साल 1947 यह समय था, भारत और पाकिस्तान दो अलग देश बन रहे थे।
जहां मुसलमानो ने अलग राष्ट्र पाकिस्तान बनाने के लिए हिन्दुओ का नरसंहार किया, वहीं बर्मा के मुसलमान बौद्धों का नरसंहार कर पूर्वी पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे, कश्मीर की तर्ज पर ही ये रोहिंग्या सेना और जनता दोनों पर पत्थर बरसाते।
अपने ही देश के खिलाफ उनके इस "जिहाद" की शुरुवात हुई दूसरे विश्व युद्ध के समय, जब ब्रिटेन ने अलग राष्ट्र देने के बदले, रोहिंग्यों को जापान से लड़ने को तैयार किया और उनके हाथों में हथियार दिए गए।
इन रोहिंग्यों ने जापान से लड़ने की जगह अपने ही देश के 20,000 बौद्धों को मार डाला और असंख्य बौद्ध महिलाओं का बलात्कार किया।
स्वभाव से ही झगड़ालू इन रोहिंग्यों ने 1946 में जिन्ना से संपर्क किया कि बर्मा के *' माउ '* क्षेत्र को पाकिस्तान में शामिल किया जाए, परंतु जिन्ना ने इससे मना कर दिया।
गुस्साए रोहिंग्यों ने अपने ही देश मे हत्या और बलात्कार का नंगा नाच शुरू कर दिया, इन्होंने अपनी आतंकी सेना तक भी बना ली, जो पाकिस्तान जाकर ट्रेनिग लेती और बौद्धों को मारती।
*1946 से लेकर अब तक इन जिहादी रोहिंग्यों से बौद्ध जनता त्रस्त थी।*
लेकिन वहां उदय हुआ विराथु नाम के एक सच्चे सन्त का, जिसने कहा, "आप कितने भी शांतिप्रिय क्यों ना हो, लेकिन पागल कुत्तों के साथ आप नही सो सकते, खतरे की घण्टी बज चुकी है, अगर खुद को बचाना है, तो बर्मा से रोहिंग्यों को जड़ से खत्म करना होगा।
2001 मे उन्होंने व्यापार से रोहिंग्यों के पूर्ण बहिष्कार का अभियान, *"अभियान - 969"* चलाया, अगर किसी दुकान पर 969 लगा होता, तभी बौद्ध वहां से सामान खरीदते।
2012 में एक बौद्ध महिला का बलात्कर कर रोहिंग्यों ने उसकी हत्या कर दी। फिर तो बर्मा जल उठा, इस घटना ने आग में घी का काम किया, विराथु के भाषणों से इस आग की लपट भारत के आजाद मैदान तक आयी।
बौद्धों ने अब हथियार उठा लिए थे, विराथु ने कहा, "रोहिंग्या, 'अल्पसंख्यक बौद्ध' लड़कियों को फंसाकर शादियाँ कर रहे हैं एवं बड़ी संख्या में बच्चे पैदा करके पूरे देश के जनसंख्या संतुलन को बिगाड़ने के मिशन में दिन रात लगे हुए हैं, जिससे बर्मा की आन्तरिक सुरक्षा को भारी खतरा उत्पन्न हो गया है। उनका कहना था कि इस तरह ये रोहिंग्या एक दिन पूरे देश में फैल जाएंगे और बर्मा में बौद्धों का नरसंहार शुरू हो जाएगा।"
संयुक्तराष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि यांग ली ने सेकुलरिज्म दिखाते हुए बर्मा का दौरा किया और विराथु की साम्प्रदायिक सोच की निंदा की।
विराथु की हिम्मत देखिये, उसने उन्हें खुलेआम धमकी दी एवं यहाँ तक कि उन्हें वेश्या और कुतिया भी कह दिया और कहा, "आपकी संयुक्त राष्ट्र में प्रतिष्ठा है, इसलिए आप अपने आप को बहुत को बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति न समझ लें। बर्मा के लोग अपने देश की रक्षा स्वयं करेंगे। उन्हें आपके सलाह की जरूरत नहीं है।"
मीडिया के सामने कहे गये अपने निर्भीक विचारों के कारण उनकी ख्याति पूरी दुनियाँ में फैल गयी। पूरी जनता विराथु के साथ थी।
उन्होने ढूंढ-ढूंढकर, चुन-चुनकर रोहिंग्यों का कत्ले-आम सुरु कर दिया, ना बच्चे बख्से, ना बूढ़े, और ना ही औरतें और उनके हर एक धार्मिक स्थान भी ढहा दिए गये।
आज वे रोहिंग्या दर-बदर की ठोकर खा रहे हैं और भारत के तथाकथित बुद्धिजीवी व मुल्ला-मौलवी उन्हें भारत में बसाने हेतु सरकार पर दबाव लाने के लिए देशभर मे मोर्चे, आंदोलन, दंगा-फसाद, तोड़-फोड़ करने हेतु यहां के मुस्लिम समाज को भड़काने-बरगलाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
पूरे विश्व में 57 मुस्लिम देश हैं और वो सभी इन रोहिंग्या मुसलमानों को अपने देश में शरण देने से इंकार कर चुके हैं, ऐसे में भारत को धर्मशाला बनाकर भविष्य में बर्मा जैसे संकट में डालने हेतु ये कवायद तथाकथित बुद्धिजीवीयों और मुल्ले-मौलवियों का एक और राष्ट्रघाती कदम नही है क्या??
😡 ने अलग राष्ट्र पाकिस्तान बनाने के लिए हिन्दुओ का नरसंहार किया, वहीं बर्मा के मुसलमान बौद्धों का नरसंहार कर पूर्वी पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे, कश्मीर की तर्ज पर ही ये रोहिंग्या सेना और जनता दोनों पर पत्थर बरसाते।
अपने ही देश के खिलाफ उनके इस "जिहाद" की शुरुवात हुई दूसरे विश्व युद्ध के समय, जब ब्रिटेन ने अलग राष्ट्र देने के बदले, रोहिंग्यों को जापान से लड़ने को तैयार किया और उनके हाथों में हथियार दिए गए।
इन रोहिंग्यों ने जापान से लड़ने की जगह अपने ही देश के 20,000 बौद्धों को मार डाला और असंख्य बौद्ध महिलाओं का बलात्कार किया।
स्वभाव से ही झगड़ालू इन रोहिंग्यों ने 1946 में जिन्ना से संपर्क किया कि बर्मा के *' माउ '* क्षेत्र को पाकिस्तान में शामिल किया जाए, परंतु जिन्ना ने इससे मना कर दिया।
गुस्साए रोहिंग्यों ने अपने ही देश मे हत्या और बलात्कार का नंगा नाच शुरू कर दिया, इन्होंने अपनी आतंकी सेना तक भी बना ली, जो पाकिस्तान जाकर ट्रेनिग लेती और बौद्धों को मारती।
*1946 से लेकर अब तक इन जिहादी रोहिंग्यों से बौद्ध जनता त्रस्त थी।*
लेकिन वहां उदय हुआ विराथु नाम के एक सच्चे सन्त का, जिसने कहा, "आप कितने भी शांतिप्रिय क्यों ना हो, लेकिन पागल कुत्तों के साथ आप नही सो सकते, खतरे की घण्टी बज चुकी है, अगर खुद को बचाना है, तो बर्मा से रोहिंग्यों को जड़ से खत्म करना होगा।
2001 मे उन्होंने व्यापार से रोहिंग्यों के पूर्ण बहिष्कार का अभियान, *"अभियान - 969"* चलाया, अगर किसी दुकान पर 969 लगा होता, तभी बौद्ध वहां से सामान खरीदते।
2012 में एक बौद्ध महिला का बलात्कर कर रोहिंग्यों ने उसकी हत्या कर दी। फिर तो बर्मा जल उठा, इस घटना ने आग में घी का काम किया, विराथु के भाषणों से इस आग की लपट भारत के आजाद मैदान तक आयी।
बौद्धों ने अब हथियार उठा लिए थे, विराथु ने कहा, "रोहिंग्या, 'अल्पसंख्यक बौद्ध' लड़कियों को फंसाकर शादियाँ कर रहे हैं एवं बड़ी संख्या में बच्चे पैदा करके पूरे देश के जनसंख्या संतुलन को बिगाड़ने के मिशन में दिन रात लगे हुए हैं, जिससे बर्मा की आन्तरिक सुरक्षा को भारी खतरा उत्पन्न हो गया है। उनका कहना था कि इस तरह ये रोहिंग्या एक दिन पूरे देश में फैल जाएंगे और बर्मा में बौद्धों का नरसंहार शुरू हो जाएगा।"
संयुक्तराष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि यांग ली ने सेकुलरिज्म दिखाते हुए बर्मा का दौरा किया और विराथु की साम्प्रदायिक सोच की निंदा की।
विराथु की हिम्मत देखिये, उसने उन्हें खुलेआम धमकी दी एवं यहाँ तक कि उन्हें वेश्या और कुतिया भी कह दिया और कहा, "आपकी संयुक्त राष्ट्र में प्रतिष्ठा है, इसलिए आप अपने आप को बहुत को बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति न समझ लें। बर्मा के लोग अपने देश की रक्षा स्वयं करेंगे। उन्हें आपके सलाह की जरूरत नहीं है।"
मीडिया के सामने कहे गये अपने निर्भीक विचारों के कारण उनकी ख्याति पूरी दुनियाँ में फैल गयी। पूरी जनता विराथु के साथ थी।
उन्होने ढूंढ-ढूंढकर, चुन-चुनकर रोहिंग्यों का कत्ले-आम सुरु कर दिया, ना बच्चे बख्से, ना बूढ़े, और ना ही औरतें और उनके हर एक धार्मिक स्थान भी ढहा दिए गये।
आज वे रोहिंग्या दर-बदर की ठोकर खा रहे हैं और भारत के तथाकथित बुद्धिजीवी व मुल्ला-मौलवी उन्हें भारत में बसाने हेतु सरकार पर दबाव लाने के लिए देशभर मे मोर्चे, आंदोलन, दंगा-फसाद, तोड़-फोड़ करने हेतु यहां के मुस्लिम समाज को भड़काने-बरगलाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
पूरे विश्व में 57 मुस्लिम देश हैं और वो सभी इन रोहिंग्या मुसलमानों को अपने देश में शरण देने से इंकार कर चुके हैं, ऐसे में भारत को धर्मशाला बनाकर भविष्य में बर्मा जैसे संकट में डालने हेतु ये कवायद तथाकथित बुद्धिजीवीयों और मुल्ले-मौलवियों का एक और राष्ट्रघाती कदम नही है क्या..??🙏