रविवार, 19 अप्रैल 2020

पुंडीर वंश का सम्पूर्ण इतिहास


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...........पुंडीर राजपूत भगवान श्री राम के वंशज राजा पुण्डरीक के वंशज माने जाते है...........
 
१  गोत्र- पुलस्त कहीं कपिल भी है। 
२  प्रवर- पुलस्त, विश्वश्रवस और दंभोलि। 
३  वेद - यजुर्वेद।
४  शाखा- वाजसनेयी माध्यन्दिनी 
५  सुत्र- पारस्कर गृह्यसूत्र।
६  कुलदेवि- दधिमति माता  व् शाकुंभरी देवी ।

पहले अयोध्या से वैशाली बिहार में गये।

वहां से आगे बिहार और बंगाल कलिंग में पुंड्रा डायनेस्टी ने कई सो साल शासन किया। इस शासन के सिक्के कई हजार साल बाद भी मिलते हैं।
कलिंग से बाद में दक्षिण की और जाकर तेलंगाना में शासन किया।
सन 544 इसवी में इसके राजा मधुकरदेव कुरुक्षेत्र स्नान के लिए आज के हरियाणा में आये तो यहाँ के राजा सिन्धु रघुवंशी ने अपनी पुत्रि का विवाह उनसे कर कैथल और करनाल का इलाका दहेज में दे दिया।
यहाँ उन्होंने अपना नया राज्य पूंडरी के नाम से स्थापित किया जो आज तक करनाल में एक बड़ा कस्बा है।।
यह राज्य सम्राट हर्षवर्धन के बाद 712 इसवी में  यमुना पार कर आज के यूपी के सहारनपुर हरिद्वार और मुजफरनगर तक फ़ैल गया।
 
नीमराना के चौहानो और पुण्डरी(करनाल,कैथल) के पुंडीर राजपूतों के बीच हुए इस रक्तरंजित युद्ध का इतिहास गवाह है। यह ऐतिहासिक कहानी आपको हरियाणा के उस स्वर्णिम काल में ले जाएगी जब यहां क्षत्रिय राजपूतो का राज था ,यानी अंग्रेजों और मुगलों के समय से भी पहले ।।

राजा मधुकर देव पुंडीर ने यही पर अपने पूर्वज के नाम पर पुण्डरी नाम से राजधानी स्थापित की, बाद में उनके वंशजो ने यहां चार गढ़ स्थापित किये
जो कि पुण्डरी, पुंडरक ,हावडी, चूर्णी(चूर्णगढ़) के नाम से जाने गए,
हर्षवर्धन के पश्चात् सन 712 इसवी के आसपास पुंडीर राजपूतो ने यमुना पार सहारनपुर और हरिद्वार क्षेत्र पर भी कब्जा कर शासन स्थापित किया. पुंडीर राज्य के दक्षिण पश्चिम में मंडाड राजपूतों का शासन था जोकि यहां मेवाड़ से आये थे और राजोर गढ़ के बड़गुजरों की शाखा थे। मंडाड राजपूतो का कई बार पुंडीर राज्य से संघर्ष हुआ पर उन्हें सफलता नहीं मिली।।
 गंगा स्नान से लौटते वक्त राणा हर राय चौहान थानेसर पहुंचे तथा पुरोहितो के सुझाव पर पुंडीरो से कुछ क्षेत्र राज करने के लिए भेंट में माँगा, पुंडीरो ने राणा जी की मांग ठुकराई और क्षत्रिये धर्म निभाते हुए विवाद का निर्णय युद्ध में करने के लिए राणा हर राय देव को आमंत्रित किया। जिसे हर राय देव ने
स्वीकार किया।।
ऐसा कहा जाता है कि मंडाड राजपूतो ने चौहानो का इस युद्ध में साथ दिया, पुंडीर सेना पर्याप्त शक्तिशाली होने के कारण प्रारम्भ में हर राय को सफलता नहीं मिली मात्र पुण्डरी पर वो कब्जा कर पाए,राणा हर राय ने हार नजदीक देख नीमराणा से मदद बुलवाई।
नीमराणा से राणा हर राय चौहान के परिवार के राय दालू तथा राय जागर अपनी सेना के साथ इस युद्ध में हिस्सा लेने पहुंचे।।

नीमराणा की अतिरिक्त सेना और मंडाड राज्य की सेना के साथ मिलने से राणा हर राय चौहान की स्थिति मजबूत हो गयी और चौहानो ने फिर हावडी,पुंड्रक को जीत लिया,अंत में पुंडीर राजपूतो ने चूर्णगढ़ किले में अंतिम संघर्ष किया और रक्त रंजित युद्ध के बाद इस किले पर भी राणा हर राय चौहान का कब्ज़ा हो गया,
इसके बाद बचे हुए पुंडीर राजपूत यमुना पार कर आज के सहारनपुर क्षेत्र में आये और कुछ समय पश्चात् उन्होंने दोबारा संगठित होकर मायापुरी(हरिद्वार)को राजधानी बनाकर राज्य किया,बाद में इस मायापुरी राज्य के चन्द्र पुंडीर और धीर सिंह पुंडीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बड़े सामंत बने  सन 965 इसवी में नीमराना के राणा हर राय चौहान से युद्ध में हारने के बाद पुंडीर राजपूतो से हरियाणा का इलाका छीन गया। जिसके बाद इन्होने हरिद्वार (मायापुर)को राजधानी बनाकर शासन किया जो 1440 गाँव की रियासत की।
पुण्डीरों के वर्णन में है कि पुण्डीर शासक ईसम हरिद्वार का शासक था। उसके बाद क्रमशः सीखेमल, वीडो, कदम, हास और कुंथल शासक हुए। 
कुंथल के बारह पुत्र हुएः- अजत, अनत,लालसिंह, नौसर, सलाखन, गोगदे, मामदे, भाले, हद, विद, भोईग और जय सिंह। 

अजत ने निम्न ग्राम बसायेः- जुरासी, पतरासी, मोरमाजरा, खटका, लादपुर, गोगमा, हरड़, रामपुर, सोथा, हींड, मोहब्बतपुर, कैड़ी, बाबरी, बनत, हिनवाड़ा, नसला, लगदा, पीपलहेड़ा, भसानी, सिक्का।।

 अनत ने निम्न ग्राम बसायेः- दूधली, कसौली, मारवा, शेरपुर, चौवड़, दुदाहेड़ी, वामन हेड़ी, बाननगर, रामपुर, कल्लरपुर, कौलाहेड़ी, कछोली, सरवर, मगलाना।।

लालसिंह ने निम्न ग्राम बसायेः- गिरहाऊ, कोटा, खजूरवाला, माही, हसनपुर, भलसवा, बोहड़पुर।।

नौसर ने निम्न ग्राम बसायेः- नौसरहेड़ी, खुजनावर, जीवाला, हलवाना, अनवरपुर, बड़ौली, बेहड़ा, माडॅला, मानकपुर, मुसेल, गदरहेड़ी, सरदोहेड़ी, रामखेड़ी, चुबारा, गगाली, खपराना।।

सलाखन मायापुर (हरिद्वार) में ही रहा तथा वहाँ का शासक हुआ। इसके दो पुत्र चांदसिंह और गजसिंह थे। गजसिंह गंगापार रामगढ़ (वर्तमान अलीगढ़) की तरफ चला गया था। उसके वंशजों के १२५ गाँव थे, जिनमें ८० गाँव मैनपुरी और इटावा जिले में और ६ गाँव छतेल्ला, भभिला, नसीरपुर, कुलहेड़ी, रणायच।।

नानौता से देवबंद तक , सोना अर्जुनपुर, खुडाना, शमभालेडी , कुराली, सुभरी, जन्धेरी, भारी , मोरा , कलारपुर ,बडगाव , मुस्कीपुर , शिमलाना , भैयला , रनखंडी , जदोड़ा, महेशपुर इताय्दी बड़े गाव है 
इसके अलावा देहरादून उत्तराखंड में कंवाली , पृथ्वीपुर , जम्नीपुर , बदामावाला , राघंडवाला , बदोवाला, धर्मपुर , सहसपुर , इत्यादी बड़े गाव है इसके साथ ही रूडकी शहर व् उसके आस पास के गाव पहले से ही पुंडीर राजपूतो के अधिपत्य मे है  
बाद में ये अजमेर के चौहानो के सामंत बने और पृथ्वीराज चौहान की और से इन्हें पंजाब सीमा पर वहां का राज्यपाल बनाया गया। चन्द्र पुंडीर और उनके पुत्र धीर पुंडीर पृथ्वीराज के बड़े सेनापति थे। पृथ्वीराज रासो में लिखा है कि तराईन के पहले युद्ध में जब गोविन्दराज तोमर ने गौरी को घायल कर दिया तो भाग रहे गौरी को धीर पुंडीर ने ही पकड़ा था,जिसे पृथ्वी ने छोड़ दिया।।
 एक बार पृथ्वीराज शिकार खेलने गया था,उस समय शहाबुद्दीन गौरी ने भारत पर चढ़ाई की,चांदसिंह पुण्डीर ने सेना लेकर चिनाब नदी के किनारे उसका मार्ग रोका। काफी देर तक युद्ध होने के बाद चांदसिंह पुण्डीर के घायल होकर गिरने पर ही मुसलमान सेना चिनाब नदी पार कर सकी थी। पृथ्वीराज के पहुँचने पर फिर गौरी से जबरदस्त युद्ध हुआ। उसमें बगल से चांदसिंह पुण्डीर ने शत्रु पर हमला किया। उस युद्ध में इसका एक पुत्र वीरतापूर्वक युद्ध करता हुआ,मातृभूमि के लिये बलिदान हुआ था।।
शहाबुद्दीन फिर युद्ध में परास्त होकर भागा, जब पृथ्वीराज कन्नौज से संयोगिता का हरण करके भागा, तब जयचन्द की विशाल सेना ने उसका पीछा किया,जयचन्द की सेना से पृथ्वीराज के सामंतों ने घोर युद्ध करके उस विशालवाहिनी को रोका था, जिससे पृथ्वीराज को निकल जाने का समय मिल गया,उस भीषण युद्ध में चांदसिंह पुण्डीर कन्नोज की सेना से युद्ध करके जूझा था।।
इस युद्ध के कुछ महीने बाद ही चन्द्र पुंडीर पृथ्वीराज चौहान के साथ संयोगिता स्वयमर में कन्नौज के साथ हुए युद्ध में मारे गये।
एक बार जब शहाबुद्दीन भारत पर आक्रमण करने आया, तब पृथ्वीराज का सामंत जैतराव आठ हजार घुड़सवार सेना के साथ उसे रोकने के लिये गया था। उसके साथ धीर पुण्डीर तथा उसके अन्य भाई भी थे। उस युद्ध में धीर पुण्डीर का भाई उदयदेव वीर गति को प्राप्त हुआ था।।
 एक बार मुसलमान घोड़ों के सौदागर बनकर पंजाब में आए और धोखे से धीर पुण्डीर को मार डाला। इस पर पावस पुण्डीर ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया,पृथ्वीराज को जब इस घटना की खबर मिली, तब उसे बड़ा अफसोस हुआ। पावस पुण्डीर धीर पुण्डीर का पुत्र था, पृथ्वीराज के ई॰ ११९२ में गौरी के साथ हुए अन्तिम युद्ध में पावस पुण्डीर मारा गया।।
पृथ्वी राज की एक रानी धीर पुंडीर की बहन थी जिससे रणजीत सिंह का जन्म हुआ पर वो भी बाद में अल्पायु में ही मारे गये।।
दिल्ली पर तुर्को की सत्ता होने के बावजूद एक राज्य हरिद्वार सहारनपुर मुजफरनगर और दूसरा अलीगढ एटा हाथरस में पुंडीर राज्य बना रहा।
हरिद्वार (मायापुर)राज्य का अंत 14 वी सदी में तैमूर के हमले से हुआ और वहां के राजपरिवार के सदस्यों ने उतराखंड और हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र में जाकर शरण ली और छोटे छोटे राज्य स्थापित किये।
बाकी पुंडीर यही बने रहे उनमे से एक ने सहारनपुर में जसमोर राज्य स्थापित किया जो आज भी मौजूद ह और इसकी रानी देवलता पूर्व विधायक हैं।।
देहरादून में गुलाब सिंह पुंडीर ने सभी गोरखा को युद्ध मे पराजित करते हुए अपना राज्य कायम किया।
हिमाचल में छोटा सा सतोड़ा राज्य है।।
अलीगढ हाथरस एटा क्षेत्र में विजियापुर,मऊ और सिकन्दराराऊ तीन स्टेट थी जिनमे से दो 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजो ने खत्म कर दी।।
अब पुंडीर राजपूतो की जनसंख्या सहारनपुर मुजफरनगर अलीगढ एटा हाथरस हरिद्वार देहरादून हिमाचल के सिरमौर उतराखंड के गढ़वाल में है।।

मुजफ़्फ़रनगर/अब शामली में "जलालाबाद"पहले राजा मनहर सिंह पुंडीर का राज्य था और इसे मनहर खेडा कहा जाता था। इनका औरंगजेब से शाकुम्भरी देवी की ओर सड़क बनवाने को लेकर विवाद हुआ। इसके बाद औरंगजेब के सेनापति जलालुदीन पठान ने हमला किया और एक भेदीये ने किले का दरवाजा खोल दिया। जिसके बाद नरसंहार में सारा राजपरिवार मारा गया। सिर्फ एक रानी जो गर्भवती थी और उस समय अपने मायके में थी,उसकी संतान से उनका वंश आगे चला और मनहरखेडा रियासत के वंशज आज सहारनपुर के "भारी-भावसी" गाँव में रहते हैं।।
पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष सहारनपुर श्री मानवीर सिंह पुण्डीर भी उसी राजपरिवार से हैं।
इस राज्य पर जलालुदीन ने कब्जा कर इसका नाम 'जलालाबाद'रख दिया।।
 ये किला आज भी शामली रोड़ पर जलालाबाद में स्थित है।इसके गुम्बद सड़क से ही दिखते हैं।

जलालाबाद के पठानो के उत्पीड़न की शिकायत बन्दा सिंह पर गई और राजपूताने के राजाओं पर गयी।।
राजपुताना(वर्तमान राजस्थान)के राजाओं ने सेना की छोटी-2 टुकड़ी को सहायता के लिए भेज दिया। थानाभवन के रैकवार राजपूत(राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार श्री सुरेश राणा जी का परिवार),खट्टा प्रह्लादपुर के दाहिमा-राजपूत,बिराल के कुशवाहा राजपूत सब उसी समय राजस्थान से यहाँ युद्ध लड़ने आये थे।चौहान राजा की सेना युद्ध के बाद वापिस लौट गई थी।कुछ दिन बाद ही इस इलाके के पुण्डीर राजपूत व राजपुताने से आयी राजपूती फ़ौज की मदद से जलालाबाद पर बन्दा बहादुर के नेतृत्व मे हमला किया।।

 बीस दिनों तक सिक्खो और  राजपूतो ने किले को घेरे रखा। यह मजबूत किला पूर्व में पुंडीर राजपूतो ने ही बनवाया था ,इस किले के पास ही कृष्णा नदी बहती थी, बंदा बहादुर ने किले पर चढ़ाई के लिए सीढियों का इस्तेमाल किया। रक्तरंजित युद्ध में जलाल खान के भतीजे ह्जबर खान,पीर खान,जमाल खान और सैंकड़ो गाजी मारे गए।।

 जलाल खान ने मदद के लिए दिल्ली गुहार लगाई, दुर्भाग्य से उसी वक्त जोरदार बारीश शुरू हो गई और कृष्णा नदी में बाढ़ आ गई। वहीँ दिल्ली से बहादुर शाह ने दो सेनाएं एक जलालाबाद और दूसरी पंजाब की और भेज दी। पंजाब में बंदा की अनुपस्थिति का फायदा उठा कर मुस्लिम फौजदारो ने हिन्दू सिखों पर भयानक जुल्म शुरू कर दिए। इतिहासकार खजान सिंह के अनुसार इसी कारण बंदा बहादुर और उसकी सेना ने वापस पंजाब लौटने के लिए किले का घेरा समाप्त कर दिया,और जलालुदीन पठान बच गया।।

पुंडीर दुसरे राजपूत की संख्या में बहुत कम है लकिन फिर भी तीन विधायक पुंडीर है, इसके साथ ही अगर जगा भाट की बात पर गोर किया जाये तो सभी राजपूतो  में सबसे जयादा उपज वाली भूमि पुंडीर राजपूतो के पास ही है।।

जय राजपूताना ||
जय क्षात्र धर्म ||

पोस्ट सौजन्य से:- योगेंद्र पुंडीर, सुमित राणा, रोबिन पुंडीर, प्रशांत पुंडीर।।