(समाज को अपने गौरवशाली इतिहास से अवगत कराने का एक प्रयास है।)
हमारे पूर्वजों ने हमेशा धर्म को सत्ता और धन से आगे रखा है। क्योकि धन और सत्ता चले जाये तो फिर से प्राप्त किये जा सकते है परन्तु धर्म नष्ट नही होना चाहिए अत धरम की रक्षा के लिए जितना कष्ट किरार (किरार-धाकड-नागर-मालव)जाती ने सहन किये वह अन्य ने नही किये।
किरार क्षत्रिय सदेव से निर्भीक रहे है कभी भी यवनों से समझोता नही किया और न ही उनके दास बने।
१) ...जब यवनों ने मेवाड क्षेत्र पर आक्रमण किया तो राजपूतों की और से किरार उदय सिंह,चंद्रमान चोहान,मानिकचंद चोहान के साथ बड़ी संख्या में किरार क्षेत्रीय संयुक्त रूप से युद्ध में शामिल हुए। राजपूत वीर अपनी शान व् निर्भीकता से लडे उन्होंने इस युद्ध में यवनों की ऐसी दुर्गति की उनकी लाशो की खाइयाँ भर दी। उदय सिंह किरार ने कुशल नेतृत्व का परिचय दिया।
२)...ऐसे ही एक किरार सेनानी रघुपति सिंह थे जिन्होंने चित्तोडगढ की रक्षा में राणा जी की सेना का नेतृत्व किया ओर अकबर की सेना से अजय दुर्ग के आठो द्वार बंद कर आक्रमण किया।इसमें इन्होने अपने पुत्र की भी चिंता नही की जो जीवन त्याग रहा था ये अपने कर्तव्य पर अडिग रहे।
३)...इसी प्रकार जस्सू किरार का नाम इतिहास में गर्व के साथ लिया जाता है। जब प्रतिष्ठित खलीफा अल्वादीह(प्रथम) की सेनाओ ने भारत पर आक्रमण किया तो जस्सू किरार ने अपने सिन्ध की राजधानी अरोर में उसका सामना किया और उसे मार भगाया। जस्सू किरार भारत विख्यात राजा सालिवाहन के प्रपुत्र थे।
उस समय एक मुस्लिम सुभचिन्तक तानासाह भी थे इन्होने नर्मदा की घाटी में बसे हुए किरार जाति को रास्ता दिखाया ये एक सच्चे सुभचिन्तक रहे और इसी कारण शिवाजी के विश्वासपात्र माने जाते थे।
४)...जस्सू किरार की पुत्री ताराबाई जो शिवाजी महाराज के द्वितिय पुत्र राजाराम की विधवा थी जिन्होंने मराठों की खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करने हेतु मुगलों सी युद्ध किया और उनके छक्के छुड़ा दिये।
इससे ये पता चलता है की किरार नवयुवक ही नही वल्कि उनकी बलाओ में भी इतना साहस था कि औरंगजेब जेसे अत्याचारी बादशाह को उनके डर से तम्बू में मुह छुपाना पड़ता था।
यदि किरार राज्य की दृष्टि से देखो तो भारत ही नही नेपाल पर भी 374 वर्ष किरारो का राज्य रहा है। इसी प्रकार देखे तो कन्नोज के राज्य की सीमा दक्षिण तक फेली थी उसी समय राजा नरसिंह देव किरार ने अपने नाम पर नगर बसाया जिसका नाम नरशिंहपुर रखा ये 500 इश्वी का बताया जाता है। राजा नरसिंह देव किरार की दक्षिण की कई जनपदों पर राज्य रहा।आज भी नरसिंगपुर जनपद में किरार क्षत्रियो की संख्या अधिक है।
कहा जाता है किसी जाति या वर्ग को कमजोर बनाना हो तो उसको हीन भावना से ग्रसित कर दो ऐसा ही हमारे साथ हुआ। क्योंकि हमारे पूर्वज का इतहास गौरवशाली रहा है। हम शारीरिक रूप से बलवान,सच्चरित,निपुड,निर्भीक एवं अपने कार्यो में विकसित तेज़ क्षमता ,क्षमा,शौर्य ये देवीय गुण हमारे समाज का अंग रहे हैं। हमारे पूर्वज त्याग और बलिदान की मूर्ति थे इनको ध्यान में रखकर हमे आगे कार्य करना है। हमारा समाज कर्मनिष्ट,इमानदार,एवं कठोर परिश्रम द्वारा अर्जित फल का पक्षकार रहा है। और यही हमारी जमा पूंजी है।
(किरार दर्पण स्मारिका से )
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