हमारे बहुत से मित्र कहेंगे की द्वारिका तो पूरी नष्ठ हो गयी थी, अब कहाँ यदुवंशी बचे है। उन मित्रो को यही कहना है, की टीवी सीरियल छोड़कर मूल महाभारत पढ़े, द्वारिका में विनाश अवश्य हुआ था, लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण ने कुछ हजार लोगों को तीर्थ के बहाने राज्य से निकाला था, अर्जुन ने भी काफी लोगो को बचाया ....तो यदुवंश खत्म नही हुआ था .....
यदुवंश भारत का एक महान वंश है , भगवान श्री कृष्ण का जन्म इसी वंश में हुआ था । वर्तमान में राजपूत जाति के अंतर्गत आने वाले जादौन, भाटी, जडेजा, चूड़ासामा यदुवंशी आदि है ।।
इतिहास के ज्ञान के अभाव में हम जिन्हें यदुवंशी मानते है, इतिहास की पुस्तकों में उन्हें आभीर कहा गया है । कुछ इतिहासकारो ने तो यहां तक माना है, आभीर एक विदेशी जाति थी, शको का अनुसरण करते हुए यह भारत मे प्रविष्ट हुई, हिरात और कंधार के बीच "अबिरवन " नामक स्थान इनकी भूमि थी, बाद में पश्चिमी और मध्यभारत तक आभीरों की बस्तियां बनी, इतिहास के अधिकतम ग्रन्थों में आभीरों का वर्णन शुद्र के रूप में मिलता है ।
विदेशी शको के शासनकाल के समय आभीरों की स्तिथि बहुत सुदृढ थी , क्यो की शक राजा आभीरों को उच्च पदों पर बिठाते थे। उतरी काठियावाड़ में गुंडा नामक स्थान से १८१ ईस्वी का एक शिलालेख मिला है, इसमें महाक्षत्रप रुद्रसिंह प्रथम के शासनकाल में सेनापति बापक के पुत्र आभीर सेनानी रुद्रभूति द्वारा एक जलाशय खुदवाने का उल्लेख है । इससे यह स्पष्ठ है, की शको के शासनकाल में आभीरों को उच्च पद प्राप्त था ।। इसके उलट विदेशी शको और राजपूतो के बीच संबध सांप और नेवले वाला था ।
पूरे इतिहास में केवल एक आभीर राजा का उल्लेख मिलता है… मारठि पुत्र ईश्वरसेन ।। इनके नवम वर्ष के शासनकाल का एक शिलालेख मिला है, जिसमे उन्होंने कोई भी राजकीय उपाधि धारण नही की है, जैसा क्षत्रिय राजा करते थे ।
आभीर जाति लगभग 200 सालों तक भारत के छोटे प्रदेश पर शासन करती रही है । इतिहास में कदम्ब वंश का वर्णन आता है, जिन्होंने आभीरों और शको दोनो को पराजित किया, उन्होंने भी आभीर राज्यो को आभीर ही कहा है । यदु वंश से आभीरों का कहीं कोई सम्बंध नही बताया गया है ।
महाभारत में आभीर और क्षत्रिय :-
पूरी महाभारत में कहीं भी भगवान श्रीकृष्ण को आभीर नही कहा गया है। न उनके किसी वंसज को आभीर कहा गया है ।
महाभारत में आभीरों का जो वर्णन है, वह यह है :-
" ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतसः
आभीरा मंत्रयामासः समेत्याशुभदर्शना "
(श्रीमहाभारते-मौसलपर्व सप्तमोध्यायः-श्लोक -४७)
इस श्लोक का अर्थ है, लोभ से उनकी विवेक शक्ति नष्ठ हो गयी, उन अशुभदर्शी पापाचारी आभीरों ने परस्पर मिलकर सलाह की ....
यह श्लोक तब है, जब अर्जुन द्वारिकावासियों को बचाने निकलते है । वहां इनकी मन्त्रणा चलती है
" देखो यह अकेला अर्जुन बूढों, बालको, ओर अनाथ समूह को लिए जा रहा है, अतः इसपर आक्रमण करना चाहिए।
सिर्फ यही नही, इसी अध्याय में आभीरों का वर्णन म्लेच्छ के रूप में भी आया है :-
प्रेक्षतस्तवेव पार्थस्य वृषणयन्धकवरस्त्रीय
जग्मुरादाय ते मल्लेछा समन्ताजज्नमेय् ।।
(मौसल पर्व-सप्तम अध्याय-श्लोक :-६३)
अर्जुन देखता ही रह गया ,वह म्लेच्छ डाकू सब ओर से वृष्णिवंश और अन्धकवंश कि सुंदर स्त्रियो पर टूट पड़े ।।
एक ही अध्याय में डाकुओं को आभीर भी कहा गया, म्लेच्छ कहा गया , अगर आभीरों का सम्बंध क्षत्रिय वंश से होता, तो महाभारत में लिखा होता, तो बुद्धि और काल से विवश होकर क्षत्रिय भी म्लेच्छ कर्म करने लगे। क्यो की जब भी क्षत्रियो ने अत्याचार किया है, शास्त्रो में उन्हें "अत्याचारी क्षत्रिय " ही कहा है, डाकू या म्लेच्छ नही । अगर आभीर क्षत्रिय होते, तो उनका भी इसी तरह वर्णण आता ।।
राजपूत ही है असली यादव
रही राजपूतो के यदुवंशी होने की बात, तो इनके पास वंशावली है, शास्त्रो के समस्त बयान इनके पक्ष में है, अहीर जाति प्रमाण पत्र में खुद को यादव लिखेंगे तो उन्हें आरक्षण तक नही मिलेगा ।। गुजरात उच्च न्यायलय ने जड़ेजाओ को गुजरात मे कृष्ण का वंसज माना है, आज भी श्रीकृष्ण की गद्दी करौली मानी जाती है, जैसलमेर में श्रीकृष्ण की छतरी है ।
लेखक की तरफ से विन्रम निवेदन :- यह पोस्ट सत्य तथा प्रमाणों पर आधारित पोस्ट है, इस पोस्ट का उद्देश्य किसी का अपमान करना नही है, अगर किसी को भी इस पोस्ट से तकलीफ हुई है, ।। यह पोस्ट इसलिए लिखनी पड़ी, क्यो की इसी बात को लेकर बार बार राजपूतो को टारगेट किया जाता है, कोई खुद को श्रीकृष्ण का वंशज कहें, पुत्र कहे, इससे किसी को कोई समश्या नही है।।