शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

महान राजपूत सैनिक जनरल जोरावर सिंह


जनरल जोरावर सिंह ने जम्मू के डोगरा सेना के सेनापति के रूप में लद्दाख, बाल्टिस्तान, लेह जीत कर जम्मू राज्य का हिस्सा बनाया इन्होने तिब्बत क्षेत्र के मानसरोवर और कैलाश ( तीर्थ पुरी ) तथा भारत और नेपाल के संगम स्थल तकलाकोट तक विजय हासिल की।

इन्होने भारत की विजय पताका भारत के बाहर तिब्बत और बाल्टिस्तान तक फहरायी तोयो ( अब चीन में ) में युद्ध करते हुए गोली लगने से इनका देहांत हुआ और तोयो में आज भी इनकी समाधी मौजूद है।

लद्दाख जिस वीर सेनानी के कारण आज भारत में है, उनका नाम है जनरल जोरावर सिंह 13 अप्रैल, 1786 को इनका जन्म ग्राम अनसरा (जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश) में #ठाकुर_हरजे_सिंह के घर में हुआ था जोरावर सिंह  महाराजा गुलाब सिंह की डोगरा सेना में भर्ती हो गये।

राजा ने इनके सैन्य कौशल से प्रभावित होकर कुछ समय में ही इन्हें सेनापति बना दिया वे अपनी विजय पताका लद्दाख और बाल्टिस्तान तक फहराना चाहते थे। 

अतः जोरावर सिंह ने सैनिकों को कठिन परिस्थितियों के लिए प्रशिक्षित किया और लेह की ओर कूच कर दिया किश्तवाड़ के मेहता बस्तीराम के रूप में इन्हें एक अच्छा सलाहकार मिल गया सुरू के तट पर वकारसी तथा दोरजी नामग्याल को हराकर जनरल जोरावर सिंह की डोगरा सेना लेह में घुस गयी इस प्रकार लद्दाख जम्मू राज्य के अधीन हो गया।

अब जोरावर ने बाल्टिस्तान पर हमला किया लद्दाखी सैनिक भी अब उनके साथ थे अहमदशाह ने जब देखा कि उसके सैनिक बुरी तरह कट रहे हैं तो उसे सन्धि करनी पड़ी जोरावर ने उसके बेटे को गद्दी पर बैठाकर 7,000 रु. वार्षिक जुर्माने का फैसला कराया। 

अब उन्होंने तिब्बत की ओर कूच किया हानले और ताशी गांग को पारकर वे आगे बढ़ गये अब तक जोरावर सिंह और उनकी विजयी सेना का नाम इतना फैल चुका था कि रूडोक तथा गाटो ने बिना युद्ध किये हथियार डाल दिये अब ये लोग मानसरोवर के पार तीर्थपुरी पहुँच गये। 

वहां 8,000 तिब्बती सैनिकों ने परखा में मुकाबला किया जिसमे तिब्बती पराजित हुए जोरावर सिंह तिब्बत भारत तथा नेपाल के संगम स्थल तकलाकोट तक जा पहुँचे। वहाँ का प्रबन्ध उन्होंने मेहता बस्तीराम को सौंपा तथा वापस तीर्थपुरी आ गये।

जोरावर सिंह के पराक्रम की बात सुनकर अंग्रेजों के कान खड़े हो गये उन्होंने पंजाब के राजा रणजीत सिंह पर उन्हें नियन्त्रित करने का दबाव डाला निर्णय हुआ कि।

10 दिसम्बर, 1841 को तिब्बत को उसका क्षेत्र वापस कर दिया जाये। इसी बीच जनरल छातर की कमान में दस हजार तिब्बती सैनिकों की जनरल जोरावर सिंह के 300 डोगरा सैनिकों से मुठभेड़ हुई राक्षसताल के पास सभी डोगरा सैनिक शहीद हो गये जोरावर सिंह ने गुलामखान तथा नोनो के नेतृत्व में सैनिक भेजे पर वे सब भी शहीद हुये। 

अब वीर जोरावर सिंह स्वयं आगे बढ़े वे तकलाकोट को युद्ध का केन्द्र बनाना चाहते थे पर तिब्बतियों की विशाल सेना ने 10 दिसम्बर, 1841 को टोयो में इन्हें घेर लिया दिसम्बर की भीषण बर्फीली ठण्ड में तीन दिन तक घमासान युद्ध चला।

12 दिसम्बर को जोरावर सिंह को गोली लगी और वे घोड़े से गिर पड़े। डोगरा सेना तितर-बितर हो गयी तिब्बती सैनिकों में जोरावर सिंह का इतना भय था कि उनके शव को स्पर्श करने का भी वे साहस नहीं कर पा रहे थे बाद में उनके अवशेषों को चुनकर एक स्तूप बना दिया गया। 

सिंह छोतरन नामक यह खंडित स्तूप आज भी टोयो में देखा जा सकता है तिब्बती इसकी पूजा करते हैं इस प्रकार जोरावर सिंह ने भारत की विजय पताका भारत से बाहर तिब्बत और बाल्टिस्तान तक फहरायी वह भारत ही नहीं अपितु विश्व के एकमात्र योद्धा हैं जिनके शौर्य व वीरता से प्रभावित होकर शत्रु सेना द्वारा उनकी समाधि बनाई गई हो। 

उन्होंने लद्दाख को जम्मू रियासत का अंग बताया जो भारत का अभिन्न अंग है प्रकार इस वीर सपूत ने 12 दिसंबर 1841 ई. को तिब्बती से लड़ते हुए टोयो नामक स्थान पर वीरगति प्राप्त की तिब्बतियों ने इनके  उनकी समाधि बनाई उन्होंने कहा कि वे हमारे प्रेरणास्त्रोत हैं।

जय राजपूताना।
जय मां भवानी।
👑क्षत्रिय धर्म युगे युगे।👑

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🙏🏻 जय 🔱 भवानी। 🙏🏻
👑जय 💪🏻राजपूताना। 🔫
👑जय 💪🏻महाराणा प्रताप।🚩
🙋🏻‍♂️जय 👑सम्राट💪🏻पृथ्वीराज🎯चौहान।💣
👉🏻▄︻̷̿┻̿═━,’,’• Ⓡ︎ⓐⓝⓐ Ⓖ︎ 👈🏻