जन्म हुआ।
इसी वर्ष महाराणा उदयसिंह अपने पौत्र के जन्म की खुशी में एकलिंग जी के दर्शन करने कैलाशपुरी पधारे | लौटते वक्त आहड़ के पास आखेट हेतु पधारे, जहां उनकी भेंट योगी प्रेमगिरी से हुई | महाराणा उदयसिंह ने योगी प्रेमगिरी की सलाह से एक भव्य नगर उदयपुर की स्थापना की | महाराणा उदयसिंह ने यहां एक महल बनवाया, जो मोती महल के नाम से जाना जाता है |
1560 ई.
अकबर ने रणथम्भौर दुर्ग पर सेना भेजी | महाराणा उदयसिंह द्वारा नियुक्त राव सुर्जन हाडा ने दुर्ग पर कब्जा बनाए रखा | अकबर ने बिना सफलता के अपनी फौज वापस बुला ली |
इसी वर्ष अकबर के संरक्षक बैरम खान ने अकबर के खिलाफ बगावत कर दी | बैरम खान ने मेवाड़, बीकानेर, मारवाड़ से मदद मांगी | मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह ने बैरम खान की सहायता से इनकार किया |
तिलवाड़ा का युद्ध -
अकबर द्वारा बैरम खान की पराजय।
1561 ई.
एक अफगान द्वारा बैरम खान का कत्ल।
इसी वर्ष अकबर ने गागरोन दुर्ग पर कब्जा किया
इसी वर्ष अकबर ने आदम खान को मालवा भेजा
मालवा के बाज बहादुर ने पराजित होने के बाद चित्तौड़ में शरण ली।
(चित्तौड़ के तीसरे साके का ये एक महत्वपूर्ण कारण था)
1562 ई.
अकबर की मेड़ता विजय।
मेड़ता के वीर जयमल राठौड़ का चित्तौड़ आगमन।
इसी वर्ष राव मालदेव का देहान्त हुआ | उनके पुत्र राव चन्द्रसेन मारवाड़ की राजगद्दी पर बैठे |
1563 ई.
महाराणा उदयसिंह की भोमट के राठौड़ों पर विजय।
इस युद्ध में कुंवर प्रताप भी लड़े, लेकिन नेतृत्व महाराणा उदयसिंह ने किया।
1564 ई.
अकबर की गोंडवाना विजय
गोंडवाना की रानी दुर्गावती के अथक प्रयासों के बावजूद उन्हें पराजय मिली
इस विजय से अकबर को 1000 हाथी मिले
इसी वर्ष अकबर ने पूरे हिन्दुस्तान में जजिया कर माफ किया
1565 ई.
महाराणा उदयसिंह द्वारा बाढ़ रुकवाकर उदयसागर झील का निर्माण।
1566 ई.
जेम्स विन्सेट के अनुसार "अकबर ने चित्तौड़ पर अपनी सेना भेजी, पर असफल हुआ"
अगले वर्ष अकबर ने खुद चित्तौड़ पर हमला किया।
भाग - 6.."महाराणा प्रताप"

"चित्तौड़ का तीसरा साका"
1567 ई.
निजामुद्दीन अहमद बख्शी (अकबर का दरबारी लेखक) तबकात-ए-अकबरी में लिखता है। "तकरीबन हिन्दुस्तान के सारे राजा-महाराजाओं ने बादशाही मातहती कुबूल कर ली थी, पर मेवाड़ का राणा उदयसिंह मजबूत किलों और ज्यादा फौज से मगरुर होकर सरकशी (बगावत) करता था"
31 अगस्त, 1567 ई.
इस दिन अकबर ने धौलपुर में पड़ाव डाला, जहां उसकी मुलाकात मेवाड़ के कुंवर शक्तिसिंह से हुई।
इस दौरान प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फजल भी यहीं मौजूद था | अबुल फजल ने शक्तिसिंह का नाम शक्ता लिखा है।
अबुल फजल अकबरनामा में लिखता है "शहंशाह ने धौलपुर में पड़ाव डाला, यहां उनकी मुलाकात राणा उदयसिंह के बेटे शक्ता से हुई | शहंशाह ने शक्ता से कहा कि हम राणा उदयसिंह पर हमला करने जा रहे हैं, तुम भी चलोगे हमारे साथ ? ये सुनते ही शक्ता गुस्से में आकर शहंशाह को कोर्निश (सलाम) किए बगैर ही चला गया"
सितम्बर, 1567 ई.
कुंवर शक्तिसिंह चित्तौड़ आए और महाराणा उदयसिंह को अकबर के हमले की सूचना से अवगत कराया।
महाराणा उदयसिंह ने चित्तौड़ के आस-पास की जमीन को उजाड़ दिया, फसलें खत्म कर दीं, ताकि मुगल सेना को रसद सामग्री ना मिल सके।
अबुल फजल लिखता है "इस दौरान चित्तौड़ में घास तक नहीं बची"
अक्टूबर, 1567 ई.
अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग के समीप पड़ाव डाला व दुर्ग को घेरना शुरु किया।
महाराणा उदयसिंह ने अपने सामन्तों की बात मानते हुए समस्त राजपरिवार व राजकोष के साथ दुर्ग छोड़ने का इरादा किया व दुर्ग की कमाल जयमल-पत्ता के हाथों में सौंपी।
महाराणा उदयसिंह लड़ते हुए दुर्ग से बाहर निकले।
महाराणा व राजपरिवार को दुर्ग से बाहर निकालने में वांकड़ा वीरगति को प्राप्त हुए।
इधर दुर्ग में सेना कम होने के कारण आस-पास के क्षेत्रों से फौरन सेना मंगवाई गई।
मेड़ता के वीर जयमल राठौड़ ने काल्पी के 1000 बक्सरिया बन्दूकची अफगानों को बुलवाया।
(ये लोग बन्दूक चलाने में माहिर थे)
दुर्ग में कुल 5000 राजपूत, 1000 अफगान, तकरीबन 1000 राजपूत क्षत्राणियां, 40000 की प्रजा व शेष अफगानों की पत्नियां व बच्चे थे
23 अक्टूबर, 1567 ई.
अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग को घेर लिया।
महाराणा उदयसिंह उदयपुर पहुंचे व उदयपुर से कुम्भलगढ़ पहुंचे।
महाराणा ने कुम्भलगढ़ में कुंवर प्रताप, कुंवर शक्तिसिंह व राव नेताजी को तैनात कर स्वयं राजपरिवार समेत गुजरात की ओर रेवा कांठा पर गोडिल राजपूतों की राजधानी राजपीपला पहुंचे।
यहां के राजा भैरव सिंह ने उनकी बड़ी खातिरदारी की।
महाराणा उदयसिंह यहां 4 माह तक रहे।