सोमवार, 18 दिसंबर 2017

#इतिहास में तो ये नहीं पढ़ाया गया है…

#इतिहास में तो ये नहीं पढ़ाया गया है की हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है. ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है।
क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना..महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था. मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके. हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं.
हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था. उस स्थिति में महाराणा ने “गुरिल्ला युद्ध” की योजना बनायीं और मुगलों को कभी भी मेवाड़ में सेटल नहीं होने दिया. महराणा के शौर्य से विचलित अकबर ने उनको दबाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के बाद भी हर साल 1577 से 1582 के बीच एक एक लाख के सैन्यबल भेजे जो कि महाराणा को झुकाने में नाकामयाब रहे.
हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप के खजांची भामाशाह और उनके भाई ताराचंद मालवा से दंड के पच्चीस लाख रुपये और दो हज़ार अशर्फिया लेकर हाज़िर हुए. इस घटना के बाद महाराणा प्रताप ने भामाशाह का बहुत सम्मान किया और दिवेर पर हमले की योजना बनाई। भामाशाह ने जितना धन महाराणा को राज्य की सेवा के लिए दिया उस से 25 हज़ार सैनिकों को 12 साल तक रसद दी जा सकती थी. बस फिर क्या था..महाराणा ने फिर से अपनी सेना संगठित करनी शुरू की और कुछ ही समय में 40000 लडाकों की एक शक्तिशाली सेना तैयार हो गयी।
उसके बाद शुरू हुआ हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको इतिहास से एक षड्यंत्र के तहत या तो हटा दिया गया है या एकदम दरकिनार कर दिया गया है. इसे बैटल ऑफ़ दिवेर कहा गया गया है. बात सन 1582 की है, विजयदशमी का दिन था और महराणा ने अपनी नयी संगठित सेना के साथ मेवाड़ को वापस स्वतंत्र कराने का प्रण लिया. उसके बाद सेना को दो हिस्सों में विभाजित करके युद्ध का बिगुल फूंक दिया..एक टुकड़ी की कमान स्वंय महाराणा के हाथ थी दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे.
कर्नल टॉड ने भी अपनी किताब में हल्दीघाटी को Thermopylae of Mewar और दिवेर के युद्ध को राजस्थान का मैराथन बताया है. ये वही घटनाक्रम हैं जिनके इर्द गिर्द आप फिल्म 300 देख चुके हैं. कर्नल टॉड ने भी महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, तेज और देश के प्रति उनके अभिमान को स्पार्टन्स के तुल्य ही बताया है जो युद्ध भूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से यूँ ही टकरा जाते थे.
दिवेर का युद्ध बड़ा भीषण था, महाराणा प्रताप की सेना ने महाराजकुमार अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर थाने पर हमला किया , हज़ारो की संख्या में मुग़ल, राजपूती तलवारो बरछो भालो और कटारो से बींध दिए गए। युद्ध में महाराजकुमार अमरसिंह ने सुलतान खान मुग़ल को बरछा मारा जो सुल्तान खान और उसके घोड़े को काटता हुआ निकल गया.उसी युद्ध में एक अन्य राजपूत की तलवार एक हाथी पर लगी और उसका पैर काट कर निकल गई। महाराणा प्रताप ने बहलेखान मुगल के सर पर वार किया और तलवार से उसे घोड़े समेत काट दिया।
शौर्य की ये बानगी इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलती है. उसके बाद यह कहावत बनी की मेवाड़ में सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया जाता है.ये घटनाये मुगलो को भयभीत करने के लिए बहुत थी। बचे खुचे 36000 मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्म समर्पण किया. दिवेर के युद्ध ने मुगलो का मनोबल इस तरह तोड़ दिया की जिसके परिणाम स्वरुप मुगलों को मेवाड़ में बनायीं अपनी सारी 36 थानों, ठिकानों को छोड़ के भागना पड़ा, यहाँ तक की जब मुगल कुम्भलगढ़ का किला तक रातो रात खाली कर भाग गए।
दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुन्दा , कुम्भलगढ़ , बस्सी, चावंड , जावर , मदारिया , मोही , माण्डलगढ़ जैसे महत्त्वपूर्ण ठिकानो पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद भी महाराणा और उनकी सेना ने अपना अभियान जारी रखते हुए सिर्फ चित्तौड़ कोछोड़ के मेवाड़ के सारे ठिकाने/दुर्ग वापस स्वतंत्र करा लिए. अधिकांश मेवाड़ को पुनः कब्जाने के बाद महाराणा प्रताप ने आदेश निकाला की अगर कोई एक बिस्वा जमीन भी खेती करके मुसलमानो को हासिल (टैक्स) देगा , उसका सर काट दिया जायेगा। इसके बाद मेवाड़ और आस पास के बचे खुचे शाही ठिकानो पर रसद पूरी सुरक्षा के साथ अजमेर से मगाई जाती थी.
दिवेर का युद्ध न केवल महाराणा प्रताप बल्कि मुगलो के इतिहास में भी बहुत निर्णायक रहा। मुट्ठी भर राजपूतो ने पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करने वाले मुगलो के ह्रदय में भय भर दिया। दिवेर के युद्ध ने मेवाड़ में अकबर की विजय के सिलसिले पर न सिर्फ विराम लगा दिया बल्कि मुगलो में ऐसे भय का संचार कर दिया की अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण लगभग बंद हो गए.
इस घटना से क्रोधित अकबर ने हर साल लाखों सैनिकों के सैन्य बल अलग अलग सेनापतियों के नेतृत्व में मेवाड़ भेजने जारी रखे लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली. अकबर खुद 6 महीने मेवाड़ पर चढ़ाई करने के मकसद से मेवाड़ के आस पास डेरा डाले रहा लेकिन ये महराणा द्वारा बहलोल खान को उसके घोड़े समेत आधा चीर देने के ही डर था कि वो सीधे तौर पे कभी मेवाड़ पे चढ़ाई करने नहीं आया. ये इतिहास के वो पन्ने हैं जिनको दरबारी इतिहासकारों ने जानबूझ कर पाठ्यक्रम से गायब कर दिया है. जिन्हें अब वापस करने का प्रयास किया जा रहा है।

     🙏⛳जय भवानी जय राजपूताना⛳🙏

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

अहिंसा परमो धर्मः ने किया देश और धर्म का सत्यानाश!

कभी कभी मै सोचता था कि ” हिन्दु सनातन धर्म इतना महान और शक्तीशाली था कि पूरे विश्व में उसका डंका बजता था फिर क्या हुआ कि सनातन धर्म ” हिन्दु “ का इतना पतन (नुकसान या हानि ) हो गया क्या कारण था????
जब सोचा और पढा तो समझ में आया कि सम्राट अशोक ने अपने शासन काल में अपनी वीरता से सम्पूर्ण भारत पर अपना एक छत्र राज किया परन्तु जब बौद्ध धर्म अपनाया तो ” अंहिसा परमो धर्मः ” श्लोक का प्रचार किया और इस अधूरे श्लोक ने सनातन धर्म ” हिन्दु ” का ” सत्यानाश ” कर डाला।
जबकि महाभारत का पूरा श्लोक है!!!!!
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः
अर्थात:- यदि मनुष्य के लिऐ अहिंसा परम धर्म है तो ” धर्म ” मतलब (सत्य ) की रक्षा के लिए हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है जब धर्म (सत्य ) पर संकट आए तो मनुष्य को शस्त्र उठाना चाहिए और धर्म (सत्य ) की रक्षा करनी चाहिए।
अधूरे श्लोक का परिणाम ये निकला कि ” हिन्दुओं “ने अपने शस्त्र छोड दिए ” शस्त्र विद्या ” का अभ्यास छोड दिया ऋषि मुनियों ने ” शस्त्रों ” पर अनुसंधान करने छोड दिए और ये मान बैठे कि सनातन धर्म (हिन्दु ) धर्म तो विश्व में सबसे महान और शक्तीशाली है इस को कोई नहीं हरा सकता और चल पडे शांती के मार्ग पर।
सैकडों वर्ष बीत गए जो ” शस्त्र विद्या ” एक पीढी से दुसरी पीढी को प्राप्त होती थी वो नहीं प्राप्त नहीं हुई आने वाली पीढीयों को के पास जो आणविक और दिव्य अस्त्रों का जो ज्ञान था वो नहीं मिला परिणाम ये हुआ कि जो हिन्दु योद्धा थे वो सिर्फ तीर ,तलवार और भालों से लडने वाले योद्धा बनकर रह गए दिव्य अस्त्रों का ज्ञान उन्हें नहीं मिल पाया और ” अंहिसा परमो धर्मः ” के कारण बहुत कम ही योद्धा रह गए।
और अधिकतर हिन्दु शांती और अहिंसा के मार्ग पर चलते थे क्योंकि भारत वर्ष की संस्कृति में विज्ञान उन्नत किस्म का था तो हिन्दु ऐसी वस्तुओं का निर्माण करते थे जो पूरे विश्व में कहीं नहीं होती थी तो उनसे हिन्दु विदेशियों से व्यापार करता था और विदेशी उन्नत किस्म की वस्तुऐं खरीदने भारत आते थे और भारतीय व्यापारी व्यापार से बहुत धन अर्जित करते थे।
जिसके कारण भारत सोने की चिडिया कहलाता था यही कारण था कि मुगल लुटेरों की नजर भारत पर जम गई और वो भारत को लूटने के लिऐ भारत पर हमले करने लगे क्योंकि भारत अहिंसा के मार्ग पर चलता था और योद्धा कम बचे थे।
इसकी तुलना में मुगल लुटेरे क्रूर और हिंसक पृवर्ती के थे उन्होंने हिन्दुओं की नृशंस हत्या करनी शूरू कर दी और भारत के हिस्सों पर कब्जा करना शुरू कर दिया भारत में योद्धा कम थे और मुगल दुर्दांत और हत्यारे थे उन्होंने भारत पर कब्जा कर लिया उसके बाद अंग्रेजों ने भी यही काम किया और भारत को लूट कर ले गऐ।
इसी अधूरे श्लोक ” अंहिसा परमों धर्मः ” का उपयोग गाॅधी ने किया और भारत के क्रांतीकारी वीरों को दोषी बताया फिर 1947 की आजादी के बाद भारत के प्रधान मंत्री ” जवाहर लाल ” नेहरू ने भी इसी अधुरे श्लोक की गलतफहमी में हथियारों के कारखाने में हथियारों का उत्पादन बंद करवा दिया जिसका परिणाम ये हुआ चीन ने पीठ में छुरा घोंप दिया और 1962 में भारत पर हमला कर दिया और हिमालय पर्वत के बहुत सारे हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया।
”कैलाश पर्वत” जो कि हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थल भी चीन के कब्जे में चला गया और हमारे जवानों के पास इतना हथियार और गोला बारूद भी नहीं था की चीन से लड सके और तो मित्रों कहने का तात्पर्य इतना ही है कि इस अधुरे श्लोक ” अंहिसा परमो धर्मः ” का उपयोग छोडो और जागो और धर्मकी रक्षा के लिऐ शस्त्र उठाओ।

बुधवार, 15 नवंबर 2017

चित्तौड़गढ़ दुर्ग विवाह एक बार जरूर पढें “पदमावती जौहर”


जब किले में रसद सामग्री समाप्त हो गई,
और चित्तौड़गढ़ (मेवाड़) के रावल रतनसिंह सभी मनसबदारों, और सेनापति सरदारों से मन्त्रणा कर के इस नतीजे पर पहूँचे कि, धोखा तो हमारे साथ हो चुका है! हमने वही भूल की जो हमारे पूर्वज करते रहे परंतु धर्म यही कहता है कि अतिथि  देवो भव ओर शत्रु ने हमारी पीठ मे छूरा घोंपा है,हम ने धर्म की रक्षा की धर्म हमारी रक्षा करेगा...                                                 सबसे बड़ी बात कि हमारी सारी योजनाए निष्फल होती  जा रही है,  क्योंकि कोई भी सेना बिना भोजन के युद्ध लड़ना तो दूर ज़िन्दा भी नही रह सकती!
और  हमने बहुत प्रयास कर लिए की युद्ध ना हो एक राजपूत  स्त्री को विधर्मी देखे यह असहनीय  कृत्य भी हम सहन  कर चुके है परंतु विधि का कुछ और ही विधान है जो हमारा मूल धर्म भी, ह़ैे शायद  भवानी रक्त पान करना चाहती है,
और चित्तोड़ दुर्ग का कोमार्य भंग होने का समय आ गया है!
रतन सिंह के मुख को निहार रही थी समस्त सेना ओर कुछ अद्भूत सुनने की अभिलाषा हो रही थी!

रावल ने कहा- हम परम सौभाग्यशाली  है;जो दुर्ग के विवाह का अवसर महादेव ने हमें दिया है, इसे रक्त के लाल रंग  ओर जौहर की गुलाल से सुसज्जित करने की तैयारी हो  और महाकाल के स्वागत मे नरमुंड की माला अर्पित करने का अवसर ना चुके कोई सेनानी...
हमें अब अपनी रजपूती को लाज्जित नहीं करना!
प्रात: किले के द्वार खोल दिये जाये, और अपने आराध्य का स्वागत केशरिया बाना पहन कर करे जौहर कुंड को सजाया जाये महाकाल के प्रसाधन
में रूपवातियों के देह की दिव्य भस्म  गुलाल तेैयार की जाये..

और   इतना सुनते ही मर्दाना सरदारो के आभा मंड़ल पर दिव्य तेज बिखर गया, और जनाना सरदार अपने दिव्य जौहर की कल्पना में आत्म विभोर  हो उठे,, बात रनिवास तक पहुँची पूरे दुर्ग मे एक दिव्य वातावारण बन गया हर एक वीर ओर वीरांगना हर्ष  और उल्लास से भरपूर हर हर महादेव के नारे लगाने  लगे, मानो इसी दिन का इंतजार कर रहे हो!
हर कोई महादेव का वरण करने को वंदन करने को आतुर था!

और बादल  बोल उठा मैंने तो पहले ही कहा था ,ये तुर्क विश्वास के लायक नहीं परंतु मेरी किसी ने नहीं मानी राजपूत वीरों की भुजायें फड़कने  लगी ओर नेत्रों मे शत्रु के चित्र उतर  आये!

मानो विवाह की तैयारियों में डूब गया किला,किले को सजाने में लग गए समस्त किलेवासी कहीं आने वाले के दीदार में कोई कमी ना रह जाये, मेरे महाकाल आने वाले है!
इतना व्यस्त तो दुर्ग राजतिलक के समय भी नही रहा होगा और इतनी ख़ुशी तो राजकुमार के जन्म पर भी नहीं थी!
वाह! कितना सुन्दर दिख रहा है दुर्ग,इसका विवाह जो है लो  मुहूर्त भी निकल  आया ब्रह्म मुहूर्त..

, राजपूत अपनी ता
तलवारों बरछो, भालों को चमकाने में और केशरिया बाना  बांधने में..
तो क्षत्राणियां अपने अपने संदुको से विवाह के लाल, हरे जोड़े निकाल कर एक दूसरे को दिखाती हुई पूछ रही थी मुझ पर ये कैसारहेगा? ननदें अपनी भाभीयों को सजाने में तो भाभीयाँ अपनी ननदों को संवारने में व्यस्त हो गई, रखडी़, गोरबंद, झूमका, बिन्दी, नथनी, टीका, पायजेब, चुडी़ ,कंगन, बिछुडी़, बाजूबंद, हार, और मंगलसूत्र सजने लगे...

हर  स्त्री को इतना सजने की ललक को फेरों के समय भी नहीं थी उस दिन भी किसी के लिये सजना था ओर आज भी
लेकिन उस दिन पीहर से बिछड़ने का गम था आज तो बस मिलन ही मिलन है!
, पूरे किले मे एक अभूतपूर्व महोत्सव की तैयारियां हो रही थी मानो ये अवसर बड़ी मुश्किल से मिला हो ओर चेहरो की रौनक ऐसी कि कल बारात में जाने की उत्सुकता हो!

कुंड पर चन्दन की लकड़ियाँ नारियल, देशी घी, और पूजन की सामग्री इकट्ठी की गई गंगा जल के कलश, और तुलसी पत्र की  व्यवस्था सुनिश्चित की गई, राज पुरोहित ने रनिवास में ख़बर भेजी  की जौहर सूर्य की पहली किरण के दर्शन करने उपरांत  शुरू हो जायेगा और अग्रिम और अंतिम पंक्ति महारानी सुनिश्चित करे!

जैसे युद्ध में हरावल में रहने की होड़ रहती है जोहर में भी प्रथम पंक्ति में रहने की और महारानी के साथ रहने की होड़ मच गई!

ढ़ोल, नंगाड़े,शाहनाइयाँ और मृदंग बजने लगे, हाथी , घोडे़ और सवार  सजने लगे, परंतु सबसे ज्यादा उत्साह तो औरतों में था!

सुबह होने वाली थी ब्रह्म  मुहूर्त ना चुक  जाये सभी सती स्त्रियों ने अंतिम बार अपने सुहाग के दर्शन किए महारानी पदमावती ने रावल के चरणों का वन्दन किया और  फिर मुड़ कर नही देखा रतन सिंह कुछ कहना चाहते थे परंतु भवानी के मुख का तेज देख उनका मुँह ना खुल पाया, आज पद्मिनी उनको अपनी पत्नी नही महाकाली सी प्रतीत हो रही थी, हो भी क्यों ना? महाकाल की भस्म बनने जो जा रही हैे उनमें विलीन होने जा रही है!
जौहर स्थल पर स्वस्थी वाचन  शुरू हुआ पुरोहितों की टोली ने  वैदिक मंत्रो से पूजन शुरू करवाया और मुख मे़ तुलसी पत्र, गंगा जल, हाथ में नारियल पकड़कर सूर्य की ओर मुख करके प्रथम  पंक्ति महारानी" पदमावती "के साथ तैयार थी! मोक्ष के मार्ग पर बढ़ने को तैयार थी !
सनातन धर्म की हिन्दू धर्म की अस्मिता और रघु कुल की आन  शान की रक्षा करने को, सनातन धर्म के लिये स्वयं की अाहुती देने को अग्नि मंत्रोचार के साथ प्रज्वलित कर  दी गई और उसमें नारियल, घी डाल दिया गया! अग्नि की  लपटे भगवा  रंग की मानो सूर्य का अरूणोदय स्वरूप अस्ताचल में जाने को आतुर हो और अंधकार मेवाड़ को अपनी आगोश  में लेने  का अन्देशा देता हो, वैदिक मंत्र सुन प्रथम  पंक्ति की क्षत्राणियाँ कूद पडी अग्नि में क्षण भर मे स्वाहा...हो गई अग्नि सी पावन अग्नि में मिल गई!

अग्नि और घृत का मिलन देह को क्षण भर में ही भस्म बना रही था देखते ही देखते एक कुंड मे 16000 क्षत्राणियाँ भस्म बन गई और पूरे दुर्ग पर एक दिव्य सुगन्ध फैल गई जो पूर्व में कभी किसी ने महसूस नहीं की थी!

उनके मुख पर इतना तेज था की अग्नि भी मंद पड़ जाये,पुरोहित के स्वाहा के साथ ही सभी  देवियों ने  अपने तन की अाहुतियाँ दे दी!
अभी विवाह की एक रस्म बाकी थी दुर्ग पर फैली दिव्य सुगंध  ने  सभी रजपूतों को कसुमापान करने पर मजबुर कर दिया,,,, भस्म तैयार थी अब महाकाल के स्वागत की बारी थी ....

अपनी 80 साल की माँ ओर 19 साल की पत्नी के जौहर की तैयारी कर रहे "बादल" के नेत्रों में मानो जल सुख गया उसने अपनी माँ से पुछा  आप कब पधारेंगे  माँ  जो अपने बुड्ढे हाथों से अपनी चोटी  बना रही थी अपने पुत्र को देखकर बोली तु एक बार अपनी पत्नी से बात तो कर ले,अभी कोई 4 साल ही हुए थे बादल के विवाह को और बादल के नाक पर हर दम गुस्सा रहता था कभी हिम्मत नही हुई पंवारनी जी की बादल से बात करने की ओर ना कभी बादल को फुर्सत मिली जबकी दो बच्चों के बाप बन गए थे, बादल, पंवार जी के पास पहुँच  बादल कुछ बोलना चाहता था उससे पहले पंवारनी जी बोल उठी, आप को मैंने बहुत दु:ख दिया है, इतना कहते ही बादल, ने मुट्ठी दीवार पर दे मारी और बोल पडा़ पहली बार की मैंने आप को एक औरत समझा आप को बोलने नहीं दिया कभी ओर 3 बर्ष से आपको पीहर भी नहीं जाने दिया, मैंने सीधे मुँह कभी आपसे बात नहीं की, बादल का हाथ पकड़कर, पंवारनी जी बोली आप मन भारी ना करे मैं मोक्ष के मार्ग पर जा रही हूँ , मुझे कमजोर ना करे, आप ऊपर से सख्त बनकर रहे परंतु मुझे पता है आप अंदर से कितने नर्म है?एक स्त्री अपने पति को सबसे बेहतर समझ ले यही उसके जीवन का सार है! आप मिनाल ओर किरानं को संभाले मैं उनको देख कमजोर ना पड जाऊ!
जब तक बादल की माँ तैयार हो जौहर कुं।ड पर आ गई, बादल के सामने पतराय आंखो से देखकर सोचने  लगी कभी सुख नहीं मिला मेरे बेटे को 3साल की उम्र मे पिता चल  बसे अब 3-4 साल के अपने ही बच्चों  को अपने हाथों कैसे मारेगा?इतने में माँ और पत्नी अग्नि में प्रवेश कर गई! उसके सामने उसका स्वाहा हो गया!
पत्नी से अपने बच्चों को छुड़ा कर  बादल ने सोचा मैं सोचता था आदमी शक्तिशाली होता है; लेकिन आज पता चला कि औरत को शक्ति क्यों कहते है?असल में शक्ति का अवतार होती है! क्षत्राणियों आदमी अंदर से बहुत कमजोर होता है, मैं अपने बच्चों को धार स्नान नहीं करवा सकता ये सोच अपने दोनों बच्चों को अग्नि- कुंड के पास ले गया और मिनाल को अंदर फेंकने लगा उसने अपने बाबोसा के कुर्ते को पकड़ लिया और कहने लगी मैं अब लड़ाई नहीं करूँगी, आप कहोगे वहीं करूँगी मैं किरानं को कभी नही मारूँगी बाबोसा मुझे मत मारो और बादल ने एक झटके से अपना हाथ छुडा़ लिया और एक चीख के साथ...... फिर मासुम 3 साल का किरानं जो सब समझ चुका था मासुम निगाहों से अपने बाप को देख कर बोला बाबोसा मे बडा़ हो कर आप के साथ इन तुर्को को मारूँगा मैं तो आदमी हूँ, बादल ने उसे भी  धक्का दे दिया!
तब तक  सारा जौहर सम्पूर्ण हो चुका था और रजपूतों के लिये खो ने को कुछ नहीं बचा था!

राजपूती वीरों ने तलवारों से अपने हाथों को ओर घोड़े से पीठ को बांध  लिया था हर हर महादेव के जयकारों के साथ
केशरिया बाना पहन कर कसुमापान  कर   वीर कूद पडे़ समरांगण मे एक एक ने 100-100 को मारा परंतु संख्या मे तुर्क ज्यादा थे!
फिर चढ़ाने लगे नरमुंडो के हार और लाल रक्त से महाकाल के स्वागत मे पूरे द्वार को रंग दिया 30000 नर मुंडो से स्वागत किया अपने आराध्य का और दुर्ग का विवाह सम्पन्न हुआ,महाकाल के स्वागत में यही तो होता है ;भस्म रक्त, नरमुंड और बाजों में कुत्तों का  सियारों का विलाप मूर्त लाशों को काल भैरव के कुत्ते खूब आनन्द से खा  रहे थे..
दुर्ग अब कुँवारा नहीं रहा आज उसका विवाह हो गया ऐसे ही होता है ;दुर्ग का विवाह अब ये कौन कह रहा है कि द्वार खिलजी के स्वागत मे खोले गए?
हा हा हा हा हा उसे कौन समझाये ? नादान जो ठहरा .....
खिलजी को यह महसूस हो गया की चित्तौड़ ने उसके लिये नहीं किसी और के स्वागत में द्वार खोला है वो ठगा सा दुर्ग के दृश्य को निहारने लगा और सोचने लगा ये इंसान नहीं हो सकते, 
ये तो दिव्य लोक के देवता हैं!
उसे मन में ग्लानि हो उससे पहले एक विचार आया की ये मेरी वजह से नहीं किसी और के लिए था!
मैं गुरूर करने लायक भी नहीं,लौट गया नमन कर चित्तौड़ को..

खिलजी ने चित्तौड़ में प्रवेश किया परंतु उसके स्वागत मे कुत्ते भी नहीं आये क्योंकि वो महाभोज  का आनन्द ले रहे थे फिर दुर्ग के विवाह में मेहमान बनकर आया खिलजी ऐसा अद्भूत नजारा देख दुर्ग में एक रात भी नहीं गुजार पाया।

जो दृढ़ राखे धर्म को तिही राखे करतार
जय भवानी साभार जितेन्द्र सक्तावत।
🚩🙋🙏

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

महान सम्राट प्रथ्वीराज चौहान की कुछ महान बातें।

👉(1) प्रथ्वीराज चौहान ने 12 वर्ष कि उम्र मे बिना किसी
हथियार के खुंखार जंगली शेर का जबड़ा फाड़ ड़ाला ।

👉(2) चौहान ने 16 वर्ष की आयु मे महाबली नाहरराय को
हराकर माड़वकर पर विजय प्राप्त करना ।

👉(3) चौहान ने तलवार के एक वार से जंगली हाथी का सिर
धड़ से अलग कर देना ।

👉(4) महान सम्राट प्रथ्वीराज चौहान कि तलवार का वजन
84 किलौ होना और उसे एक हाथ से चलाना ।
(5) पशु-पक्षियो के साथ बाते करना अर्थार्त उनकी भाषा
का ज्ञात होना ।

👉(6) महान सम्राट का पुर्ण रूप से मर्द होना अर्थार्त उनकी
छाती पर स्तंन का न होना ।

👉(7) महान सम्राट की भुजाँऔ का उनके घुटनो पर लगना ।

👉(8) प्रथ्वीराज चौहान का 1166 मे अजमेर की गद्दी पर
बैठना और…

👉(9) दो वर्ष के बाद यानि 1168 मे दिल्ली के
सिहासन पर बैठकर पुरे हिन्दुस्तान पर राज करना ।

👉(10) गौरी को 16 बार हराकर जीवन दान देना और 16 बार
कुरान की कसम का खिलाना।

👉(11) गौरी का 17 वी बार चौहान को हराना अपने देश ले
जाना और चौहान का उसके राजदरबार मे अपनी आँखो का
फड़वा लेना पर निचे ना करना ।

👉(12) गौरी का महान सम्राट को अनेको प्रकार कि पिड़ा
देना और कई महिनो तक भुखा रखना पर सम्राट का न मरना

👉(13) महान सम्राट की सबसे बड़ी बात जन्मसे शब्द भेदी
बाण का ज्ञात होना ।

👉(14) चौहान का गौरी को उसी के भरे दरबार मे शब्द भेदी
बाण से मारना ।

👉(15) गौरी को मारने के बाद मुल्लो के हाथो न मरना
अर्थार्त स्वंय को खुद मार लेना ।।।

।। जय वीर पुत्र प्रथ्वीराज चौहान ।।
      ।। जय राजपुताना ।।
      ।। जय माँ भवानी ।।

शनिवार, 4 नवंबर 2017

इस महाराजा ने बनाया था भारत को सोने की चिड़िया, जिसे हम भूल गए।


दोस्तों हिंदुस्तान के इतिहास में ऐसा बहुत कुछ छूट गया, जिसे ज्यादातर लोग नहीं जानते । क्योंकि इनके सम्मान में बहुत कम जगहों पर ही वर्णन किया गया है। यह हमारे लिए एक बड़े शर्म की बात है कि जिसने देश को सोने की चिड़िया बनाया, आज उसके बारे में हम कुछ नहीं जानते।

आज हम बात कर रहे हैं महाराज विक्रमादित्य के बारे में, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। इन्हीं के शासनकाल में भारत को सोने की चिड़िया बना था। इस काल को देश का स्वर्णिम काल भी माना जाता है। यह उज्जैन के राजा गन्धर्व सैन थे। इनकी तीन संताने थी, सबसे बड़ी संतान एक लड़की थी मैनावती, दूसरी संतान लड़का भृतहरि और सबसे छोटी संतान वीर विक्रमादित्य। बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पद्म सैन के साथ कर दी गई। जिनका एक लड़का हुआ गोपीचन्द। आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए। फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली।

आज हिंदुस्तान की संस्कृति और नाम केवल विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है। अशोक मौर्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया। बौद्ध बनकर 25 साल राज करने के बाद भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था।

विक्रमादित्य को क्यों याद रखना जरूरी?

शायद ही आपको पता हो कि रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे। महाराज विक्रमादित्य ने ही इनकी पुनः खोज करवा कर स्थापित किया। भगवान विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाए। सनातन धर्म की रक्षा की।

विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् को लिखा। जिसमें भारत का इतिहास है। अन्यथा भारत का इतिहास तो दूर की बात हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके होते।

हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे। उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए। राज अपने छोटे भाई विक्रमदित्य को दे दिया। वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म की रक्षा हुई, हमारी संस्कृति सुरक्षित हुई।

विक्रमादित्य के शासन काल को भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है। विक्रमादित्य के काल में भारत का कपड़ा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे। भारत में इतना सोना आ गया था कि विक्रमादित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे।

हिन्दू कैलंडर की स्थापना भी विक्रमादित्य की देन है. हिंदू धर्म में आज जो ज्योतिष गणना होती है हिन्दी सम्वंत, वार, तिथियां, राशि, नक्षत्र, गोचर आदि भी उन्ही की रचना है। वे बहुत ही पराक्रमी, बलशाली और बुद्धिमान राजा थे।

ऐसा कहा जाता है कि कई बार देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे। विक्रमादित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे। न्याय, राज सब धर्मशास्त्र के नियमों पर चलता था। विक्रमादित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इनके शासन काल में प्रजा धर्म और न्याय पर चलने वाली रही।

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

अकबर के इतिहास का एक ऐसा युद्ध जो सिर्फ चार घंटों में ही समाप्त हो गया था।

हल्दीघाटी का युद्ध ना केवल राजस्थान के इतिहास बल्कि हिंदुस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण युद्ध था जिसमे मेवाड़ की आन बचाने के लिए महाराणा प्रताप जबकि राजपूतो को पराजित करने के लिए अकबर की सेना आमने सामने हुयी थी. आइये आपको इस युद्ध से जुड़े रोचक तथ्य बताते है। :- 



1. जब राजस्थान के सभी राजाओं ने अकबर के सामने घुटने टेक दिए थे लेकिन राणा प्रताप ने अकबर की गुलामी स्वीकार नहीं की थी तब हल्दीघाटी के मैदान में युद्ध हुआ था इसीलिए इसको हल्दीघाटी का युद्ध कहा जाता है।

2. महाराणा प्रताप के पास उस समय अकबर से बहुत कम मात्रा में सेना थी फिर भी अपने सम्मान के लिए महाराणा प्रताप 15 जून साल 1576 को अकबर की बड़ी और ताकतवर सेना के सामने युद्ध के लिए आ गए।

3. इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक हल्दीघाटी की लड़ाई सिर्फ चार दिन में समाप्त हो गई थी।

4. महाराणा प्रताप की सेना में मुख्य सेनापति ग्वालियर के राम सिंह तंवर, कृष्णदास चुण्डावत, रामदास झाला, पुरोहित गोपीनाथ, शंकरदास, पुरोहित जगन्नाथ जैसे योद्धा थे।

5. महाराणा प्रताप की सेना की अगुआई अफगान योद्धा हाकिम खां सुर ने की थी जिसके परिवार से अकबर का पुराना बैर था जब सुरी वंश के शेरशाह सुरी को मुगलों ने हराया था इसलिए वो प्रताप से मिलकर मुगलों को हराना चाहते थे।

6. महाराणा प्रताप की तरफ आदिवासी सेना के रूप में 400-500 भील भी शामिल थे जिसका नेतृत्व भील राजा रांव पूंजा कर रहे थे. भील शुरुवात से ही राजपूतो के स्वामिभक्त रहे थे।

7. राजस्थान का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार जेम्स टॉड के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में 22,000 सैनिक जबकि अकबर की सेना में 80,000 सैनिक थे जबकि दूसरी तरफ अकबर की सेना का नेतृत्व करने के लिए अकबर ने आमेर के राजपूत राजा मान सिंह को सेनापति बनाकर महाराणा प्रताप से लड़ने को भेजा. ये भी अजब संयोग था कि राजपूत राजपूत से लड़ रहा था।

8. अकबर की सेना में सेनापति मानसिंह के अलावा सैय्यद हासिम, सैय्यद अहमद खां, बहलोल खान, मुल्तान खान गाजी खान, भोकाल सिंह, खोरासन और वसीम खान जैसे योद्धा थे जिन्होंने मुगलों के लिए इससे पहले कई युद्धों लड़े थे।

9. महाराणा प्रताप के लिए सबसे बड़ी दुःख की बात यह थी उनका सगा भाई शक्ति सिंह मुगलों के साथ था और उनको इस पहाड़ी इलाके में युद्ध के लिए रणनीति बनाने में मदद कर रहा था ताकि युद्ध में कम से कम मुगलों का नुकसान हो।

10. 21 जून साल 1576 को दोनों की सेनाएं आगे बढ़ी और रक्ततलाई पर दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ जो केवल चार घंटे में ही समाप्त हो गया।

11. हल्दीघाटी के युद्द में महाराणा प्रताप की सेना से उनके सेनापति हाकिम खां सुर, डोडिया भीम, मानसिंह झाला, रामसिंह तंवर और उनके पुत्र सहित अनेको राजपूत योद्धा शहीद हुए जबकि अकबर की सेना से मान सिंह के अलावा सभी बड़े योद्धा मारे गये थे।

12. इस युद्ध की सबसे एतेहासिक घटना वो थी जब महाराणा प्रताप मान सिंह के करीब पहुँच गये थे और अपने घोड़े चेतक को उन्होंने मानसिंह के हाथी पर चढ़ा दिया और भाले से मान सिंह पर वार किया लेकिन मान सिंह तो बच गये लेकिन उनका महावत मारा गया. चेतक जब वापस हाथी से उतरा तो हाथी की सूंड में लगी तलवार से चेतक का एक पैर बुरी तरह घायल हो गया।

13. चेतक केवल तीन पैरों से 5 किमी तक दौड़ते हुए अपने स्वामी महाराणा प्रताप को रणभूमि से दूर लेकर गया और एक बड़े नाले से चेतक ने छलांग लगाई जिसमें चेतक के प्राण चले गये. उस समय महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह उनके पीछे थे और शक्तिसिंह को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने महाराणा प्रताप की मदद की।

14. दूसरी तरफ महाराणा प्रताप के रण से चले जाने पर उनके स्थान पर उनके हमशक्ल झाला मान सिंह ने उनका मुकुट पहनकर मुगलों को भ्रमित किया और रण में कूड़े पड़े।

15. मुगल उनको प्रताप समझकर उनपर टूट पड़े और इसमें झाला मान सिंह शहीद हो गये।

16. हल्दीघाटी युद्ध और चेतक की मृत्यु से उनका दिल विचलित हो गया और उन्होंने मुगलों से जीतने तक राजसी सुख त्यागकर जंगलो में जीवन बिताने का निश्चय किया और भविष्य में केवल चित्तोड़ को छोडकर सम्पूर्ण मेवाड़ पर कब्जा किया।

17. हल्दीघाटी में स्थित महाराणा प्रताप संग्रहालय में आप उन सभी घटनाओं का चित्रण देख सकते है जो युद्ध के दौरान घटी थी।

18. वर्तमान में इसका टिकिट 80 रूपये प्रति व्यक्ति है जिसमें आपको महाराणा प्रताप के जीवन पर बनी 10 मिनट की एक एनिमेटेड फिल्म, उनके जीवन से जुड़ी झांकिया और प्राकृतिक दृश्य का आनन्द ले सकते हैं।

19. इस संग्रहालय का निर्माण सरकार का प्रयास नही बल्कि एक व्यक्ति विशेष का प्रयास था जिसका नाम मोहन श्रीमाली है।

20. मोहन श्रीमाली एक सेवानिवृत्त स्कूल अध्यापक है जिन्होंने अपने जीवन की सारी पूंजी इस संग्रहालय के निर्माण ने लगा दी जबकि इससे पहले इस स्थान का कोई विकास नहीं हो पा रहा था और इसकी संस्कृति धूमिल हो रही थी।

शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

भारत का सबसे अमीर राजघराना, खुद को बताता है भगवान राम का वंशज

आज के दिन जयपुर के राजा महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह का जन्म हुआ था। वह जयपुर के महाराजा थे और सेना में भी उन्होंने सेवाएं दीं। उन्हें कई उपाधियों से सम्मानित किया गया।

आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्य

भगवान राम के वशंज 

जयपुर घराना अपने आप को भगवान राम का वशंज बताता है। यह खुलासा उन्होंने अपनी साइट पर भी किया हुआ है। कहा जाता है कि जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह भगवान राम के बेटे कुश के 309वें वंशज थे। यह बात राजघराने के कई लोगों ने स्वीकार भी की है। महाराजा सवाई मानसिंह और उनकी पहली पत्नी मरुधर कंवर के बेटे हैं भवानी सिंह। उनकी शादी पद्मिनी देवी से हुई थी। उनकी इकलौती बेटी हैं दीया कुमारी।

 दीया कुमारी की शादी नरेंद्र सिंह से हुई। उनके दो बेटे पद्मनाभ सिंह और लक्ष्यराज सिंह हैं। बेटी हैं गौरवी। दीया वर्तमान में सवाई माधोपुर से बीजेपी विधायक हैं।

महाराजा सवाई भवानी सिंह 24 जून 1970 से 28 दिसम्बर 1971 तक जयपुर के महाराजा रहे। फिर इसके बाद उन्होंने भारतीय सेना में सेवा की और उनको महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

आजाद भारत के सबसे अमीर राजा

कहा जाता है कि भवानी सिंह आजादी के बाद सबसे अमीर महाराजा थे। खास बात यह है कि जयपुर में कई पीढ़ियों बाद भवानी सिंह के रुप में पुरुष वारिस का जन्म हुआ था और जयपुर के जितने भी महाराजा हुए थे उनको गोद लेकर महाराजा बनाया गया था।

कांग्रेस की ओर से उन्होंने राजनीति में कदम रखा, लेकिन सफल नहीं हो पाए। उन्हें लोकसभा चुनाव में गिरधारी लाल भार्गव से चुनाव हारना पड़ा और उन्होंने राजनीति से संन्यास लिया। महाराजा सवाई भवानी सिंह जी को 20 मार्च, 2011 गुड़गांव, के एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। 17 अप्रैल, 2011 को हॉस्पिटल में ही उनका निधन हो गया था। वह 79 साल के थे।

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

🙏 *प्रणाम का महत्व* 🙏

महाभारत का युद्ध चल रहा था - 


एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि -
"मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा"
उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई -

भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए।

तब -
श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो -
श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए -

शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो -

द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने
"अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!

"वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है" ?
तब द्रोपदी ने कहा कि -

"हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं" तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया -

भीष्म ने कहा -
"मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है"
शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि -

*"तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है "* -

*" अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती "* -

......तात्पर्य्......
वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -

*"जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है "*
*" यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो "*

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता -
"निवेदन 🙏 सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाय।"

*क्योंकि*:-
*प्रणाम प्रेम है।*
*प्रणाम अनुशासन है।*

प्रणाम शीतलता है।             
प्रणाम आदर सिखाता है।

*प्रणाम से सुविचार आते है।*

प्रणाम झुकना सिखाता है।
प्रणाम क्रोध मिटाता है।
प्रणाम आँसू धो देता है।

*प्रणाम अहंकार मिटाता है।*
*प्रणाम हमारी संस्कृति है।*🙏🏼

🙏🏼 *सबको प्रणाम*  🙏🏼

अकबर की औछी हरकत

अकबर की महानता का गुणगान तो कई इतिहासकारों ने किया है लेकिन.....


अकबर की औछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने किया है ........!

अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज का मेला आयोजित करवाता था......!

जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था ........!

अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती .....

उसे दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी .........!

एक दिन नौरोज के मेले में #महाराणा_प्रताप_सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री, मेले की सजावट देखने के लिए आई .......

जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था ........!

जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ।

बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर काबू नही रख पाया ......

और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से जनाना महल में बुला लिया .......!

जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की ........

किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को नीचे पटकर छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी ........

और कहा नींच..... नराधम तुझे पता नहीं मैं उन #महाराणा_प्रताप की भतीजी हुं ........!

जिनके नाम से तुझे नींद नहीं आती है ......!

बोल तेरी आखिरी इच्छा क्या है .............?

अकबर का खुन सुख गया .........!

कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा .........!

अकबर बोला मुझे पहचानने में भूल हो गई ......

मुझे माफ कर दो देवी .......!

तो किरण देवी ने कहा कि .........

आज के बाद दिल्ली में नौरोज का मेला नहीं लगेगा ..........!

और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा......!

*अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा ..........!

उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा.........!

इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो मे 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है।

बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग मे भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है।

किरण  शिंहणी सी चढी...
उर पर खींच कटार..!
भीख मांगता प्राण की....
अकबर हाथ पसार...!!

卐 जरूर पढ़े और शेयर करे। ... महान सत्य 卐


🔘 1. *बप्पा रावल*- अरबो, तुर्को को कई हराया ओर हिन्दू धरम रक्षक की उपाधि धारण की

🔘 2. *भीम देव सोलंकी द्वितीय* - मोहम्मद गौरी को 1178 मे हराया और 2 साल तक जेल मे बंधी बनाये रखा
🔘 3. *पृथ्वीराज चौहान* - गौरी को 16 बार हराया और और गोरी बार बार कुरान की कसम खा कर छूट जाता ...17वी बार पृथ्वीराज चौहान हारे
🔘 4. *हम्मीरदेव (रणथम्बोर)* - खिलजी को 1296 मे अल्लाउदीन ख़िलजी के 20000 की सेना में से 8000 की सेना को काटा और अंत में सभी 3000 राजपूत बलिदान हुए राजपूतनियो ने जोहर कर के इज्जत बचायी ..हिनदुओ की ताकत का लोहा मनवाया
🔘 5. *कान्हड देव सोनिगरा* – 1308 जालोर मे अलाउदिन खिलजी से युद्ध किया और सोमनाथ गुजरात से लूटा शिवलिगं वापिस राजपूतो के कब्जे में लिया और युद्ध के दौरान गुप्त रूप से विश्वनीय राजपूतो , चरणो और राजपुरोहितो द्वारा गुजरात भेजवाया तथा विधि विधान सहित सोमनाथ में स्थापित करवाया
🔘 6. *राणा सागां*- बाबर को भिख दी और धोका मिला ओर युद्ध . राणा सांगा के शरीर पर छोटे-बड़े 80 घाव थे, युद्धों में घायल होने के कारण उनके एक हाथ नही था एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे.
🔘 7. *राणा कुम्भा* - अपनी जिदगीँ मे 17 युदध लडे एक भी नही हारे
🔘 8. *जयमाल मेड़तिया*- ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था। चित्तोड़ में अकबर से हुए युद्ध में *जयमाल राठौड़* पैर जख्मी होने कि वजह से *कल्ला जी* के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे, ये देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आयी थी, जंग में दोनों के सिर  काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और 8000 राजपूतो की फौज ने 48000 दुश्मन को मार गिराया ! अंत में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर जयमाल मेड़तिया और पत्ता जी की मुर्तिया आगरा के किलें में लगवायी थी.
🔘 9. *मानसिहं तोमर*- महाराजा मान सिंह तोमर ने ही ग्वालियर किले का पुनरूद्धार कराया और 1510 में सिकंदर लोदी और इब्राहीमलोदी को धूल चटाई
🔘 10. *रानी दुर्गावती*- चंदेल राजवंश में जन्मी रानी दुर्गावती राजपूत राजा कीरत राय की बेटी थी। गोंडवाना की महारानी दुर्गावती ने बहादुर शाह की गुलामी करने के बजाय उससे युद्ध लड़ा 24 जून 1564 को युद्ध में रानी दुर्गावती ने गंभीर रूप से घायल होने के बाद अपने आपको तुर्कों के हाथों अपमान से बचाने के लिए खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली।
🔘 11. *महाराणा प्रताप* - इनके बारे में तो सभी जानते ही होंगे ... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच, भाला, ढाल, और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो था.
🔘 12. *जय सिंह जी* - जयपुर महाराजा ने जय सिंह जी ने अपनी सूझबुज से छत्रपति शिवजी को औरंगज़ेब की कैद से निकलवाया बाद में औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उनकी हत्या विष देकर करवा डाली
🔘 13. *छत्रपति शिवाजी* - मेवाड़ सिसोदिया वंशज छत्रपति शिवाजी ने औरंगज़ेब को हराया तुर्को और मुगलो को कई बार हराया
🔘 14. *रायमलोत कल्ला जी* का धड़ शीश कटने के बाद लड़ता- लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़ शांत हुआ उसके बाद रानी पति कि चिता पर बैठकर सती हो गयी थी.
🔘 15. सलूम्बर के नवविवाहित *रावत रतन सिंह चुण्डावत* जी ने युद्ध जाते समय मोह-वश अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के तौर
पैर अपना सर काट के दे दिया था, अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गये थे.
🔘 16. औरंगज़ेब के नायक तहव्वर खान से गायो को बचाने के लिए पुष्कर में युद्ध हुआ उस युद्ध में *700 मेड़तिया राजपूत* वीरगति प्राप्त हुए और 1700 मुग़ल मरे गए पर एक भी गाय कटने न दी उनकी याद में पुष्कर में गौ घाट बना हुआ है
🔘 17. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलो से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटो लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहा छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है.
🔘 18. जोधपुर के *यशवंत सिंह* के 12 साल के पुत्र *पृथ्वी सिंह* ने हाथो से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था.
🔘 19. *करौली के जादोन राजा* अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरो पर रखते थे.
🔘 20. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 राजपूत सैनिक थे और अकबर की और से 85000 सैनिक थे फिर भी अकबर की मुगल सेना पर हिंदू भारी पड़े
🔘 21. राजस्थान पाली में आउवा के *ठाकुर खुशाल सिंह* 1857 में अजमेर जा कर अंग्रेज अफसर का सर काट कर ले आये थे और उसका सर अपने किले के बाहर लटकाया था तब से आज दिन तक उनकी याद में मेला लगता है
🔘22. वीर बंदा बैरागी -  मुगलो के अजेय होने के भ्रम को तोडा और वजीर खान को मारकर सरहिंद पर विजय प्राप्त की ।
🔘 23. *जौहर :* युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ| सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ के दुर्ग में हुए | शाका : महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ
""जौहर के बाद राजपूत पुरुष जौहर कि राख का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर पर बांध कर तब तक लड़के जब तक उन्हें वीरगति न मिले ये एक आत्मघाती कदम होता। ....."""|
卐 *जैसलमेर* के जौहर में 24,000 राजपूतानियों ने इज्जत कि खातिर अल्लाउदीन खिलजी के हरम जाने की बजाय आग में कूद कर अपने सतीत्व के रक्षा कि ..
卐 1303 चित्तोड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तोड़ की *महारानी पद्मिनी* के नेतृत्व में 16000 हजार राजपूत रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था |
卐 चित्तोड़ के दुर्ग में दूसरे जौहर चित्तोड़ की *महारानी कर्मवती* के नेतृत्व में 8,000 हजार राजपूत रमणियों ने 1535 AD में किया था |
卐 चित्तोड़ के दुर्ग में तीसरा जौहर अकबर से हुए युद्ध के समय 11,000 हजार राजपूत नारियो ने 1567 AD में किया था |
卐 ग्वालियर व राइसिन का जोहर ये जोहर तोमर सहिवाहन पुरबिया के वक़्त हुआ ये राणा सांगा के रिशतेदार थे और खानवा युद्ध में हर के बाद ये जोहर हुआ
卐 ये जोहर अजमेर में हुआ पृथ्वीराज चौहान कि शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी से ताराइन की दूसरी लड़ाई में हार के बाद हुआ इसमें *रानी संयोगिता* ने महल उपस्थित सभी महिलाओं के साथ जौहर किया ) जालोर का जौहर ,बारमेर का जोहर आदि
""". इतिहास गवाज है हम राजपूतो की हर लड़ाई में दुश्मन सेना तिगुनी चौगनी होती थी राजस्थान मालवा और सौराष्ट्र में मुगलो ने एक भी हमला राजपूतो पर तिगुनी और चौगनी फ़ौज से कम के बिना नही नही किया पर युद्ध के अंतः में दुश्मन आधे से ऊपर मारे जाते थे ""

卐卐 तलवार से कडके बिजली, लहु से लाल हो धरती, प्रभु ऐसा वर दो मोहि, विजय मिले या वीरगति ॥ 卐卐


*|| जय एकलिंग जी की ||*
*११ जय श्री कल्याण ११*

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

महाराणा प्रताप से जुड़ी 15 रोचक बातें जानिये

महाराणा प्रताप

ये एक ऐसा नाम है जिसके लेने भर से मुगल सेना के पसीने छूट जाते थे। 


एक ऐसा राजा जो कभी किसी के आगे नही झुका। जिसकी वीरता की कहानी सदियों के बाद भी लोगों की जुबान पर हैं।

1. महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। प्रताप इनका और राणा उदय सिंह इनके पिता का नाम था।

2. प्रताप का वजन 110 किलो और हाईट 7 फीट 5 इंच थी।

3. प्रताप का भाला 81 किलो का और छाती का कवच का 72 किलो था। उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था।

4. प्रताप ने राजनैतिक कारणों की वजह से 11 शादियां की थी।

5. महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

6. अकबर ने राणा प्रताप को कहा था की अगर तुम हमारे आगे झुकते हो तो आधा भारत आप का रहेगा, लेकिन महाराणा प्रताप ने कहा मर जाऊँगा लेकिन मुगलों के आगे सर नही नीचा करूंगा।

7. प्रताप का घोड़ा, चेतक हवा से बातें करता था। उसने हाथी के सिर पर पैर रख दिया था और घायल प्रताप को लेकर 26 फीट लंबे नाले के ऊपर से कूद गया था।

8. प्रताप का सेनापति सिर कटने के बाद भी कुछ देर तक लड़ता रहा था।

9. प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर दिन गुजारे थे।

10. नेपाल का राज परिवार भी चित्तौड़ से निकला है, दोनों में भाई और खून का रिश्ता हैं।

11. प्रताप के घोड़े चेतक के सिर पर हाथी का मुखौटा लगाया जाता था, ताकि दूसरी सेना के हाथी कंफ्यूज रहें।

12. प्रताप निहत्थे दुश्मन के लिए भी एक तलवार रखते थे।

13. अकबर ने एक बार कहा था की अगर महाराणा प्रताप और जयमल मेड़तिया मेरे साथ होते तो हम विश्व विजेता बन जाते।

14. आज हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां की जमीनो में तलवारे पायी जाती हैं।

15. 30 सालों तक प्रयास के बाद भी अकबर, प्रताप को बंदी न बना सका।

सोमवार, 23 अक्टूबर 2017

🚩 तो फिर महाराणा प्रताप कौन थे। 🚩


जलती रही जोहर में नारियां
भेड़िये फ़िर भी मौन थे।
हमें पढाया गया अकबर महान,
तो फिर महाराणा प्रताप कौन थे।
😇😇

सड़ती रही लाशें सड़को पर
गांधी फिर भी मौन थे,
हमें पढ़ाया गांधी के चरखे से आजादी आयी,
तो फांसी चढ़ने वाले 25-25 साल के वो जवान कौन थे
😇😇

वो रस्सी आज भी  संग्रहालय में है
जिस्से गांधीजी बकरी बांधा करते थे
किन्तु वो रस्सी कहां है
जिस पे भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु हसते हुए झूले थे
😇😇

" हालात.ए.मुल्क देख के रोया न गया...

कोशिश तो की पर मूंह ढक के सोया न गया".     देश मेरा क्या बाजार हो गया है ...

पकड़ता हूँ तिरंगा
तो लोग पूछते है कितने का है...
जाने कितने झूले थे फाँसी पर,कितनो ने गोली खाई थी....

क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से आजादी आई थी....!!
🙏🏻🙏🏻🙏🏻

रविवार, 22 अक्टूबर 2017

उद्धव-गीता

उद्धव बचपन से ही सारथी के रूप में श्रीकृष्ण की सेवा में रहे, किन्तु उन्होंने श्री कृष्ण से कभी न तो कोई इच्छा जताई और न ही कोई वरदान माँगा।
जब कृष्ण अपने *अवतार काल* को पूर्ण कर *गौलोक* जाने को तत्पर हुए, तब उन्होंने उद्धव को अपने पास बुलाया और कहा-
"प्रिय उद्धव मेरे इस 'अवतार काल' में अनेक लोगों ने मुझसे वरदान प्राप्त किए, किन्तु तुमने कभी कुछ नहीं माँगा! अब कुछ माँगो, मैं तुम्हें देना चाहता हूँ।
तुम्हारा भला करके, मुझे भी संतुष्टि होगी।
उद्धव ने इसके बाद भी स्वयं के लिए कुछ नहीं माँगा। वे तो केवल उन शंकाओं का समाधान चाहते थे जो उनके मन में कृष्ण की शिक्षाओं, और उनके कृतित्व को, देखकर उठ रही थीं।
उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा-
"भगवन महाभारत के घटनाक्रम में अनेक बातें मैं नहीं समझ पाया!
आपके 'उपदेश' अलग रहे, जबकि 'व्यक्तिगत जीवन' कुछ अलग तरह का दिखता रहा!
क्या आप मुझे इसका कारण समझाकर मेरी ज्ञान पिपासा को शांत करेंगे?"


श्री कृष्ण बोले-
“उद्धव मैंने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन से जो कुछ कहा, वह *"भगवद्गीता"* थी।
आज जो कुछ तुम जानना चाहते हो और उसका मैं जो तुम्हें उत्तर दूँगा, वह *"उद्धव-गीता"* के रूप में जानी जाएगी।
इसी कारण मैंने तुम्हें यह अवसर दिया है।
तुम बेझिझक पूछो।
उद्धव ने पूछना शुरू किया-

"हे कृष्ण, सबसे पहले मुझे यह बताओ कि सच्चा मित्र कौन होता है?"
कृष्ण ने कहा- "सच्चा मित्र वह है जो जरूरत पड़ने पर मित्र की बिना माँगे, मदद करे।"
उद्धव-
"कृष्ण, आप पांडवों के आत्मीय प्रिय मित्र थे। आजाद बांधव के रूप में उन्होंने सदा आप पर पूरा भरोसा किया।
कृष्ण, आप महान ज्ञानी हैं। आप भूत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञाता हैं।
किन्तु आपने सच्चे मित्र की जो परिभाषा दी है, क्या आपको नहीं लगता कि आपने उस परिभाषा के अनुसार कार्य नहीं किया?
आपने धर्मराज युधिष्ठिर को द्यूत (जुआ) खेलने से रोका क्यों नहीं?
चलो ठीक है कि आपने उन्हें नहीं रोका, लेकिन आपने भाग्य को भी धर्मराज के पक्ष में भी नहीं मोड़ा!
आप चाहते तो युधिष्ठिर जीत सकते थे!
आप कम से कम उन्हें धन, राज्य और यहाँ तक कि खुद को हारने के बाद तो रोक सकते थे!
उसके बाद जब उन्होंने अपने भाईयों को दाँव पर लगाना शुरू किया, तब तो आप सभाकक्ष में पहुँच सकते थे! आपने वह भी नहीं किया? उसके बाद जब दुर्योधन ने पांडवों को सदैव अच्छी किस्मत वाला बताते हुए द्रौपदी को दाँव पर लगाने को प्रेरित किया, और जीतने पर हारा हुआ सब कुछ वापस कर देने का लालच दिया, कम से कम तब तो आप हस्तक्षेप कर ही सकते थे!
   अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा आप पांसे धर्मराज के अनुकूल कर सकते थे!
इसके स्थान पर आपने तब हस्तक्षेप किया, जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो रही थी, तब आपने उसे वस्त्र देकर द्रौपदी के शील को बचाने का दावा किया!
   लेकिन आप यह यह दावा भी कैसे कर सकते हैं?
उसे एक आदमी घसीटकर हॉल में लाता है, और इतने सारे लोगों के सामने निर्वस्त्र करने के लिए छोड़ देता है!
एक महिला का शील क्या बचा? आपने क्या बचाया?
अगर आपने संकट के समय में अपनों की मदद नहीं की तो आपको आपाद-बांधव कैसे कहा जा सकता है?
बताईए, आपने संकट के समय में मदद नहीं की तो क्या फायदा?
क्या यही धर्म है?"
इन प्रश्नों को पूछते-पूछते उद्धव का गला रुँध गया और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।
ये अकेले उद्धव के प्रश्न नहीं हैं। महाभारत पढ़ते समय हर एक के मनोमस्तिष्क में ये सवाल उठते हैं!
उद्धव ने हम लोगों की ओर से ही श्रीकृष्ण से उक्त प्रश्न किए।
  भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले-
"प्रिय उद्धव, यह सृष्टि का नियम है कि विवेकवान ही जीतता है।
उस समय दुर्योधन के पास विवेक था, धर्मराज के पास नहीं।
यही कारण रहा कि धर्मराज पराजित हुए।"

उद्धव को हैरान परेशान देखकर कृष्ण आगे बोले- "दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए पैसाऔर धन तो बहुत था, लेकिन उसे पासों का खेल खेलना नहीं आता था, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि का द्यूतक्रीड़ा के लिए उपयोग किया। यही विवेक है। धर्मराज भी इसी प्रकार सोच सकते थे और अपने चचेरे भाई से पेशकश कर सकते थे कि उनकी तरफ से मैं खेलूँगा।
जरा विचार करो कि अगर शकुनी और मैं खेलते तो कौन जीतता?
पाँसे के अंक उसके अनुसार आते या मेरे अनुसार?
चलो इस बात को जाने दो। उन्होंने मुझे खेल में शामिल नहीं किया, इस बात के लिए उन्हें माफ़ किया जा सकता है। लेकिन उन्होंने विवेक-शून्यता से एक और बड़ी गलती की!
और वह यह-
उन्होंने मुझसे प्रार्थना की कि मैं तब तक सभा-कक्ष में न आऊँ, जब तक कि मुझे बुलाया न जाए!
क्योंकि वे अपने दुर्भाग्य से खेल मुझसे छुपकर खेलना चाहते थे।
वे नहीं चाहते थे, मुझे मालूम पड़े कि वे जुआ खेल रहे हैं!
इस प्रकार उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना से बाँध दिया! मुझे सभा-कक्ष में आने की अनुमति नहीं थी!
इसके बाद भी मैं कक्ष के बाहर इंतज़ार कर रहा था कि कब कोई मुझे बुलाता है! भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सब मुझे भूल गए! बस अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे!
अपने भाई के आदेश पर जब दुस्साशन द्रौपदी को बाल पकड़कर घसीटता हुआ सभा-कक्ष में लाया, द्रौपदी अपनी सामर्थ्य के अनुसार जूझती रही!
तब भी उसने मुझे नहीं पुकारा!
उसकी बुद्धि तब जागृत हुई, जब दुस्साशन ने उसे निर्वस्त्र करना प्रारंभ किया!
जब उसने स्वयं पर निर्भरता छोड़कर-
*'हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम'*-
की गुहार लगाई, तब मुझे उसके शील की रक्षा का अवसर मिला।
जैसे ही मुझे पुकारा गया, मैं अविलम्ब पहुँच गया।
अब इस स्थिति में मेरी गलती बताओ?"
उद्धव बोले-
"कान्हा आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किन्तु मुझे पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई!
क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ?"
कृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा-
"इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा? क्या संकट से घिरे अपने भक्त की मदद करने आप स्वतः नहीं आओगे?"
कृष्ण मुस्कुराए-
"उद्धव इस सृष्टि में हरेक का जीवन उसके स्वयं के कर्मफल के आधार पर संचालित होता है।
न तो मैं इसे चलाता हूँ, और न ही इसमें कोई हस्तक्षेप करता हूँ।
मैं केवल एक 'साक्षी' हूँ।
मैं सदैव तुम्हारे नजदीक रहकर जो हो रहा है उसे देखता हूँ।
यही ईश्वर का धर्म है।"

"वाह-वाह, बहुत अच्छा कृष्ण!
तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे नजदीक खड़े रहकर हमारे सभी दुष्कर्मों का निरीक्षण करते रहेंगे?
हम पाप पर पाप करते रहेंगे, और आप हमें साक्षी बनकर देखते रहेंगे?
आप क्या चाहते हैं कि हम भूल करते रहें? पाप की गठरी बाँधते रहें और उसका फल भुगतते रहें?"
उलाहना देते हुए उद्धव ने पूछा!

तब कृष्ण बोले-
"उद्धव, तुम शब्दों के गहरे अर्थ को समझो।
जब तुम समझकर अनुभव कर लोगे कि मैं तुम्हारे नजदीक साक्षी के रूप में हर पल हूँ, तो क्या तुम कुछ भी गलत या बुरा कर सकोगे?
तुम निश्चित रूप से कुछ भी बुरा नहीं कर सकोगे।
जब तुम यह भूल जाते हो और यह समझने लगते हो कि मुझसे छुपकर कुछ भी कर सकते हो, तब ही तुम मुसीबत में फँसते हो! धर्मराज का अज्ञान यह था कि उसने माना कि वह मेरी जानकारी के बिना जुआ खेल सकता है!
अगर उसने यह समझ लिया होता कि मैं प्रत्येक के साथ हर समय साक्षी रूप में उपस्थित हूँ तो क्या खेल का रूप कुछ और नहीं होता?"

भक्ति से अभिभूत उद्धव मंत्रमुग्ध हो गये और बोले-
प्रभु कितना गहरा दर्शन है। कितना महान सत्य। 'प्रार्थना' और 'पूजा-पाठ' से, ईश्वर को अपनी मदद के लिए बुलाना तो महज हमारी 'पर-भावना' है।  मग़र जैसे ही हम यह विश्वास करना शुरू करते हैं कि 'ईश्वर' के बिना पत्ता भी नहीं हिलता! तब हमें साक्षी के रूप में उनकी उपस्थिति महसूस होने लगती है।
गड़बड़ तब होती है, जब हम इसे भूलकर दुनियादारी में डूब जाते हैं।
सम्पूर्ण श्रीमद् भागवद् गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी जीवन-दर्शन का ज्ञान दिया है।
सारथी का अर्थ है- मार्गदर्शक।
अर्जुन के लिए सारथी बने श्रीकृष्ण वस्तुतः उसके मार्गदर्शक थे।
वह स्वयं की सामर्थ्य से युद्ध नहीं कर पा रहा था, लेकिन जैसे ही अर्जुन को परम साक्षी के रूप में भगवान कृष्ण का एहसास हुआ, वह ईश्वर की चेतना में विलय हो गया!
यह अनुभूति थी, शुद्ध, पवित्र, प्रेममय, आनंदित सुप्रीम चेतना की!
तत-त्वम-असि!
अर्थात...
वह तुम ही हो।।
                      

                  🙏 ।। जय श्री कृष्ण ।। 🙏