परम उज्जवल हाडा चौहान वंश में अनेक योद्धाओं ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने बाहुबल से समस्त क्षत्रियों का गौरव बढ़ाया। परन्तु आज उन योद्धाओं के केवल नाम ही शेष रह गए हैं और वर्तमान समय में तो वह नाम भी हम भूलते जा रहे हैं।
हाडा चौहान वंश में जन्मे अमरसिंह हाडा ठिकाना पलायथा की वीरगाथा भी अविस्मरणीय है, यह घटना मध्यकाल से उत्तरार्द्ध तथा उन्नीसवीं सदी के प्रारंभिक काल की हैं। भारत में इस समय अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो चुका था, लेकिन मराठों का उपद्रव रूका नहीं था, इस समय कोटा पर महाराव उम्मेदसिंह का शासन था। इनके समय सन् 1860 में मराठा और अंग्रेजों के बीच हुए युद्ध में कोटा राज्य की ओर से पलायथा ठिकाणे से अमरसिंह (आपजी सा) इस युद्ध में कर्नल मोन्सून के साथ शामिल हुए थे।
यह युद्ध मध्यप्रदेश के गरोठ नामक स्थान पर हुआ था। युद्ध के दौरान अमरसिंह जी हाडा ने अपनी प्रचण्ड वीरता का परिचय दिया और हाथी पर सवार एक मराठे सरदार को अमरसिंह जी हाडा (आपजी सा) ने मार गिराया। इससे क्रोधित होकर मराठा सरदार जसवंत राव होल्कर ने अपनी सेना के साथ अमरसिंह पर धावा बोल दिया। अमरसिंह जी हाडा (आपजी सा) ने अपनी अद्भूत वीरता तथा युद्ध कौशल का परिचय देते हुए करीबन 837 मराठों को खेत कर दिया यानी मार गिराया। अमरसिंह जी हाडा प्रचण्डता से युद्ध करते हुए काफी सारे दुश्मनों से घिर गए और किसी मराठे ने पीछे से वार कर अमरसिंह जी का सिर कलम कर दिया। अमरसिंह जी हाडा (आपजी सा हुकूम) सिर कटने के बाद भी बराबर तलवार चला रहे थे और मराठाओं को मौत के घाट उतार रहे थे, जो भी अमरसिंह जी हाडा की तलवार के सामने आता वह फना यानी खत्म हो जाता।
यह नजारा अद्भुत एवं रोमांचित कर देने वाला था, जिसे देखकर सभी अचंभित थे। अमरसिंह जी हाडा की बहादुर और वफादार घोड़ी जिसका नाम केसर था, उस घोड़ी ने वक्त की नजाकत को भांपते हुए अमरसिंह जी के धड़ को युद्ध स्थल से पलायथा ठिकाणे ले आई। गरोठ के युद्ध मैदान से पलायथा ठिकाणे की दूरी करीबन 130 किलोमीटर है। इस युद्ध में मराठों की हार हुई थी।
इतिहास गवाह है कि युद्ध के समय पर राजपूतों के घोड़ों की अहम भूमिका रही है। यहां पर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के साहसी घोड़े चेतक और वीर अमरसिंह राठौड़ के घोड़े का स्मरण करना प्रासंगिक ही होगा।
🙏वीर भोग्या वसुंधरा।🚩
🙏जय राजपुताना।🚩
Khinchi Rajputana histary
जवाब देंहटाएं