हल्दीघाटी का युद्ध ना केवल राजस्थान के इतिहास बल्कि हिंदुस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण युद्ध था जिसमे मेवाड़ की आन बचाने के लिए महाराणा प्रताप जबकि राजपूतो को पराजित करने के लिए अकबर की सेना आमने सामने हुयी थी. आइये आपको इस युद्ध से जुड़े रोचक तथ्य बताते है। :-
1. जब राजस्थान के सभी राजाओं ने अकबर के सामने घुटने टेक दिए थे लेकिन राणा प्रताप ने अकबर की गुलामी स्वीकार नहीं की थी तब हल्दीघाटी के मैदान में युद्ध हुआ था इसीलिए इसको हल्दीघाटी का युद्ध कहा जाता है।
2. महाराणा प्रताप के पास उस समय अकबर से बहुत कम मात्रा में सेना थी फिर भी अपने सम्मान के लिए महाराणा प्रताप 15 जून साल 1576 को अकबर की बड़ी और ताकतवर सेना के सामने युद्ध के लिए आ गए।
3. इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक हल्दीघाटी की लड़ाई सिर्फ चार दिन में समाप्त हो गई थी।
4. महाराणा प्रताप की सेना में मुख्य सेनापति ग्वालियर के राम सिंह तंवर, कृष्णदास चुण्डावत, रामदास झाला, पुरोहित गोपीनाथ, शंकरदास, पुरोहित जगन्नाथ जैसे योद्धा थे।
5. महाराणा प्रताप की सेना की अगुआई अफगान योद्धा हाकिम खां सुर ने की थी जिसके परिवार से अकबर का पुराना बैर था जब सुरी वंश के शेरशाह सुरी को मुगलों ने हराया था इसलिए वो प्रताप से मिलकर मुगलों को हराना चाहते थे।
6. महाराणा प्रताप की तरफ आदिवासी सेना के रूप में 400-500 भील भी शामिल थे जिसका नेतृत्व भील राजा रांव पूंजा कर रहे थे. भील शुरुवात से ही राजपूतो के स्वामिभक्त रहे थे।
7. राजस्थान का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार जेम्स टॉड के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में 22,000 सैनिक जबकि अकबर की सेना में 80,000 सैनिक थे जबकि दूसरी तरफ अकबर की सेना का नेतृत्व करने के लिए अकबर ने आमेर के राजपूत राजा मान सिंह को सेनापति बनाकर महाराणा प्रताप से लड़ने को भेजा. ये भी अजब संयोग था कि राजपूत राजपूत से लड़ रहा था।
8. अकबर की सेना में सेनापति मानसिंह के अलावा सैय्यद हासिम, सैय्यद अहमद खां, बहलोल खान, मुल्तान खान गाजी खान, भोकाल सिंह, खोरासन और वसीम खान जैसे योद्धा थे जिन्होंने मुगलों के लिए इससे पहले कई युद्धों लड़े थे।
9. महाराणा प्रताप के लिए सबसे बड़ी दुःख की बात यह थी उनका सगा भाई शक्ति सिंह मुगलों के साथ था और उनको इस पहाड़ी इलाके में युद्ध के लिए रणनीति बनाने में मदद कर रहा था ताकि युद्ध में कम से कम मुगलों का नुकसान हो।
10. 21 जून साल 1576 को दोनों की सेनाएं आगे बढ़ी और रक्ततलाई पर दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ जो केवल चार घंटे में ही समाप्त हो गया।
11. हल्दीघाटी के युद्द में महाराणा प्रताप की सेना से उनके सेनापति हाकिम खां सुर, डोडिया भीम, मानसिंह झाला, रामसिंह तंवर और उनके पुत्र सहित अनेको राजपूत योद्धा शहीद हुए जबकि अकबर की सेना से मान सिंह के अलावा सभी बड़े योद्धा मारे गये थे।
12. इस युद्ध की सबसे एतेहासिक घटना वो थी जब महाराणा प्रताप मान सिंह के करीब पहुँच गये थे और अपने घोड़े चेतक को उन्होंने मानसिंह के हाथी पर चढ़ा दिया और भाले से मान सिंह पर वार किया लेकिन मान सिंह तो बच गये लेकिन उनका महावत मारा गया. चेतक जब वापस हाथी से उतरा तो हाथी की सूंड में लगी तलवार से चेतक का एक पैर बुरी तरह घायल हो गया।
13. चेतक केवल तीन पैरों से 5 किमी तक दौड़ते हुए अपने स्वामी महाराणा प्रताप को रणभूमि से दूर लेकर गया और एक बड़े नाले से चेतक ने छलांग लगाई जिसमें चेतक के प्राण चले गये. उस समय महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह उनके पीछे थे और शक्तिसिंह को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने महाराणा प्रताप की मदद की।
14. दूसरी तरफ महाराणा प्रताप के रण से चले जाने पर उनके स्थान पर उनके हमशक्ल झाला मान सिंह ने उनका मुकुट पहनकर मुगलों को भ्रमित किया और रण में कूड़े पड़े।
15. मुगल उनको प्रताप समझकर उनपर टूट पड़े और इसमें झाला मान सिंह शहीद हो गये।
16. हल्दीघाटी युद्ध और चेतक की मृत्यु से उनका दिल विचलित हो गया और उन्होंने मुगलों से जीतने तक राजसी सुख त्यागकर जंगलो में जीवन बिताने का निश्चय किया और भविष्य में केवल चित्तोड़ को छोडकर सम्पूर्ण मेवाड़ पर कब्जा किया।
17. हल्दीघाटी में स्थित महाराणा प्रताप संग्रहालय में आप उन सभी घटनाओं का चित्रण देख सकते है जो युद्ध के दौरान घटी थी।
18. वर्तमान में इसका टिकिट 80 रूपये प्रति व्यक्ति है जिसमें आपको महाराणा प्रताप के जीवन पर बनी 10 मिनट की एक एनिमेटेड फिल्म, उनके जीवन से जुड़ी झांकिया और प्राकृतिक दृश्य का आनन्द ले सकते हैं।
19. इस संग्रहालय का निर्माण सरकार का प्रयास नही बल्कि एक व्यक्ति विशेष का प्रयास था जिसका नाम मोहन श्रीमाली है।
20. मोहन श्रीमाली एक सेवानिवृत्त स्कूल अध्यापक है जिन्होंने अपने जीवन की सारी पूंजी इस संग्रहालय के निर्माण ने लगा दी जबकि इससे पहले इस स्थान का कोई विकास नहीं हो पा रहा था और इसकी संस्कृति धूमिल हो रही थी।









Rani
Padmini रानी पदमिनी के पिता का नाम गंधर्वसेन और माता का नाम चंपावती था
| Rani Padmini रानी पद्मिनी के पिता गंधर्वसेन सिंहल प्रान्त के राजा थे
|बचपन में पदमिनी के पास “हीरामणी ” नाम का बोलता तोता हुआ करता था जिससे
साथ उसमे अपना अधिकतर समय बिताया था | रानी पदमिनी बचपन से ही बहुत सुंदर
थी और बड़ी होने पर उसके पिता ने उसका स्वयंवर आयोजित किया | इस स्वयंवर में
उसने सभी हिन्दू राजाओ और राजपूतो को बुलाया | एक छोटे प्रदेश का राजा
मलखान सिंह भी उस स्वयंवर में आया था |
उस
समय चित्तोड़ पर राजपूत राजा रावल रतन सिंह का राज था | एक अच्छे शाषक और
पति होने के अलावा रतन सिंह कला के संरक्षक भी थे |उनके ददरबार में कई
प्रतिभाशाली लोग थे जिनमे से राघव चेतन संगीतकार भी एक था | राघव चेतन के
बारे में लोगो को ये पता नही था कि वो एक जादूगर भी है | वो अपनी इस बुरी
प्रतिभा का उपयोग दुश्मन को मार गिराने में उपयोग करता था | एक दिन राघव
चेतनका बुरी आत्माओ को बुलाने का कृत्य रंगे हाथो पकड़ा जाता है |इस बात का
पता चलते ही रावल रतन सिंह ने उग्र होकर उसका मुह काला करवाकर और गधे पर
बिठाकर अपने राज्य से निर्वासित कर दिया| रतन सिंह की इस कठोर सजा के कारण
राघव चेतन उसका दुश्मन बन गया |
अपने
अपमान से नाराज होकर राघव चेतन दिल्ली चला गया जहा पर वो दिल्ली के
सुल्तान अलाउदीन खिलजी को चित्तोड़ पर आक्रमण करने के लिए उकसाने का लक्ष्य
लेकर गया |दिल्ली पहुचने पर राघव चेतन दिल्ली के पास एक जंगल में रुक गया
जहा पर सुल्तान अक्सर शिकार के लिया आया करते थे |एक दिन जब उसको पता चला
कि की सुल्तान का शिकार दल जंगल में प्रवेश कर रहा है तो राघव चेतन ने अपनी
बांसुरी से मधुर स्वर निकालना शुरु कर दिया|
अगले
दिन सुबह भोर होते ही 150 पालकिया किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की
| पालकिया वहा रुक गयी जहा पर रतन सिंह को बंदी बना रखा था |पालकियो को
देखकर रतन सिंह ने सोचा, कि ये पालकिया किले से आयी है और उनके साथ रानी भी
यहाँ आयी होगी ,वो अपने आप को बहुत अपमानित समझने लगा |उन पालकियो में ना
ही उनकी रानी और ना ही दासिया थी और अचानक से उसमे से पूरी तरह से सशस्त्र
सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा दिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर
तेजी से घोड़ो पर पर किले की ओर भाग गये | गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से
लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये जबकि बादल , रतन सिंह को सुरक्षित किले
में पहुचा दिया |
जब
सुल्तान को पता चला कि उसके योजना नाकाम हो गयी , सुल्तान ने गुस्से में
आकर अपनी सेना को चित्तोड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया | सुल्तान के सेना
ने किले में प्रवेश करने की कड़ी कोशिश की लेकिन नाकाम रहा |अब खिलजी ने
किले की घेराबंदी करने का निश्चय किया | ये घेराबंदी इतनी कड़ी थी कि किले
में खाद्य आपूर्ति धीरे धीरे समाप्त हो गयी | अंत में रतन सिंह ने द्वार
खोलने का आदेश दिया और उसके सैनिको से लड़ते हुए रतन सिंह वीरगति को प्राप्त
हो गया | ये सुचना सुनकर Rani Padmini पद्मिनी ने सोचा कि अब सुल्तान की
सेना चित्तोड़ के सभी पुरुषो को मार देगी | अब चित्तोड़ की औरतो के पास दो
विकल्प थे या तो वो जौहर के लिए प्रतिबद्ध हो या विजयी सेना के समक्ष अपना
निरादर सहे |
सभी
महिलाओ का पक्ष जौहर की तरह था | एक विशाल चिता जलाई गयी और रानी पदमिनी
के बाद चित्तोड़ की सारी औरते उसमे कूद गयी और इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े
देखते रह गये | अपनी महिलाओ की मौत पर चित्तोड़ के पुरुष के पास जीवन में
कुछ नही बचा था | चित्तोड़ के सभी पुरुषो ने साका प्रदर्शन करने का प्रण
लिया जिसमे प्रत्येक सैनिक केसरी वस्त्र और पगड़ी पहनकर दुश्मन सेना से तब
तक लड़े जब तक कि वो सभी खत्म नही हो गये | विजयी सेना ने जब किले में
प्रवेश किया तो उनको राख और जली हुई हड्डियों के साथ सामना हुआ |जिन महिलाओ
ने जौहर किया उनकी याद आज भी लोकगीतों में जीवित है जिसमे उनके गौरवान्वित
कार्य का बखान किया जाता है।सौजन्य से :-