रविवार, 25 फ़रवरी 2024

आज हम आपको एक ऐसे राजपूत राजवंश के विषय में बताएँगे जिसने इतिहास के पन्नों को गौरांवित किया..!!....हिस्ट्री ऑफ़ ग्रेट पुंडीर राजपूत राजवंश

पुण्डीर दाहिमा वंश जोधपुर जिले में गोठ और मांगलोद के मध्य दधिमति माता का मन्दिर है। इस मन्दिर के नाम से यह क्षेत्र दधिमति क्षेत्र कहलाता है। 

इस क्षेत्र में रहने वाले राजपूत‘दाहिमे’ क्षत्रिय कहलाये। इस क्षेत्र से ये बयाना और वहाँ से दक्षिण की ओर चले गये। पृथ्वीराज चौहान का सेनापति कैमास दाहिमा वंश का ही था। 

कन्निटिया कैमास पृष्ट देखत मन लाग्यो। 
कलमलि चित्त सुहत्ति मयनपूरन जुरि जग्गो।। 
गयो गेह दाहिम्म, तलप अलप मन किन्नो। 
बोलि अप्प सो दासि। काम कारन हित दिन्नो।। (पृथ्वीराज रासो-कैमास करनाटी प्रसंग) 

रासो के आधार पर नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने दोयमत या दाहिम्म का आशय दाहिमा वंश से लिया है। इस वंश के क्षत्रिय बागपत तहसील जिलामेरठ के चार गाँवों में बसते हैं। 

शाखाः पुण्डीर (पुण्डिर) क्षत्रिय सूर्यवंशीः- यह दाहिमा वंश की शाखा है। १॰ पुलस्त- कहीं कपिल भी है। २॰ प्रवर- पुलस्त, विश्वश्रवस और दंभोलि। ३॰ वेद - यजुर्वेद। ४॰ शाखा- वाजसनेयी माध्यन्दिनी ५॰ सुत्र- पारस्कर गृह्यसूत्र। ६॰ कुलदेवि- दधिमति माता। 

इन दोनों वंशों की कुलमाता का एक होना भी इस मतको अधिक दृढ़ करता है। दाहिमा वंश के राजा पुण्डीर (पुण्डरीक) की सन्तान होने से ही ये वंश पुण्डीर पुण्डीर कहलाये। पहले इनका राज्य तिलंगाना (आन्ध्रप्रदेश) में था। 

इनके कुछ नाम ब्रह्मदेव, कपिलदेव, सुमन्दराज, लोपराज, फीमराज, केवलराज, जढ़ासुरराज और मढ़ासुरराज बताए जाते हैं।मढ़ासुरराज कुरुक्षेत्र में स्नान करने के आया था। वहाँ के शासक सिन्धु रघुवंशी ने अपनी पुत्री अल्पद का विवाह राजा मढ़ासुरराज से कर कैथल का क्षेत्र दहेज में दे दिया। 

यह घटना वि॰ सं॰ ६०२ की मानी जाती है। मढ़ासुरराज ने पुण्डरी शहर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। जिला करनाल में पुण्डरक, हावड़ी और चूर्णी स्थानों पर पुण्डीरों ने किले बनवाए। 

नीमराणा के राजा हरिराज चौहान ने पुन्डीरराज्य छीनकर चौहान राज्य की स्थापना की जिससे पुण्डीर यमुना पार करके उत्तरप्रदेश में चले गये और वहाँ के १४४० गाँवों पर अधिकार कर मायापुरी(हरिद्वार) को अपनी राजधानी बनाया। 

पुण्डीरों के वर्णन में है कि पुण्डीर शासक ईसम हरिद्वार का शासक था। उसके बाद क्रमशः सीखेमल, वीडो, कदम, हास और कुंथल शासक हुए। 

कुंथल के बारह पुत्र हुएः-अजत, अनत,लालसिंह, नौसर, सलाखन, गोगदे, मामदे, भाले, हद, विद, भोईग और जय सिंह। 

अजत ने निम्न ग्राम बसायेः- जुरासी, पतरासी, मोरमाजरा, खटका, लादपुर, गोगमा,हरड़, रामपुर, सोथा, हींड, मोहब्बतपुर, कैड़ी, बाबरी, बनत, हिनवाड़ा, नसला, लगदा, पीपलहेड़ा, भसानी, सिक्का। 

अनत ने निम्न ग्राम बसायेः- दूधली, कसौली, मारवा, शेरपुर, चौवड़, दुदाहेड़ी, वामन हेड़ी, बाननगर, रामपुर, कल्लरपुर, कौलाहेड़ी, कछोली, सरवर, मगलाना।

लालसिंह ने निम्न ग्राम बसायेः- गिरहाऊ, कोटा, खजूरवाला, माही, हसनपुर, भलसवा,बोहड़पुर। 

नौसर ने निम्न ग्राम बसायेः- नौसरहेड़ी, खुजनावर, जीवाला, हलवाना, अनवरपुर, बड़ौली, बेहड़ा, माडॅला, मानकपुर, मुसेल, गदरहेड़ी, सरदोहेड़ी, रामखेड़ी, चुबारा, गगाली, खपराना। सलाखन मायापुर (हरिद्वार) में ही रहा तथा वहाँ का शासक हुआ। 

इसके दो पुत्र चांदसिंह और गजसिंह थे। गजसिंह गंगापार रामगढ़ (वर्तमान अलीगढ़) की तरफ चला गया था। उसके वंशजों के १२५ गाँव थे, जिनमें ८० गाँव मैनपुरी और इटावा जिले में और ६ गाँव लखान छतेल्ला, भभिला, नसीरपुर, कुलहेड़ी, रणायच मुजफ्फरनगर में है। 

चौहान सम्राट पृथ्वीराज के समय में पुण्डीर उसके आधीन हो गए। उसने इन्हें जागीर में पंजाब का इलाका दिया। पृथ्वीराज के बड़े सामंतों में चांदसिंह पुण्डीर था, उसकी पुत्री से पृथ्वीराज का विवाह भी हुआ था। जिससे रणजीत सिंह का जन्म हुआ था। 

एक बार पृथ्वीराज शिकार खेलने गया था। उस समय शहाबुद्दीन गौरी ने भारत पर चढ़ाई की। चांदसिंह पुण्डीर ने सेना लेकर चिनाब नदी के किनारे उसका मार्ग रोका। काफी देर तक युद्ध होने के बाद चांदसिंह पुण्डीर के घायल होकर गिरने पर ही मुसलमान सेना चिनाब नदी पार कर सकी थी। 

पृथ्वीराज के पहुँचने पर फिर गौरी से जबरदस्त युद्ध हुआ। उसमें बगल से चांदसिंह पुण्डीर ने शत्रु पर हमला किया। उस युद्ध में इसका एक पुत्र वीरतापूर्वक युद्ध करता हुआ। मातृभूमि के लिये बलिदान हुआ था।

शहाबुद्दीन फिर युद्ध में परास्त होकर भागा। जब पृथ्वीराज कन्नौज सेसंयोगिता का हरण करके भागा, तब जयचन्द की विशाल सेना ने उसका पीछा किया। जयचन्द की सेना से पृथ्वीराज के सामंतों ने घोर युद्ध करके उस विशालवाहिनी कोरोका था, जिससे पृथ्वीराज को निकल जाने का समय मिल गया। 

उस भीषण युद्ध में चांदसिंह पुण्डीर कन्नोज की सेना से युद्ध करके जूझा था। चन्द पुण्डीर का पुत्र धीर पुण्डीरथा। वह भी बड़ा सामंत था। धीर सिंह और कैमास दाहिमा को पृथ्वीराज रासो में भाई होना लिखा है। 

इससे भी पुण्डीर वंश दाहिमा वंश की शाखा होना प्रमाणित होती है। उसके अजयदेव, उदयदेव, वीरदेव, सवीरदेव, साहबदेव और बीसलदेव छह भाई और थे। एक बार जब शहाबुद्दीन भारत पर आक्रमण करने आया, तब पृथ्वीराज का सामंत जैतराव आठ हजार घुड़सवार सेना के साथ उसे रोकने के लिये गया था। 

उसके साथ धीर पुण्डीर तथा उसके अन्य भाई भी थे। उस युद्ध में धीर पुण्डीर का भाई उदयदेव वीर गति को प्राप्त हुआ था। एक बार मुसलमान घोड़ों के सौदागर बनकर पंजाब में आए और धोखे से धीर पुण्डीर को मार डाला। इस पर पावस पुण्डीर ने उन्हें मारा। 

पृथ्वीराज को जब इस घटना की खबर मिली, तब उसे बड़ा अफसोस हुआ। पावस पुण्डीर धीर पुण्डीर का पुत्र था। पृथ्वीराज के ई॰ ११९२ में गौरी के साथ हुए अन्तिम युद्ध में पावस पुण्डीर मारा गया।

इस वंश का एक राज्य ‘जसमौर’ था, जहाँ “शाकम्भरी देवी” का मेला लगता है। यह मन्दिर सहारनपुर जिले में शिवालिक की पहाड़ी की तराई में बना है। पुण्डीर पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मैनपुरी, इटावा और अलीगढ़ जिलों में है। पुण्डीरों की एक शाखा ‘कलूवाल’ है।

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पुंडीर क्षत्रिय की वंशावली व गोत्र:-
वंश - सूर्य
कुल - पुण्डरीक/पुण्डीर/पुण्ढीर
कुलदेवता - महादेव
कुलदेवी - दधिमाता ( जिला - नागौर ,तहसील - जायल , गाँव - गौठ मंगलोद :- राजस्थान )
गौत्र - पौलिस्त / पुलत्सय
नदी - सर्यू
निकास - अयोध्या से तिलांगाना व तिलंगाना से हरियाणा ( करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल) व पुण्डरी से मायापुर (7 हरिद्वार व पश्चिम उत्तर प्रदेश)
पक्षी - सफेद चील
पेड़ - कदंब
प्रवर - महर्षि पौलिस्त, महर्षि दंभौली, महर्षि विश्वाश्रवस
शाखा - तीसरी शताब्दी के महाराज पुण्डरीक द्वितीय से
भगवान श्री राम के पुत्र की 158वीं पिढी मे महाराज पुण्डरीक द्वितीय हुए, महाराज पुण्डरीक द्वितीय (तीसरी शताब्दी के अंत में) -- असम -- धनवंत -- बाहुनिक - राजा लक्षण कुमार (तिलंगदेव :- तिलंगाना शहर बसाया) - जढेश्नर (जढासुर :- कुरुक्षेत्र स्नान हेतु सपरिवार व सेना सहित कुरुक्षेत्र पधारे) -- मंढेश्वर (मँढासुर :- सिंधुराज की पुत्री अल्पदे से विवाह कर कैथल क्षेत्र दहेज मे प्राप्त किया व " पुण्डरी " नगर की स्थापना हुइ) - राजा सुफेदेव - राजा इशम सिंह (सतमासा) - सीरबेमस - बिडौजी - राजा कदम सिंह (निमराणा के चौहान शस्क हरिराय से दूसरे युद्ध मे पराजय मिली व इनके पुत्र हंस ने मायापुरी मे राज्य कायम कर 1440 गाँवो पर अधिकार किया) -- हंस (वासुदेव) -- राजा कुंथल ( मायापुर के स्वामी बने व इनके 12 पुत्र हुए)  
1- अजट सिंह (इनके पुण्डीर वंशज गोगमा, हिनवाडा आदि गाँव मे है जो जिला शामली मे है)
2- अणत सिंह (इनके पुण्डीर वंशज दूधली, कसौली, कछ्छौली आदि गाँव मे है)
3- लाल सिंह (अविवाहित) 
4- नौसर सिंह (पता नही) 
5- सलाखनदेव (मायापुर राज्य मे रहा) 

राजा सुलखन (सलाखन देव) के 2 पुत्र हुए
राजा चाँद सिंह पुण्डीर (मायापुरी के राजा बने व दिल्ली पति संम्राट पृथ्वीराज चौहान के सामंत बने व इनका पुत्र पंजाब का सुबेदार बना, इस वीर चाँद सिंह की वीरता पृथ्वीराज रासौ मे स्वर्ण अक्षरों मे अमर है।)
राजा गजै सिंह पुण्डीर (यहां गंगा पार कर एटा, अलीगंज क्षेत्र गए व इनके वंशज 82 गांव मे विराजमान है।)

राजा चाँद सिंह पुंडीर के 7 पुत्र हुए
वीर योद्धा धीर सिंह पुण्डीर
कुँवर अजय देव
कुंवर उदय देव
कुंवर बीसलदेव
कुवर सौविर सिंह
कुंवर साहब सिंह
कुंवर वीर सिंह
इनमे धीर सिंह पुंडीर मीरो से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए व इनके पुत्र पावस पुंडीर तराई के अंतिम युद्ध मे पृथ्वीराज चौहान के सहयोगी बन कर लौहाना अजानबाहू का सिर काटकर वीरगती को प्राप्त हुए, चांद सिंह के इन पुत्रो के वंशज आज सहारनपुर जिले में विराजमान है जिनके ठिकानों की संख्या कम से कम 120-130 है।

जय राजपुताना..!

जय पुंडीर राजवंश..!!

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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻‍♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
👉🏻▄︻̷̿┻̿═━,’,’• Ⓡ︎ⓐⓝⓐ Ⓖ︎ 👈🏻