गुरुवार, 25 जनवरी 2018

||★|| क्षत्रिय कविता ||★||

हाथ जोड़ करूँ विनती,
करनल पधारो आज।
शक्ति दो शत्रिय ने ,
बिगड़े सुधारो काज।।
धुँ धुँ कर जल रही ढ़ाणया,
छात्रधर्म फिर क्यूँ ख़ामोश है ।
मर मिटे मगर नहीं झुके ,
आज कहाँ वो जोश है ।।
पाली सदा ही प्रीत ,
रीत रावली राखी है।
सह रहे है अन्याय अब ,
और क्या देखना बाक़ी है।।
ख़ामोश है चारणो की कलम,
या फिर इतिहास झूठा है।
जम गया है राजपूती ख़ून ,
या अपना ही अपनो से रूठा है।।
क्यूँ नहीं जन्म लेता प्रताप ,
फिर से घमासान मसाने को ।
कहाँ खो गया वीर दुर्गादास,
अब तो पुकारों आने को ।।
कोहराम मचा है आज ,
गीदड़ गीत गाते है ।
शान्त बेठा है राजपूत ,
फिर भी धमकाते है।।
कर रहे है मनमानी ,
कुछ खद्दर लंगोट धारी।
समझ रहे है शेर को चूहा,
यह भूल है उनकी भारी ।।
जो लड़ सकते है मुग़लों से ,
हिंदू धर्म बचाने को।
क्यूँ मजबूर कर रहे हो ,
आज फिर तलवार उठाने को ।।
न बुरा किया है ,
न बुरा करेंगे यह इतिहास गवाह है ।।
मगर अत्याचार नहीं सहेंगे,
यह एक सलाह है।।
गीत बोहोत गा सूके,
अब हुंकार सुना दो।
उतर जाओ रण मैदान मै,
फिर से डंका बजवा दो ।।

आवड़ दान जी रामा की कलम से क्रमशः.........

बुधवार, 24 जनवरी 2018

👏★ रानी पद्मावती ★👏

पुरा नाम:- महारानी पद्मावती;
पिता:- रावल पुनपाल भाटी जी;
माता:- महारानी जामकँवर देवड़ी;
जन्म स्थान:- जैसलमेर,राजस्थान;
भाई:- राजकुमार चरड़ा,राजकुमार लूणराव;
मामा:- गोरा चौहान;
ममेरा भाई:- बादल चौहान;
जन्म तिथि:- 1285 ईं;
पति:- रावल रतन सिंह(चित्तौड के राजा);
नाना:- राजा हमीर देवडा चौहान;
विवाह तिथि:- 1300ईं लगभग;
गौरा चौहान रानी पद्मावती के मामा थे,
बादल चौहान रानी पद्मावती के ममेरे भाई थे।
रानी पद्मावती कि माता जी सिंहलवाडा जागीर कि राजकुमारी ओर हमींर देवड़ा चौहान कि पुत्री थी।
गौरा चौहान बादल चौहान के चाचा(काका) थे,
रानी पद्मावती ने मान सम्मान के लिए 16 हजार क्षत्राणी(नारियो)के साथ मिलकर जौहर किया।
खिलजी रानी पद्मावती को छूना तो दुर देख तक नही पाया।

जय माँ भवानी 🙋
जय रानी पद्मावती 🙋

👏👍 ठाकुर सचिन चौहान अग्निवंशी 👍👏

गुरुवार, 18 जनवरी 2018

卐 जरूर पढ़े और शेयर करे। ... महान सत्य 卐

🔘 1. *बप्पा रावल*- अरबो, तुर्को को कई हराया ओर हिन्दू धरम रक्षक की उपाधि धारण की
🔘 2. *भीम देव सोलंकी द्वितीय* - मोहम्मद गौरी को 1178 मे हराया और 2 साल तक जेल मे बंधी बनाये रखा
🔘 3. *पृथ्वीराज चौहान* - गौरी को 16 बार हराया और और गोरी बार बार कुरान की कसम खा कर छूट जाता ...17वी बार पृथ्वीराज चौहान हारे
🔘 4. *हम्मीरदेव (रणथम्बोर)* - खिलजी को 1296 मे अल्लाउदीन ख़िलजी के 20000 की सेना में से 8000 की सेना को काटा और अंत में सभी 3000 राजपूत बलिदान हुए राजपूतनियो ने जोहर कर के इज्जत बचायी ..हिनदुओ की ताकत का लोहा मनवाया
🔘 5. *कान्हड देव सोनगरा* – 1308 जालोर मे अलाउदिन खिलजी से युद्ध किया और सोमनाथ गुजरात से लूटा शिवलिगं वापिस राजपूतो के कब्जे में लिया और युद्ध के दौरान गुप्त रूप से विश्वनीय राजपूतो , चरणो और पुरोहितो द्वारा गुजरात भेजवाया तथा विधि विधान सहित सोमनाथ में स्थापित करवाया
🔘 6. *राणा सागां*- बाबर को भिख दी और धोका मिला ओर युद्ध . राणा सांगा के शरीर पर छोटे-बड़े 80 घाव थे, युद्धों में घायल होने के कारण उनके एक हाथ नही था एक पैर नही था, एक आँख नहीं थी उन्होंने अपने जीवन-काल में 100 से भी अधिक युद्ध लड़े थे.
🔘 7. *राणा कुम्भा* - अपनी जिदगीँ मे 17 युदध लडे एक भी नही हारे
🔘 8. *जयमाल मेड़तिया*- ने एक ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था। चित्तोड़ में अकबर से हुए युद्ध में *जयमाल राठौड़* पैर जख्मी होने कि वजह से *कल्ला जी* के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे, ये देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आयी थी, जंग में दोनों के सिर  काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और 8000 राजपूतो की फौज ने 48000 दुश्मन को मार गिराया ! अंत में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर जयमाल मेड़तिया और पत्ता जी की मुर्तिया आगरा के किलें में लगवायी थी.
🔘 9. *मानसिहं तोमर*- महाराजा मान सिंह तोमर ने ही ग्वालियर किले का पुनरूद्धार कराया और 1510 में सिकंदर लोदी और इब्राहीमलोदी को धूल चटाई
🔘 10. *रानी दुर्गावती*- चंदेल राजवंश में जन्मी रानी दुर्गावती राजपूत राजा कीरत राय की बेटी थी। गोंडवाना की महारानी दुर्गावती ने अकबर की गुलामी करने के बजाय उससे युद्ध लड़ा 24 जून 1564 को युद्ध में रानी दुर्गावती ने गंभीर रूप से घायल होने के बाद अपने आपको मुगलों के हाथों अपमान से बचाने के लिए खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली।
🔘 11. *महाराणा प्रताप* - इनके बारे में तो सभी जानते ही होंगे ... महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो था और कवच, भाला, ढाल, और हाथ मे तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो था.
🔘 12. *जय सिंह जी* - जयपुर महाराजा ने जय सिंह जी ने अपनी सूझबुज से छत्रपति शिवजी को औरंगज़ेब की कैद से निकलवाया बाद में औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उनकी हत्या विष देकर करवा डाली
🔘 13. *छत्रपति शिवाजी* - मेवाड़ सिसोदिया वंशज छत्रपति शिवाजी ने औरंगज़ेब को हराया तुर्को और मुगलो को कई बार हराया
🔘 14. *रायमलोत कल्ला जी* का धड़ शीश कटने के बाद लड़ता- लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले तब धड़ शांत हुआ उसके बाद रानी पति कि चिता पर बैठकर सती हो गयी थी.
🔘 15. सलूम्बर के नवविवाहित *रावत रतन सिंह चुण्डावत* जी ने युद्ध जाते समय मोह-वश अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के तौर
पैर अपना सर काट के दे दिया था, अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए शहीद हो गये थे.
🔘 16. औरंगज़ेब के नायक तहव्वर खान से गायो को बचाने के लिए पुष्कर में युद्ध हुआ उस युद्ध में *700 मेड़तिया राजपूत* वीरगति प्राप्त हुए और 1700 मुग़ल मरे गए पर एक भी गाय कटने न दी उनकी याद में पुष्कर में गौ घाट बना हुआ है
🔘 17. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलो से लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटो लड़ते रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है, जहा छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है.
🔘 18. जोधपुर के *यशवंत सिंह* के 12 साल के पुत्र *पृथ्वी सिंह* ने हाथो से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था.
🔘 19. *करौली के जादोन राजा* अपने सिंहासन पर बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरो पर रखते थे.
🔘 20. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 राजपूत सैनिक थे और अकबर की और से 85000 सैनिक थे फिर भी अकबर की मुगल सेना पर हिंदू भारी पड़े
🔘 21. राजस्थान पाली में आउवा के *ठाकुर खुशाल सिंह* 1857 में अजमेर जा कर अंग्रेज अफसर का सर काट कर ले आये थे और उसका सर अपने किले के बाहर लटकाया था तब से आज दिन तक उनकी याद में मेला लगता है
🔘 22. *जौहर :* युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने इज्जत कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य जौहर के नाम से विख्यात हुआ| सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ के दुर्ग में हुए | शाका : महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ
""जौहर के बाद राजपूत पुरुष जौहर कि राख का तिलक कर के सफ़ेद कुर्ते पजमे में और केसरिया फेटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर पर बांध कर तब तक लड़के जब तक उन्हें वीरगति न मिले ये एक आत्मघाती कदम होता। ....."""|
卐 *जैसलमेर* के जौहर में 24,000 राजपूतानियों ने इज्जत कि खातिर अल्लाउदीन खिलजी के हरम जाने की बजाय आग में कूद कर अपने सतीत्व के रक्षा कि ..
卐 1303 चित्तोड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तोड़ की *महारानी पद्मिनी* के नेतृत्व में 16000 हजार राजपूत रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था |
卐 चित्तोड़ के दुर्ग में दूसरे जौहर चित्तोड़ की *महारानी कर्मवती* के नेतृत्व में 8,000 हजार राजपूत रमणियों ने 1535 AD में किया था |
卐 चित्तोड़ के दुर्ग में तीसरा जौहर अकबर से हुए युद्ध के समय 11,000 हजार राजपूत नारियो ने 1567 AD में किया था |
卐 ग्वालियर व राइसिन का जोहर ये जोहर तोमर सहिवाहन पुरबिया के वक़्त हुआ ये राणा सांगा के रिशतेदार थे और खानवा युद्ध में हर के बाद ये जोहर हुआ
卐 ये जोहर अजमेर में हुआ पृथ्वीराज चौहान कि शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी से ताराइन की दूसरी लड़ाई में हार के बाद हुआ इसमें *रानी संयोगिता* ने महल उपस्थित सभी महिलाओं के साथ जौहर किया ) जालोर का जौहर ,बारमेर का जोहर आदि
""". इतिहास गवाज है हम राजपूतो की हर लड़ाई में दुश्मन सेना तिगुनी चौगनी होती थी राजस्थान मालवा और सौराष्ट्र में मुगलो ने एक भी हमला राजपूतो पर तिगुनी और चौगनी फ़ौज से कम के बिना नही नही किया पर युद्ध के अंतः में दुश्मन आधे से ऊपर मारे जाते थे ""

卐卐 तलवार से कडके बिजली, लहु से लाल हो धरती, प्रभु ऐसा वर दो मोहि, विजय मिले या वीरगति ॥ 卐卐
*|| जय एकलिंग जी की ||*
*११ जय श्री कल्याण ११*

बुधवार, 10 जनवरी 2018

★|| Saffron e-Library ||भगवा ई-लाइब्रेरी||★

यह E-Library है, इसमें कई सौ अमूल्य ग्रंथों के PDF हैं, ताकि यह ज्यादा से ज्यादा लोगों के काम आ सकें, देश धर्म संबंधी अमूल्य पुस्तकें इन लिंक में संग्रहीत हैं, आप विषय देखकर लिंक खोलें तो बहुत सी पुस्तकें मिलेंगी, सभी पुस्तकें आप निशुल्क डाऊनलोड कर सकते हैं, इन लिंक्स की किताबें दो साल में अलग अलग स्त्रोतों से इकट्ठी की गईं हैं, अपनी पसंद की किताबें पढ़ें और शेयर करें...

Aadi Shankaracharya - आद्य शंकराचार्य

Sri Aurobindo - श्री अरविंदो

Swami Dayananda - स्वामी दयानंद

Swami Vivekanand - स्वामी विवेकानन्द

Swami Shivanand - स्वामी शिवानंद

Swami Ramteerth - स्वामी रामतीर्थ

Sitaram Goel - सीताराम गोयल

Veer Savarkar - वीर सावरकर

P.N.Oak - पी.एन. ओक

हिन्दू राष्ट्र

Basic Hinduism

Hindutva and India - हिंदुत्व और भारत

Islam Postmortem - इस्लाम की जांच पड़ताल

Christianity Postmortem - बाइबिल पर पैनी दृष्टि

Autobiography - आत्मकथाएं

धर्म एवं आध्यात्म

यज्ञ - Yajna

Brahmcharya - ब्रह्मचर्य

Yog - योग

Upanishad - उपनिषद

Geeta - श्रीमद्भगवद्गीता

Manusmriti - मनुस्मृति

Valmeeki and Kamba Ramayan - वाल्मीकि व कम्ब रामायण

Puran - पुराण

Books on Vedas - वेदों पर किताबें

Maharshi Dayananda - महर्षि दयानंद

-------------Complete commentaries on Veda - सम्पूर्ण वेद भाष्य --------

RigVeda - ऋग्वेद सम्पूर्ण

YajurVeda - यजुर्वेद सम्पूर्ण

SamaVeda - सामवेद सम्पूर्ण

AtharvaVeda - अथर्ववेद सम्पूर्ण

🙏🙏

सोमवार, 18 दिसंबर 2017

#इतिहास में तो ये नहीं पढ़ाया गया है…

#इतिहास में तो ये नहीं पढ़ाया गया है की हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पांच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है. ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है।
क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना..महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सिमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है. वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध , महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था. मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर अधिपत्य जमा सके. हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं.
हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे..और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा , उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था. उस स्थिति में महाराणा ने “गुरिल्ला युद्ध” की योजना बनायीं और मुगलों को कभी भी मेवाड़ में सेटल नहीं होने दिया. महराणा के शौर्य से विचलित अकबर ने उनको दबाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के बाद भी हर साल 1577 से 1582 के बीच एक एक लाख के सैन्यबल भेजे जो कि महाराणा को झुकाने में नाकामयाब रहे.
हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप के खजांची भामाशाह और उनके भाई ताराचंद मालवा से दंड के पच्चीस लाख रुपये और दो हज़ार अशर्फिया लेकर हाज़िर हुए. इस घटना के बाद महाराणा प्रताप ने भामाशाह का बहुत सम्मान किया और दिवेर पर हमले की योजना बनाई। भामाशाह ने जितना धन महाराणा को राज्य की सेवा के लिए दिया उस से 25 हज़ार सैनिकों को 12 साल तक रसद दी जा सकती थी. बस फिर क्या था..महाराणा ने फिर से अपनी सेना संगठित करनी शुरू की और कुछ ही समय में 40000 लडाकों की एक शक्तिशाली सेना तैयार हो गयी।
उसके बाद शुरू हुआ हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको इतिहास से एक षड्यंत्र के तहत या तो हटा दिया गया है या एकदम दरकिनार कर दिया गया है. इसे बैटल ऑफ़ दिवेर कहा गया गया है. बात सन 1582 की है, विजयदशमी का दिन था और महराणा ने अपनी नयी संगठित सेना के साथ मेवाड़ को वापस स्वतंत्र कराने का प्रण लिया. उसके बाद सेना को दो हिस्सों में विभाजित करके युद्ध का बिगुल फूंक दिया..एक टुकड़ी की कमान स्वंय महाराणा के हाथ थी दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे.
कर्नल टॉड ने भी अपनी किताब में हल्दीघाटी को Thermopylae of Mewar और दिवेर के युद्ध को राजस्थान का मैराथन बताया है. ये वही घटनाक्रम हैं जिनके इर्द गिर्द आप फिल्म 300 देख चुके हैं. कर्नल टॉड ने भी महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, तेज और देश के प्रति उनके अभिमान को स्पार्टन्स के तुल्य ही बताया है जो युद्ध भूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से यूँ ही टकरा जाते थे.
दिवेर का युद्ध बड़ा भीषण था, महाराणा प्रताप की सेना ने महाराजकुमार अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर थाने पर हमला किया , हज़ारो की संख्या में मुग़ल, राजपूती तलवारो बरछो भालो और कटारो से बींध दिए गए। युद्ध में महाराजकुमार अमरसिंह ने सुलतान खान मुग़ल को बरछा मारा जो सुल्तान खान और उसके घोड़े को काटता हुआ निकल गया.उसी युद्ध में एक अन्य राजपूत की तलवार एक हाथी पर लगी और उसका पैर काट कर निकल गई। महाराणा प्रताप ने बहलेखान मुगल के सर पर वार किया और तलवार से उसे घोड़े समेत काट दिया।
शौर्य की ये बानगी इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलती है. उसके बाद यह कहावत बनी की मेवाड़ में सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया जाता है.ये घटनाये मुगलो को भयभीत करने के लिए बहुत थी। बचे खुचे 36000 मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्म समर्पण किया. दिवेर के युद्ध ने मुगलो का मनोबल इस तरह तोड़ दिया की जिसके परिणाम स्वरुप मुगलों को मेवाड़ में बनायीं अपनी सारी 36 थानों, ठिकानों को छोड़ के भागना पड़ा, यहाँ तक की जब मुगल कुम्भलगढ़ का किला तक रातो रात खाली कर भाग गए।
दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुन्दा , कुम्भलगढ़ , बस्सी, चावंड , जावर , मदारिया , मोही , माण्डलगढ़ जैसे महत्त्वपूर्ण ठिकानो पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद भी महाराणा और उनकी सेना ने अपना अभियान जारी रखते हुए सिर्फ चित्तौड़ कोछोड़ के मेवाड़ के सारे ठिकाने/दुर्ग वापस स्वतंत्र करा लिए. अधिकांश मेवाड़ को पुनः कब्जाने के बाद महाराणा प्रताप ने आदेश निकाला की अगर कोई एक बिस्वा जमीन भी खेती करके मुसलमानो को हासिल (टैक्स) देगा , उसका सर काट दिया जायेगा। इसके बाद मेवाड़ और आस पास के बचे खुचे शाही ठिकानो पर रसद पूरी सुरक्षा के साथ अजमेर से मगाई जाती थी.
दिवेर का युद्ध न केवल महाराणा प्रताप बल्कि मुगलो के इतिहास में भी बहुत निर्णायक रहा। मुट्ठी भर राजपूतो ने पुरे भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करने वाले मुगलो के ह्रदय में भय भर दिया। दिवेर के युद्ध ने मेवाड़ में अकबर की विजय के सिलसिले पर न सिर्फ विराम लगा दिया बल्कि मुगलो में ऐसे भय का संचार कर दिया की अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण लगभग बंद हो गए.
इस घटना से क्रोधित अकबर ने हर साल लाखों सैनिकों के सैन्य बल अलग अलग सेनापतियों के नेतृत्व में मेवाड़ भेजने जारी रखे लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली. अकबर खुद 6 महीने मेवाड़ पर चढ़ाई करने के मकसद से मेवाड़ के आस पास डेरा डाले रहा लेकिन ये महराणा द्वारा बहलोल खान को उसके घोड़े समेत आधा चीर देने के ही डर था कि वो सीधे तौर पे कभी मेवाड़ पे चढ़ाई करने नहीं आया. ये इतिहास के वो पन्ने हैं जिनको दरबारी इतिहासकारों ने जानबूझ कर पाठ्यक्रम से गायब कर दिया है. जिन्हें अब वापस करने का प्रयास किया जा रहा है।

     🙏⛳जय भवानी जय राजपूताना⛳🙏

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

अहिंसा परमो धर्मः ने किया देश और धर्म का सत्यानाश!

कभी कभी मै सोचता था कि ” हिन्दु सनातन धर्म इतना महान और शक्तीशाली था कि पूरे विश्व में उसका डंका बजता था फिर क्या हुआ कि सनातन धर्म ” हिन्दु “ का इतना पतन (नुकसान या हानि ) हो गया क्या कारण था????
जब सोचा और पढा तो समझ में आया कि सम्राट अशोक ने अपने शासन काल में अपनी वीरता से सम्पूर्ण भारत पर अपना एक छत्र राज किया परन्तु जब बौद्ध धर्म अपनाया तो ” अंहिसा परमो धर्मः ” श्लोक का प्रचार किया और इस अधूरे श्लोक ने सनातन धर्म ” हिन्दु ” का ” सत्यानाश ” कर डाला।
जबकि महाभारत का पूरा श्लोक है!!!!!
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः
अर्थात:- यदि मनुष्य के लिऐ अहिंसा परम धर्म है तो ” धर्म ” मतलब (सत्य ) की रक्षा के लिए हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है जब धर्म (सत्य ) पर संकट आए तो मनुष्य को शस्त्र उठाना चाहिए और धर्म (सत्य ) की रक्षा करनी चाहिए।
अधूरे श्लोक का परिणाम ये निकला कि ” हिन्दुओं “ने अपने शस्त्र छोड दिए ” शस्त्र विद्या ” का अभ्यास छोड दिया ऋषि मुनियों ने ” शस्त्रों ” पर अनुसंधान करने छोड दिए और ये मान बैठे कि सनातन धर्म (हिन्दु ) धर्म तो विश्व में सबसे महान और शक्तीशाली है इस को कोई नहीं हरा सकता और चल पडे शांती के मार्ग पर।
सैकडों वर्ष बीत गए जो ” शस्त्र विद्या ” एक पीढी से दुसरी पीढी को प्राप्त होती थी वो नहीं प्राप्त नहीं हुई आने वाली पीढीयों को के पास जो आणविक और दिव्य अस्त्रों का जो ज्ञान था वो नहीं मिला परिणाम ये हुआ कि जो हिन्दु योद्धा थे वो सिर्फ तीर ,तलवार और भालों से लडने वाले योद्धा बनकर रह गए दिव्य अस्त्रों का ज्ञान उन्हें नहीं मिल पाया और ” अंहिसा परमो धर्मः ” के कारण बहुत कम ही योद्धा रह गए।
और अधिकतर हिन्दु शांती और अहिंसा के मार्ग पर चलते थे क्योंकि भारत वर्ष की संस्कृति में विज्ञान उन्नत किस्म का था तो हिन्दु ऐसी वस्तुओं का निर्माण करते थे जो पूरे विश्व में कहीं नहीं होती थी तो उनसे हिन्दु विदेशियों से व्यापार करता था और विदेशी उन्नत किस्म की वस्तुऐं खरीदने भारत आते थे और भारतीय व्यापारी व्यापार से बहुत धन अर्जित करते थे।
जिसके कारण भारत सोने की चिडिया कहलाता था यही कारण था कि मुगल लुटेरों की नजर भारत पर जम गई और वो भारत को लूटने के लिऐ भारत पर हमले करने लगे क्योंकि भारत अहिंसा के मार्ग पर चलता था और योद्धा कम बचे थे।
इसकी तुलना में मुगल लुटेरे क्रूर और हिंसक पृवर्ती के थे उन्होंने हिन्दुओं की नृशंस हत्या करनी शूरू कर दी और भारत के हिस्सों पर कब्जा करना शुरू कर दिया भारत में योद्धा कम थे और मुगल दुर्दांत और हत्यारे थे उन्होंने भारत पर कब्जा कर लिया उसके बाद अंग्रेजों ने भी यही काम किया और भारत को लूट कर ले गऐ।
इसी अधूरे श्लोक ” अंहिसा परमों धर्मः ” का उपयोग गाॅधी ने किया और भारत के क्रांतीकारी वीरों को दोषी बताया फिर 1947 की आजादी के बाद भारत के प्रधान मंत्री ” जवाहर लाल ” नेहरू ने भी इसी अधुरे श्लोक की गलतफहमी में हथियारों के कारखाने में हथियारों का उत्पादन बंद करवा दिया जिसका परिणाम ये हुआ चीन ने पीठ में छुरा घोंप दिया और 1962 में भारत पर हमला कर दिया और हिमालय पर्वत के बहुत सारे हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया।
”कैलाश पर्वत” जो कि हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थल भी चीन के कब्जे में चला गया और हमारे जवानों के पास इतना हथियार और गोला बारूद भी नहीं था की चीन से लड सके और तो मित्रों कहने का तात्पर्य इतना ही है कि इस अधुरे श्लोक ” अंहिसा परमो धर्मः ” का उपयोग छोडो और जागो और धर्मकी रक्षा के लिऐ शस्त्र उठाओ।