पंवार (परमार ) राजपूतों का इतिहास काफी स्वर्णिम रहा है, यह युद्धभूमि में वीरता का परिचय देने और अपने कुशल नेतृत्व के लिए जाने जाते है।
पंवार मुलतः अग्निवंश है जिसकी उत्पति आबू पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ के यज्ञ अग्निकुण्ड से मूल पूरुष परमार से मानी गई है। प्राचीनकाल में विन्ध्यशिखर पर धारानगरी और माण्डु नामक दो नगरों की स्थापना पंवार वंश के राजाओं ने ही की थी।
पंवार वंश में एक भोज नामक महाबली और पराक्रमी राजा हुए जिनका यश और कीर्ति आज भी इस कुल को प्रकाशमय बनाए हुए है। पंवार वंश के शासकों के अधीन महेश्वर (माहिष्मति), धारानगरी, माण्डु, उज्जयिनी, चन्द्रभागा, चित्तौड़, आबू, चन्द्रावती, महू, मैदान, पॅवारवती, अमरकोट, विखार, होहदुबी और पाटन आदि नगर रहे थे।
मालवा के परमार मुंज ने आबू को जीतकर अपने पुत्र अरण्यराज और चन्दन को क्रमशः आबू और जवालिपुर का शासन सौंपा। इस प्रकार आबू, जालौर, सिरोही, पालनपुर, मारवाड़ और दांता राज्यों के कई गाॅवों पर इनका अधिकार हो गया।
आबू पर्वत पर अचलगढ़ का किला और चन्द्रावती नगर परमारों ने ही बसाये थे। परमारों ने दसवीं शताब्दी में मालवा, मौर्यो से जीतकर उज्जैन नगरी को अपनी राजधानी बनाया। उसके बाद संवत् १३६८ तक आबू पर इनका राज्य रहा जो कि किसी कवि ने इस प्रकार स्पष्ट किया है:-
"पृथ्वी पुंवारों तणी, अने पृथ्वी तणो पॅवार।
एक आबूगढ़ बसाणों, दूजी उज्जैनी धार॥
आबू के प्रथम राजा सिन्धुराज सं. १००० के लगभग हुए, सिन्धुराज की पांचवी पीढ़ी में धरणीवराह पंवार हुए जिन्होंने अपने भाइयों में अपने राज्य को नौ भागों में बांटकर मारवाड़ नवकोट की स्थापना की।
धरणीवराह के पुत्र-महिपाल, बाहड़ व ध्रुवभट्ट थे। महिपाल जो आबू के राजा थे। दूसरे पुत्र बाहड़ के तीन पुत्र सोढा़, सांखला और बाघ थे। सोढा़ से सोढा़ राजपूत व सांखला से सांखला राजपूत हुए। सोढा़ ने सिन्ध प्रान्त में अमरकोट में अपना राज्य स्थापित किया।
वीर एवं न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य जिन्होंने विक्रम सम्वत की स्थापना की, वे भी पंवार वंश के राजा थे जिन्होंने उज्जैन में राज किया। मालवा के राजा उदियादीप के एक पुत्र जगदेव पंवार काफी प्रसिद्ध हुए, जिन्होंने देवी को अपना शीश अर्पण कर दिया, इस सम्बन्ध में एक कहावत है कि :—
"पुंवार नकारो नी करे, सुमेर पर्वत के हियो।
कंकाली भाटण कीरत भणे, शीशदान जगदेव दियो॥"
पंवार वंश में कुल छत्तीस शाखाएं है जिसमें विहल शाखा ही विशेष प्रसिद्ध हुई। इस शाखा के राजाओं ने काफी समय तक अरावली के पश्चिम में स्थित चन्द्रावती नगर पर राज्य किया।
इतिहासकार व शिलालेख (आबू पर्वत वि.स.१२८७)के अनुसार इस वंश में प्रथम पुरुष का नाम धूमराज लिखा है। धूमराज के ध्रुवभट्ट और रामदेव। रामदेव के यशोधवल राजा हुए।
यशोधवल का पुत्र धारावर्ष आबू के परमारों में बड़ा प्रसिद्ध वीर प्रराक्रमी हुआ। पंवार वंश की चार प्रमुख पाटी है, जिसमें धारानाथ की एक पाटी है। धारानाथ से हरिशचन्द्र तक वंशावली इस प्रकार है:-
धारानाथ→ भोमरक्ष→ ध्रोमरक्ष→ इन्द्रसेन→ अभयचन्द→ नीलरक्ष→ डाबरक्ष→ छत्रनख→ चन्द्रकेशर→ हरिशचन्द्र।
हरिशचन्द्र के दो पुत्र हुए- रोहितास व मोटाजी। रोहितास के दो पुत्र हरिश और सरिया जी हुए। हरिश जी के वंशज ही मोठिस पंवार कहलाते है। सरियाजी के वंशज जहाजपुर, खेराड़ आदि क्षेत्र में रहते है।
मोठिस पंवार की प्रमुख शाखायें निम्नलिखित स्थानो पर निवास करती है:- हरिया जी के वंश परम्परा में बालाराव के सात पुत्र हुए, जिनमें खत्रियाम के देवाजी व सातूजी के वंशज बारह भालियों में रहते है।
दूसरे पुत्र देवधानकजी के वंशज देवाता रहते है। तीसरे पुत्र गोपालजी के वंशज गाफा में रहते है। चौथे पुत्र रीछाजी के वंशज रीछमाल में रहते है। पांचवे पुत्र पीपहंस के वंशज पीपलबावड़ी में रहते है। छठे पुत्र दोमाजी के वंशज रडाना में रहते है। सातवें पुत्र बूड़ी के वंशज बेड़ा भायलों में रहते है।
सातूजी के पांच पुत्र नामटजी, अणदरायजी, ददेपाल, महपाल, मालाजी(मालदेव,मोठिस वंश के कुलदेवता) और एक पुत्री इन्दो बाई (कुण्डा माता,मोठिस पंवारो की कुल देवी) हुई। अणदरायजी के लखनदेव , कोदसी व सारणसी हुए।
देहलात पंवार:- हरिशचन्द्र के मोटाजी के वंश परम्परा में बहरोवरजी का पुत्र देलजी हआ जिसके वंशज देहलात पंवार कहलाते है। देहलात अधिकतर जवाजा, विहार, रावतमाल, लस्सानी आदि क्षेत्रों में रहते है। देहलात पंवारों की कुलदेवी बिहार माता का मंदिर जवाजा में स्थित है।
कल्लावत पंवार:- राजाजी के कूकराजी और कूकराजी के कटाराजी हुए जिनके वंशज कल्लावत/कलात पंवार कहलाते है।
धोधिंग पंवार:- पीथाजी के भैराजी, भैराजी के बोहराजी और बोहराजी के धोधिंगजी हुए, जिनके वंशज धोधिंग पंवार कहलाते है।
बोया पंवार:- गुणरायजी के वंशज बोया पंवार कहलाते है।
वेरात पंवार- वेराजी के वंशज वेरात पंवार कहलाते है।
पंवारों की बडे़ रूप में छत्तीस शाखा है- पंवार, सांखला, भरमा, भावल, पेस, पाणिसवल, वहीया, वाहल, छाहड़, मोटसी, हूवंड, सिलोरा, जयपाल, कंठावा, काब, उमर, धांधू, धूरिया, भई, कछोड़िया, काला, कालमुह, खेरा, खूंटा, ढल, ढेसल, जागा, ढूंढा, गेहलड, कलिलिया, कुकड़, पितालिया, डोडा, बारड़।
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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
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